अलविदा, खुशामदी जनो! एक ऐसी ईसाई की गवाही है जो परमेश्वर के न्याय और ताड़ना का अनुभव करती है। स्कूली शिक्षा और समाज के प्रभाव के कारण, नायिका "सामंजस्य एक निधि है, धीरज एक गुण है," "अच्छे मित्रों की गलतियों पर मौन रहने से एक दीर्घकालीन और अच्छी मित्रता बनती है," और "गलत चीज़ों पर चुप रहने में ही भलाई है," जैसी बातों को अपने जीवन के आदर्श-वाक्य मानती थी। परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकारने के बाद, जीने के इन नियमों के आधार पर उसका अपने भाई-बहनों से बातचीत और संवाद जारी रहा। जब उसे कलीसिया में नकली अगुआओं के बारे में पता चला, तो वो उन्हें उजागर करने और उनकी शिकायत करने से डर गयी, क्योंकि उसे भय था कि कहीं वे नाराज़ न हो जाएँ, इस कारण कलीसिया के काम को नुकसान पहुँचता है। परमेश्वर के वचनों के न्याय और प्रकटन से, उसे एहसास होता है कि वह अब तक जीवन के शैतानी फलसफों का अनुसरण कर रही थी, इन्हीं शैतानी फलसफों के अनुसार जी रही थी, वह भले ही कितनी भी सुशील और दयालु दिखायी देती हो, लेकिन वो स्वार्थी, घिनौनी, अस्थिर और धूर्त किस्म की खुशामदी इंसान थी। तब उसने परमेश्वर से प्रार्थना की और प्रायश्चित किया। उसके बाद, जब उसने अपने कर्तव्य का निर्वहन किया, तो सजग रहकर सत्य का अभ्यास करती रही और एक ईमानदार इंसान बन गयी।