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मेन्‍यू

अपने पुनरुत्थान के बाद अपने चेलों के लिए यीशु के वचन

यूहन्ना 20:26-29 आठ दिन के बाद उसके चेले फिर घर के भीतर थे, और थोमा उनके साथ था; और द्वार बन्द थे, तब यीशु आया और उनके बीच में खड़े होकर कहा, “तुम्हें शान्ति मिले।” तब उसने थोमा से कहा, “अपनी उँगली यहाँ लाकर मेरे हाथों को देख और अपना हाथ लाकर मेरे पंजर में डाल, और अविश्‍वासी नहीं परन्तु विश्‍वासी हो।” यह सुन थोमा ने उत्तर दिया, “हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!” यीशु ने उससे कहा, “तू ने मुझे देखा है, क्या इसलिये विश्‍वास किया है? धन्य वे हैं जिन्होंने बिना देखे विश्‍वास किया।”

यूहन्ना 21:16-17 उसने फिर दूसरी बार उससे कहा, “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रेम रखता है?” उसने उससे कहा, “हाँ, प्रभु; तू जानता है कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ।” उसने उससे कहा, “मेरी भेड़ों की रखवाली कर।” उसने तीसरी बार उससे कहा, “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रीति रखता है?” पतरस उदास हुआ कि उसने उससे तीसरी बार ऐसा कहा, “क्या तू मुझ से प्रीति रखता है?” और उससे कहा, “हे प्रभु, तू तो सब कुछ जानता है; तू यह जानता है कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ।” यीशु ने उससे कहा, “मेरी भेड़ों को चरा।”

ये अंश कुछ ऐसी चीज़ों के बारे में बताते हैं, जो प्रभु यीशु ने अपने पुनरुत्थान के बाद कीं और अपने चेलों से कहीं। पहले, आओ पुनरुत्थान से पहले और बाद में प्रभु यीशु में आए किसी अंतर पर नज़र डालें। क्या वह अभी भी वही पुराने दिनों वाला प्रभु यीशु था? पवित्रशास्त्र में पुनरुत्थान के बाद के प्रभु यीशु का वर्णन करने वाली निम्नलिखित पंक्ति है : “और द्वार बन्द थे, तब यीशु आया और उनके बीच में खड़े होकर कहा, ‘तुम्हें शान्ति मिले।’” यह बहुत स्पष्ट है कि उस समय प्रभु यीशु देह में अवस्थित नहीं था, बल्कि अब वह एक आध्यात्मिक देह में था। ऐसा इसलिए था, क्योंकि उसने देह की सीमाओं का अतिक्रमण कर लिया था; यद्यपि द्वार बंद था, फिर भी वह लोगों के बीच आ सकता था और उन्हें अपने आपको देखने दे सकता था। पुनरुत्थान के बाद के प्रभु यीशु और पुनरुत्थान के पहले के देह में रहने वाले प्रभु यीशु के बीच यह सबसे बड़ा अंतर है। यद्यपि उस समय के आध्यात्मिक देह के रूप-रंग और उससे पहले के प्रभु यीशु के रूप-रंग में कोई अंतर नहीं था, फिर भी उस पल प्रभु यीशु ऐसा बन गया था, जो लोगों को एक अजनबी के समान लगता था, क्योंकि मरकर जी उठने के बाद वह एक आध्यात्मिक देह बन गया था, और उसके पिछले देह की तुलना में यह आध्यात्मिक देह लोगों के लिए कहीं ज़्यादा रहस्यमय और भ्रमित करने वाला था। इसने प्रभु यीशु और लोगों के बीच की दूरी और अधिक बढ़ा दी, और लोगों ने अपने हृदय में महसूस किया कि उस समय प्रभु यीशु कहीं ज़्यादा रहस्यमय बन गया था। लोगों की ये अनुभूतियाँ और भावनाएँ अचानक उन्हें वापस उस परमेश्वर पर विश्वास करने के युग में ले गईं, जिसे देखा और छुआ नहीं जा सकता था। तो, प्रभु यीशु ने अपने पुनरुत्थान के बाद पहली चीज़ यह की, कि उसने इस बात की पुष्टि करने के लिए कि वह मौजूद है, और अपने पुनरुत्थान के तथ्य की पुष्टि करने के लिए अपने को सबको देखने दिया। इसके अतिरिक्त, इस कार्य ने लोगों के साथ उसका संबंध उसी रूप में बहाल कर दिया, जैसा वह तब था जब वह देह में कार्य कर रहा था, वह वो मसीह था जिसे वे देख और छू सकते थे। इसका एक परिणाम यह है कि लोगों को इस बात में कोई संदेह नहीं रहा कि सूली पर चढ़ाए जाने के बाद प्रभु यीशु मरकर पुनः जी उठा है, और उन्हें मानवजाति को छुड़ाने के प्रभु यीशु के कार्य में भी कोई संदेह नहीं रहा था। दूसरा परिणाम यह है कि पुनरुत्थान के बाद प्रभु यीशु के लोगों के सामने प्रकट होने और लोगों को अपने को देखने और छूने देने के तथ्य ने मानवजाति को अनुग्रह के युग में दृढ़ता से सुरक्षित किया, और यह सुनिश्चित किया कि अब से, इस कल्पित तथ्य के आधार पर कि प्रभु यीशु “गायब” हो गया है या “बिना कुछ कहे छोड़कर चला गया है”, लोग व्यवस्था के पिछले युग में नहीं लौटेंगे। इस प्रकार उसने सुनिश्चित किया वे प्रभु यीशु की शिक्षाओं और उसके द्वारा किए गए कार्य का अनुसरण करते हुए लगातार आगे बढ़ते रहेंगे। इस प्रकार, अनुग्रह के युग के कार्य में औपचारिक रूप से एक नया चरण खुल गया था, और उस क्षण से व्यवस्था के अधीन रह रहे लोग औपचारिक रूप से व्यवस्था से बाहर आ गए और उन्होंने एक नए युग में, एक नई शुरुआत में प्रवेश किया। पुनरुत्थान के बाद प्रभु यीशु के मानवजाति के सामने प्रकट होने के ये बहुआयामी अर्थ हैं।

चूँकि प्रभु यीशु अब एक आध्यात्मिक देह में था, तो लोग उसे कैसे छू और देख सकते थे? इस प्रश्न का प्रभु यीशु के मानवजाति के सामने प्रकट होने के महत्व से संबंध है। क्या तुम लोगों ने पवित्रशास्त्र के इन अंशों में, जो हमने अभी पढ़े, किसी चीज़ पर ध्यान दिया? सामान्यतः आध्यात्मिक देहों को देखा या छुआ नहीं जा सकता, और पुनरुत्थान के बाद जो कार्य प्रभु यीशु ने हाथ में लिया था, वह पहले ही पूर्ण हो चुका था। इसलिए सिद्धांततः, उसे लोगों के बीच उनसे मिलने के लिए अपनी मूल छवि में वापस आने की बिलकुल भी आवश्यकता नहीं थी, किंतु थोमा जैसे लोगों के सामने प्रभु यीशु की आध्यात्मिक देह के प्रकटन ने उसके प्रकटन के महत्व को और भी ज़्यादा दृढ़ कर दिया, जिससे वह लोगों के हृदय में अधिक गहराई तक प्रवेश कर गया। जब वह थोमा के पास आया, तो उसने संदेह करने वाले थोमा को अपने हाथों को छूने दिया, और उससे कहा : “अपनी उँगली यहाँ लाकर मेरे हाथों को देख और अपना हाथ लाकर मेरे पंजर में डाल, और अविश्‍वासी नहीं परन्तु विश्‍वासी हो।” ये वचन और ये कार्य ऐसी चीज़ें नहीं थीं जिन्हें प्रभु यीशु केवल अपने पुनरुत्थान के बाद कहना या करना चाहता था; वस्तुतः, ये वे चीज़ें थीं जिन्हें वह सलीब पर चढ़ाए जाने से पहले कहना और करना चाहता था, क्योंकि थोमा का संदेह केवल तभी शुरू नहीं हुआ था, बल्कि वह पूरे समय तब तक उसके साथ रहा, जब तक वह प्रभु यीशु का अनुसरण करता रहा। यह स्पष्ट है कि सूली पर चढ़ाए जाने से पहले ही उसे थोमा जैसे लोगों की समझ थी। तो हम इससे क्या देख सकते हैं? अपने पुनरुत्थान के बाद भी वह वही प्रभु यीशु था। उसका सार नहीं बदला था। परंतु यह प्रभु यीशु था, जो मरकर जी उठा था और आध्यात्मिक लोक से अपनी मूल छवि के साथ, अपने मूल स्वभाव के साथ, और अपने देह में रहने के समय से मानवजाति की अपनी समझ के साथ लौटा था, इसलिए वह पहले थोमा के पास गया और उससे अपने पंजर पर हाथ रखवाया, पुनरुत्थान के बाद उसने थोमा को अपनी आध्यात्मिक देह ही नहीं दिखाई, बल्कि अपनी आध्यात्मिक देह के अस्तित्व को स्पर्श और महसूस भी कराया, और उसके संदेह पूरी तरह से मिटा दिए। प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ाए जाने से पहले थोमा ने हमेशा उसके मसीह होने पर संदेह किया था, और वह विश्वास करने में असमर्थ था। परमेश्वर पर उसका विश्वास जो कुछ वह अपनी आँखों से देख सका था, जो कुछ वह अपने हाथों से छू सका था, केवल उसके आधार पर ही स्थापित हुआ था। प्रभु यीशु को इस प्रकार के व्यक्तियों के विश्वास के बारे में अच्छी समझ थी। वे मात्र स्वर्गिक परमेश्वर पर विश्वास करते थे, और जिसे परमेश्वर ने भेजा था, उस पर या देहधारी मसीह पर बिलकुल भी विश्वास नहीं करते थे, न ही वे उसे स्वीकार करते थे। थोमा को प्रभु यीशु का अस्तित्व स्वीकार करवाने और उसका विश्वास दिलाने के लिए, और यह भी कि वह सचमुच देहधारी परमेश्वर है, उसने थोमा को अपना हाथ बढ़ाकर अपने पंजर को छूने दिया। क्या प्रभु यीशु के पुनरुत्थान के पहले और बाद में थोमा के संदेह करने में कुछ अंतर था? वह हमेशा संदेह करता था, और सिवाय प्रभु यीशु के आध्यात्मिक देह के व्यक्तिगत रूप से उसके सामने प्रकट होने और उसे अपने देह में कीलों के निशान छूने देने के, कोई उपाय नहीं था कि कोई उसके संदेहों का समाधान कर सके और उन्हें मिटा सके। इसलिए प्रभु यीशु द्वारा उसे अपने पंजर को छूने देने और कीलों के निशानों की मौज़ूदगी को वास्तव में महसूस करने देने के बाद से थोमा के संदेह गायब हो गए, और उसने सच में जान लिया कि प्रभु यीशु मरकर जी उठा है, और उसने स्वीकार किया और माना कि प्रभु यीशु सच्चा मसीह और देहधारी परमेश्वर है। यद्यपि इस समय थोमा ने अब और संदेह नहीं किया, किंतु उसने मसीह से मिलने का अवसर हमेशा के लिए गँवा दिया था। उसने उसके साथ रहने, उसका अनुसरण करने और उसे जानने का अवसर हमेशा के लिए गँवा दिया था। उसने स्वयं को प्रभु यीशु द्वारा पूर्ण बनाए जाने का अवसर गँवा दिया था। प्रभु यीशु के प्रकटन और उसके वचनों ने उन लोगों के विश्वास पर एक निष्कर्ष और एक निर्णय दे दिया, जो संदेहों से भरे हुए थे। उसने संदेह करने वालों को, उन लोगों को जो केवल स्वर्गिक परमेश्वर पर विश्वास करते थे और मसीह पर विश्वास नहीं करते थे, यह बताने के लिए अपने व्यावहारिक वचनों और कार्यों का उपयोग किया : परमेश्वर ने उनके विश्वास की प्रशंसा नहीं की, न ही उसने उनके द्वारा संदेह करते हुए अनुसरण करने की प्रशंसा की। उनके द्वारा परमेश्वर और मसीह पर पूरी तरह से विश्वास करने का दिन ही परमेश्वर द्वारा अपना महान कार्य पूरा करने का दिन हो सकता था। निस्संदेह, यही वह दिन भी था, जब उनके संदेहों पर निर्णय दिया गया। मसीह के प्रति उनके रवैये ने उनका भाग्य निर्धारित कर दिया, और उनके अड़ियल संदेह का मतलब था कि उनके विश्वास ने उन्हें कोई फल प्रदान नहीं किया, और उनकी कठोरता का तात्पर्य था कि उनकी आशाएँ व्यर्थ थीं। चूँकि स्वर्गिक परमेश्वर पर उनका विश्वास भ्रांतियों पर पला था, और मसीह के प्रति उनका संदेह वास्तव में परमेश्वर के प्रति उनका वास्तविक रवैया था, इसलिए भले ही उन्होंने प्रभु यीशु के देह की कीलों के निशानों को छुआ था, फिर भी उनका विश्वास बेकार ही था और उनके परिणाम को बाँस की टोकरी से पानी खींचने के रूप में वर्णित किया जा सकता था—वह सब व्यर्थ था। जो कुछ प्रभु यीशु ने थोमा से कहा, वह उसका हर एक व्यक्ति से स्पष्ट रूप से कहने का भी तरीका था : पुनरुत्थित प्रभु यीशु ही वह प्रभु यीशु है, जिसने साढ़े तैंतीस वर्ष मानवजाति के बीच काम करते हुए बिताए थे। यद्यपि उसे सूली पर चढ़ा दिया गया था और उसने मृत्यु की छाया की घाटी का अनुभव किया था, और यद्यपि उसने पुनरुत्थान का अनुभव किया था, फिर भी उसमें किसी भी पहलू से कोई बदलाव नहीं हुआ था। यद्यपि अब उसके शरीर पर कीलों के निशान थे, और यद्यपि वह पुनरुत्थित हो गया था और क़ब्र से बाहर आ गया था, फिर भी उसका स्वभाव, मानवजाति की उसकी समझ, और मानवजाति के प्रति उसके इरादे ज़रा भी नहीं बदले थे। साथ ही, वह लोगों से कह रहा था कि वह सूली से नीचे उतर आया है, उसने पाप पर विजय पाई है, कठिनाइयों पर काबू पाया है, और मुत्यु पर जीत हासिल की है। कीलों के निशान शैतान पर उसके विजय के प्रमाण मात्र थे, संपूर्ण मानवजाति को सफलतापूर्वक छुड़ाने के लिए एक पापबलि होने के प्रमाण थे। वह लोगों से कह रहा था कि उसने पहले ही मानवजाति के पापों को अपने ऊपर ले लिया है और छुटकारे का अपना कार्य पूरा कर लिया है। जब वह अपने चेलों को देखने के लिए लौटा, तो उसने अपने प्रकटन के माध्यम से यह संदेश दिया : “मैं अभी भी जीवित हूँ, मैं अभी भी मौजूद हूँ; आज मैं वास्तव में तुम लोगों के सामने खड़ा हूँ, ताकि तुम लोग मुझे देख और छू सको। मैं हमेशा तुम लोगों के साथ रहूँगा।” प्रभु यीशु थोमा के मामले का उपयोग भविष्य के लोगों को यह चेतावनी देने के लिए भी करना चाहता था : यद्यपि तुम प्रभु यीशु पर अपने विश्वास में उसे न तो देख सकते हो और न ही छू सकते हो, फिर भी तुम अपने सच्चे विश्वास के कारण धन्य हो, और तुम अपने सच्चे विश्वास के कारण प्रभु यीशु को देख सकते हो, और इस प्रकार का व्यक्ति धन्य है।

बाइबल में दर्ज ये वचन, जिन्हें प्रभु यीशु ने तब कहा था जब वह थोमा के सामने प्रकट हुआ था, अनुग्रह के युग में सभी लोगों के लिए बड़े सहायक हैं। थोमा के सामने उसका प्रकटन और उससे कहे गए उसके वचनों का भविष्य की पीढ़ियों के ऊपर एक गहरा प्रभाव पड़ा है; उनका सार्वकालिक महत्व है। थोमा उस प्रकार के व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है, जो परमेश्वर पर विश्वास तो करते हैं, मगर उस पर संदेह भी करते हैं। वे शंकालु प्रकृति के होते हैं, उनका हृदय कुटिल होता है, वे विश्वासघाती होते हैं, और उन चीज़ों पर विश्वास नहीं करते, जिन्हें परमेश्वर संपन्न कर सकता है। वे परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और उसकी संप्रभुता पर विश्वास नहीं करते, न ही वे देहधारी परमेश्वर पर विश्वास करते हैं। किंतु प्रभु यीशु का पुनरुत्थान उनके इन लक्षणों के लिए एक चुनौती था, और इसने उन्हें अपने संदेह की खोज करने, अपने संदेह को पहचानने और अपने विश्वासघात को स्वीकार करने, और इस प्रकार प्रभु यीशु के अस्तित्व और पुनरुत्थान पर सचमुच विश्वास करने का एक अवसर भी प्रदान किया। थोमा के साथ जो कुछ हुआ, वह बाद की पीढ़ियों के लिए एक चेतावनी और सावधानी थी, ताकि अधिक लोग अपने आपको थोमा के समान शंकालु न होने के लिए सचेत कर सकें, और यदि वे खुद को संदेह से भरेंगे, तो वे अंधकार में डूब जाएँगे। यदि तुम परमेश्वर का अनुसरण करते हो, किंतु बिलकुल थोमा के समान इस बात की पुष्टि, सत्यापन और अनुमान करने के लिए कि परमेश्वर का अस्तित्व है या नहीं, हमेशा प्रभु के पंजर को छूना और उसके कीलों के निशानों को महसूस करना चाहते हो, तो परमेश्वर तुम्हें त्याग देगा। इसलिए प्रभु यीशु लोगों से अपेक्षा करता है कि वे थोमा के समान न बनें, जो केवल उसी बात पर विश्वास करते हैं जिसे वे अपनी आँखों से देख सकते हैं, बल्कि शुद्ध और ईमानदार व्यक्ति बनें, परमेश्वर के प्रति संदेहों को आश्रय न दें, बल्कि केवल उस पर विश्वास करें और उसका अनुसरण करें। इस प्रकार के लोग धन्य हैं। यह लोगों से प्रभु यीशु की एक बहुत छोटी अपेक्षा है, और यह उसके अनुयायियों के लिए एक चेतावनी है।

संदेहों से भरे लोगों के प्रति प्रभु यीशु का उपर्युक्त रवैया है। तो प्रभु यीशु ने उन लोगों से क्या कहा और उनके लिए क्या किया, जो उस पर ईमानदारी से विश्वास करने और उसका अनुसरण करने में समर्थ हैं? प्रभु यीशु और पतरस के बीच के एक संवाद के माध्यम से आगे हम यही देखने जा रहे हैं।

इस वार्तालाप में प्रभु यीशु ने बार-बार पतरस से एक बात पूछी : “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रेम रखता है?” यह वह उच्चतर मानक है, जिसकी प्रभु यीशु अपने पुनरुत्थान के बाद पतरस जैसे लोगों से अपेक्षा करता है, जो वास्तव में मसीह पर विश्वास करते हैं और प्रभु से प्रेम करने का प्रयत्न करते हैं। यह प्रश्न एक प्रकार की जाँच और पूछताछ थी, परंतु इससे भी अधिक, यह पतरस जैसे लोगों से एक माँग और एक अपेक्षा थी। प्रभु यीशु ने पूछताछ करने के इस तरीके का उपयोग किया, ताकि लोग अपने बारे में विचार करें और अपने भीतर झाँकें और पूछें : प्रभु यीशु की लोगों से क्या अपेक्षाएँ हैं? क्या मैं प्रभु से प्रेम करता हूँ? क्या मैं ऐसा व्यक्ति हूँ, जो प्रभु से प्रेम करता है? मुझे प्रभु से कैसे प्रेम करना चाहिए? भले ही प्रभु यीशु ने यह प्रश्न केवल पतरस से पूछा हो, परंतु सच्चाई यह है कि अपने हृदय में वह पतरस से पूछने के इस अवसर का उपयोग इसी प्रकार का प्रश्न परमेश्वर से प्रेम करने के इच्छुक अधिक लोगों से पूछने के लिए करना चाहता था। बस, पतरस धन्य था, जो इस प्रकार के व्यक्तियों के प्रतिनिधि के रूप में कार्य कर पाया, जिससे स्वयं प्रभु यीशु द्वारा अपने मुँह से यह पूछताछ की गई।

निम्नलिखित वचनों की तुलना में, जो अपने पुनरुत्थान के बाद प्रभु यीशु ने थोमा से कहे थे : “अपनी उँगली यहाँ लाकर मेरे हाथों को देख और अपना हाथ लाकर मेरे पंजर में डाल, और अविश्‍वासी नहीं परन्तु विश्‍वासी हो,” उसका पतरस से तीन बार यह पूछना : “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रेम रखता है?” लोगों को प्रभु यीशु के रवैये की कठोरता और पूछताछ करने के दौरान उसके द्वारा महसूस की गई अत्यावश्यकता को बेहतर ढंग से महसूस कराता है। जहाँ तक शंकालु, धोखेबाज प्रकृति के थोमा की बात है, प्रभु यीशु ने उसे अपना हाथ बढ़ाकर अपने शरीर पर कीलों के निशान छूने दिए, जिसने उसे विश्वास दिलाया कि प्रभु यीशु मनुष्य का पुत्र है जो पुनरुत्थित हुआ है, और उससे मसीह के रूप में प्रभु यीशु की पहचान स्वीकार कराई। और यद्यपि प्रभु यीशु ने थोमा को सख्ती से डाँटा नहीं, न ही उसने मौखिक रूप से उसके बारे में स्पष्ट रूप से कोई न्याय व्यक्त किया था, फिर भी उसने उसे जताने के लिए कि वह उसे समझता है, व्यावहारिक कार्यकलापों का उपयोग किया, साथ ही उसने उस प्रकार के व्यक्ति के प्रति अपने रवैये और निश्चय को भी प्रदर्शित किया। उस प्रकार के व्यक्ति से प्रभु यीशु की माँगों और अपेक्षाओं को, जो कुछ उसने कहा था, उसके आधार पर देखा नहीं जा सकता, क्योंकि थोमा जैसे लोगों में सच्चे विश्वास का एक टुकड़ा भी नहीं होता। उनके लिए प्रभु यीशु की माँगें केवल इतनी ही होती हैं, लेकिन पतरस जैसे लोगों के प्रति उसके द्वारा प्रकट किया गया रवैया बिलकुल भिन्न था। उसने पतरस से यह अपेक्षा नहीं की कि वह अपना हाथ बढ़ाए और उसके कीलों के निशानों को छुए, न ही उसने पतरस से यह कहा : “अविश्वासी नहीं परन्तु, विश्वासी हो।” इसके बजाय, उसने बार-बार पतरस से एक ही प्रश्न पूछा। वह प्रश्न विचारोत्तेजक और अर्थपूर्ण था, ऐसा प्रश्न, जो मसीह के प्रत्येक अनुयायी को ग्लानि और भय ही महसूस नहीं कराएगा, बल्कि प्रभु यीशु की चिंतित, दुःखित मनोदशा भी महसूस कराए बिना नहीं रहेगा। और जब वे अत्यधिक पीड़ा और कष्ट में होते हैं, तब वे प्रभु यीशु की चिंता और परवाह को और अधिक समझ पाते है; वे उसकी ईमानदार शिक्षाओं और शुद्ध, ईमानदार लोगों से उसकी कड़ी अपेक्षाओं को समझते हैं। प्रभु यीशु का प्रश्न लोगों को यह एहसास कराता है कि इन सरल वचनों में प्रकट प्रभु की लोगों से अपेक्षाएँ मात्र उसमें विश्वास करने और उसका अनुसरण करने के लिए नहीं हैं, बल्कि अपने प्रभु और अपने परमेश्वर से प्रेम करते हुए प्रेम प्राप्त करने के लिए हैं। इस प्रकार का प्रेम परवाह और समर्पण करना होता है। यह मनुष्यों का परमेश्वर के लिए जीना, परमेश्वर के लिए मरना, सर्वस्व परमेश्वर को समर्पित करना है, और सब-कुछ परमेश्वर के लिए व्यय करना और उसे दे देना है। इस प्रकार का प्रेम परमेश्वर को आराम देना, उसे गवाही का आनंद लेने देना, और उसे चैन से रहने देना भी है। यह मानवजाति की परमेश्वर को चुकौती, उसकी जिम्मेदारी, दायित्व और कर्तव्य है, और यह वह मार्ग है, जिसका अनुसरण मानवजाति को जीवन भर करना चाहिए। ये तीन प्रश्न एक अपेक्षा और प्रोत्साहन थे, जो प्रभु यीशु ने पतरस और उन सभी लोगों से किए थे, जो पूर्ण बनाए जाना चाहते थे। ये वे तीन प्रश्न थे, जो पतरस को जीवन में अपने मार्ग पर ले गए और उसका अनुसरण करने की प्रेरणा दी, और प्रभु यीशु के जाने पर ये तीन प्रश्न ही थे, जिन्होंने पूर्ण बनाए जाने के अपने मार्ग पर चलने की शुरुआत करने में पतरस की अगुआई की, जिन्होंने प्रभु के प्रति उसके प्रेम की वजह से प्रभु के हृदय का ख़्याल रखने, प्रभु के प्रति समर्पण करने, प्रभु को आराम प्रदान करने और इस प्रेम की वजह से अपना संपूर्ण जीवन और अपना संपूर्ण अस्तित्व अर्पित करने में उसकी अगुआई की।

अनुग्रह के युग के दौरान परमेश्वर का कार्य मुख्यतः दो प्रकार के लोगों के लिए था। पहला प्रकार उन लोगों का था, जो उस पर विश्वास करते थे और उसका अनुसरण करते थे, जो उसकी आज्ञाओं का पालन और सूली सहन कर सकते थे, और जो अनुग्रह के युग के मार्ग को थामे रह सकते थे। इस प्रकार का व्यक्ति परमेश्वर का आशीष प्राप्त करता है और परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद उठाता है। दूसरे प्रकार का व्यक्ति पतरस जैसा था, जिसे पूर्ण बनाया जा सकता था। इसलिए अपने पुनरुत्थान के बाद प्रभु यीशु ने सबसे पहले ये दो सर्वाधिक अर्थपूर्ण चीज़ें कीं। एक थोमा के साथ की गई और दूसरी पतरस के साथ। ये दो चीज़ें क्या दर्शाती हैं? क्या ये मानवजाति को बचाने के परमेश्वर के सच्चे इरादे दर्शाती हैं? क्या ये मानवजाति के प्रति परमेश्वर की ईमानदारी दर्शाती हैं? उसके द्वारा थोमा के साथ किया गया कार्य लोगों को चेतावनी देने के लिए था कि वे शंकालु न बनें, बल्कि केवल विश्वास करें। पतरस के साथ किया गया उसका कार्य पतरस जैसे लोगों का विश्वास दृढ़ करने और इस प्रकार के लोगों से अपनी अपेक्षाएँ स्पष्ट करने और यह दिखाने के लिए था कि उन्हें किन लक्ष्यों का अनुसरण करना चाहिए।

अपने पुनरुत्थित होने के बाद प्रभु यीशु उन लोगों के सामने प्रकट हुआ जिन्हें वह आवश्यक समझता था, उनसे बातें कीं, और उनसे अपेक्षाएँ कीं, और लोगों के बारे में अपने इरादे और उनसे अपनी अपेक्षाएँ पीछे छोड़ गया। कहने का अर्थ है कि देहधारी परमेश्वर के रूप में मानवजाति के लिए उसकी चिंता और लोगों से उसकी अपेक्षाएँ कभी नहीं बदलीँ; जब वह देह में था तब, और सलीब पर चढ़ाए जाने और पुनरुत्थित होने के बाद जब वह आध्यात्मिक देह में था तब भी, वे एक-जैसी रहीं। सलीब पर चढ़ाए जाने से पहले वह इन चेलों के बारे में चिंतित था, और अपने हृदय में वह हर एक व्यक्ति की स्थिति को लेकर स्पष्ट था और वह प्रत्येक व्यक्ति की कमियाँ समझता था, और निस्संदेह, अपनी मृत्यु, पुनरुत्थान और आध्यात्मिक शरीर बन जाने के बाद भी प्रत्येक व्यक्ति के बारे में उसकी समझ वैसी थी, जैसी तब थी जब वह देह में था। वह जानता था कि लोग मसीह के रूप में उसकी पहचान को लेकर पूर्णतः निश्चित नहीं थे, किंतु देह में रहने के दौरान उसने लोगों से कठोर माँगें नहीं कीं। परंतु पुनरुत्थित हो जाने के बाद वह उनके सामने प्रकट हुआ, और उसने उन्हें पूर्णतः निश्चित किया कि प्रभु यीशु परमेश्वर से आया है और वह देहधारी परमेश्वर है, और उसने अपने प्रकटन और पुनरुत्थान के तथ्य का उपयोग मानवजाति द्वारा जीवन भर अनुसरण करने हेतु सबसे बड़े दर्शन और अभिप्रेरणा के रूप में किया। मृत्यु से उसके पुनरुत्थान ने न केवल उन सभी को मज़बूत किया जो उसका अनुसरण करते थे, बल्कि उसने अनुग्रह के युग के उसके कार्य को मानवजाति के बीच अच्छी तरह से कार्यान्वित कर दिया, और इस प्रकार अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु द्वारा किए जाने वाले उद्धार का सुसमाचार धीरे-धीरे मानवजाति के हर छोर तक पहुँच गया। क्या तुम कहोगे कि पुनरुत्थान के बाद प्रभु यीशु के प्रकटन का कोई महत्व था? उस समय यदि तुम थोमा या पतरस होते, और तुमने अपने जीवन में इस एक चीज़ का सामना किया होता जो इतनी अर्थपूर्ण थी, तो इसका तुम्हारे ऊपर किस प्रकार का प्रभाव पड़ता? क्या तुमने इसे परमेश्वर पर विश्वास करने के अपने जीवन के सबसे बेहतरीन और सबसे बड़े दर्शन के रूप में देखा होता? क्या तुमने परमेश्वर को संतुष्ट करने का प्रयत्न करते हुए और अपने जीवन में परमेश्वर से प्रेम करने का प्रयास करते हुए इसे परमेश्वर का अनुसरण करने की एक प्रेरक शक्ति के रूप में देखा होता? क्या तुमने इस सबसे बड़े दर्शन को फैलाने के लिए जीवन भर का प्रयास व्यय किया होता? क्या तुमने प्रभु यीशु द्वारा उद्धार का सुसमाचार फैलाने को परमेश्वर की आज्ञा के रूप में लिया होता? भले ही तुम लोगों ने इसका अनुभव नहीं किया है, फिर भी परमेश्वर और उसके इरादों की एक स्पष्ट समझ प्राप्त करने के लिए थोमा और पतरस के दो उदाहरण आधुनिक लोगों के लिए काफी हैं। यह कहा जा सकता है कि परमेश्वर के देहधारी हो जाने के बाद, जब उसने मानवजाति के बीच रहकर जीवन का अनुभव प्राप्त कर लिया और मानव-जीवन का व्यक्तिगत रूप से अनुभव कर लिया, और जब उसने उस समय मानवजाति की भ्रष्टता और मानव-जीवन की दशा देख ली, तो देहधारी परमेश्वर ने ज्यादा गहराई से यह महसूस किया कि मानवजाति कितनी असहाय, शोचनीय और दयनीय है। देह में रहते हुए परमेश्वर में जो मानवता थी, उसकी वजह से, अपनी दैहिक अंतःप्रेरणाओं की वजह से, परमेश्वर ने मनुष्य की स्थिति के प्रति और अधिक समवेदना हासिल की। इससे वह अपने अनुयायियों को लेकर और अधिक चिंतित हो गया। ये शायद ऐसी चीज़ें हैं, जिन्हें तुम लोग नहीं समझ सकते, परंतु मैं देहधारी परमेश्वर द्वारा अपने हर एक अनुयायी के लिए अनुभव की गई इस चिंता और परवाह का केवल इन दो शब्दों में वर्णन कर सकता हूँ : “गहन चिंता”। यद्यपि ये शब्द मानवीय भाषा से आते हैं, और यद्यपि ये बहुत मानवीय हैं, फिर भी ये अपने अनुयायियों के लिए परमेश्वर की भावनाओं को वास्तव में व्यक्त और वर्णित करते हैं। जहाँ तक मनुष्यों के लिए परमेश्वर की गहन चिंता की बात है, अपने अनुभवों के दौरान तुम लोग धीरे-धीरे इसे महसूस करोगे और इसका स्वाद लोगे। किंतु इसे केवल अपने स्वभाव में परिवर्तन का प्रयास करने के आधार पर परमेश्वर के स्वभाव को धीरे-धीरे समझकर ही प्राप्त किया जा सकता है। जब प्रभु यीशु प्रकट हुआ, तो इसने मानवजाति में उसके अनुयायियों के लिए उसकी गहन चिंता को मूर्त रूप दिया और उसे उसकी आध्यात्मिक देह को, या तुम यह कह सकते हो कि उसकी दिव्यता को, सौंप दिया। उसके प्रकटन ने लोगों को परमेश्वर की चिंता और परवाह का एक बार और अनुभव और एहसास कराया, साथ ही सशक्त रूप से यह भी प्रमाणित किया कि वह परमेश्वर ही है, जो युग का सूत्रपात करता है, युग का विकास करता है, और युग का समापन भी करता है। अपने प्रकटन के माध्यम से उसने सभी लोगों का विश्वास मज़बूत किया, और संसार के सामने इस तथ्य को साबित किया कि वह स्वयं परमेश्वर है। इससे उसके अनुयायियों को अनंत पुष्टि मिली, और अपने प्रकटन के माध्यम से उसने नए युग में अपने कार्य के एक चरण का सूत्रपात किया।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III

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