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चीजें नहीं जोड़ने के बारे में बाइबल में प्रकाशितवाक्य 22:18 में गद्यांश का मतलब

आजकल,बड़ी-बड़ी आपदाएं आ रही हैं। प्रभु के आगमन की आगवानी करने के इस सर्वाधिक महत्वपूर्ण समय में,केवल सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया ही सार्वजनिक रूप से प्रमाणित करती है कि प्रभु यीशु पहले ही वापस आ चुका है और परमेश्वर के घर से न्याय की बात और कार्य कर रहा है। बहुत से लोग जो सचमुच प्रभु में विश्वास करते हैं,वे खोजने और जाँच करने के लिए आ रहे हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद,उन्हें लगता है कि इन शब्दों में प्रभु यीशु के वचनों के समान ही अधिकार और सामर्थ्य है। वे सभी सत्य हैं और परमेश्वर के वचनों की तरह लगते हैं। प्रकाशित-वाक्‍य 22:18-19 में कहा गया है, "मैं हर एक को, जो इस पुस्तक की भविष्यद्वाणी की बातें सुनता है, गवाही देता हूँ: यदि कोई मनुष्य इन बातों में कुछ बढ़ाए तो परमेश्‍वर उन विपत्तियों को जो इस पुस्तक में लिखी हैं, उस पर बढ़ाएगा। और यदि कोई इस भविष्यद्वाणी की पुस्तक की बातों में से कुछ निकाल डाले, तो परमेश्‍वर उस जीवन के पेड़ और पवित्र नगर में से, जिसका वर्णन इस पुस्तक में है, उसका भाग निकाल देगा" (प्रकाशितवाक्य 22:18-19)। इसके अनुसार,पादरी और एल्डर कहते हैं, "प्रकाशित-वाक्‍य की पुस्तक में कहा गया है कि धर्म-पुस्‍तक में न तो कुछ जोड़ा सकता है, न ही हटाया जा सकता है। अगर अब कुछ लोग ऐसी गवाही दे रहे हैं कि प्रभु लौट आया है और उसने नए वचन कहे हैं,तो यह बाइबल में कुछ जोड़ना होगा। इस प्रकार,इनमें से किसी भी दावे की पूरी तरह से जाँच नहीं की जा सकती है—यह प्रभु के साथ विश्वासघात होगा। यह बिल्‍कुल वही बात है कि कैसे वे अंत के दिनों में दूसरों को सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य का अनुसरण करने और उसकी जाँच करने से रोकने का प्रयास करते हैं,और उसके वचनों को सुनने के बाद कुछ लोगों को नहीं पता होता है कि क्या करना है। इसके बाद,हम संगति करेंगे कि कैसे परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप रहने के लिए चीजों को नहीं जोड़ने की भविष्यवाणी को पूरी तरह से समझें जिसे यूहन्ना ने प्रकाशित-वाक्‍य 22:18 में कहा था।

चीज़ें नहीं जोड़ने के बारे में प्रकाशितवाक्य 22:18 में गद्यांश का मतलब

सबसे पहले,हमें प्रकाशित-वाक्‍य में इन वचनों का संदर्भ पता होना चाहिए। दरअसल,प्रकाशित-वाक्य की पुस्‍तक प्रभु के जाने के करीब 90 साल बाद लिखी गई थी। द्वीप पर,यूहन्ना ने पतमुस द्वीप पर अंत के दिनों का दर्शन होने के बाद इसे लिपिबद्ध किया था;उस समय तो नया नियम भी मौजूद नहीं था, नए और पुराने नियमों की एक पुस्तक के रूप में पूरी बाइबिल की तो बात ही दूर है। नए नियम को भी प्रभु के जाने के 300 साल बाद तक समेकित नहीं किया गया था। अत: प्रकाशितवाक्य 22:18 में वर्णित पुस्तक पूरी बाइबिल का संदर्भ नहीं थी,बल्कि प्रकाशित-वाक्‍य की पुस्तक में उस भविष्यवाणी का संदर्भ थी। अगर हम इस पर और गहराई से नज़र डालें,तो इन पदों में उस भविष्यवाणी में, न कि बाइबिल में, कुछ जोड़ने वाले लोगों के बारे में बात की जा रही है। इन दो तथ्यों से हम जान सकते हैं कि इसमें कुछ भी नहीं जोड़ने की बात कहने का मतलब यह नहीं है कि बाइबल से बाहर परमेश्‍वर का कोई नया कार्य या वचन नहीं होगा,बल्कि यह हमें बता रहा है कि हम मनमाने ढंग से प्रकाशितवाक्‍य की पुस्तक की भविष्यवाणियों में कुछ भी नहीं जोड़ सकते।

बाइबल का सार: क्या बाइबल परमेश्वर के सारे वचन है ?

इसके अलावा, प्रकाशित-वाक्‍य में हमें इन वचनों के सही मतलब के बारे में स्पष्ट होने की जरूरत है। यह लिखा गया है : "यदि कोई मनुष्य इन बातों में कुछ बढ़ाए...।" हम समझ सकते हैं कि यह हमारे लिए एक चेतावनी थी : मनुष्य मनमाने ढंग से भविष्यवाणियों में कुछ भी नहीं जोड़ सकते हैं। क्योंकि ये ऐसे काम हैं जिन्‍हें परमेश्वर द्वारा स्वयं भविष्य में किया जाएगा, इसलिए लोग यह नहीं जान सकते कि जब तक स्वयं परमेश्वर कार्य करने के लिए नहीं आएगा तब तक ये वास्तव में कैसे पूरे होंगे। अगर लोग मनमाने ढंग से इस बुनियाद पर अपने विचारों की परत चढ़ाते जाएंगे,तो यह परमेश्वर के वचनों को विकृत करना होगा और परमेश्वर के स्वभाव के प्रति अपराध होगा—उन्‍हें परमेश्वर का दण्‍ड भुगतना पड़ेगा। हमें पता होना चाहिए कि प्रकाशित-वाक्‍य में इन वचनों का लक्ष्य हम इंसान हैं,न कि परमेश्‍वर। परमेश्वर सृष्टिकर्ता है और सब कुछ उसके हाथों में है। वह भविष्यवाणियों की सीमा के बाहर अपना कार्य करने के काबिल है और कोई सृजित जीव बाधा नहीं डाल सकता, और न ही वह इच्छानुसार इसका परिसीमन कर सकता है। उदाहरण के लिए, बाइबल के विधि-विवरण 12:32 में कहा गया है, "जितनी बातों की मैं तुमको आज्ञा देता हूँ उनको चौकस होकर माना करना; और न तो कुछ उनमें बढ़ाना और न उनमें से कुछ घटाना।" यहाँ, यहोवा परमेश्वर स्पष्ट रूप से हमें बताता है कि लोग उसकी आज्ञाओं में कुछ भी नहीं जोड़ सकते, लेकिन अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु के कार्य और वचन धर्म-पुस्‍तकों में दर्ज नहीं किए गए थे,और वे व्‍यवस्‍था की आवश्यकताओं से भी पूरी तरह से अलग थे। व्‍यवस्‍था के युग में आँख के बदले आँख और दांत के बदले दांत की आवश्यकता की तरह, लेकिन जब प्रभु यीशु कार्य कर रहा था, तो उसने कहा, "तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था, कि आँख के बदले आँख, और दाँत के बदले दाँत। परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि बुरे का सामना न करना; परन्तु जो कोई तेरे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे, उसकी ओर दूसरा भी फेर दे। और यदि कोई तुझ पर मुकद्दमा करके तेरा कुर्ता लेना चाहे, तो उसे अंगरखा भी ले लेने दे" (मत्ती 5:38-40)। इसके अलावा, यहोवा परमेश्वर ने व्‍यवस्‍था के युग में लोगों को अपने दुश्मनों से नफरत करने के लिए कहा, लेकिन अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु ने यह बात कही : "परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सतानेवालों के लिये प्रार्थना करो" (मत्ती 5:44)। जैसा कि पुराने नियम में उलझे हुए लोगों ने इसे देखा, प्रभु यीशु ने जो कुछ कहा उसका एक बड़ा भाग व्‍यवस्‍था की सीमा से बाहर था और व्‍यवस्‍था का परिशिष्ट था, इस प्रकार उन्होंने प्रभु का अनुसरण नहीं किया। विशेष रूप से पाखंडी प्रभु यीशु की निंदा करने के लिए पुराने नियम की व्‍यवस्‍था से चिपके रहे। इस प्रकार उन्‍होंने पवित्र आत्मा की निंदा करने का राक्षसी पाप किया। क्या यह मनुष्यों की ओर से घोर विद्रोह नहीं था? परमेश्वर का अपने वचनों में यह कहना है कि इंसान से उसकी अपेक्षाओं में कुछ भी जोड़ा या हटाया नहीं जा सकता है, हम परमेश्वर के वचनों की अपेक्षाओं को स्वयं परमेश्वर पर कैसे थोप सकते हैं? परमेश्वर सभी चीज़ों का शासक है और उसका कार्य उसकी योजना के अनुसार होता है। यह किसी भी मनुष्‍य द्वारा निरूद्ध नहीं है,न ही यह बाइबिल के वचनों तक ही सीमित है।

परमेश्‍वर कहता है, "नए विधान के दौरान यीशु द्वारा किए गए कार्य ने नए कार्य की शुरुआत की : उसने पुराने विधान के कार्य के अनुसार कार्य नहीं किया, न ही उसने पुराने विधान के यहोवा द्वारा बोले गए वचनों को लागू किया। उसने अपना कार्य किया, और उसने बिलकुल नया और ऐसा कार्य किया जो व्यवस्था से ऊँचा था। इसलिए, उसने कहा : 'यह न समझो, कि मैं व्यवस्था या भविष्यद्वक्‍ताओं की पुस्तकों को लोप करने आया हूँ, लोप करने नहीं, परन्तु पूरा करने आया हूँ।' इसलिए, जो कुछ उसने संपन्न किया, उससे बहुत-से सिद्धांत टूट गए। सब्त के दिन जब वह अपने शिष्यों को अनाज के खेतों में ले गया, तो उन्होंने अनाज की बालियों को तोड़ा और खाया; उसने सब्त का पालन नहीं किया, और कहा 'मनुष्य का पुत्र तो सब्त के दिन का भी प्रभु है।' उस समय, इस्राएलियों के नियमों के अनुसार, जो कोई सब्त का पालन नहीं करता था, उसे पत्थरों से मार डाला जाता था। फिर भी यीशु ने न तो मंदिर में प्रवेश किया और न ही सब्त का पालन किया, और उसका कार्य पुराने विधान के समय के दौरान यहोवा द्वारा नहीं किया गया था। इस प्रकार, यीशु द्वारा किया गया कार्य पुराने विधान की व्यवस्था से आगे निकल गया, यह उससे ऊँचा था, और यह उसके अनुसार नहीं था।" यह स्पष्ट है कि परमेश्‍वर नियमों से चिपका नहीं रहता। हर युग में,परमेश्वर नया कार्य करता है और नए वचन बोलता है—वह पिछले युग की व्‍यवस्‍थाओं और अध्यादेशों से बँधा नहीं होता। परमेश्वर अपने कार्य और हमारी आवश्यकताओं के अनुसार कार्य करता है। वह निरंतर नए वचन बोल रहा है; यही मानवजाति को उच्च-स्‍तर पर पहुँचाने का एकमात्र तरीका है ताकि हम शैतान की ताकतों से पूरी तरह बच सकें और अंततः परमेश्वर का उद्धार प्राप्त कर सकें। यही कारण है कि हम परमेश्वर के कार्य और वचनों को बाइबल की सीमाओं में नहीं बाँध सकते, और हम विशेष रूप से इंसान से परमेश्वर की अपेक्षा के आधार पर उससे यह माँग नहीं कर सकते कि बाइबल में न तो कुछ जोड़ा जाए और न ही यह तय कर सकते हैं कि परमेश्वर का कोई भी नया वचन बाइबल के बाहर नहीं हो सकता।

अगर लोगों में धर्म-पुस्‍तक के उस गद्यांश की विशुद्ध समझ नहीं है और वे अपनी बेतुकी धारणाओं से चिपके हैं तो फिर जो बात परमेश्वर के कार्य को परिसीमित करती है,क्‍या उससे परमेश्वर के स्वभाव को ठेस नहीं पहुँचेगी? बिल्‍कुल उसी तरह जैसे पाखंडियों ने निष्कर्ष निकाला था कि प्रभु यीशु ने लोगों को धोखा दिया था क्योंकि वे पुरानी व्‍यवस्‍था से चिपके थे और मानते थे कि उसके वचन व्‍यवस्‍था में कुछ नया जोड़ रहे हैं। उन्होंने प्रभु के वचनों और कार्य को स्वीकार करने के बजाय, प्रभु यीशु को ही सूली पर चढ़ा दिया,और अंततः परमेश्वर द्वारा दंडित किए गए। हमें पाखंडियों की विफलता से सबक सीखना चाहिए। हम बाइबल में परमेश्वर को परिसीमित नहीं कर सकते और यह मानकर नहीं चल सकते कि बाइबल से परे परमेश्वर का कोई कार्य नहीं है। परमेश्वर सभी चीज़ों का शासक है,और वह अपनी योजना और मानवजाति की आवश्यकताओं के अनुसार नए वचन बोलेगा। प्रभु यीशु ने कहा था, "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा, परन्तु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)

प्रकाशित-वाक्‍य में कहा गया है कि प्रभु जब लौटेगा, तो नए वचन बोलेगा

प्रभु यीशु ने कहा था, "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा, परन्तु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)

प्रकाशित-वाक्‍य की पुस्तक की भी भविष्यवाणियाँ हैं : "जिसके कान हों, वह सुन ले कि पवित्र आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है; जो जय पाए, उसको मैं गुप्त मन्ना में से दूँगा, और उसे एक श्वेत पत्थर भी दूँगा; और उस पत्थर पर एक नाम लिखा हुआ होगा, जिसे उसके पानेवाले के सिवाय और कोई न जानेगा" (प्रकाशितवाक्य 2:17)। "और जो सिंहासन पर बैठा था, मैंने उसके दाहिने हाथ में एक पुस्तक देखी, जो भीतर और बाहर लिखी हुई थी, और वह सात मुहर लगाकर बन्द की गई थी। फिर मैंने एक बलवन्त स्वर्गदूत को देखा जो ऊँचे शब्द से यह प्रचार करता था 'इस पुस्तक के खोलने और उसकी मुहरें तोड़ने के योग्य कौन है?' और न स्वर्ग में, न पृथ्वी पर, न पृथ्वी के नीचे कोई उस पुस्तक को खोलने या उस पर दृष्टि डालने के योग्य निकला। तब मैं फूट-फूटकर रोने लगा, क्योंकि उस पुस्तक के खोलने, या उस पर दृष्टि करने के योग्य कोई न मिला। इस पर उन प्राचीनों में से एक ने मुझसे कहा, 'मत रो; देख, यहूदा के गोत्र का वह सिंह, जो दाऊद का मूल है, उस पुस्तक को खोलने और उसकी सातों मुहरें तोड़ने के लिये जयवन्त हुआ है'" (प्रकाशितवाक्य 5:1-5)। "पवित्र आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है" और "गुप्‍त मन्‍ना" में उल्लेख किया गया है, सात मुहरों वाली सूचीपत्र जिसे खोला जाना है, आदि-आदि, सभी यही साबित करते हैं कि जब परमेश्वर अंत के दिनों में वापस आएगा तो उसके पास बोलने के लिए और अधिक वचन और करने के लिए और अधिक कार्य होगा; वह उन सभी रहस्यों को खोलेगा, जिन्हें हमने पहले कभी नहीं समझा है। तो, क्या हम सचमुच में यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि इन वचनों "यदि कोई मनुष्य इन बातों में कुछ बढ़ाए...।" के कारण बाइबल के बाहर परमेश्वर का कोई भी वचन नहीं हो सकता?

अंत में, प्रकाशितवाक्य 22:18-19 में भविष्यवाणी स्पष्ट रूप कहती है "और यदि कोई इस भविष्यद्वाणी की पुस्तक की बातों में से कुछ निकाल डाले, तो परमेश्‍वर उस जीवन के पेड़ और पवित्र नगर में से, जिसका वर्णन इस पुस्तक में है, उसका भाग निकाल देगा।" यह हमें बताती है कि भविष्यवाणी की विषयवस्‍तु को हटाया नहीं किया जा सकता। अगर हम प्रकाशित-वाक्‍य की भविष्यवाणी में दिए गए सत्‍य को न मानें और उस पर विश्वास न करें कि वापस लौटने पर परमेश्वर वचन बोलेगा, तो क्या यह भविष्यवाणी की विषयवस्‍तु को हटाना नहीं है? क्या यह प्रभु के वापस आने और प्रभु के वापस आने की भविष्यवाणी को नकारना नहीं है? इस तरह, हम अंत के दिनों में परमेश्‍वर का उद्धार कैसे प्राप्त कर सकते हैं और परमेश्‍वर के राज्य में कैसे प्रवेश कर सकते हैं? इसलिए, प्रभु की वापसी का स्वागत करने के महत्वपूर्ण मामले में, हमें धार्मिकता के लिए भूखा और प्यासा हृदय और सत्य की तलाश करने वाला हृदय बनाए रखना चाहिए और प्रकाशितवाक्य 22:18-19 के अर्थ को पूरी तरह से समझना चाहिए। हमें अपनी किसी भी धारणा या कल्पनाओं से बाधित नहीं होना चाहिए—यही अंत के दिनों में प्रभु के प्रकटन का स्वागत करने का एकमात्र तरीका है, बुद्धिमान कुँवारी बनें और परमेश्वर के सिंहासन के सम्‍मुख आरोहण प्राप्त करें। जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा था, "धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है। ... धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं, क्योंकि वे तृप्त किये जाएँगे। ... धन्य हैं वे, जिनके मन शुद्ध हैं, क्योंकि वे परमेश्‍वर को देखेंगे" (मत्ती 5:3, 6, 8)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने हम इंसानों के लिए लाखों वचन बोले हैं, जिन्हें ऑनलाइन प्रकाशित किया गया है ताकि जो लोग सचमुच परमेश्वर में विश्वास करते हैं और सत्य के लिए प्यासे हैं, वे उनका अनुसरण और उनकी जाँच कर सकें। बहुत से लोगों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़कर, यह देखा है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में अधिकार और सामर्थ्य है और वे सत्य हैं, जो लोगों को रास्‍ता दिखाने और उनके जीवन-पोषण में सक्षम हैं, और एक‌-एक करके परमेश्वर के सिंहासन के सम्‍मुख लौट रहे हैं। जिन लोगों ने परमेश्वर के अंत के दिनों के वचनों और कार्य को स्वीकार कर लिया है, वे सभी बुद्धिमान कुँवारियाँ हैं। परमेश्वर की वाणी सुनकर, वे मेमने के साथ दावत में जाते हैं। इससे प्रकाशित-वाक्य की पुस्तक की यह भविष्यवाणी पूरी तरह से साकार हो जाती है : "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा, और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20)। इसने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को भी पूरा किया है: "मेरी वाणी पूरी पृथ्वी पर फैल जाएगी; मैं चाहता हूँ कि अपने चुने हुए लोगों के समक्ष मैं और अधिक वचन बोलूँ। मैं पूरे ब्रह्मांड के लिए और पूरी मानवजाति के लिए अपने वचन बोलता हूँ, उन शक्तिशाली गर्जनाओं की तरह जो पर्वतों और नदियों को हिला देती हैं। ... सभी लोग मेरे सिंहासन के सामने आएँ और मेरे महिमामयी मुखमंडल को देखें, मेरी वाणी सुनें और मेरे कर्मों को देखें। यही मेरी संपूर्ण इच्छा है; यही मेरी योजना का अंत और उसका चरमोत्कर्ष है, यही मेरे प्रबंधन का उद्देश्य भी है। सभी राष्ट्र मेरी आराधना करें, हर ज़बान मुझे स्वीकार करे, हर मनुष्य मुझमें आस्था रखे और सभी लोग मेरी अधीनता स्वीकार करें!"

हमारे 'बाइबल अध्ययन' पृष्ठ पर आपका स्वागत है, जो बाइबल को गहराई से जानने और परमेश्वर की इच्छा को समझने में आपकी मदद कर सकता है।

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