मैं प्रभु यीशु के "पूरा हुआ" कहने का अर्थ समझती हूँ और उनकी वापसी का स्वागत करती हूँ
मैं एक ईसाई हूँ और अक्सर चर्च सभाओं में जाती रही हूँ। हर रविवार, पादरी जिन, हमेशा की तरह मंच पर से उत्साह के साथ उपदेश देते थे, "हम अब हर तरह के संकेतों से देख सकते हैं कि प्रभु का दिन कभी करीब आ रहा है। इस महत्वपूर्ण समय पर, कुछ भाई-बहन इस बात को लेकर आशंकित होने लगे हैं कि वे स्वर्गिक राज्य में प्रवेश कर पाएंगे या नहीं। वे कहते हैं कि वे प्रभु से अधिक प्रेम नहीं करते, वे प्रभु के वचनों को अमल में लाने में असमर्थ हैं और वे पाप की दलदल में जीते हैं, इत्यादि। मैं इन आशंकाओं को अनावश्यक मानता हूँ। प्रभु यीशु ने क्रूस पर अपनी अंतिम सांस लेने से पहले कहा था, 'पूरा हुआ।' इससे पता चलता है कि मानवजाति को बचाने का परमेश्वर का कार्य हर तरह से पूरा हो गया है, प्रभु यीशु द्वारा हमारे पापों को क्षमा कर दिया गया है, हम अनुग्रहित हुए हैं और जब प्रभु आयेंगे, तो हम तुरंत स्वर्ग में उठाए जाएंगे! हमें स्वर्ग में अपने प्रवेश पर से बिल्कुल भी विश्वास नहीं खोना चाहिए।" हर बार जब मैं पादरी जिन को यह कहते सुनती, तो भले ही मैं हमेशा प्रभु के आकर हमें स्वर्ग ले जाने के लिए तरसती थी, लेकिन मैं सोचे बिना नहीं रह पाती थी: क्या वाकई वैसा ही होगा जैसा कि पादरी जिन कहते हैं? क्या सच में प्रभु के आगमन पर हमें स्वर्ग में उठा लिया जायेगा?
मुझे नहीं पता कि यह कब शुरू हुआ, लेकिन एक क्षण ऐसा आया जब मेरा जीवन, मेरे विश्वास से अलग हो गया। मेरी सास और मेरे अलग-अलग विचारों के कारण जीवन में मैं अक्सर अपनी सास के साथ बहस करने पर आ जाती थी, जैसे-जैसे समय बीतता गया, उनके लिए मेरे मन में नापसंदगी के भाव आ गये और मैं उनके सामने आने से बचने लगी। यही हाल मेरे पति का भी था। चूँकि अक्सर वे मुझसे मांग करते थे इस कारण मैं शिकायत करती थी कि वे मेरा बिल्कुल सम्मान नहीं करते, मेरे लिए थोड़ा भी नहीं सोचते हैं। मैं जानती थी कि प्रभु ने हमें एक दूसरे से प्यार करना सिखाया है, इसलिए मैंने प्रभु से कई बार प्रार्थना और पश्चाताप किया। लेकिन हर बार जब मैं उनसे लड़ती थी, तब मैं उनसे नाराज हुए बिना नहीं रह पाती थी। अपने परिवार के साथ मेरा व्यवहार ऐसा था मतलब कि परिवार के बाहर के लोगों से मेरा व्यवहार और भी बदतर था। प्रभु यीशु ने कहा है, "यदि तुम मनुष्यों के अपराध क्षमा न करोगे, तो तुम्हारा पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा न करेगा" (मत्ती 6:15)। और इब्रानियों 10:26 में लिखा है, "क्योंकि सच्चाई की पहिचान प्राप्त करने के बाद यदि हम जान बूझकर पाप करते रहें, तो पापों के लिये फिर कोई बलिदान बाकी नहीं।" जब भी मैं इन वचनों को पढ़ती, तो मुझे चिंता होती थी, डर लगता था। मैं प्रभु की शिक्षाओं को व्यवहार में लाने में असमर्थ थी और मैं जानबूझ कर पाप कर रही थी। ऐसा करने से, यकीनन मेरे पापों का प्रायश्चित करने के लिए कोई पापबलि नहीं बची थी? और इसलिए, मुझे दर्द और व्यग्रता महसूस हुई।
जुलाई में एक दिन अपने दोस्त के घर पर, मैं भाई ली नाम के एक व्यक्ति से मिली जो दूसरी कलीसिया से थे। क्योंकि हम सभी प्रभु में विश्वास रखने वाले थे, इसलिए हमने बहुत सहजता से बातचीत की। जब हमने आज के समाज में मौजूद अंधेरे, दुष्टता और सभी लोग पाप में कैसे जीते हैं, इन सबके बारे में बात की तो भाई ली ने कहा कि इनका मूल कारण यह था कि शैतान के मानवजाति को भ्रष्ट करने के बाद, हम सबने शैतान के भ्रष्ट स्वभावों के भीतर जीना शुरू कर दिया और हम अभिमानी, घमंडी, कुटिल, धोखेबाज, स्वार्थी और घृणित हो गये, लाभ के लिए हम एक-दूसरे के खिलाफ योजनाएं बनाने लगे, हम एक-दूसरे से लड़ने लगे और किसी और की बात मानना बंद कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि प्रभु के विश्वासियों समेत सभी लोग एक-दूसरे के साथ शांति से जी पाने में असमर्थ हो गये। मैं भाई ली की बातों से पूरी तरह से सहमत थी, मैं उनके वचनों से बहुत प्रभावित हुई। बाद में, भाई ली ने, अन्य बातों के बीच, बाढ़ के द्वारा दुनिया को और आग से सदोम को नष्ट करने के पीछे के परमेश्वर के इरादों के बारे में बात की, उन्होंने प्रत्येक युग में परमेश्वर द्वारा एक अलग नाम धारण करने के महत्व के बारे में बात की, साथ ही साथ परमेश्वर के देहधारण के रहस्य के बारे में भी बातें कीं। मैं कई वर्षों से प्रभु में विश्वास करती रही थी, लेकिन यह पहली बार था जब मैंने किसी को इस तरह की चीजों के बारे में संगति करते हुए सुना था। भाई ली तर्कसंगत रूप से बातें करते थे और जो कुछ उन्होंने कहा वह बाइबल के अनुसार था। उन्होंने जो कहा वह प्रकाश से भरा था और यह मेरे कानों को बिल्कुल ताजा और नया लगा। मैंने मन में सोचा: हम सभी प्रभु में विश्वास करते हैं, तो फिर भाई ली को इतना कैसे पता है? मुझे उनकी बातों को ध्यान से सुनना चाहिए! थोड़े ही समय बाद, भाई ली ने मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर द्वारा शुरू किये गये छह-हज़ार साल के उद्धार-कार्य के बारे में बात की, और उन्होंने व्यवस्था के युग में यहोवा के कार्य और अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु के कार्य की आंतरिक कहानी के बारे में बात की, उन्होंने बाइबल की भविष्यवाणियों के बारे में बात की जिसमें कहा गया है कि अंत के दिनों में परमेश्वर, मनुष्य के न्याय, ताड़ना और शुद्धिकरण के कार्य के चरण को करेंगे। उन्होंने कहा कि मानवजाति के शुद्ध किये जाने के बाद, हम परमेश्वर द्वारा राज्य में ले जाये जा सकते हैं, और उन्होंने उत्साह से कहा, "बहन, जिन प्रभु यीशु के लिए हम लंबे समय से तरस रहे हैं, वे पहले से ही देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में वापस आ गए हैं। वह वर्तमान में परमेश्वर के भवन में शुरू होने वाले न्याय के कार्य को कर रहे हैं, और यह परमेश्वर के कार्य का अंतिम चरण है ..."
रहस्य उजागर हुआ: परमेश्वर की छः हज़ार साल की प्रबंधन योजना
जब मैंने सुना कि परमेश्वर को अभी भी मनुष्य को शुद्ध करने के कार्य का एक चरण करना है, तो मेरा दिल ज़ोरों से धड़कने लगा, मैंने सोचा: अब भी न्याय के कार्य का एक चरण कैसे हो सकता है? जब प्रभु यीशु को क्रूस पर चढ़ाया गया, तो उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था, 'पूरा हुआ,' जिसका अर्थ है कि परमेश्वर का कार्य पूरा हो गया हैं, हमें अनुग्रहित किया गया है और बचाया गया है और जब प्रभु लौटेंगे, तो हम तुरंत स्वर्ग में उठा लिए जाएंगे। संभवतः कोई नया कार्य शेष नहीं हो सकता है। यह सोचकर, मैंने भाई ली से कहा, "मैंने कई पादरियों को उपदेश देते हुए सुना है लेकिन मैंने कभी नहीं सुना कि जब प्रभु यीशु लौटेंगे, तो उन्हें अभी भी कार्य का एक चरण करना है। इसके अलावा, जब यीशु को क्रूस पर चढ़ाया गया, तो उन्होंने कहा था, 'पूरा हुआ,' जो यह दर्शाता है कि मानवजाति को बचाने का कार्य पूरा हो गया है। फिर अंत के दिनों में न्याय का कोई कार्य कैसे हो सकता है? आप जो कह रहे हैं वो मेरी समझ नहीं आ रहा है।" भाई ली मुस्कुराए और अपनी संगति जारी रखी, लेकिन इसमें से कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, इसलिए मैं बहाना बनाकर अपने दोस्त के घर से निकल गयी।
जब उस शाम को मैं घर पहुंची, तो इस पर हर तरह से विचारने की कोशिश करने पर भी मैं समझ नहीं पाई की: प्रभु एक नया कार्य कैसे कर सकते हैं? लेकिन फिर मैंने सोचा कि भाई ली ने कैसे एक प्रबुद्ध संगति दी थी। मैंने पहले कभी किसी को इतने स्पष्ट रूप से परमेश्वर के कार्य और मानवजाति को बचाने के उनके इरादे के बारे में संगति करते हुए नहीं सुना था। अगले दिन, मेरी दोस्त ने मुझे इस मार्ग की जाँच के लिए उसके साथ सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया चलने के लिए कहा, लेकिन मैंने उससे कहा, "मैं नहीं जाना चाहती। वे कहते हैं कि प्रभु वापस लौट आये हैं और वह कार्य का एक नया चरण कर रहे हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि यह संभव है।" मेरी मित्र ने मुझे सलाह देते हुए कहा, "केवल सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया अभी यह गवाही दे रही है कि प्रभु वापस आ गए हैं, जब प्रभु की वापसी का स्वागत करने की बात आती है, तो हमें बहुत सावधानी से कदम रखना चाहिए और इसकी पूरी जांच करनी चाहिए! और तो और, भाई ली की संगति प्रबुद्धता से भरी थी, हमारी कलीसिया के पादरी उसकी तुलना में कहीं खड़े नहीं होते हैं। मुझे लगता है कि हमें पहले इस पर गौर करना चाहिए और फिर निर्णय लेना चाहिए। यह एक अपेक्षाकृत उचित तरीका होगा।" मेरी मित्र ने बहुत ही तार्किक ढंग से बात की; अगर मैंने इस मार्ग की जांच नहीं की, तो मुझे कैसे पता चलेगा कि यह सच था या नहीं? और इसलिए, मैं अपनी मित्र के साथ सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया चली गयी।
जब हम वहां पहुंचे, तो भाई ली और कलीसिया की दो बहनों द्वारा गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया गया। उन बहनों में से एक ने मुझसे पूछा, "बहन, आप हमसे कुछ भी पूछ सकती हैं, फिर चाहे वो आपकी उलझन के बारे में हो या कुछ ऐसा हो जो आप समझ नहीं पा रही हों। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन हमारे सभी सवालों का जवाब दे सकते हैं।" मैंने कहा, "प्रभु यीशु ने क्रूस पर अपनी अंतिम सांस लेने के पहले कहा था, 'पूरा हुआ।' मेरा मानना है कि यह दर्शाता है कि मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर का कार्य तब ही पूरा हो गया था। अब कोई और कार्य शेष नहीं हो सकता है। फिर आप लोग यह क्यों कहते हैं कि परमेश्वर अंत के दिनों में नया कार्य कर रहे हैं? क्या आप कृपा करके मेरे साथ इस बारे में संगति कर सकती हैं?"
बहन ने यह कहते हुए संगति दी, "हमने हमेशा विश्वास किया है कि जब प्रभु यीशु ने क्रूस पर 'पूरा हुआ' कहा तो उनके कहने का मतलब था कि मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर का कार्य पूरा हो गया है, जब प्रभु वापस लौट आएंगे तो वह तुरंत हमें स्वर्ग में ले जाएंगे और परमेश्वर कोई नया कार्य नहीं करेंगे। लेकिन क्या हमने कभी यह विचार किया है कि क्या यह दृष्टिकोण परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप है या नहीं? क्या वाकई परमेश्वर का कार्य खत्म हो गया है? क्या हम केवल अपने पापों को क्षमा करवा कर प्रभु द्वारा स्वर्ग में ले जाये जा सकते हैं? सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन हमें इन प्रश्नों के उत्तर प्रदान करते हैं। आइये उन्हें एक साथ पढ़ते हैं। परमेश्वर का वचन कहता है, 'उस समय यीशु का कार्य समस्त मानवजाति को छुटकारा दिलाना था। उन सभी के पापों को क्षमा कर दिया गया था जो उसमें विश्वास करते थे; अगर तुम उस पर विश्वास करते हो, तो वह तुम्हें छुटकारा दिलाएगा; यदि तुम उस पर विश्वास करते, तो तुम पापी नहीं रह जाते, तुम अपने पापों से मुक्त हो जाते हो। यही बचाए जाने और विश्वास द्वारा उचित ठहराए जाने का अर्थ है। फिर विश्वासियों के अंदर परमेश्वर के प्रति विद्रोह और विरोध का भाव था, और जिसे अभी भी धीरे-धीरे हटाया जाना था। उद्धार का अर्थ यह नहीं था कि मनुष्य पूरी तरह से यीशु द्वारा प्राप्त कर लिया गया है, बल्कि यह था कि मनुष्य अब पापी नहीं रह गया है, उसे उसके पापों से मुक्त कर दिया गया है। अगर तुम विश्वास करते हो, तो तुम फिर कभी भी पापी नहीं रहोगे।' 'क्योंकि मनुष्य को छुटकारा दिए जाने और उसके पाप क्षमा किए जाने को केवल इतना ही माना जा सकता है कि परमेश्वर मनुष्य के अपराधों का स्मरण नहीं करता और उसके साथ अपराधों के अनुसार व्यवहार नहीं करता। किंतु जब मनुष्य को, जो कि देह में रहता है, पाप से मुक्त नहीं किया गया है, तो वह निरंतर अपना भ्रष्ट शैतानी स्वभाव प्रकट करते हुए केवल पाप करता रह सकता है। यही वह जीवन है, जो मनुष्य जीता है—पाप करने और क्षमा किए जाने का एक अंतहीन चक्र। अधिकतर मनुष्य दिन में सिर्फ इसलिए पाप करते हैं, ताकि शाम को उन्हें स्वीकार कर सकें। इस प्रकार, भले ही पापबलि मनुष्य के लिए हमेशा के लिए प्रभावी हो, फिर भी वह मनुष्य को पाप से बचाने में सक्षम नहीं होगी। उद्धार का केवल आधा कार्य ही पूरा किया गया है, क्योंकि मनुष्य में अभी भी भ्रष्ट स्वभाव है।'"
बहन ने संगति देते हुए कहा, "हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से जानते हैं कि प्रभु यीशु के देहधारण का प्राथमिक कार्य अपने पवित्र, निर्दोष देह को हमें पापों से मुक्त करने के लिए पापबलि के रूप में उपयोग करने का और क्रूस पर चढ़ने का कार्य था। जब तक हम परमेश्वर के नाम से प्रार्थना करते हैं, अपने पापों को स्वीकार करते और पश्चाताप करते हैं, तब तक हमारे पापों को क्षमा किया जाता है, हम अब व्यवस्था द्वारा दोषी ठहराए जाने के अधीन नहीं हैं और हम प्रभु द्वारा बरसाई गयी कृपा का भरपूर आनंद ले पा रहे हैं। यह प्रभु में अपनी आस्था में अनुग्रह प्राप्त करने और बचाए जाने का सही अर्थ है, प्रभु यीशु के 'पूरा हुआ।' कहने का विशेष रूप से यही मतलब है। भले ही हमारे पापों को क्षमा कर दिया गया है, लेकिन, हमने अपनी पापी प्रकृति को नहीं त्यागा है, हम बार-बार भ्रष्ट स्वभावों, जैसे कि अहंकार, छल, स्वार्थ, लालच और दुर्भावना को प्रकट करने में सक्षम हैं। हम एक ही बात दोहराते हुए जीते हैं, दिन में पाप करते हैं और रात में स्वीकारते हैं, अपने पापों की बेड़ियों को तोड़ने में पूरी तरह से असमर्थ हैं। अगर ये शैतानी भ्रष्टाचारी स्वभावों का समाधान नहीं हुआ, तो भले ही हमारे पापों को क्षमा किया जा सकता है, लेकिन हमारे पास परमेश्वर के साथ संगत बनने का कोई रास्ता नहीं होगा और तब भी हम परमेश्वर के खिलाफ कार्य करने में सक्षम होंगे। बाइबल में, परमेश्वर का यह कथन दर्ज है, 'पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ' (1 पतरस 1:16)। 'मैं तुम से सच सच कहता हूँ कि जो कोई पाप करता है वह पाप का दास है। दास सदा घर में नहीं रहता; पुत्र सदा रहता है' (यूहन्ना 8:34-35)। परमेश्वर धर्मी और पवित्र हैं, तो फिर परमेश्वर हमारे जैसे लोगों को, जिन्हें प्रभु यीशु ने केवल छुटकारा दिलाया है, जिनमें अभी भी शैतानी प्रकृति भीतर तक गहराई से जड़ें जमाए हुए है, जो कभी भी खुद को पाप से मुक्त नहीं कर पाए हैं, उन्हें अपने राज्य में प्रवेश करने की अनुमति कैसे देंगे? इसलिए, परमेश्वर प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य की नींव पर न्याय और शुद्धिकरण का कार्य करते हैं, और केवल परमेश्वर के न्याय और ताड़ना से गुज़रने और अपने भ्रष्ट स्वभावों के शुद्ध होने के बाद हम स्वर्गिक राज्य में प्रवेश करने के योग्य हो सकते हैं। इससे, हम यह देख सकते हैं कि जब प्रभु यीशु ने क्रूस पर, 'पूरा हुआ' कहा, तो उनका बस इतना मतलब था कि मानवजाति को छुटकारा दिलाने का परमेश्वर का कार्य पूरा हो गया है, न कि यह कि मानवजाति को बचाने का परमेश्वर का कार्य पूरी तरह से खत्म हो गया है। प्रकाशितवाक्य में भविष्यवाणी की गयी है, 'ये बातें पूरी हो गई हैं। मैं अल्फा और ओमेगा, आदि और अन्त हूँ। मैं प्यासे को जीवन के जल के सोते में से सेंतमेंत पिलाऊँगा' (प्रकाशितवाक्य 21:6)। जब अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय का कार्य पूरा हो जायेगा, हम पूरी तरह से परमेश्वर के द्वारा शुद्ध कर दिए जायेंगे, और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर चुके होंगे, तब ही 'पूरा हुआ' यह वचन पूर्ण होगा, और उसके बाद ही परमेश्वर की संपूर्ण प्रबंधन योजना पूरी होगी।"
परमेश्वर के वचनों और बहन की संगति ने मुझे यह समझने दिया कि, जब प्रभु यीशु ने "पूरा हुआ," कहा, तो उनका मतलब सिर्फ यह था कि क्रूस का कार्य पूरा हो गया था, न कि परमेश्वर का उद्धार का कार्य पूरी तरह से समाप्त हो गया था। परमेश्वर ने अभी तक मनुष्य को शुद्ध करने और बदलने का कार्य नहीं किया है और हमारे पापों की मूल समस्या का समाधान अभी तक नहीं हुआ है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि, चाहे मैं प्रभु से कैसे भी प्रार्थना, पश्चाताप या पाप स्वीकार क्यों न करूँ, मैं स्वयं को अन्य लोगों से घृणा करने से रोक नहीं पाती थी। मैंने इब्रानियों 12:14 ले बारे में सोचा जिसमें लिखा है: "सबसे मेल मिलाप रखो, और उस पवित्रता के खोजी हो जिसके बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा।" मैंने सोचा, हाँ, परमेश्वर पवित्र है, और हम शुद्ध किये जाने के बाद ही उनका चेहरा देख पाएंगे। अभी भी हमारे कई पाप ऐसे हैं जिनका समाधान नहीं किया गया है और हम परमेश्वर के अनुरूप नहीं हो पा रहे हैं, इसलिए हम निश्चित रूप से फिलहाल स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते हैं।
हमारे "परमेश्वर के लौटने की गवाहियाँ" पृष्ठ पर या नीचे दी गई संबंधित सामग्री से अधिक जानें।
मैंने तब उस बहन से पूछा, "बहन, हमने केवल अपने पापों की क्षमा पायी है और अभी भी अनजाने में पाप करने में सक्षम हैं, तो हम वास्तव में पाप से कैसे छुटकारा पा सकते हैं? आप कहती हैं कि परमेश्वर अंत के दिनों में न्याय और शुद्धिकरण का कार्य करेंगे, तो मैं वास्तव में यह जानना चाहती हूँ कि परमेश्वर न्याय का कार्य कैसे करते हैं। क्या आप कृपया मेरे साथ इस बारे में संगति कर सकती हैं?"
मुस्कुराते हुए, बहन ने स्वीकृति में सिर हिलाया और अपनी बात जारी रखी। "आप जो सवाल पूछ रही हैं, वह सवाल बहुत से प्रभु के विश्वासियों के दिलों के करीब है। प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की है, 'यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता; क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा' (यूहन्ना 12:47-48)। 'मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा' (यूहन्ना 16:12-13)। इन पदों से, हम यह देख सकते हैं कि यीशु के समय के लोग चूँकि छोटे आध्यात्मिक कद के थे, इसलिए प्रभु यीशु ने हमें कभी भी उन सभी सत्यों को नहीं बताया, जिन्हें सच्चा मोक्ष प्राप्त करने के लिए भ्रष्ट मानवजाति के रूप में हमें आवश्यकता है। इसके बजाय, अंत के दिनों में, प्रभु यीशु, सभी सत्यों में लोगों को प्रवेश कराने के लिए अधिक वचन बोलेंगे, और वह मानवजाति का न्याय करने और उसे बचाने के लिए वचनों का उपयोग करेंगे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, 'वर्तमान देहधारण में परमेश्वर का कार्य मुख्य रूप से ताड़ना और न्याय के द्वारा अपने स्वभाव को व्यक्त करना है। इस नींव पर निर्माण करते हुए वह मनुष्य तक अधिक सत्य पहुँचाता है और उसे अभ्यास करने के और अधिक तरीके बताता है और ऐसा करके मनुष्य को जीतने और उसे उसके भ्रष्ट स्वभाव से बचाने का अपना उद्देश्य हासिल करता है। यही वह चीज़ है, जो राज्य के युग में परमेश्वर के कार्य के पीछे निहित है।' 'अंत के दिनों में मसीह मनुष्य को सिखाने, उसके सार को उजागर करने और उसके वचनों और कर्मों की चीर-फाड़ करने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्यों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को परमेश्वर का आज्ञापालन किस प्रकार करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मनुष्यता का जीवन जीना चाहिए, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और उसका स्वभाव, इत्यादि। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खास तौर पर वे वचन, जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर का तिरस्कार करता है, इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरुद्ध शत्रु-बल है। अपने न्याय का कार्य करने में परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता; बल्कि वह लंबे समय तक उसे उजागर करता है, उससे निपटता है और उसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने, निपटने और काट-छाँट करने की इन विधियों को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि उस सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसका मनुष्य में सर्वथा अभाव है। केवल इस तरह की विधियाँ ही न्याय कही जा सकती हैं; केवल इस तरह के न्याय द्वारा ही मनुष्य को वशीभूत और परमेश्वर के प्रति समर्पण के लिए पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इतना ही नहीं, बल्कि मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य मनुष्य में परमेश्वर के असली चेहरे की समझ पैदा करने और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता का सत्य उसके सामने लाने का काम करता है। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त कराता है, जो उसकी समझ से परे हैं। यह मनुष्य को अपने भ्रष्ट सार तथा अपनी भ्रष्टता की जड़ों को जानने-पहचानने और साथ ही अपनी कुरूपता को खोजने का अवसर देता है। ये सभी परिणाम न्याय के कार्य द्वारा लाए जाते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है, जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया जाने वाला न्याय का कार्य है।'"
बहन ने अपनी संगति जारी रखते हुए कहा, "अंत के दिनों में, परमेश्वर न्याय और शुद्धिकरण का कार्य करते हैं और वह कई बातों के बारे में सत्य व्यक्त करते हैं। ये सत्य हमारी प्रकृति और सार को पूरी तरह से उजागर करते हैं, वे हमें हमारी शैतानी प्रकृति को देखने में सक्षम करते हैं जो परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह और उनका प्रतिरोध करती है, साथ ही साथ हमें परमेश्वर के हमारे विद्रोह और प्रतिरोध के सच को देखने देते हैं। उदाहरण के लिए, हम सभी में एक कपटपूर्ण प्रकृति है, हम अक्सर अपने हित के लिए परमेश्वर और अन्य लोगों को धोखा देने की कोशिश करते हैं; हमारे पास एक अभिमानी और घमंडी शैतानी स्वभाव है, और अन्य लोगों के साथ अपने व्यवहार में, हम हमेशा चाहते हैं कि वे हमारी बात सुनें, जब अन्य लोग हमारे हितों का नुकसान करते हैं, तो हम उन्हें दोष देते हैं, उनसे नफरत करते हैं; जब प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाएँ हम पर पड़ती हैं, तो हम परमेश्वर को दोष देते हैं, उनका विरोध करते हैं; जब परमेश्वर का नया कार्य हमारी धारणाओं के अनुरूप नहीं होता है, तो हम मनमाने ढंग से परमेश्वर को सीमा में बांधते और उनकी आलोचना करते हैं; जब हम खुद को परमेश्वर के लिए थोड़ा भी खपाते हैं, जब हम थोड़ा कार्य करते हैं और परमेश्वर के लिए थोड़ा कष्ट सहते हैं, तो हमारी चाल दिग्गजों सी हो जाती है, हम परमेश्वर के साथ सौदा करते हैं, बदले में उनकी कृपा और आशीष मांगते हैं। ये तो बस कुछ ही उदाहरण हैं। परमेश्वर के वचनों से, हम देख सकते हैं कि हम शैतान के द्वारा बड़ी गहराई से भ्रष्ट हो चुके हैं, अपना जीवन जीने के तरीके में हम शायद ही मानवता से कोई समानता रखते हैं। परमेश्वर शैतान के हाथों हुए हमारे भ्रष्टाचार के सत्य को प्रकट करते हुए हमें अभ्यास का रास्ता भी दिखाते हैं ताकि हमें पता चले कि परमेश्वर किस तरह के व्यक्ति से प्रेम करते हैं, और किस तरह के व्यक्ति से नफरत करते हैं, परमेश्वर किस तरह के व्यक्ति को बचाते हैं और किसे हटाते हैं, किस प्रकार के व्यक्ति को आशीर्वाद देते हैं और किसे शाप देते हैं, साथ ही साथ परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करने के लिए हमें किस प्रकार अभ्यास करना चाहिए। जब हम परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना का अनुभव कर लेते हैं, तो हम मनुष्य को बचाने के परमेश्वर के अच्छे इरादे को समझते हैं और हम परमेश्वर की पवित्रता को देखते हैं। जब हमें परमेश्वर के धर्मी स्वभाव के अलंघनीय होने का पता चलता है, तो हम उनके सामने गिरकर दंडवत करने से अपने आपको रोक नहीं पाते हैं, अपने दुष्ट कर्मों के लिए पश्चाताप महसूस करते हैं, अपनी शैतानी प्रकृति से घृणा करते हैं और परमेश्वर के आगे पश्चाताप करते हैं। हम परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के अधीन होने के लिए तैयार हो जाते हैं, शैतानी भ्रष्ट स्वभावों को छोड़ देते हैं। परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना हमें नकारात्मक चीजों के बारे में विवेक देते हैं, जीवन के बारे में हमारा दृष्टिकोण और मूल्य, एक परिवर्तन से गुज़रते हैं और हमारे शैतानी स्वभाव को धीरे-धीरे शुद्ध कर दिया जाता है। ये अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य का अनुभव करने से प्राप्त होने वाले परिणाम हैं, और वे हमारे लिए परमेश्वर का महान प्रेम और उद्धार हैं। अंत के दिनों में पाप से मुक्त होने और सच्चा उद्धार प्राप्त करने के लिए परमेश्वर के न्याय को स्वीकार करना ही हमारे लिए एकमात्र रास्ता है।"
बहन की संगति ने मुझे बहुत स्पष्ट रूप से सब कुछ समझने दिया, और मैंने प्रसन्नता से कहा, "आप बहुत स्पष्ट रूप से संगति करती हैं! सत्य को व्यक्त करने के द्वारा, परमेश्वर न्याय का कार्य कर रहे हैं, केवल परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार करने के द्वारा ही हम सत्य और जीवन प्राप्त कर सकते हैं, अपनी पापी प्रकृति को दूर कर सकते हैं और सच्चा उद्धार प्राप्त कर सकते हैं। जिस तरह से परमेश्वर मानवजाति को बचाने के लिए कार्य करते हैं वह कितना व्यावहारिक है! हालाँकि, मैंने अंत के दिनों के परमेश्वर के न्याय-कार्य का अनुभव नहीं किया है, लेकिन आपकी संगति से मुझे लगता है कि अंत के दिनों में परमेश्वर का न्याय वाकई में हमें पाप से शुद्ध कर सकता है, हमें बदल सकता है और बचा भी सकता है!"
आगामी महीने में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ने और भाई-बहनों के साथ मिलकर संगति करने से, मुझे यकीन हो गया था कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटे हुए प्रभु यीशु हैं और मैंने अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार कर लिया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में सभाएं मेरी पुरानी कलीसिया की सभाओं से बहुत अलग हैं। हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, भाई-बहन परमेश्वर के वचनों के अपने-अपने अनुभवों और ज्ञान के बारे में बताते हैं और हम अपनी भ्रष्टाचार की अभिव्यक्तियों के बारे में खुलकर बातें करते हैं। इसके बाद हम परमेश्वर के वचनों में अपने स्वभावों को बदलने का मार्ग तलाशते हैं, और हम सभी का जीवन धीरे-धीरे प्रगति कर रहा है। अंत के दिनों में परमेश्वर का न्याय का कार्य वास्तव में मानवजाति का सबसे बड़ा उद्धार है, सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त किये गये वचन, जीवन का जल हैं जो मनुष्य को शुद्ध करते है, हमारे लिए परमेश्वर के वचनों के न्याय को स्वीकार करना ही सच्चा उद्धार प्राप्त करने और स्वर्गिक राज्य में प्रवेश करने का एकमात्र तरीका है। जैसा कि प्रकाशितवाक्य 21:6 में कहा गया है: "ये बातें पूरी हो गई हैं। मैं अल्फा और ओमेगा, आदि और अन्त हूँ। मैं प्यासे को जीवन के जल के सोते में से सेंतमेंत पिलाऊँगा।"
सारी महिमा परमेश्वर की हो!
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