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बीमारियों के लिए प्रार्थना: परमेश्वर पर भरोसा करके कैसे मैंने एक गम्भीर बीमारी पर जीत पायी

संपादक की टिप्पणी

जीवन में, हम अपरिहार्यत बहुत से अप्रिय चीजों का सामना करते हैं जैसे कि बीमारी की पीड़ा । जब मसीह मे झांग लेई गंभीर यूरीमिया के साथ पीड़ित थी , तो उनके पास केवल किडनी प्रत्यारोपण या डायलिसिस का विक्लप था , लेकिन उनके पास पर्याप्त धन नहीं था। हताश परिस्थितियों में फंसकर, उनहोने परमेश्वर से प्रार्थना की और परमेश्वर पर भरोसा किया और इस तरह वह परमेश्वर की इच्छा को समझ पाई। जब वह परमेश्वर की व्यवस्था और अयोजनाओ का पालन करने को तैयार थी, तो वह चमत्कारिक ढंग से स्वस्थ हो गई। उसके चमत्कारिक अनुभव को जानने के लिए अभी पढ़ें।

बीमारियों के लिए प्रार्थना: परमेश्वर पर भरोसा करके कैसे मैंने एक गम्भीर बीमारी पर जीत पायी

अपनी मृत्युकारक बीमारी के बारे में जानना, अवसाद से घिर जाना

अक्टूबर 2016 में, मैं यूरीमिया नामक बीमारी से पीड़ित हुई, बीजिंग में कई सुप्रसिद्ध अस्पतालों में जांच कराने के बाद, मुझे गुर्दे की गंभीर बीमारी का पता चला। मुझे जीवित रखने के लिए केवल दो ही उपचार थे: एक गुर्दा प्रत्यारोपण, और दूसरा डायलिसिस। यह नतीजा मेरे लिए मौत की सजा से कम नहीं था। एक सामान्य मजदूर होने के नाते मेरे पास गुर्दा प्रत्यारोपण के लिए पर्याप्त पैसे नहीं थे, इसलिए मैंने इस बारे में सोचने की हिम्मत भी नहीं की। दूसरी ओर, डायलिसिस के लिए प्रति उपचार 600 से अधिक युआन खर्च होने थे, और मुझे सप्ताह में तीन बार डायलिसिस की आवश्यकता थी, जिसका मतलब है कि मुझे हर हफ्ते अपने पति के पूरे मासिक वेतन को खर्च करना होगा, और लंबे समय में, हमारी बचत ज्यादा समय तक इस तरह के खर्च को बर्दाश्त नहीं कर पायेगी। मैं इन दोनों उपचारों का खर्च बिल्कुल भी नहीं उठा सकती थी। कोई दूसरा रास्ता न पाते हुए, मैं दर्द को दूर करने के लिए केवल चीनी दवा पर भरोसा कर सकती थी।

चीनी दवा लेते हुए, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना करना, अनुनय-विनय करना भी जारी रखा, परमेश्वर पर भरोसा मेरा एकमात्र सहारा और आशा थी, चूँकि मैं यह आशा कर रही थी कि परमेश्वर मुझे ठीक कर देंगे। लेकिन कुछ समय बीतने के बाद, मेरी बीमारी में सुधार नहीं हुआ, स्थिति और खराब हो गयी। मैंने सोचा, "परमेश्वर मनुष्य से प्रेम करते हैं, वे मृतकों को जिला सकते हैं, और परमेश्वर के हाथों में मेरी बीमारी कोई मुश्किल बात नहीं है। लेकिन परमेश्वर से प्रार्थना करने के बाद भी मेरी स्थिति में सुधार क्यों नहीं हुआ? अतीत में मैंने काफी पीड़ा भोगी थी और काम किया था, तो परमेश्वर उसे याद क्यों नहीं रख रहे और मेरी बीमारी ठीक क्यों नहीं कर रहे?"

मेरे दुःख में परमेश्वर के वचनों की सांत्वना

मैं अपनी बीमारी की पीड़ा में जी रही थी और परमेश्वर के खिलाफ शिकायत करती रहती थी। मैं दुखी थी, और मुझे नहीं पता था कि मुझे अपनी स्थिति का अनुभव कैसे करना है। अपनी कमजोरी में, मैं केवल परमेश्वर से प्रार्थना करने, अपने दर्द के बारे में बताने के लिए उनके सामने आ सकती थी। मैं परमेश्वर से बस याचना कर सकती थी कि वे मुझे इन परिस्थितियों में उनकी इच्छा को समझने में मेरी मदद और मार्गदर्शन करें।

बाद में, मैंने परमेश्वर के वचनों को पढ़ा, "लोगों के विश्वास की आवश्यकता तब होती है जब किसी चीज को नग्न आँखों से नहीं देखा जा सकता है, और तुम्हारे विश्वास की तब आवश्यकता होती है जब तुम अपनी स्वयं की धारणाओं को नहीं छोड़ पाते हो। जब तुम परमेश्वर के कार्यों के बारे में स्पष्ट नहीं होते हो, तो आवश्यकता होती है कि तुम विश्वास बनाए रखो और तुम दृढ़ रवैया रखो और गवाह बनो। जब अय्यूब इस स्थिति तक पहुँचा, तो परमेश्वर उसे दिखाई दिया और उससे बोला।" परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद, मैं समझ गयी कि मेरी बीमारी से होने वाली पीड़ा की परिस्थिति वास्तव में, परमेश्वर द्वारा मेरे विश्वास का निरीक्षण था। वे यह देख रहे थे कि क्या मैं दृढ़ रह कर गवाही दे सकती हूँ, शिकायत किये बिना रह सकती हूँ, परमेश्वर के कार्यों को नहीं देख पाने पर और अपने शरीर को पीड़ा भुगतते हुए देखकर परमेश्वर को गलत समझे बिना रह सकती हूँ या नहीं। जिस तरह अय्यूब ने अपने अकूत धन और दस बच्चों को खो दिया, फोड़े से उसका शरीर भर गया, लेकिन परमेश्वर के प्रति उसकी निष्ठा नहीं बदली। वह दृढ़ रहा और उसने परमेश्वर के लिए सुंदर, मजबूत गवाही दी, साथ ही शैतान को अपमानित किया और उसे विफल कर दिया। यह सच्चा विश्वास था। लेकिन जब मैं बीमार हुई और मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की लेकिन चंगी नहीं हुई, तो मैं शिकायतों से भर गयी, मुझमें ज़रा भी विश्वास नहीं था, अय्यूब ने जो किया यह उसके बिल्कुल विपरीत था। मैंने परमेश्वर को धन्यवाद दिया कि जब मैं कमजोर थी तब अपने वचनों से उन्होंने मेरा मार्गदर्शन किया, और अय्यूब के उदाहरण का इस्तेमाल करते हुए मुझे अभ्यास का मार्ग दिखाया ताकि मैं परमेश्वर में विश्वास न खोऊं या परमेश्वर को नकार न दूँ। मैंने बहुत प्रोत्साहित महसूस किया, और अय्यूब के उदाहरण का पालन करने की, अपनी बीमारी के कारण विश्वास न खोने की, और दृढ़ रहकर गवाही देने की इच्छा की।

बीमार और उपचार के लिए पैसों के बिना, मेरे पास कोई विकल्प न था

डेढ़ महीने बाद, जब मैं एक अन्य परीक्षण के लिए अस्पताल गयी, तो डॉक्टर ने मेरे मेडिकल इतिहास और शारीरिक स्थिति को देखा और मुझे बताया कि अगर मेरे इलाज में देरी हुई तो मेरी जान खतरे में पड़ जाएगी। उन्होंने मुझे अपना पंजीकरण शुल्क वापस लेने और फौरन डायलिसिस शुरू करने के लिए कहा। डॉक्टर की बात सुनने के बाद, मुझे बहुत विरोधाभास महसूस हुआ। डायलिसिस के बिना, मेरी स्थिति बिगड़ती रहेगी, और मैं मर जाऊँगी, लेकिन अगर मैंने इलाज कराने की कोशिश की भी, तो मैं इसके लिए भुगतान नहीं कर सकती थी। मेरे रिश्तेदारों और दोस्तों को पता था कि मुझे यूरीमिया है, और इसके उपचार के खर्चों का कोई अंत नहीं है, इसलिए उन सभी ने मुझसे दूरी बना ली दुख का वजन, मौत का खतरा, और मेरी आर्थिक तंगी ने मेरे दिल को निराशा और उदासी के बोझ तले दबा दिया! मैं अस्पताल के गलियारे में कुर्सी पर सुन्न बैठ गयी, कमजोर महसूस करते हुए मैं परमेश्वर को पुकारने से खुद को रोक पाने में असमर्थ थी, "हे परमेश्वर! क्या मेरा जीवन वास्तव में समाप्त हो रहा है? इस पूरे समय मैं, बगैर रुके, चीनी दवा लेती रही हूँ, प्रतिदिन आपसे प्रार्थना करती रही हूँ, इसके बावजूद मेरी स्थिति में सुधार नहीं हुआ, बल्कि हालात और बिगड़ गये हैं। हे परमेश्वर, मुझे नहीं पता कि अब मुझे क्या करना है, और मैं आपकी प्रबुद्धता की याचना करती हूँ ताकि मैं आपकी इच्छा को समझ सकूँ।"

प्रार्थना करने के बाद मुझे थोड़ी शांति महसूस हुई और परमेश्वर के वचनों का एक अंश मेरे दिमाग में आया, "आज भी ऐसे लोग हैं, जो परमेश्वर में शब्दशः और खोखले सिद्धांत के अनुसार विश्वास करते हैं। वे नहीं जानते कि परमेश्वर में उनके विश्वास में कोई सार नहीं है और वे परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त नहीं कर सकते। फिर भी वे परमेश्वर से सुरक्षा के आशीषों और पर्याप्त अनुग्रह के लिए प्रार्थना करते हैं। आओ रुकें, अपने हृदय शांत करें और खुद से पूछें: क्या परमेश्वर में विश्वास करना वास्तव में पृथ्वी पर सबसे आसान बात हो सकती है? क्या परमेश्वर में विश्वास करने का अर्थ परमेश्वर से अधिक अनुग्रह पाने से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता है? क्या परमेश्वर को जाने बिना उसमें विश्वास करने वाले या उसमें विश्वास करने के बावजूद उसका विरोध करने वाले लोग सचमुच उसकी इच्छा पूरी करने में सक्षम हैं?" परमेश्वर के वचनों का सामना करते हुए, मुझे बहुत शर्म महसूस हुई। मैंने महसूस किया कि मैं परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करने के बजाय केवल आशीष पाने के लिए विश्वास करती थी। परमेश्वर की अपेक्षा है कि हम अपने पूरे हृदय, आत्मा और प्रयास से उनसे प्रेम करें, उन्हें शुद्ध हृदय से संतुष्ट करें, परमेश्वर के वचनों को सुनने में और उनका अभ्यास करने में समर्थ हों। लेकिन जब से मैंने परमेश्वर में विश्वास करना शुरू किया, तब से मैंने सुसमाचार को फैलाने के लिए काम किया, त्याग किया, और अथक रूप से स्वयं को व्यय किया, लेकिन मैंने परमेश्वर से बड़े आशीष पाने के लिए, अपने द्वारा अदा की गयी कीमत को पूँजी के रूप में सौदा करने हेतु इस्तेमाल किया। मैंने जो कुछ किया वह खुद को संतुष्ट करने के लिए और आशीष पाने के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए था। इसलिए, जब मेरे पीड़ा भोगने को परमेश्वर का आशीष नहीं मिला, बल्कि इसके कारण मुझे बीमारी हो गई, तो मैं निराश हो गयी और मैंने परमेश्वर के खिलाफ शिकायत की। यह परमेश्वर के बारे में मेरी गलत धारणाओं के कारण हुआ। मैंने सोचा कि कैसे अय्यूब ने अपनी बड़ी संपत्ति खो दी थी, फोड़े से उसका शरीर भर गया था, लेकिन वह फिर भी इस तरह की गवाही देने में सक्षम था "क्या हम जो परमेश्‍वर के हाथ से सुख लेते हैं, दु:ख न लें?" (अय्यूब 2:10)। पतरस को भी सूली पर उल्टा लटका दिया गया था और वह परमेश्वर के लिए आज्ञाकारी रूप से मरा। वे दोनों परमेश्वर को संतुष्ट करने, उनकी आज्ञा और भय मानने के लिए अपने हितों को किनारे करने में सक्षम थे। ये वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करने वाले और गवाही देने वाले लोग थे। मैंने परमेश्वर की इच्छा के प्रति विचारशील होने, सृजित प्राणी के तौर पर अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने, या परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए उनमें विश्वास नहीं किया, बल्कि अधिक लाभ प्राप्त करने के प्रयास में हर जगह परमेश्वर के साथ व्यापार करने के लिए विश्वास किया। ये अनुसरण और दृष्टिकोण बिल्कुल गलत थे, और बहुत ही अधिक स्वार्थपूर्ण थे! जितना मैं सोचती, उतना ही मुझे लगता कि मैं परमेश्वर की कर्ज़दार हूँ। मैंने वर्षों से परमेश्वर पर विश्वास किया था और परमेश्वर के वचनों में से काफी कुछ पढ़ा था, लेकिन मैं परमेश्वर के वचन का पालन करने में सक्षम नहीं थी। मैं वास्तव में परमेश्वर के उद्धार के या परमेश्वर की उपस्थिति में रहने के अयोग्य थी। मैंने परमेश्वर के वचनों के एक अन्य अंश के बारे में सोचा, "जब तुम कष्टों का सामना करते हो तो तुम्हें देह पर विचार नहीं करने और परमेश्वर के विरुद्ध शिकायत नहीं करने में समर्थ अवश्य होना चाहिए। जब परमेश्वर अपने आप को तुमसे छिपाता है, तो तुम्हें उसका अनुसरण करने के लिए, अपने पिछले प्यार को लड़खड़ाने या मिटने न देते हुए उसे बनाए रखने के लिए, तुम्हें विश्वास रखने में समर्थ अवश्य होना चाहिए। इस बात की परवाह किए बिना कि परमेश्वर क्या करता है, तुम्हें उसके मंसूबे के प्रति समर्पण अवश्य करना चाहिए, और उसके विरूद्ध शिकायत करने की अपेक्षा अपनी स्वयं की देह को धिक्कारने के लिए तैयार रहना चाहिए। जब तुम्हारा परीक्षणों से सामना होता है तो तुम्हें अपनी किसी प्यारी चीज़ से अलग होने की अनिच्छा, या बुरी तरह रोने के बावजूद तुम्हें अवश्य परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहिए। केवल इसी को सच्चा प्यार और विश्वास कहा जा सकता है।" परमेश्वर के वचन वास्तव में समय पर मिले प्रावधान थे, क्योंकि उन्होंने मुझे समझाया कि अगर मैं केवल आरामदायक परिस्थितियों में परमेश्वर का अनुसरण करती हूँ तो मेरा विश्वास सच्चा नहीं है। परमेश्वर के लिए ऐसा प्रेम परीक्षण में दृढ़ नहीं रह सकता। कठिन परिस्थितियाँ हमेशा हमारे वास्तविक आध्यात्मिक कद को प्रकट करती हैं। केवल वे लोग जो वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करते हैं, उनके वचनों का अभ्यास करते हैं, वे ही हर परिस्थिति में, परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए पीड़ा भोगने को तैयार होते हैं। वे ईमानदार गवाही उत्पन्न कर सकते हैं, और वे ऐसे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर बचाना चाहते हैं। परमेश्वर के वचनों ने मुझे एक स्पष्ट दिशा दी। मैं अपने गलत दृष्टिकोणों को बदलने, आशीष पाने की अपनी इच्छा त्यागने, और वास्तव में परमेश्वर को संतुष्ट करने की कोशिश करने के लिए तैयार थी। मैं जीवन के प्रत्येक दिन के लिए, जो परमेश्वर ने मुझे दिया है, आभारी रहूँगी और यदि परमेश्वर चाहते हैं कि मेरी मृत्यु हो जाये, तो यह भी परमेश्वर की धार्मिकता थी। जब मैंने इन चीजों को समझ लिया, तो मुझे अपनी गंभीर बीमारी को लेकर दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा, और मुझे बहुत सुकून और निवारण मिला।

इसलिए, मैंने दिल से परमेश्वर से मन में प्रार्थना की, "हे परमेश्वर! आपकी प्रबुद्धता और रोशनी के लिए धन्यवाद। हालाँकि मैंने कई वर्षों से आपका अनुसरण किया है, फिर भी अब जाकर ही मैं अनुसरण के अपने गलत विचारों को समझ पायी हूँ। यदि यह बीमारी नहीं होती, तो मुझे कभी पता नहीं चलता कि मैंने जो खर्च किया और मैंने आपके लिए जो कीमत चुकाई है वह आपके साथ व्यापार करने के लिए है। मैं अब अपने गलत प्रयासों को छोड़ना चाहती हूँ, अपने जीवन को आपके हाथों में सौंपना और आपके आयोजनों को समर्पित होना चाहती हूँ। मुझे पता है कि आपका प्यार और उद्धार उस हरेक चीज़ में मौजूद है जो आप मुझ पर करते हैं। मैं अय्यूब और पतरस के उदाहरणों का पालन करना, आपके आयोजनों और व्यवस्थाओं के लिए समर्पित होना चाहती हूँ। मुझे मरना भी पड़े तो भी मैं शिकायत नहीं करना चाहती, कभी भी आपके साथ विश्वासघात नहीं करना चाहती हूँ। दृढ़ रहकर आपके लिए गवाही देना और शैतान को अपमानित करना चाहती हूँ। आमीन!" प्रार्थना करने के बाद, मैंने पहले से अधिक सुरक्षित महसूस किया।

परमेश्वर के आयोजनों को समझ कर मैं डायलिसिस के विषय में चिंतामुक्त हो गयी

जब मैं घर लौटी, तो मैंने फिर से परमेश्वर को अपनी स्थिति के बारे में बताने के लिए प्रार्थना की और यह कहने के लिए भी कि मैं परमेश्वर की अगुवाई के लिए तैयार हूँ, भले ही मेरी मृत्यु क्यों न हो जाये मैं समर्पित होने को तैयार हूँ, और मैं परमेश्वर से अब कोई अनुचित मांग नहीं करूँगी। प्रार्थना करने के बाद, मैंने परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचा, "संसार में घटित होने वाली समस्त चीज़ों में से ऐसी कोई चीज़ नहीं है, जिसमें मेरी बात आखिरी न हो। क्या कोई ऐसी चीज़ है, जो मेरे हाथ में न हो?" "परमेश्वर प्रत्येक मनुष्य के जीवन के लिए ज़िम्मेदार है और वह बिलकुल अंत तक ज़िम्मेदार है। परमेश्वर तुम्हारे लिए आपूर्ति करता है, यहाँ तक कि अगर शैतान द्वारा नष्ट किए गए इस परिवेश में तुम बीमार या प्रदूषित या संकटग्रस्त हो जाते हो, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता; परमेश्वर तुम्हारे लिए आपूर्ति करेगा और तुम्हें जीवित रखेगा। क्या तुम्हें इस पर विश्वास है? (हाँ।) परमेश्वर मनुष्य को ऐसे ही मरने नहीं देता।" परमेश्वर के वचनों ने मुझे बहुत सुकून दिया। परमेश्वर सब कुछ पर शासन करते हैं, मेरा जीवन और मेरी मृत्यु परमेश्वर के हाथों में थी, और अगर परमेश्वर ने मुझे मरने नहीं दिया, तो मैं नहीं मरूँगी, लेकिन अगर मेरा जीवन अपने अंत में था, तो कितनी भी बड़ी धनराशि मुझे बचा नहीं सकती थी। इनमें से किसी भी चीज पर इंसानों का, यहाँ तक कि डॉक्टरों का बस नहीं है। हालाँकि मुझे यूरीमिया था, जिसका इलाज करना मुश्किल है, लेकिन अगर परमेश्वर ने मुझे मरने नहीं दिया, तो मैं नहीं मरूँगी चाहे मेरे पास पैसा हो या न हो, मुझे इस तथ्य पर विश्वास होना चाहिए। इस समय, मैं केवल अपने आप को परमेश्वर को सौंपना चाहती थी और परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं का पालन करना चाहती था।

स्वयं को समर्पित करने के बाद, मैंने एक साथी मरीज़ से एक मौके से हुई मुलाकात के दौरान जाना कि अगर मैं उस जगह वापस जाऊँ जहाँ मेरा पंजीकरण हुआ है, तो प्रत्येक उपचार की लागत लगभग 200 युआन होगी। मैंने हिसाब किया और पाया कि हमारी बचत और मेरे पति के मासिक वेतन के बीच, मैं कुछ समय के लिए यह उपचार करवा सकती थी। मैंने यह बात भी परमेश्वर के सामने रखी और प्रार्थना की। प्रार्थना ने मुझे बहुत सुरक्षित महसूस कराया, और अपने पति के साथ बात करने के बाद, हम अपने गृहनगर लौट आए। मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि जिस दिन से मैंने डायलिसिस कराना शुरू किया, उसी दिन से इसे मुफ्त में प्रदान किया जाने लगा था। मैं स्पष्ट रूप से जानती थी कि यह कोई संयोग नहीं था, बल्कि परमेश्वर ने मेरे लिए रास्ता खोल दिया था। परमेश्वर कहते हैं, "जिस दिन से मनुष्य अस्तित्व में आया है, परमेश्वर ने ब्रह्मांड का प्रबंधन करते हुए, सभी चीज़ों के लिए परिवर्तन के नियमों और उनकी गतिविधियों के पथ को निर्देशित करते हुए हमेशा ऐसे ही काम किया है। सभी चीज़ों की तरह मनुष्य भी चुपचाप और अनजाने में परमेश्वर से मिठास और बारिश तथा ओस द्वारा पोषित होता है; सभी चीज़ों की तरह मनुष्य भी अनजाने में परमेश्वर के हाथ के आयोजन के अधीन रहता है। मनुष्य का हृदय और आत्मा परमेश्वर के हाथ में हैं, उसके जीवन की हर चीज़ परमेश्वर की दृष्टि में रहती है। चाहे तुम यह मानो या न मानो, कोई भी और सभी चीज़ें, चाहे जीवित हों या मृत, परमेश्वर के विचारों के अनुसार ही जगह बदलेंगी, परिवर्तित, नवीनीकृत और गायब होंगी। परमेश्वर सभी चीज़ों को इसी तरीके से संचालित करता है।" परमेश्वर ने सब कुछ बनाया, सभी सजीव और निर्जीव चीजों के अस्तित्व के नियमों पर उनका प्रभुत्व है, और सभी परमेश्वर के आयोजन और व्यवस्था के भीतर निहित हैं। हर व्यक्ति के सोच और विचार, हर कदम और जीवन की हर स्थिति में, परमेश्वर के अवलोकन के अधीन हैं। जब मैं अपनी बीमारी से विवश नहीं रह गयी और परमेश्वर के साथ मोलभाव करने की इच्छा को त्यागने और उनके आयोजनों का पालन करने के लिए तैयार हो गयी, तो परमेश्वर ने मेरी मदद के लिए लोगों, मामलों और चीजों की व्यवस्था की, ताकि मैं बिना पैसे के डायलिसिस करवा सकूँ। मुझे लगा कि मेरी कमजोरी की परवाह करते हुए, मेरा मार्गदर्शन करते हुए, मेरी मदद करते और मेरे लिए रास्ता खोलते हुए, परमेश्वर हर समय मेरे साथ थे।

मेरी गम्भीर बीमारी अचानक चमत्कारिक ढंग से ठीक हो गयी, असीम कृतज्ञता

जब मैं डायलिसिस लैब पहुंची, तो मैंने अपनी-अपनी बिमारियों से परेशान कई रोगियों को देखा, उनके चेहरे मेरे जैसे ही काले पड़ गये थे, और उसी कमजोरी और लाचारी को सह रहे थे जिसे मैं सहन कर रही थी। मेरी हालत हम सभी में सबसे गंभीर थी, लेकिन मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि मेरे स्वास्थ्य में अन्य किसी की भी तुलना में ज्यादा तेजी से लाभ हुआ था। कुछ ही महीनों में, मेरी स्थिति में सुधार हुआ, मैं मोटी हो गयी, प्रधान नर्स ने कहा कि मैं दीप्तिमान लग रही थी, और मुझे जानने वाले सभी कह रहे थे कि मैं एक अलग व्यक्ति की तरह दिख रही थी। डायलिसिस के लिए अपनी पत्नी को लेकर आए एक व्यक्ति ने उत्सुकता से मुझसे पूछा, "आप कौन सा स्वास्थ्य पूरक ले रही हैं? आपने इतनी अच्छी तरह से स्वास्थ्य लाभ पाया है, और आपके चेहरे पर एक स्वस्थ चमक है!" मैंने कहा, "मैंने कोई स्वास्थ्य पूरक नहीं लिया है, और मैं मांस और अंडे खाना पसंद नहीं करती। आज मैं जीवित हूँ, यह पूरी तरह से परमेश्वर की कृपा के कारण है!" फिर, मेरा हृदय परमेश्वर के प्रति कृतज्ञता से भर गया! मुझे पता था कि यह परमेश्वर की दया और उद्धार था!

परमेश्वर कहते हैं, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर एक सर्वशक्तिशाली चिकित्सक है! बीमारी में रहने का मतलब बीमार होना है, परन्तु आत्मा में रहने का मतलब स्वस्थ होना है।" "मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है, जीवित रहेगा" (लूका 4:4)। परमेश्वर के वचनों पर चिंतन करते हुए, जब मुझे याद आता है कि परमेश्वर ने मुझे अपनी बीमारी से कैसे निजात दिलाई है, तो मैं अक्सर परमेश्वर के समक्ष अंतहीन कृतज्ञता के आँसू बहाती हूँ! यह परमेश्वर के जीवन के वचन थे जिन्होंने मुझे सही समय पर मार्गदर्शन दिया कि मैं अपनी बड़ी बीमारी से आगे मजबूती से खड़ी रह सकूँ। जब मैं मानसिक रूप से बीमार और बेहद कमजोर थी, परमेश्वर के वचनों ने मुझे विश्वास दिलाया। जब डॉक्टर ने कहा कि मैं गंभीर रूप से बीमार थी और किसी भी क्षण मर सकती हूँ, जब मैं हताश थी, तो परमेश्वर ने मेरे मार्गदर्शन के लिए अपने वचनों का इस्तेमाल किया और मुझे बताया कि आशीष प्राप्त करने के लिए परमेश्वर में विश्वास करने का मेरा दृष्टिकोण गलत था। जब मैं परमेश्वर की ओर मुड़ी और उनकी आज्ञा मानने को तैयार थी, तो परमेश्वर ने मुझे ठीक करने के लिए लोगों, मामलों और चीजों को व्यवस्थित किया और यूरीमिया की मेरी गम्भीर बीमारी चमत्कारिक रूप से ठीक हो गई। इस असामान्य अनुभव ने मुझे वास्तव में महसूस कराया कि परमेश्वर पर विश्वास करना और उनके वचनों का अभ्यास करना बहुत महत्वपूर्ण है। परमेश्वर के वचनों में अधिकार और शक्ति है, वे हमारे सभी शारीरिक और आध्यात्मिक रोगों को ठीक कर सकते हैं, और परमेश्वर ने हमें जो सबसे बड़ा आशीष दिया है, वह है हमें जीवन के रूप में सत्य को हासिल करने की अनुमति देना। परमेश्वर जो कुछ करता है वह हमारे लिए प्रेम और मोक्ष है।

आज, मेरे स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है और मैंने कलीसिया में जिम्मेदारियां सम्भाल लीं हैं। परमेश्वर ने मुझे जो दूसरा जीवन दिया है, उससे मैं हमेशा से कहीं अधिक संजोती हूँ। हर दिन मैं इस हरी-भरी दुनिया को देख सकती हूँ, परमेश्वर द्वारा बनाई गई चीजों और परमेश्वर के वचनों के भरपूर प्रावधान का आनंद ले सकती हूँ। मैं परमेश्वर के सुसमाचार को फैलाने के लिए अपने हिस्से का कार्य कर सकती हूँ। मुझे लगता है कि मैं दुनिया की सबसे धन्य व्यक्ति हूँ! भविष्य के मद्देनज़र, परमेश्वर ने मुझमें जो कार्य किया है उसकी गवाही देने के लिए और मैं अपने कर्तव्यों का पालन करने में जो हो सके वो करना चाहती हूँ। अपने प्रति परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान देने के लिए अधिक लोगों को उनके उद्धार की गवाही देना चाहती हूँ। सारी महिमा परमेश्वर की हो!

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