परमेश्वर भिन्न-भिन्न युगों के अनुसार अपने वचन कहता है और अपना कार्य करता है, तथा भिन्न-भिन्न युगों में, वह भिन्न-भिन्न वचन कहता है। परमेश्वर नियमों से नहीं बँधता है, और एक ही कार्य को दोहराता नहीं है, और न अतीत की बातों को लेकर विषाद करता है; वह ऐसा परमेश्वर है जो सदैव नया है, कभी पुराना नहीं होता है, और वह हर दिन नये वचन बोलता है। जिस चीज का आज पालन किया जाना चाहिए उसका तुम्हें पालन करना चाहिए; यही मनुष्य की जिम्मेवारी और कर्तव्य है। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि अभ्यास परमेश्वर की वर्तमान रोशनी और वास्तविक वचनों के आस-पास केन्द्रित हो। परमेश्वर नियमों का पालन नहीं करता है, और अपनी बुद्धि और सर्व-सामर्थ्य को प्रकट करने के लिए विभिन्न परिप्रेक्ष्यों से बोलने में सक्षम है। यह मायने नहीं रखता है कि वह आत्मा के परिप्रेक्ष्य से बोलता है, या मनुष्य के, या फिर किसी तीसरे व्यक्ति के परिप्रेक्ष्य से बोलता है—परमेश्वर सदैव परमेश्वर है, उसके मनुष्य के परिप्रेक्ष्य से बोलने की वजह से तुम यह नहीं कह सकते कि वह परमेश्वर नहीं है। परमेश्वर के विभिन्न परिप्रेक्ष्यों से बोलने के फलस्वरूप कुछ लोगों में कुछ धारणाएँ उभर आयी हैं। ऐसे लोगों में परमेश्वर का ज्ञान नहीं है और उसके कार्य का ज्ञान नहीं है। यदि परमेश्वर सदैव किसी एक ही परिप्रेक्ष्य से बोलता, तो क्या मनुष्य परमेश्वर के लिए भी कुछ नियम निर्धारित नहीं कर देता? क्या परमेश्वर मनुष्यों को इस तरह से कार्य करने की अनुमति दे सकता था? इस बात की परवाह किए बिना कि परमेश्वर किस परिप्रेक्ष्य से बोलता है, प्रत्येक के लिए परमेश्वर का अपना लक्ष्य है। यदि परमेश्वर ने सदैव आत्मा की दृष्टि से बोला होता, तो क्या तुम उसके साथ जुड़ने में सक्षम होते? इसलिए, तुम्हें अपने वचन प्रदान करने और वास्तविकता में तुम्हारा मार्गदर्शन करने के लिए वह तीसरे व्यक्ति के रूप में बोलता है। परमेश्वर जो कुछ भी करता है, उपयुक्त होता है। संक्षेप में, यह सब कुछ परमेश्वर द्वारा किया जाता है और तुम्हें इस बारे में जरा भी संदेह नहीं करना चाहिये। बशर्ते कि वह परमेश्वर है, तब इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है कि वह किस परिप्रेक्ष्य से बोलता है, वह तब भी परमेश्वर ही है। यह एक अडिग सत्य है। वह कार्य को कैसे भी करे, वह तब भी परमेश्वर ही है और उसका सार नहीं बदलता है! पतरस परमेश्वर से बहुत प्रेम करता था और वह परमेश्वर द्वारा प्रशंसित व्यक्ति था, किन्तु परमेश्वर ने उसके बारे में प्रभु या मसीह के रूप में गवाही नहीं दी, क्योंकि किसी प्राणी का सार वही होता है जो वह है, और कभी नहीं बदल सकता है। अपने कार्य में परमेश्वर किसी नियम का पालन नहीं करता है, किन्तु वह अपने कार्य को प्रभावशाली बनाने और अपने बारे में मनुष्य के ज्ञान में वृद्धि करने के लिए भिन्न-भिन्न तरीके उपयोग में लाता है। उसका कार्य करने का प्रत्येक तरीका मनुष्य को उसे जानने में सहायता करता है और वह मनुष्य को पूर्ण करने के लिए है? इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है कि वह कार्य करने के लिए कौन सा तरीका उपयोग में लाता है, प्रत्येक तरीका मनुष्य को बनाने और मनुष्य को पूर्ण करने के उद्देश्य से है। भले ही उसके कार्य करने के तरीकों में से कोई बहुत लंबे समय तक चला हो, किन्तु यह परमेश्वर में मनुष्य के विश्वास को दृढ़ बनाने के उद्देश्य से है। इसलिये तुम्हें संदेह नहीं करना चाहिए। ये सभी परमेश्वर के कार्य के कदम हैं और अवश्य तुम्हारे द्वारा पालन किए जाने चाहिए।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के वचन के द्वारा सब-कुछ प्राप्त हो जाता है