मुख्य किरदार को पता चलता है कि जब चीज़ें गड़बड़ा जाती हैं, तो वह अपना आपा खोये बिना और दूसरों को डांटे बिना नहीं रह पाती, वह प्रभु की शिक्षाओं पर कायम नहीं रह पाती। पाप में ज़िंदगी जीने से खुद को बाहर निकालने में नाक़ाबिल होना उसके लिए बहुत दर्दनाक हो जाता है, इसलिए वह अपने पादरी से सलाह-मशविरा करती है, मगर उसे कोई हल नहीं मिल पाता। वह अपनी मित्र को खोजती है, जिसने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार कर लिया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ने और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई-बहनों की अनुभव युक्त गवाहियों को सुनने के बाद, वह आखिरकार समझ पाती है कि परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय-कार्य से गुज़रना, पाप के बंधनों से आज़ाद होने, शुद्ध होने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए अनिवार्य है। उत्साह और जोश से भर कर वह परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार कर लेती है।
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