क्या तुम लोग सदोम के विनाश में परमेश्वर के कोप का सार देख सकते हो? क्या उसके क्रोध में कोई और चीज़ मिली हुई है? क्या परमेश्वर का क्रोध पवित्र है? मनुष्य के शब्दों का प्रयोग करें तो, क्या परमेश्वर का कोप बिना किसी मिलावट के है? क्या उसके कोप के पीछे कोई छल है? क्या उसमें कोई षड्यंत्र है? क्या उसमें कोई अकथनीय रहस्य हैं? मैं कठोरता और गंभीरता से तुम्हें बता सकता हूँ : परमेश्वर के कोप का कोई अंश ऐसा नहीं है, जिस पर कोई संदेह कर सकता हो। उसका क्रोध पवित्र और मिलावट-रहित है, जिसमें कोई अन्य इरादे या लक्ष्य नहीं रहते। उसके क्रोध के पीछे के कारण पवित्र, निर्दोष और आलोचना से परे हैं। यह उसके पवित्र सार का एक स्वाभाविक प्रकाशन और प्रदर्शन है; यह कुछ ऐसा है, जो पूरी सृष्टि में किसी के पास नहीं है। यह परमेश्वर के अद्वितीय धार्मिक स्वभाव का एक अंग है, और यह सृष्टिकर्ता और उसकी सृष्टि के संबंधित सारों के बीच एक महत्त्वपूर्ण अंतर भी है।
चाहे कोई दूसरों के सामने क्रोध करे या उनके पीठ-पीछे, प्रत्येक व्यक्ति के पास अपने क्रोध का एक अलग इरादा और उद्देश्य होता है। शायद वे अपनी प्रतिष्ठा का निर्माण कर रहे होते हैं, या शायद वे अपने हितों का बचाव कर रहे होते हैं, अपनी छवि बना रहे होते हैं या अपनी लाज बचा रहे होते हैं। कुछ लोग अपने क्रोध में संयम बरतते हैं, जबकि अन्य लोग बहुत उतावले होते हैं और ज़रा भी संयम बरते बिना, जब चाहते हैं भड़क जाते हैं। संक्षेप में, मनुष्य का क्रोध उसके भ्रष्ट स्वभाव से निकलता है। उसका उद्देश्य कुछ भी हो, वह देह और प्रकृति का अंग है; उसका न्याय और अन्याय से कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि मनुष्य की प्रकृति और सार में कुछ भी सत्य के अनुरूप नहीं है। इसलिए, भ्रष्ट मनुष्य के क्रोध और परमेश्वर के कोप की तुलना नहीं की जानी चाहिए। बिना किसी अपवाद के, शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए मनुष्य का व्यवहार भ्रष्टता की रक्षा की इच्छा से शुरू होता है, और निस्संदेह यह भ्रष्टता पर आधारित होता है; इसलिए, मनुष्य के क्रोध की तुलना परमेश्वर के कोप से नहीं की जा सकती, चाहे मनुष्य का क्रोध सैद्धांतिक रूप से कितना भी उचित क्यों न लगे। जब परमेश्वर अपना कोप भेजता है, तो दुष्ट शक्तियों को रोका जाता है, बुरी चीज़ों को नष्ट किया जाता है, जबकि न्यायोचित और सकारात्मक चीज़ें परमेश्वर की देखरेख और सुरक्षा प्राप्त करती हैं और उन्हें जारी रहने दिया जाता है। परमेश्वर अपना कोप इसलिए भेजता है, क्योंकि अन्यायपूर्ण, नकारात्मक और बुरी चीज़ें न्यायोचित और सकारात्मक चीज़ों की सामान्य गतिविधि और विकास को बाधित, अवरुद्ध या नष्ट करती हैं। परमेश्वर के क्रोध का लक्ष्य अपनी हैसियत और पहचान की रक्षा करना नहीं है, बल्कि न्यायोचित, सकारात्मक, सुंदर और अच्छी चीज़ों के अस्तित्व की रक्षा करना, मनुष्य के सामान्य अस्तित्व की विधियों और व्यवस्था की रक्षा करना है। यह परमेश्वर के कोप का मूल कारण है। परमेश्वर का कोप उसके स्वभाव का बिलकुल उचित, स्वाभाविक और वास्तविक प्रकाशन है। उसके कोप के कोई गुप्त अभिप्राय नहीं हैं, न ही उसमें छल या षड्यंत्र हैं; इच्छाएँ, चतुराई, द्वेष, हिंसा, बुराई या भ्रष्ट मनुष्य में पाई जाने वाले अन्य लक्षणों होने की तो बात ही छोड़ दो। अपना कोप भेजने से पहले परमेश्वर हर मामले के सार को पहले ही पर्याप्त स्पष्टता और पूर्णता के साथ जान चुका होता है, और उसने पहले ही सटीक, स्पष्ट परिभाषाएँ और निष्कर्ष निरूपित कर लिए होते हैं। इस प्रकार, परमेश्वर द्वारा किए जाने वाले हर कार्य में उसका उद्देश्य बिलकुल स्पष्ट होता है, जैसे कि उसका रवैया स्पष्ट होता है। वह नासमझ, अंधा, आवेशपूर्ण या लापरवाह नहीं है, और वह निश्चित रूप से सिद्धांतहीन नहीं है। यह परमेश्वर के कोप का व्यावहारिक पहलू है, और परमेश्वर के कोप के इस व्यावहारिक पहलू के कारण ही मनुष्य ने अपना सामान्य अस्तित्व हासिल किया है। परमेश्वर के कोप के बिना मनुष्य असामान्य जीवन-स्थितियों में पतित हो जाता और सभी न्यायोचित, सुंदर और अच्छी चीज़ों को नष्ट कर दिया जाता और वे अस्तित्व में न रहतीं। परमेश्वर के कोप के बिना सृजित प्राणियों के अस्तित्व के नियम और विधियाँ तोड़ दी जातीं या पूरी तरह से उलट दी जातीं। मनुष्य के सृजन के समय से ही परमेश्वर ने मनुष्य के सामान्य अस्तित्व की रक्षा करने और उसे कायम रखने के लिए अपने धार्मिक स्वभाव का निरंतर इस्तेमाल किया है। चूँकि उसके धार्मिक स्वभाव में कोप और प्रताप का समावेश है, इसलिए सभी बुरे लोग, चीज़ें और पदार्थ, और मनुष्य के सामान्य अस्तित्व को परेशान करने और उसे क्षति पहुँचाने वाली सभी चीज़ें उसके कोप के परिणामस्वरूप दंडित, नियंत्रित और नष्ट कर दी जाती हैं। पिछली कई सहस्राब्दियों से परमेश्वर ने सभी प्रकार की अशुद्ध और बुरी आत्माओं को, जो परमेश्वर का विरोध करती हैं और मनुष्य का प्रबंधन करने के परमेश्वर के कार्य में शैतान के सहयोगियों और अनुचरों के रूप में कार्य करती हैं, मार गिराने और नष्ट करने के लिए अपने धार्मिक स्वभाव का लगातार इस्तेमाल किया है। इस प्रकार, मुनष्य के उद्धार का परमेश्वर का कार्य उसकी योजना के अनुसार सदैव आगे बढ़ता गया है। कहने का तात्पर्य है कि परमेश्वर के कोप के अस्तित्व के कारण मनुष्यों के सर्वाधिक नेक कार्य कभी नष्ट नहीं किए गए हैं।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II