इसमें 20 साल लग गए लेकिन मैं आखिरकार लौटे हुए प्रभु के नक्शेकदमों का अनुसरण कर रहा हूं
मैं एक कैथोलिक परिवार में पली-बढ़ी हूँ, जब मैं छोटी थी, तो मैं अपने माता-पिता के साथ भक्तिपूर्ण विश्वास का जीवन जीती थी, प्रभु की भरपूर कृपा का आनंद लेती थी और सक्रिय रूप से कलीसिया के समारोहों में हिस्सा लेती थी। उस समय में, पुरोहित अक्सर कहा करते थे, "प्रभु अंत के दिनों में लौट आएंगे और इसलिए हमें इंतजार करना चाहिए। किसी भी समय हमें प्रभु को छोड़ना नहीं चाहिए, क्योंकि यदि हम दूसरे धर्म को स्वीकार करते हैं, तो वह प्रभु के साथ विश्वासघात और एक अक्षम्य पाप होगा।" मैंने पुरोहित के शब्दों को दिल से मान लिया और जीवन भर प्रभु का पालन करने और उन्हें कभी धोखा न देने का संकल्प लिया।
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- कलीसिया उजाड़ हो जाती है और मैं अपना मार्ग खो बैठती हूँ
- अपने धारणाओं से चिपके रहने के कारण, प्रभु का उद्धार मेरे सामने से निकल गया志
- विदेशों में भी स्थिति अलग नहीं थी—प्रभु कहाँ थे?
- मेरा फिर से प्रभु के प्रेम के संग सामना होता है
- जिन अवधारणाओं से मैं चिपकी हुई थी, वे गलत थीं
- मैं परमेश्वर के कार्य के तीं चरणों को समझती हूँ और प्रभु की वापसी का स्वागत करती हूँ
कलीसिया उजाड़ हो जाती है और मैं अपना मार्ग खो बैठती हूँ
हालाँकि, बाद में, मुझे लगा कि कलीसिया धीरे-धीरे प्रभु का आशीष खो रही है, पुरोहित द्वारा दिए गए उपदेश फीके और नीरस हैं। प्रत्येक सभा में, पुरोहित या तो यूहन्ना या मत्ती के सुसमाचार का उपदेश देते थे, जो विश्वासियों की समस्याओं को बिल्कुल भी हल नहीं कर पाता था। भाई-बहनों का विश्वास ठंडा पड़ गया, उनकी आत्माएँ कमज़ोर हो गईं, कोई भी मिस्सा के दौरान अधिक उत्साह नहीं दिखाता था और कलीसिया के सभाओं में भाग लेने वालों की संख्या कम होती चली गई। कलीसिया ने एक कारखाने की स्थापना की और विश्वासियों को उस कारखाने में शेयरधारक बनने के लिए जोड़ लिया, इस प्रकार एक कलीसिया जिसने प्रभु की आराधना की थी, एक धर्मनिरपेक्ष व्यावसायिक उद्यम के समान बन गया। मुझे इससे भी अधिक धक्का तब लगा, जब बिशप का पद पाने की होड़ में, हमारे पुरोहित ने अपने छोटे भाई को एक अन्य पुरोहित का अपहरण करने और उसका कान काटने के लिए भेज दिया और इस प्रकार दूसरे पुरोहित को अमान्य बना दिया जिससे वो बिशप का पद ग्रहण न कर सके। मामला सामने आने के बाद, उस पुरोहित और उसके छोटे भाई को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। ...घटनाओं की यह लड़ी मेरी कल्पना के परे थी: हमारी कलीसिया इतनी नीच और अंधकारमय कैसे हो सकती है? क्या प्रभु अब भी इस कलीसिया में मौजूद थे? मुझे बहुत दुःख हुआ, मुझे लगा कि मैं खो गयी हूँ।
अपने धारणाओं से चिपके रहने के कारण, प्रभु का उद्धार मेरे सामने से निकल गया
1998 में, मैं बहन गुओ से मिली, जो अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य का प्रचार कर रही थी। उन्होंने मेरे साथ संगति की और कहने लगीं, "अब हम अंत के दिनों में हैं और प्रभु यीशु देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में लौट आए हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने अनुग्रह के युग को समाप्त कर दिया है, राज्य के युग का सूत्रपात किया है, वह सत्य को व्यक्त करते हैं और परमेश्वर के घर में शुरू होने वाले न्याय के कार्य को करते हैं। अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य का अनुसरण करके, हम मेम्ने के नक्शेकदम पर चल रहे हैं और हम अंत के दिनों में परमेश्वर के उद्धार को प्राप्त कर सकते हैं। परमेश्वर अब एक नया कार्य कर रहे हैं और पवित्र आत्मा का कार्य स्थानांतरित हो गया है। धार्मिक दुनिया ने बहुत पहले ही पवित्र आत्मा के कार्य को खो दिया है, पादरियों के पास उपदेश देने के लिए कुछ भी नहीं है, विश्वासियों का विश्वास ठंडा पड़ गया है और अधर्म बढ़ता जा रहा है। कलीसिया उजाड़ हो गयी है, हमें बुद्धिमान कुंवारियों के जैसा होना चाहिए और परमेश्वर की वाणी सुनने का ध्यान रखना चाहिए, महान शहर बेबीलोन से विदा लेनी चाहिए, एक ऐसी कलीसिया की खोज करनी चाहिए जिसमें पवित्र आत्मा का कार्य हो और सच्चे मार्ग की तलाश और जांच करनी चाहिए। यह एकमात्र सही काम है।"
बहन गुओ की संगति सुनते हुए, मैंने सोचा कि यह कितना उचित लगता है। कलीसिया उजाड़ हो गयी है, हमारी आत्माएं प्यास से तड़प रही हैं, और हम अब प्रभु की उपस्थिति को महसूस नहीं कर पा रहे हैं—हमें अपनी कलीसिया को छोड़ना होगा और एक ऐसी कलीसिया की तलाश करनी होगी जिसमें पवित्र आत्मा का कार्य हो। लेकिन तब मैंने पुरोहित ने जो कहा था उसके बारे में सोचा: अगर हमने कैथोलिक धर्म छोड़ दिया और दूसरी कलीसिया की जाँच की, तो हम प्रभु के साथ विश्वासघात करेंगे और एक अक्षम्य पाप करेंगे, इसलिए मुझे डर लगा। बाद में, सिस्टर गुओ तीन बार मेरे पास आईं, लेकिन मैंने हर बार विनम्रता से मना कर दिया। उसके बाद, बहन गुओ सुसमाचार का प्रचार करने के लिए कहीं और चली गईं और मैंने उन्हें फिर कभी नहीं देखा। इसके बाद के वर्षों में, मेरी कलीसिया की स्थिति साल-दर-साल बिगड़ती गई और अधर्म के उदाहरण बढ़ने लगे। पुरोहितों के पास अभी भी उपदेश देने के लिए कुछ भी नहीं था, पदों के लिए संघर्ष करते हुए, वे ईर्ष्यापूर्ण विवादों में लिप्त हो जाते थे, गुट बनाकर एक-दूसरे पर हमला करते थे। कुछ विश्वासियों ने तो कलीसिया को पूरी तरह से छोड़ भी दिया और अपने काम पर ध्यान केंद्रित करने लगे। इन घटनाओं का सामना करते हुए, मुझे दर्द और बेबसी महसूस हुयी, मैंने कलीसिया की सभाओं में जाना बंद कर दिया, इसके बजाय मैंने अपने धर्म का पालन करन जारी रखा और घर पर बाइबल पढ़ने लगी।
विदेशों में भी स्थिति अलग नहीं थी—प्रभु कहाँ थे?
जुलाई 2013 में, मैं अपनी बेटी को उसके बच्चे की देखभाल में मदद करने के लिए दक्षिण कोरिया आ गई। अपने खाली समय में, मैंने सोचा कि मुझे एक कलीसिया ढूंढनी चाहिए ताकि मैं कलीसियाई जीवन जी सकूँ, मैंने सोचा कि शायद दक्षिण कोरिया में कैथोलिक कलीसियाओं की स्थिति चीन से बेहतर होगी। हालाँकि, कुछ समय बाद, मुझे पता चला कि दक्षिणी कोरिया में मिस्सा सिर्फ एक धार्मिक समारोह के ढर्रे पर चल रहा था, इससे अधिक ये और कुछ नहीं था। एक बार, मिस्सा खत्म होने के बाद, मैंने आंगन में बहुत सी चीजें देखीं: सभी तरह के व्यावसायिक उत्पाद, मेकअप के उत्पाद और स्वास्थ्य सम्बन्धी उत्पाद थे, धर्म-बहनें, विश्वासियों को अपने सामान बेचने की कोशिश कर रही थीं और किसी के कुछ न खरीदने पर विशिष्ट रूप से दुखी दिख रही थीं। इस तमाशे को देखते हुए, मैं व्यवस्था के युग के अंत के बारे में सोचे बिना न रह सकी, जब मंदिर मवेशियों, भेड़ों और कबूतरों के व्यापार का स्थान बन गया था। मैंने यह सोचते हुए एक गहरी आह भरी: मैंने कभी भी उम्मीद नहीं की थी कि विदेशों में भी कैथोलिक कलीसिया की वही स्थिति होगी। यह प्रभु की आराधना करने का स्थान नहीं है, बल्कि यह केवल व्यापार का स्थान बन गया है! व्यवस्था के युग के अंत के मंदिरों और इसके बीच क्या अंतर है? आखिर प्रभु कहाँ चले गए हैं? ओह, जब मैं कैथोलिक धर्म में प्रभु की उपस्थिति को महसूस नहीं कर पा रही, तो इसे ढोने का क्या अर्थ है? यह सोचकर, मुझे एहसास हुआ कि बेहतर होगा मैं दूसरी कलीसियाओं पर एक नज़र डालूँ, लेकिन पुरोहित ने जो कहा था उसके बारे में सोचकर, कि अन्य संप्रदाय में परिवर्तित होना प्रभु के साथ विश्वासघात करना होगा, मैंने इस विचार को त्याग दिया।
बाद के दिनों में, जब भी मैंने अपनी दीवार पर प्रभु यीशु की तस्वीर देखती थी, तो मुझे बयाँ न कर सकने वाले दुःख की अनुभूति होती थी। मैं अभी समझ नहीं पा रही थी: आखिर धार्मिक दुनिया में क्या गलत था? क्या वास्तव में प्रभु ने इसे छोड़ दिया है? लेकिन तब प्रभु कहाँ चले गए हैं? मुझे ऐसा लगा कि मैं बहुत खो गयी हूँ और बेबस हो गयी हूँ, हर दिन मैं प्रभु से प्रार्थना करती: "हे प्रभु, आप कहां हैं? ..."
मेरा फिर से प्रभु के प्रेम के संग सामना होता है
2017 के बसंत उत्सव की पूर्व संध्या पर, मैं बहन हुआंग से मिली, और मैंने उसे पिछले कुछ वर्षों में कैथोलिक धर्म के अपने अनुभवों के बारे में बताया। मेरी बात सुनने के बाद, उसने मुझे अपनी कलीसिया में बुलाया। एक बार जब मैं वहाँ गयी, तो मैंने देखा कि सभी भाई-बहनों ने मेरा स्वागत किया, वे सभी ईमानदार और सभ्य लोग थे जो उत्साही और सच्चे थे, और मैं तुरंत उनके प्रति स्नेह से भर गयी।
बाद में, भाइयों में से एक ने मेरे समक्ष गवाही दी कि अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, देहधारी होकर चीन में आये हैं और परमेश्वर के भवन से शुरू होने वाले न्याय के कार्य को कर रहे हैं। जब मैंने यह सुना, तो मुझे अचानक याद आया कि सिस्टर गुओ ने भी 20 साल पहले मेरे लिए अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य का उपदेश दिया था। उस वक्त, मैंने इसकी जाँच करने से इनकार कर दिया था क्योंकि मुझे धर्मत्याग करने से डर लगता था। अब, जब मैंने इस मार्ग के बारे में फिर से सुना, तो मैंने सोचा: क्या इसके पीछे प्रभु की भली मंशा है? क्या प्रभु ने मेरी प्रार्थना सुनी है? मुझे दिल में खुशी के संग कुछ संदेह और उत्सुकता महसूस हुई। तब भाइयों और बहनों ने मुझे, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की उत्पत्ति और विकास" और परमेश्वर के वचनों के भजन, "पूरब की ओर लाया है परमेश्वर अपनी महिमा" का संगीत वीडियो दिखाया। उन्हें देखकर मैं बहुत द्रवित हो गयी।
बाद में, एक बहन ने संगति देते हुए कहा, "परमेश्वर अब चीन में देहधारण कर चुके हैं और वे इजरायल से अपनी महिमा पूर्व में ले आए हैं। लोगों को पाप के बंधनों से बचाने के लिए और परमेश्वर द्वारा हमारे लिए तैयार की गयी खूबसूरत मंजिल में हमें प्रवेश करने में सक्षम बनाने के लिए, वह सत्य व्यक्त करते हैं और परमेश्वर के भवन से शुरू होने वाले न्याय के कार्य को अंजाम दे रहे हैं।" धार्मिक जगत की उदासीनता और अंधकार की जड़ पर भी उन्होंने संगति दी, इसका मुख्य कारण यह है कि पादरी और एल्डर प्रभु के वचनों का अभ्यास नहीं करते हैं, प्रभु की शिक्षाओं का पालन नहीं करते हैं और प्रभु की आरधना करने में विश्वासियों की अगुवाई नहीं करते हैं। इसके बजाय, वे खुद को ऊँचा करते हैं, अपनी गवाही देते हैं, अपने स्वयं के पद और आजीविका को बनाए रखने के लिए काम करते हैं, इस कारण प्रभु उन्हें स्वीकार नहीं करते हैं और उनसे घृणा करते हैं। एक अन्य कारण यह है कि परमेश्वर ने एक नया कार्य शुरू किया है, पवित्र आत्मा का कार्य, अनुग्रह के युग की कलीसियाओं से प्रस्थान कर गया है, उसने परमेश्वर के नए कार्य का समर्थन करना शुरू कर दिया है। यही कारण है कि धार्मिक दुनिया के भीतर के सभी संप्रदाय पवित्र आत्मा के कार्य को खो चुके हैं और अंधेरे में डूब गए हैं।
भाई-बहनों की संगति सुनने के बाद, मैंने पिछले कुछ सालों में धर्म में उजाड़ता और अधर्म के जो दृश्य देखे थे, उन्हें मैं याद करने लगी और मुझे अपने भीतर भावनाएं उमड़ती हुई महसूस हुईं। मुझे लगा कि संगति पूरी तरह तथ्यों के अनुसार थी और मेरी लिए बहुत लाभदायक थी। मुझे लगा कि इस कलीसिया मेरा आना सच में प्रभु का मार्गदर्शन था।
जिन अवधारणाओं से मैं चिपकी हुई थी, वे गलत थीं
मैंने इस मार्ग की जांच जारी रखी और भाई-बहनों को उस समस्या के बारे में बताया जिसने मुझे हमेशा से परेशान किया था, ताकि हम एक साथ जवाब खोज सकें। मैंने कहा, "पुरोहित अक्सर हमें चेतावनी देते हैं कि यदि हम कैथोलिक धर्म छोड़ते हैं, किसी अन्य संप्रदाय को स्वीकार करते हैं, तो हम धर्मत्याग कर रहे हैं, प्रभु को धोखा दे रहे हैं और एक अक्षम्य पाप कर रहे हैं। इसलिए पिछले कुछ वर्षों में यह सुनने के बाद भी कि प्रभु अपना न्याय का कार्य करने के लिए वापस लौट आयें हैं, मैंने कभी भी इसकी तलाश करने या इसकी जांच करने की हिम्मत नहीं की। इसलिए मैं आपके साथ इस प्रश्न का उत्तर खोजना चाहती हूँ: क्या हम कैथोलिक धर्म छोड़कर धर्मत्याग कर रहे हैं? मैं हमेशा इस मुद्दे को लेकर उलझन में रही हूँ, इसलिए मैं इस बारे में आपके साथ संगति करना चाहती हूँ।"
बहनों में से एक ने मुझे संगति दी और कहा, "बहन, केवल सत्य की खोज करके ही हम इस बात को अच्छी तरह से समझ पाएंगे कि अन्य कलीसियाओं की खोज और जांच करके हम प्रभु यीशु के साथ विश्वासघात कर रहे हैं या नहीं। अगर हम व्यवस्था के युग को याद करें, तो हम पाएंगे कि सभी इस्राएली यहोवा पर विश्वास करते थे, वे मंदिर में उनकी आराधना करते और सब्त के दिन का पालन करते थे। लेकिन जब प्रभु यीशु आए, तो उन्होंने मंदिर में कार्य नहीं किया, बल्कि यात्राएं की और तट पर, पहाड़ों पर और कई गांवों में उपदेश दिए, उन्होंने बीमारों को चंगा किया और दुष्टात्माओं को बाहर निकाला और इन्सान से अपने पापों को स्वीकार करने और पश्चाताप करने के लिए कहा। जहाँ तक पतरस, यूहन्ना और मत्ती जैसे लोगों की बात है, जिन्होंने प्रभु को बोलते हुए सुना, उन्हें कार्य करते देखा, जिन्होंने मंदिर छोड़कर प्रभु का अनुसरण किया, क्या ऐसा कहा जा सकता है कि उन्होंने एक दूसरा संप्रदाय स्वीकार किया था? क्या ऐसा कहा जा सकता है कि उन्होंने धर्मत्याग किया और यहोवा को धोखा दिया? प्रभु यीशु और यहोवा एक परमेश्वर हैं, इसलिए प्रभु यीशु के कार्य को स्वीकार करके, न केवल वे परमेश्वर के साथ विश्वासघात नहीं कर रहे थे, बल्कि वे परमेश्वर के पदचिन्हों पर चल रहे थे। इसके विपरीत, वे फरीसी और यहूदी लोग, जो मंदिर के पुराने तरीकों से चिपके हुए थे, जिन्होंने प्रभु यीशु को बोलते हुए सुना और उन्हें कार्य करते देखा, लेकिन फिर भी अपनी धारणाओं पर अड़े रहे और प्रभु के मार्ग को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, वास्तव में ये विद्रोही और परमेश्वर का विरोध करने वाले लोग थे, इस प्रकार उन्होंने परमेश्वर की निंदा, अस्वीकृति और घृणा पाई। इसी तरह, अंत के दिनों में प्रभु की वापसी से सामना होने पर, हम अपने स्वयं के संप्रदायों को छोड़कर प्रभु का स्वागत करने आए हैं। क्या इसका मतलब यह है कि हम प्रभु के साथ विश्वासघात कर रहे हैं? परमेश्वर के वचन इसे बहुत स्पष्ट रूप से उजागर करते हैं।
"सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, 'संसार में कई प्रमुख धर्म हैं, प्रत्येक का अपना प्रमुख, या अगुआ है, और उनके अनुयायी संसार भर के देशों और सम्प्रदायों में सभी ओर फैले हुए हैं; प्रत्येक देश में, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, भिन्न-भिन्न धर्म हैं। फिर भी, संसार भर में चाहे कितने ही धर्म क्यों न हों, ब्रह्मांड के सभी लोग अंततः एक ही परमेश्वर के मार्गदर्शन के अधीन अस्तित्व में हैं, और उनका अस्तित्व धर्म-प्रमुखों या अगुवाओं द्वारा मार्गदर्शित नही है। कहने का अर्थ है कि मानवजाति किसी विशेष धर्म-प्रमुख या अगुवा द्वारा मार्गदर्शित नहीं है; बल्कि संपूर्ण मानवजाति को एक ही रचयिता के द्वारा मार्गदर्शित किया जाता है, जिसने स्वर्ग और पृथ्वी का और सभी चीजों का और मानवजाति का भी सृजन किया है—यह एक तथ्य है। यद्यपि संसार में कई प्रमुख धर्म हैं, किंतु वे कितने ही महान क्यों न हों, वे सभी सृष्टिकर्ता के प्रभुत्व के अधीन अस्तित्व में हैं और उनमें से कोई भी इस प्रभुत्व के दायरे से बाहर नहीं जा सकता है। मानवजाति का विकास, सामाजिक प्रगति, प्राकृतिक विज्ञानों का विकास—प्रत्येक सृष्टिकर्ता की व्यवस्थाओं से अविभाज्य है और यह कार्य ऐसा नहीं है जो किसी धर्म-प्रमुख द्वारा किया जा सके। धर्म-प्रमुख किसी विशेष धर्म के सिर्फ़ अगुआ हैं, और वे परमेश्वर का, या उसका जिसने स्वर्ग, पृथ्वी और सभी चीज़ों को रचा है, प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते हैं। धर्म-प्रमुख पूरे धर्म के भीतर सभी का नेतृत्व कर सकते हैं, परंतु वे स्वर्ग के नीचे के सभी प्राणियों को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं—यह सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत तथ्य है। धर्म-प्रमुख मात्र अगुआ हैं, और वे परमेश्वर (सृष्टिकर्ता) के समकक्ष खड़े नहीं हो सकते। सभी चीजें रचयिता के हाथों में हैं, और अंत में वे सभी रचयिता के हाथों में लौट जाएँगी। मानवजाति मूल रूप से परमेश्वर द्वारा बनाई गई थी, और किसी का धर्म चाहे कुछ भी हो, प्रत्येक व्यक्ति परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन लौट जाएगा—यह अपरिहार्य है।'
"परमेश्वर के वचनों को पढ़ने से, हमें इस बात का एहसास होता है कि पृथ्वी पर चाहे कितने भी संप्रदाय हों, वे सभी एकमेव परमेश्वर की संप्रभुता के तहत मौजूद हैं। इतिहास को ध्यान से देखने पर, हम इस बात से अवगत होते हैं कि जब प्रभु यीशु ने छुटकारे के अपने कार्य को पूरा किया था, उस समय सभी वफादार प्रभु यीशु मसीह को ही पुकाराते थे, एक ही बाइबल पढ़ा करते थे—कोई अन्य संप्रदाय नहीं था। यह तो बाद में ही हुआ कि अगुवाओं ने विश्वासियों की अगुवाई विभिन्न समूहों में करनी शुरू कर दी क्योंकि उनमें से हरेक की बाइबल की व्याख्या अलग थी, चूँकि वे सभी महसूस करते थे कि बाइबल की उनकी अपनी समझ ही सही समझ थी इसलिए कोई भी, किसी और के सामने झुकने को तैयार न था। इस प्रकार, उन सभी ने उन संप्रदायों का गठन किया जिन्हें हम आज देखते हैं। वास्तव में, चाहे वह कैथोलिक धर्म हो, पूर्वी रूढ़िवादी कलीसिया या प्रोटेस्टेंटवाद हो, वे सभी प्रभु यीशु में विश्वास करते हैं और एक ही परमेश्वर में विश्वास करते हैं। इस दुनिया में चाहे जितने भी संप्रदाय हों या एक संप्रदाय कितना भी शक्तिशाली और प्रभावशाली हो, कोई भी परमेश्वर के अधिकार से ऊँचा नहीं हो सकता है, और अंत में सभी संप्रदायों को आवश्यक रूप से परमेश्वर के प्रभुत्व के तहत एकजुट होना होगा। जैसा कि बाइबल में भविष्यवाणी की गयी है: 'अन्त के दिनों में ऐसा होगा कि यहोवा के भवन का पर्वत सब पहाड़ों पर दृढ़ किया जाएगा, और सब पहाड़ियों से अधिक ऊँचा किया जाएगा; और हर जाति के लोग धारा के समान उसकी ओर चलेंगे' (मीका 4:1)। 'जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है’ (प्रकाशितवाक्य 2:7)। इन भविष्यवाणियों में बहुत स्पष्ट रूप से कहा गया है कि परमेश्वर अंत के दिनों में केवल एक संप्रदाय से नहीं बल्कि सभी कलीसियाओं से बात करेंगे और अंततः सभी लोग परमेश्वर के पर्वत पर जाएंगे और उनके सिंहासन के समक्ष लौट आएंगे। अब, प्रभु यीशु ने देह में वापस आकर सर्वशक्तिमान परमेश्वर का नाम धारण किया है और अनुग्रह के युग के कार्य की नींव पर वह सत्य को व्यक्त करते हैं, मनुष्य का न्याय करने और उसे शुद्ध करने का कार्य करते हैं और मानवजाति को बचाने के लिए अपने वचनों का उपयोग करते हैं। सभी धर्मों, सभी संप्रदायों, सभी लोगों और सभी जातियों के बीच, जो परमेश्वर की भेड़ें हैं, वे उनके वचनों को सुनती हैं, तो वे अपने दिल की गहराई से पुष्टि करने में सक्षम होती हैं कि यह परमेश्वर की वाणी है, और एक-एक करके वे परमेश्वर के समक्ष लौट आती हैं। अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करने से हम धर्मत्याग या प्रभु यीशु से विश्वासघात नहीं कर रहे हैं। इसके बजाय, हम मेम्ने के नक्शेकदम पर चल रहे हैं, जीवन के जीवित जल से पोषित हो रहे हैं, और हम अंत के दिनों में परमेश्वर के उद्धार को प्राप्त कर रहे हैं।"
बहन की संगति सुनने के बाद, मैं समझ गयी। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम किस संप्रदाय से हैं, हम सभी एक परमेश्वर में विश्वास करते हैं, हम सभी एक ही परमेश्वर के मार्गदर्शन को स्वीकार करते हैं, और हम सभी अंत में उनके पास लौट आएंगे। आज, धार्मिक दुनिया भर में सभी संप्रदाय उजाड़ हो गए हैं, वे पवित्र आत्मा के कार्य से रहित हैं, और वे जीवन की कोई भी आपूर्ति प्राप्त नहीं कर सकते हैं। अगर मैं अभी भी धर्म में दिन काटती रही, तो क्या मैं प्रभु के उद्धार जो खो नहीं दूँगी? मैंने सोचा कि कैसे मैं सालों से इस गलत धारणा से ग्रस्त थी कि कैथोलिक धर्म छोड़ना धर्मत्याग करना है, यह प्रभु के साथ विश्वासघात करना है। मैंने सोचा कि कैसे मैंने अंत के दिनों के परमेश्वर के सुसमाचार को सुना, लेकिन इसकी जांच किये बगैर इसे अस्वीकार कर दिया था। मैं तक तक उस धारणा से चिपकी रही जब तक कि मेरी आत्मा पूरी तरह से मुरझा नहीं गई। इस धारणा ने वास्तव में मुझे बहुत नुकसान पहुंचाया है!
हमारे "परमेश्वर के लौटने की गवाहियाँ" पृष्ठ पर या नीचे दी गई संबंधित सामग्री से अधिक जानें।
मैं परमेश्वर के कार्य के तीं चरणों को समझती हूँ और प्रभु की वापसी का स्वागत करती हूँ
उस बहन ने अपनी संगति जारी रखते हुए कहा, "उस समय, प्रभु यीशु ने यहोवा के व्यवस्था के कार्य की नींव पर अपने छुटकारे के कार्य को अंजाम दिया था। अब, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य की नींव पर न्याय और शुद्धिकरण का कार्य कर रहे हैं, भले ही यहोवा, यीशु और सर्वशक्तिमान परमेश्वर, सभी नाम अलग-अलग हैं और उनके कार्य भी अलग-अलग हैं, लेकिन वे सभी एक ही स्रोत को साझा करते हैं, वे सभी एक ही परमेश्वर हैं। आइए अब सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के कुछ अंशों को पढ़ें, फिर हम बेहतर ढंग से समझ पाएंगे।
"सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, 'मानवजाति के प्रबंधन का कार्य तीन चरणों में बंटा हुआ है, जिसका अर्थ यह है कि मानवजाति को बचाने का कार्य तीन चरणों में बंटा हुआ है। इन चरणों में संसार की रचना का कार्य समाविष्ट नहीं है, बल्कि ये व्यवस्था के युग, अनुग्रह के युग और राज्य के युग के कार्य के तीन चरण हैं।' 'यहोवा के कार्य से लेकर यीशु के कार्य तक, और यीशु के कार्य से लेकर इस वर्तमान चरण तक, ये तीन चरण परमेश्वर के प्रबंधन के पूर्ण विस्तार को एक सतत सूत्र में पिरोते हैं, और वे सब एक ही पवित्रात्मा का कार्य हैं। दुनिया के सृजन से परमेश्वर हमेशा मानवजाति का प्रबंधन करता आ रहा है। वही आरंभ और अंत है, वही प्रथम और अंतिम है, और वही एक है जो युग का आरंभ करता है और वही एक है जो युग का अंत करता है। विभिन्न युगों और विभिन्न स्थानों में कार्य के तीन चरण अचूक रूप में एक ही पवित्रात्मा का कार्य हैं। इन तीन चरणों को पृथक करने वाले सभी लोग परमेश्वर के विरोध में खड़े हैं। अब तुम्हारे लिए यह समझना उचित है कि प्रथम चरण से लेकर आज तक का समस्त कार्य एक ही परमेश्वर का कार्य है, एक ही पवित्रात्मा का कार्य है। इस बारे में कोई संदेह नहीं हो सकता।'"
परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद, एक बहन ने मुझे संगति देते हुए कहा, "बहन, हम परमेश्वर के वचनों से देख सकते हैं कि परमेश्वर की प्रबंधन योजना को तीन चरणों में विभाजित किया गया है: पुराने नियम का व्यवस्था का युग, नए नियम का अनुग्रह का युग और आज का साम्राज्य का युग। हालाँकि परमेश्वर के नाम अलग हैं, वह अलग-अलग जगहों पर कार्य करते हैं और उनके कामों की विषयवस्तु अलग-अलग है, लेकिन वे सभी एक ही परमेश्वर द्वारा किए गए कार्य हैं। उदाहरण के लिए, पुराने नियम का व्यवस्था का युग। यहोवा ने पृथ्वी पर नवजात मानवजाति के जीवन का मार्गदर्शन करने के लिए व्यवस्थाओं और आज्ञाओं की घोषणा की, और व्यवस्था का पालन करके, लोगों ने परमेश्वर का अनुग्रह और आशीष प्राप्त किया, व्यवस्था के खिलाफ जाने पर लोगों को शापित और दंडित किया गया। लेकिन जैसे-जैसे लोग अधिक से अधिक भ्रष्ट और पापी होते गए, वे किसी भी तरह से व्यवस्था का पालन करने में समर्थ नहीं थे, उन सभी पर व्यवस्था का उल्लंघन करने के लिए मृत्युदंड का खतरा मंडरा रहा था। इसलिए, भ्रष्ट मानवजाति की आवश्यकताओं के अनुसार, परमेश्वर ने देहधारण किया और अनुग्रह के युग की शुरूआत की। उन्होंने अपने प्रेमपूर्ण दया, करुणा के स्वभाव को व्यक्त किया और अंत में मानवजाति के पापों का प्रायश्चित करने के लिए उन्हें क्रूस पर चढ़ाया गया। उन्होंने मनुष्य को शैतान की पकड़ से छुड़ाया और उसके बाद से, प्रभु यीशु से प्रार्थना करने के द्वारा लोगों के पाप क्षमा हो जाते हैं और वे प्रभु से अनुग्रह का भरपूर आनंद लेने में सक्षम हैं। प्रभु यीशु द्वारा मानवजाति के छुटकारे के बाद, उन्होंने हमारे पापों को अपने ऊपर ले लिया, लेकिन हम शैतान द्वारा बहुत गहराई से भ्रष्ट कर दिए गए हैं और हमारी पापी प्रकृति हमारे भीतर गहराई से जड़ें जमाये हुए है। इसलिए हम अब भी अक्सर पाप करने में सक्षम हैं। उदाहरण के लिए, जब कोई मामला हमारे अपने हितों का उल्लंघन करता है, तो हम एक-दूसरे के खिलाफ संघर्ष करने, झूठ बोलने और धोखा देने में सक्षम हैं; जब कोई हमारी इच्छा के विरुद्ध कुछ करता है, तो हम उन्हें नीचा दिखा सकते हैं, अपना आपा खो सकते हैं, उन्हें बड़ी-बड़ी बातों का उपदेश दे सकते हैं। जब घर में कुछ बुरा होता है, तो हम प्रभु को गलत समझ सकते हैं, उन्हें दोष दे सकते हैं, यहाँ तक कि उनके साथ विश्वासघात भी कर सकते हैं। हम प्रभु की शिक्षाओं का अभ्यास करने में असमर्थ हैं, हम पाप से बंधकर जीते हैं और स्वयं को मुक्त नहीं कर पाते हैं। हम अभी तक परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने में सक्षम नहीं हैं। इसलिए, भ्रष्ट मानवजाति की ज़रूरतों के मुताबिक, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नाम के साथ, अंत के दिनों में राज्य के युग की शुरुआत करने, सत्य को व्यक्त करने, न्याय का कार्य करने, मनुष्य को शुद्ध करने और बचाने का कार्य करने, मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव का न्याय करने और उसे उजागर करने के लिए अपने वचनों को व्यक्त करने, मनुष्य को अपना स्वभाव बदलने और शुद्ध होने का तरीका दिखाने, मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा और हमें कैसे अभ्यास करना चाहिए ये बताने के लिए परमेश्वर देह में वापस लौट आये हैं। परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास करने से, हमारे भ्रष्ट स्वभाव धीरे-धीरे दूर हो जायेंगे, अंत में, हम परमेश्वर द्वारा प्राप्त किए जाएंगे और ऐसे लोग बन जाएंगे जो उनके हृदय के अनुसार हैं।
इससे, हम देख सकते हैं कि परमेश्वर के कार्य के तीन चरण परस्पर पूरक हैं, प्रत्येक चरण में पहले की तुलना में अधिक गहरा और ऊँचा है। कार्य के इन तीन चरणों का उद्देश्य शैतान को हराना और पूरी मानवजाति को बचाना है। कार्य के ये तीन चरण सभी, मानवजाति के परमेश्वर के प्रबंधन के कार्य हैं, अगर हमने अपने संप्रदायों को नहीं छोड़ा और अंत के दिनों के परमेश्वर के न्याय को नहीं स्वीकारा, तो हम अपनी पापी प्रकृति से कैसे छुटकारा पाएंगे? और हम परमेश्वर के राज्य में कैसे पहुँचेंगे? अंत के दिनों के परमेश्वर के न्याय कार्य को स्वीकार करने से ही हम शुद्ध हो सकते हैं और सच्चा उद्धार प्राप्त कर सकते हैं। ठीक जैसा सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: 'परमेश्वर के कार्य का प्रत्येक चरण पिछले चरण की तुलना में अधिक गहरे जाता है, और प्रत्येक चरण में मनुष्य से की जाने वाली अपेक्षाएँ पिछले चरण की तुलना में और अधिक गंभीर होती हैं, और इस तरह, परमेश्वर का संपूर्ण प्रबंधन धीरे-धीरे आकार लेता है। यह ठीक इसलिए है, क्योंकि मनुष्य से की गई अपेक्षाएँ हमेशा इतनी ऊँची होती है कि मनुष्य का स्वभाव परमेश्वर द्वारा अपेक्षित मानकों के निरंतर अधिक नज़दीक आ जाता है, और केवल तभी संपूर्ण मानवजाति धीरे-धीरे शैतान के प्रभाव से अलग होना शुरू करती है; जब तक परमेश्वर का कार्य पूर्ण समाप्ति पर आएगा, संपूर्ण मानवजाति शैतान के प्रभाव से बचा ली गई होगी।'"
परमेश्वर के वचनों को सुनने और बहन की संगति के माध्यम से, मैं आख़िरकार समझ गयी कि, मनुष्य को बचाने के लिए, परमेश्वर ने कितने श्रमसाध्य कीमत चुकाई है, वह तीन चरणों का कार्य करते हैं और प्रत्येक चरण मनुष्य का मार्गदर्शन करने, उसे बचाने के लिए किया जाता है—इस एहसास ने मुझे हिलाया भी और द्रवित भी किया! मैंने सोचा, ऐसा-वैसा कोई भी व्यक्ति इन सत्यों और रहस्यों को नहीं बोल सकता है। संभवत: केवल परमेश्वर ही ऐसी चीजों को प्रकट कर सकते हैं! मैंने बाइबल में कहे यीशु के वचनों के बारे में सोचा: "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए सत्य ने परमेश्वर की प्रबंधन योजना के रहस्य को प्रकट किया है, और यह वास्तव में सत्य के आत्मा के कथन हैं! यह सोचकर, मैं बहुत ही उत्साहित हो गयी और मैंने कहा, "प्रभु का धन्यवाद! परमेश्वर के वचनों और आपकी संगति के माध्यम से, मैं अब अपने दिल से समझती हूँ। तो, परमेश्वर की प्रबंधन योजना तीन चरणों में विभाजित है, और भले ही प्रत्येक चरण की विषयवस्तु अलग है और परमेश्वर का नाम अलग है, वे सभी पूरी तरह एक ही परमेश्वर के कार्य हैं। यहोवा, यीशु और सर्वशक्तिमान परमेश्वर सभी एक ही परमेश्वर हैं, और परमेश्वर के तीन चरणों का कार्य पूरी तरह से मनुष्य को बचाने के लिए किया जाता है! अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करना धर्मत्याग करना नहीं बल्कि प्रभु के नए कार्य का अनुसरण करना है!"
भाई-बहनों ने खुशी के साथ कहा, "यह सही है! बहन, कोई फर्क नहीं पड़ता कि परमेश्वर का कार्य कैसे बदलता है या उनका नाम कैसे बदलता है, उनके कार्य का उद्देश्य और मनुष्य को बचाने की उनकी इच्छा कभी नहीं बदलती है, परमेश्वर का सार कभी नहीं बदल सकता है। सभी संप्रदायों में अब, कई भाई-बहन हैं जो प्रभु की उपस्थिति की तलाश के लिए लालायित हैं, इस कारण उन्होंने अपने संप्रदायों को पीछे छोड़ दिया हैं और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के सिंहासन के सामने आ गये हैं। उन्होंने अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय कार्य को स्वीकार कर लिया है और परमेश्वर द्वारा दिए गये अनंत जीवन के मार्ग प्राप्त किया है। यह कुछ ऐसा है जो परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप है और जो उन्हें आराम देता है! सच में, परमेश्वर का धन्यवाद!"
उनकी बात सुनते हुए, मैं अपने दिल में परमेश्वर का शुक्रिया अदा करती रही। मुझे ऐसा उत्साह महसूस हुआ जिसे शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता। मैंने, भाई-बहनों के साथ मिलकर परमेश्वर को धन्यवाद दिया, उनकी स्तुति की! इसके बाद के दिनों में, मैं हर दिन परमेश्वर के वचनों को पढ़ने में दृढ़ बनी रही, जितना अधिक मैं पढ़ती हूँ, मेरा दिल रोशनी से उतना ही भरता जाता है। परमेश्वर के वचनों से, मुझे पता चला कि परमेश्वर में सच्चा विश्वास क्या है, समस्याओं का सामना करते समय सत्य की तलाश कैसे करें, परमेश्वर के वचनों का अभ्यास कैसे करें और वास्तविक मानव समानता को कैसे जीएं, इत्यादि। मेरी आत्मा ने इतनी खुशी और सहजता पहले कभी महसूस नहीं की थी। मैं परमेश्वर से प्रार्थना किये बिना न रह सकी: "हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर! मैं आपको धन्यवाद देती हूँ कि आपने मुझे त्यागा नहीं। 20 साल लग गए लेकिन आपका महान प्यार मुझ पर एक बार फिर आया है, आप मुझे धर्म से दूर ले आये हैं ताकि मैं मेमने के नक्शेकदम पर चल सकूं, आपके परिवार में शामिल हो सकूँ और आपके द्वारा व्यक्तिगत रूप से सिंचित और पोषित की जा सकूँ। परमेश्वर का धन्यवाद! जीवन भर मैं आपका पालन करना चाहती हूँ, मैं आपको संतुष्ट करने के लिए सत्य का अनुसरण करना और एक नए व्यक्ति की तरह जीना चाहती हूँ!"
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