हमारी सूत्रधार एक सलून की मालकिन है। शुरुआत में उसके लिए सबसे ज़रूरी था ईमानदारी से कारोबार करना, लेकिन बाद में जब उसके पिता बीमार पड़े और उसे पैसे की ज़रूरत हुई, तो उसने समाज की धारा के मुताबिक चलना शुरू किया। उसने ग्राहकों को धोखा देना और उनसे झूठ बोलना शुरू कर दिया। इस तरह उसने कुछ पैसे ज़रूर कमाए, लेकिन उसके अंदर अपराध-बोध, खालीपन और बेचैनी हमेशा बनी रही। फिर भी, वह खुद को रोक नहीं सकी। परमेश्वर के वचनों को पढ़कर, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार कर उसने समझा कि परमेश्वर, ईमानदार लोगों को पसंद और धोखेबाज़ लोगों से नफ़रत करते हैं। इसलिए उसने सत्य बोलने और ईमानदार रहने का अभ्यास करना शुरू कर दिया। लेकिन पैसे के प्रलोभन में फँसकर, वह फिर ग्राहकों से झूठ बोलने लगी, उनको धोखा देने लगी। इससे वह खुद को दोषी मानने लगी और पछताने लगी। सत्य को जानने और परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद, वह समझ गई कि उसकी चालाकियों और उसके झूठ की क्या वजह है। उसने फिर परमेश्वर के वचनों के अभ्यास के मार्ग को अपनाया। उसने मज़बूती से परमेश्वर के वचनों का अभ्यास किया, ईमानदार बनी रही और इस तरह एक सच्ची और ईमानदार इंसान होने का आनंद अनुभव कर सकी।
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