संकट के समय प्रार्थना के माध्यम से, उसका बीमार पुत्र चमत्कारिक रूप से मौत के साये से निकल आया
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- मेडिकल इमरजेंसी के बाद जीवन और मृत्यु के बीच झूलते हुए
- मेरे बेटे को नया जीवन मिला, परमेश्वर के वचन उसकी शक्ति को दर्शाते हैं
- उसकी स्थिति अस्थिर होती है और परमेश्वर एक बार फिर अपने चमत्कारिक कर्म दिखाते हैं
मेडिकल इमरजेंसी के बाद जीवन और मृत्यु के बीच झूलते हुए
5 अक्टूबर, 2017 की शाम, मेरा सबसे छोटा बेटा शुन्क्सुं और उसका परिवार हमेशा की तरह, रात के खाने के लिए मेरे घर पर आए। बाद में शुन्क्सुं पढ़ाने के लिए स्कूल चला गया। 8 बजने के थोड़ी देर बाद, मेरी बहू ने फोन किया और हड़बड़ाहट में कहा, "माँ, शुन्क्सुं को अस्पताल ले जाया गया है!" मैं चौंक गई, और फौरन पूछा: "अभी जब हमने भोजन किया तब तो वह पूरी तरह से ठीक था। वह अचानक अस्पताल कैसे पहुँच सकता है?" इससे पहले कि मैं अपनी बात खत्म कर पाती, उसने जल्दी में फोन रख दिया।
मैं अपने दिल में बढ़ती घबराहट को महसूस किये बिना न रह सकी। मेरे बेटे ने अभी-अभी एक कटोरी से अधिक खाना खाया था और अस्वस्थ महसूस करने के बारे में कुछ नहीं कहा था—वह अचानक अस्पताल में भर्ती कैसे हो सकता है? मुझे याद आया कि पहले भी उसके दिल की सर्जरी हो चुकी थी—क्या उसके दिल में फिर से कोई गड़बड़ हो सकती है? यदि यह उसकी हृदय की स्थिति की पुनरावृत्ति थी, तो यह बिल्कुल भी ठीक नहीं है। मैं चिंता में घुली जा रही थी और उसे देखने के लिए अस्पताल जाना चाहती थी, लेकिन मुझे तो यह भी पता नहीं था कि वह किस अस्पताल में है। मैं क्या कर सकती थी? मैंने बहुत सोचा, और फिर अपने सबसे बड़े बेटे को फोन किया, साथ ही अपनी बेटी और उसके पति को भी फोन किया—तभी मुझे पता चला कि वे पहले से ही अस्पताल में थे, लेकिन कोई भी मुझे मेरे बेटे की स्थिति के बारे में बताना नहीं चाहता था। जितना मैं इसके बारे में सोचती, मैं उतना ही चिंतित होती गयी। मुझे न खड़े होने में चैन था न बैठने में—मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। अपनी हताशा में, मैंने परमेश्वर के बारे में सोचा और फौरन घुटने टेक कर प्रार्थना करने लगी: "मनुष्य का भाग्य परमेश्वर के हाथों से नियंत्रित होता है। तुम स्वयं को नियंत्रित करने में असमर्थ हो : हमेशा अपनी ओर से भाग-दौड़ करते रहने और व्यस्त रहने के बावजूद मनुष्य स्वयं को नियंत्रित करने में अक्षम रहता है। यदि तुम अपने भविष्य की संभावनाओं को जान सकते, यदि तुम अपने भाग्य को नियंत्रित कर सकते, तो क्या तुम तब भी एक सृजित प्राणी होते?" प्रार्थना करने के बाद, मैंने सोचा, मेरे बेटे का जीवन-मृत्यु परमेश्वर के हाथों में था, इसलिए मैं बस उसे परमेश्वर के हाथों में ही दे सकती थी। जब मैंने ऐसे सोचा तो मेरा दिल काफी हद तक शांत हो गया।
दो घंटे बाद जब मेरे सबसे छोटे बेटे की पत्नी, मेरे नाती के साथ कुछ चीजें लेने के लिए घर वापस आई, तो मैंने उससे अपने बेटे की स्थिति के बारे में पूछा। उसकी आँखों में आँसू आ गए और उसने मुझे सांत्वना देते हुए कहा: "कुछ भी गम्भीर नहीं है। आप यहाँ घर पर रहें; हम अस्पताल में उसके साथ हैं!" फिर वो जल्दी में मेरे बेटे के कुछ कपड़ों और निजी वस्तुओं को लेकर वापस जाने के लिए तैयार होने लगी। मैंने मन में सोचा: आखिर मेरे बेटे के साथ वास्तव में ऐसी क्या दिक्कत है कि वे सभी मुझे अंधेरे में रख रहे हैं? मैंने ज़िद कि वे मुझे अपने साथ ले जाएं। रास्ते में, मेरी बहू को मेरे सबसे बड़े बेटे का फोन आया, जो अस्पताल में था। मैं बस उसे चिंतित होकर यह कहते हुए सुन सकी कि: "हूं? उसका दिल इतनी तेज़ी से क्यों धड़क रहा है?" थोड़ी देर बाद चिंतित भाव से उसने कहा: "क्या? दिल में धड़कन नहीं हो रही है?" उसके शब्दों से मैं बता सकती थी कि मेरे बेटे की हालत शायद बहुत ही गंभीर थी। यदि उसका दिल धड़क नहीं रहा, तो क्या वह कभी भी... मैंने आगे कुछ सोचने की हिम्मत नहीं की, न ही अपनी बहू से कोई और सवाल करने की हिम्मत हुई। मेरा दिल चिंता में डूबा जा रहा था और मैं सोच रही थी: "मेरा बेटा अभी भी बहुत छोटा है, और उसका बेटा अभी बस पाँच साल का है। अगर उसे कुछ हो गया, तो हम क्या करेंगे?" यह सब सोचना बहुत ही परेशान करने वाला था। मैंने अपने आँसुओं को थामने की कोशिश की और अपने दिल में परमेश्वर से निरंतर प्रार्थना की कि वह मेरे ऊपर दृष्टि रखें, ताकि मैं ऐसी स्थिति में स्थिर रह सकूँ और अपने शब्दों से पाप न करूँ। उसके बाद हम जल्द ही अस्पताल पहुंच गये।
मेरे बेटे को नया जीवन मिला, परमेश्वर के वचन उसकी शक्ति को दर्शाते हैं
जब मैं अपने बेटे के बिस्तर के पास पहुंची, तो मैंने देखा कि वह बेहोश था, उसका चेहरा पीला पड़ गया था, उसके नाक में ऑक्सीजन की नली थी, और उसके हाथों और पैरों पर ईसीजी इलेक्ट्रोड क्लिप थे। ईसीजी मशीन के आसपास कई डॉक्टर और प्रोफेसर डिस्प्ले को ध्यान से देख रहे थे। वे कभी-कभार अपना सिर हिलाते और व्याकुलता का भाव दिखाते। मेरे बेटे के स्कूल के दो अध्यक्ष भी एक तरफ धीमे स्वर में चर्चा कर रहे थे, और मैंने उन्हें यह कहते हुए सुना: "उसके गिरने का दृश्य बड़ा भयानक था, ऐसा लग रहा था कि मानो उसकी साँस भी नहीं चल रही थी..."। डॉक्टरों के चेहरे पर छाये बेबसी के भाव मेरे लिए बहुत ही निराशाजनक था, और फिर जब मैंने अपने बेटे को अस्पताल के बिस्तर पर देखा, तो किसी भी बात से अनजान, मेरे दिल पर घबराहट की एक बयाँ न की जा सकने वाली लहर छा गई। मुझे डर था कि मेरा बेटा पलक झपकते ही दूर चला जाएगा— कहीं मैं अपने बच्चे को दफनाने वाली माँ नहीं बन जाउंगी? जितना मैंने इसके बारे में सोचा था उतना ही अधिक दर्द मुझे महसूस हुआ, इसलिए मैं फौरन परमेश्वर से एक मौन प्रार्थना करने लगी: "हे परमेश्वर! मुझे नहीं पता कि मेरा बेटा जीवित रहेगा या मर जायेगा—मैं वास्तव में संघर्ष कर रही हूँ। परमेश्वर! आप मेरे दिल की रक्षा करें, और चाहे जो भी हो, आप मुझे विश्वास दें ताकि मैं गवाही दे सकूँ और शिकायत न करूं। मैं केवल अपने बेटे को आपके हाथों में रखना चाहती हूँ, और आपकी व्यवस्था को समर्पित होना चाहती हूँ।" प्रार्थना के दौरान, मुझे अचानक याद आया कि परमेश्वर ने कहा था: "संसार में घटित होने वाली समस्त चीज़ों में से ऐसी कोई चीज़ नहीं है, जिसमें मेरी बात आखिरी न हो। क्या कोई ऐसी चीज़ है, जो मेरे हाथ में न हो?" परमेश्वर के वचनों ने मेरा विश्वास बढ़ाया। यह सच है! परमेश्वर का जीवन और मृत्यु पर अंतिम अधिकार है, और मेरा बेटा भी उनके हाथों में था। मेरी सारी चिंताएँ परमेश्वर के शासन में विश्वास न करने से उपजी हैं। मैं आम तौर पर कहती रहती हूँ कि किस प्रकार परमेश्वर जो भी स्थिति बनाये, मुझे वो स्वीकार है और सब कुछ उनकी हितैषी इच्छा है, लेकिन जब मैंने अपने बेटे को इतना बीमार देखा, तो मैं उसकी हालत के बारे में क्षुब्ध हुए बिना रह सकी। मैंने परमेश्वर की इच्छा की तलाश करने के लिए उसके सामने खुद को शांत नहीं किया था। जब मुझे इस बात का एहसास हुआ, तो मैंने अपने दिल में लगातार परमेश्वर को पुकारा।
मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा, "परीक्षणों से गुज़रते हुए, लोगों का कमज़ोर होना, या उनके भीतर नकारात्मकता आना, या परमेश्वर की इच्छा पर या अभ्यास के लिए उनके मार्ग पर स्पष्टता का अभाव होना स्वाभाविक है। परन्तु हर हालत में, अय्यूब की ही तरह, तुम्हें परमेश्वर के कार्य पर भरोसा अवश्य होना चाहिए, और परमेश्वर को नकारना नहीं चाहिए। यद्यपि अय्यूब कमज़ोर था और अपने जन्म के दिन को धिक्कारता था, उसने इस बात से इनकार नहीं किया कि मनुष्य के जीवन में सभी चीजें यहोवा द्वारा प्रदान की गई थी, और यहोवा ही उन्हें वापस ले सकता है।"
परमेश्वर के वचनों को ध्यान में रखते हुए, मैंने अय्यूब के उन महान परीक्षणों के बारे में सोचा जिनसे होकर वह गुज़रा था, जिसमें उसकी सम्पत्ति और उसके बच्चों को उससे ले लिया गया था, लेकिन उसने कभी भी परमेश्वर में विश्वास नहीं खोया। उसने कहा, "यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है" (अय्यूब 1:21)। यह उसकी गवाही थी। लेकिन मुझे अपने बेटे को खोने का डर था और जब डॉक्टर किसी निष्कर्ष पर नहीं आए, तो मुझे बहुत दुख हुआ—मैंने देखा कि उनके भाव निराशजनक थे। यह परमेश्वर में विश्वास कैसे हो सकता है? मुझे एहसास हुआ कि मुझे अय्यूब के उदाहरण का पालन करना होगा और परमेश्वर में सच्चा विश्वास रखने में सक्षम होना होगा। मेरे बेटे की स्थिति का चाहे जो भी परिणाम हो, मैं इसके बारे में बड़बड़ा नहीं सकती थी। परमेश्वर के वचनों से प्रोत्साहित होकर, मुझे लगा कि मुझे शक्ति और विश्वास की प्राप्ति हुई है। मैंने परमेश्वर को पुकारा, और फिर ध्यान से अपने बेटे के बगल में बैठ गयी और धीरे से एकाध बार उसका नाम पुकारा। अंत में उसे कुछ प्रतिक्रिया देते हुए, धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलते हुए और मेरी तरफ देखते हुए देखकर, मेरा दिल आनन्दित हो गया, गहरी चिंता से भरकर मैंने उससे फौरन पूछा, "क्या तुम थोड़ा बेहतर महसूस कर रहे हो?" उसने सहमति में सिर हिलाया और कहा: "मेरी छाती में... दर्द हो रहा है।" फिर वह वापस से होश खो बैठा।
थोड़ी देर बाद मैंने एक डॉक्टर को आश्चर्यपूर्वक यह कहते सुना: "आओ इसे देखो! उसकी हृदय गति और रक्तचाप सामान्य हो गया है! सबकुछ सामान्य है!" पूरे परिवार की भीड़ उमड़ पड़ी—हर कोई बहुत खुश था। उसकी दया और सुरक्षा को देखकर, मैंने अपने हृदय में बार-बार परमेश्वर को धन्यवाद दिया। यह परमेश्वर के वचन थे जिन्होंने मुझे सच्चा विश्वास दिया, मुझे हर चीज़ पर शासन करने में परमेश्वर की शक्ति और अधिकार को समझने दिया। मैंने उत्साह से कहा: "मनुष्य का भाग्य स्वर्ग से निर्धारित होता है। यह वास्तव में परमेश्वर के कारण है!" प्रभारी डॉक्टर ने भी कहा: "यह सही है। वास्तव में परमेश्वर का ही धन्यवाद करना चाहिए। यह सौभाग्य की बात है कि मरीज को दिल के दौरे के बाद समय पर यहाँ ले आया गया। अगर आधे घंटे की भी देरी होती, तो परिणाम भयानक होते। कुछ समय पहले उसका दिल पूरी तरह से रुक गया था—मैंने कभी नहीं सोचा था कि वह चमत्कारिक रूप से जीवन में वापस आएगा। हालाँकि, उसकी हालत स्थिर नहीं है। उसे निगरानी के लिए अस्पताल में रहना होगा।" मेरे बेटे को तब आईसीयू में स्थानांतरित कर दिया गया; केवल उसकी पत्नी उसकी देखभाल करने के लिए वहाँ रह गई, जबकि हम बाकी के लोग घर चले आये।
जिस क्षण मैं दरवाजे से अंदर घुसी, मैंने फौरन घुटने टेक कर परमेश्वर को धन्यवाद की प्रार्थना अर्पित की। मैं कृतज्ञता से भरी थी। मेरे सबसे विवशता भरे समय में, मेरी अगुवाई करते हुए, अपने वचनों से मुझे प्रेरणा देते हुए, मुझे विश्वास दिलाते और मुझे सहारा देते हुए, परमेश्वर हमेशा मेरे साथ थे। मुझे महसूस हुआ कि परमेश्वर का प्यार वास्तव में बहुत महान है।
उसकी स्थिति अस्थिर होती है और परमेश्वर एक बार फिर अपने चमत्कारिक कर्म दिखाते हैं
एक सप्ताह बाद, प्रभारी डॉक्टर ने हमें बताया: "परीक्षण के बाद मरीज के दिल में एक ट्यूमर का पता चला है जिसे दो सर्जरी की आवश्यकता होगी। पहला ट्यूमर को निकालने के लिए है, और फिर हमें हृदय की गति नियंत्रित करने का यंत्र लगाना पड़ेगा। आपको तुरंत 200,000 युआन की व्यवस्था करनी होगी—अगर इसमें देरी होती है, तो उनका जीवन खतरे में पड़ सकता है।" मैं सुनकर बहुत तनाव में आ गयी कि मेरा बेटा अभी भी जान के खतरे में है। अपनी चिंता में, मैंने एक बार फिर परमेश्वर से प्रार्थना की: "हे परमेश्वर! मेरा मानना है कि आप हर चीज पर शासन करते हैं। इस समय मैं कुछ नहीं कर सकती हूँ—मैं केवल आप पर भरोसा कर सकती हूँ। मैं अपने बेटे को पूरी तरह से आपके हाथों में डालती हूँ, और मैं अपने विश्वास पर भरोसा करने और आपके कार्य का अनुभव करने के लिए तैयार हूँ।" मेरे सबसे बड़े बेटे और मेरे छोटे बेटे की पत्नी पैसे जुटाने के लिए सभी जगह गए और ज़्यादा समय नहीं बीता था कि वे आवश्यक रकम लेकर आ गये। जब मेरे बेटे की सर्जरी की तैयारी के वक्त फिर से जाँच की गई, तो डॉक्टर ने कहा कि उसकी हालत गम्भीर है और वह बहुत कमजोर है; बहुत सावधानी से उसे फिर से स्वास्थ्यलाभ पहुंचाना होगा और फिर सर्जरी के लिए एक बड़े विशेषज्ञता वाले अस्पताल में स्थानांतरित किया जाएगा। उन्होंने कुछ दवाइयां लिखी और फिर मेरे बेटे को घर पर स्वास्थ्यलाभ के लिए अस्पताल से छुट्टी दे दी।
देखभाल के कुछ समय बाद मेरे बेटे के स्वास्थ्य में थोड़ा सुधार हुआ। जिस दिन वह विशेषज्ञता वाले अस्पताल गया, उसकी पत्नी वापस आई और उसने मुझे बताया कि अगले दिन सुबह 11:00 बजे उसकी सर्जरी होनी थी। उस शाम को मैंने परमेश्वर से एक और प्रार्थना की: "हे परमेश्वर! मेरे बेटे की कल सर्जरी होनी है। यह एक बहुत ही जोखिम भरी प्रक्रिया है, लेकिन कृपया मुझे विश्वास और साहस दें। मेरा मानना है कि चाहे यह सफल हो या असफल, मेरे बेटे की सर्जरी आपके हाथों में है। मेरा मानना है कि आप जो भी करते हैं वह अच्छे के लिए होता है। कल जो भी परिणाम हो, मैं समर्पित होने के लिए तैयार हूँ और मैं शिकायत नहीं करुँगी। मैं गवाह देने के लिए और आपको संतुष्ट करने के लिए तैयार हूँ।" प्रार्थना के बाद मुझे चिंता या डर नहीं लग रहा था; अगले दिन अपने बेटे की सर्जरी का सामना करने के लिए मुझमें विश्वास और शक्ति थी।
अगले दिन, मेरे बेटे को ठीक समय पर ऑपरेशन के कमरे में ले जाया गया, जबकि हम, उसका परिवार, सभी उत्सुकता से बाहर इंतजार कर रहे थे। प्रतीक्षा करते समय, मैंने अपने मन में, परमेश्वर के प्यार के बारे में सोचते हुए, परमेश्वर के वचनों को बार-बार दोहराया। मुझे पता भी नहीं चला और दो घंटे बीत गये। एक डॉक्टर ने अचानक मेरे बेटे का नाम लेकर हमें बुलाया। घबराए हुए, हम सभी उनकी ओर दौड़ पड़े, और उन्होंने भावपूर्ण होकर कहा: "हमने कभी ऐसा कुछ नहीं देखा है। आज यह वास्तव में एक आश्चर्य है! सर्जरी के पूर्व हमने जो परीक्षा की उसमें हमने पाया कि मरीज के साथ कोई भी दिक्कत नहीं थी। हमें विश्वास नहीं हुआ इसलिए हमने सावधानीपूर्वक एक और परीक्षण किया, और उससे भी यही पता चला कि सब कुछ सामान्य है। इस पर चर्चा करने के बाद, हमने निर्णय लिया कि सर्जरी की कोई आवश्यकता नहीं है। अगर घर वापस जाकर, वो काफी आराम करे तो वह ठीक हो जाएगा।" यह सुनकर हम सभी एक पल के लिए स्तब्ध रह गए—हमें अपने होश में आने में काफी समय लग गया। मैंने अपनी बहू को ख़ुशी-ख़ुशी ताली बजाते हुए देखा और कहते हुए सुना: "ये तो बहुत बढ़िया है! अब से, न केवल शुन्क्सुं को कष्ट नहीं भोगना होगा, बल्कि हमारे 200,000 युआन भी बच जायेंगे।" उस समय मैं एकमात्र ऐसी व्यक्ति थी जिसने स्पष्ट रूप से समझा कि यह परमेश्वर की शक्ति थी, यह परमेश्वर का प्यार था। उत्साह में, "परमेश्वर को धन्यवाद!" ये शब्द मेरे मुँह से निकले। मुझे नहीं पता था कि जो मैंने महसूस किया, उसे कैसे व्यक्त करूं—मैं बस अपने दिल में बार-बार परमेश्वर को धन्यवाद दे सकती थी: "हे परमेश्वर! आपने मुझे अपने वचनों के माध्यम से समय समय पर विश्वास और शक्ति दी है, जिससे मुझे इस स्थिति में दृढ़ रहने की क्षमता मिली है। अब मेरे बेटे की हालत चमत्कारिक ढंग से ठीक हो गई है। हमारे लिए आपका प्यार बहुत महान है!"
घर जाने के बाद, मैंने धन्यवाद की प्रार्थना अर्पण करने के लिए परमेश्वर के सामने घुटने टेके। बाद में मैंने परमेश्वर के वचन का यह अंश पढ़ा: "मनुष्य का जीवन परमेश्वर से उत्पन्न होता है, स्वर्ग का अस्तित्व परमेश्वर के कारण है, और पृथ्वी का अस्तित्व परमेश्वर के जीवन की सामर्थ्य से उत्पन्न होता है। प्राणशक्ति से युक्त कोई भी वस्तु परमेश्वर की प्रभुसत्ता से बाहर नहीं हो सकती, और ऊर्जा से युक्त कोई भी वस्तु परमेश्वर के अधिकार क्षेत्र से बाहर नहीं जा सकती। इस प्रकार, वे चाहे कोई भी हों, सभी को परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पित होना ही होगा, प्रत्येक को परमेश्वर की आज्ञा के अधीन रहना ही होगा, और कोई भी उसके हाथों से बच नहीं सकता है।" परमेश्वर के वचन हमें पूरी स्पष्टता के साथ बताते हैं कि परमेश्वर सभी जीवन का स्रोत हैं, स्वर्ग और पृथ्वी पर सभी चीजें—सजीव और निर्जीव—कोई भी उनके शासन से परे नहीं है। केवल परमेश्वर ही मनुष्य के रूप में हमारे जीवन की नींव हैं, और सभी चीज़ें उनके नियंत्रण और उनके शासन के तहत बदली और नवीनीकृत की जाती हैं। यह परमेश्वर के अधिकार का प्रकटीकरण है। मैंने सोचा कि बीमार पड़ने के बाद से कैसे मेरा बेटा एक के बाद एक संकट से निकला, और कैसे बार-बार डॉक्टरों के निष्कर्ष गलत निकले। प्रतिकूलता में ये परमेश्वर के वचन थे जिन्होंने मुझे सहारा देने के लिए बार-बार भरोसा दिया था। उन्होंने मुझे बार-बार कमजोरी पर विजय पाने दिया। जब मुझे परमेश्वर पर भरोसा था तो मैंने उनके चमत्कारिक कर्मों को देखा—रोगशय्या पर लेटा मेरा बेटा, अपनी आखिरी साँस में, चमत्कारिक रूप से फिर से स्वस्थ हो गया।
इस अनुभव के माध्यम से मैंने वास्तव में जाना कि परमेश्वर सब कुछ नियंत्रित करते और सब पर शासन करते हैं। यदि उनके वचनों के मार्गदर्शन के साथ-साथ उनकी कृपा और सुरक्षा नहीं होती, तो हमारे पास चाहे जितना पैसा होता, चाहे डॉक्टर कितने भी कुशल क्यों न होते, मगर मेरे बेटे को बचाया नहीं जा सकता था। मैं परमेश्वर को धन्यवाद देती हूँ कि, मेरे बेटे की बीमारी के माध्यम से, मैंने परमेश्वर के शासन की समझ प्राप्त की और ये समझ पायी कि हमारा भविष्य और भाग्य पूरी तरह से उनके हाथों में है। अबसे मैं सब कुछ परमेश्वर के साथ सहयोग में और उस कर्तव्य को निभाने में लगा देना चाहती हूँ जिसे परमेश्वर के प्यार को चुकाने के लिए एक सृजित प्राणी को निभाना चाहिए!