शीला एक निष्ठावान कैथोलिक है, जो अनेक वर्षों से अपनी आस्था में मजबूती से कायम रही है और प्रभु के वापस आने पर स्वर्ग के राज्य में आरोहित होने के प्रति आशावान है। लेकिन समय बीतने के साथ उसे पता चलता है कि अक्सर पाप स्वीकार करने और नेक काम करने के बावजूद, वह परमेश्वर के आदेशों का पालन नहीं कर पाती और हमेशा पाप करने और उसे स्वीकार करने के दुष्चक्र में फंसी हुई है। इससे वह हमेशा व्यथित रहती है और बहुत बुरा महसूस करती है। एक दिन, वह फेसबुक पर पोस्ट किये गये सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के एक अंश को पढ़ती है, जिसमें परमेश्वर में आस्था का अर्थ समझाया गया था और इस बात को उजागर किया गया था कि लोग अपनी आस्था से क्या पाने का लक्ष्य रखते हैं। वह खुद को आत्मचिंतन करने से रोक नहीं पाती कि हालांकि वह नेक काम करने में सक्रिय है और खुद को अहमियत नहीं देती, मगर यह सब बदले में, स्वर्गिक राज्य के आशीष पाने के लिए होता है। यह परमेश्वर के लिए सच्चे प्रेम के कारण नहीं होता, तो परमेश्वर ऐसी आस्था की तारीफ़ कैसे कर सकता है? अपनी उलझन सुलझाने की आशा से, वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों और कार्यों को खोजने और उनकी जांच-पड़ताल करने का फैसला करती है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ने से आखिरकार सब-कुछ उसे स्पष्ट समझ आ जाता है, और उसे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश का मार्ग मिल जाता है।