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बाइबिल के पद स्वर्ग के राज्य के रहस्य को प्रकट करते हैं

आपदाएं पहले से अधिक गंभीर हो रही हैं। हमने महामारी और बाढ़ जैसी आपदाओं का अनुभव किया है और जीवन में भी कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। इस कठिन समय में, बहुत-से प्रभु के ईमानदार विश्वासी प्रभु की वापसी का स्वागत करने के लिए अधिक उत्सुक हैं और परमेश्वर ने हमारे लिए जो खूबसूरत मंजिल तय की है, अर्थात स्वर्गिक राज्य में प्रवेश करना चाहते हैं, ताकि परमेश्वर ने हमसे जो वादा किया है उसका आनंद ले सकें। यह ठीक वैसा ही है जैसा बाइबल कहती है, "वह उनकी आँखों से सब आँसू पोंछ डालेगा; और इसके बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहली बातें जाती रहीं(प्रकाशितवाक्य 21:4)। फिर क्या आप यह सोचते हैं कि स्वर्ग के राज्य के बारे में बाइबल क्या कहती है? कौन से लोग उसमें प्रवेश कर सकते हैं? अनंत आशीष पाने के लिए लोग उसमें प्रवेश कैसे कर सकते हैं? यह पद आपको स्वर्गिक राज्य का रास्ता दिखाएंगे, ताकि आप स्वर्गिक राज्य में जाने का अपना सपना पूरा करने का मौका पा सकें।

बाइबिल के पद स्वर्ग के राज्य के रहस्य को प्रकट करते हैं

स्वर्ग के राज्य में सुंदर जीवन के लिए परमेश्वर का वादा

"और वह उनकी आँखों से सब आँसू पोंछ डालेगा; और इसके बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहली बातें जाती रहीं" (प्रकाशितवाक्य 21:4)

"परमेश्‍वर की महिमा उसमें थी, और उसकी ज्योति बहुत ही बहुमूल्य पत्थर, अर्थात् बिल्लौर के समान यशब की तरह स्वच्छ थी" (प्रकाशितवाक्य 21:11)

"उसकी शहरपनाह यशब की बनी थी, और नगर ऐसे शुद्ध सोने का था, जो स्वच्छ काँच के समान हो। उस नगर की नींवें हर प्रकार के बहुमूल्य पत्थरों से संवारी हुई थी, पहली नींव यशब की, दूसरी नीलमणि की, तीसरी लालड़ी की, चौथी मरकत की, पाँचवी गोमेदक की, छठवीं माणिक्य की, सातवीं पीतमणि की, आठवीं पेरोज की, नौवीं पुखराज की, दसवीं लहसनिए की, ग्यारहवीं धूम्रकान्त की, बारहवीं याकूत की थी। और बारहों फाटक, बारह मोतियों के थे; एक-एक फाटक, एक-एक मोती का बना था। और नगर की सड़क स्वच्छ काँच के समान शुद्ध सोने की थी। मैंने उसमें कोई मन्दिर न देखा, क्योंकि सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्‍वर, और मेम्‍ना उसका मन्दिर हैं। और उस नगर में सूर्य और चाँद के उजियाले की आवश्यकता नहीं, क्योंकि परमेश्‍वर के तेज से उसमें उजियाला हो रहा है, और मेम्‍ना उसका दीपक है। जाति-जाति के लोग उसकी ज्योति में चले-फिरेंगे, और पृथ्वी के राजा अपने-अपने तेज का सामान उसमें लाएँगे। उसके फाटक दिन को कभी बन्द न होंगे, और रात वहाँ न होगी। और लोग जाति-जाति के तेज और वैभव का सामान उसमें लाएँगे" (प्रकाशितवाक्य 21:18-26)

"फिर उसने मुझे बिल्लौर के समान झलकती हुई, जीवन के जल की एक नदी दिखाई, जो परमेश्‍वर और मेम्‍ने के सिंहासन से निकलकर, उस नगर की सड़क के बीचों बीच बहती थी। नदी के इस पार और उस पार जीवन का पेड़ था; उसमें बारह प्रकार के फल लगते थे, और वह हर महीने फलता था; और उस पेड़ के पत्तों से जाति-जाति के लोग चंगे होते थे। फिर श्राप न होगा, और परमेश्‍वर और मेम्‍ने का सिंहासन उस नगर में होगा, और उसके दास उसकी सेवा करेंगे। वे उसका मुँह देखेंगे, और उसका नाम उनके माथों पर लिखा हुआ होगा। और फिर रात न होगी, और उन्हें दीपक और सूर्य के उजियाले की आवश्यकता न होगी, क्योंकि प्रभु परमेश्‍वर उन्हें उजियाला देगा, और वे युगानुयुग राज्य करेंगे" (प्रकाशितवाक्य 22:1-5)

परमेश्वर कहते हैं: "पूरी कायनात में, मेरे चुने हुए लोग मेरी महिमा में जीते हैं, अतुलनीय रूप से आशीषित हैं, लोग ऐसे नहीं रहते जैसे इंसानों के बीच रहते हैं, बल्कि ऐसे रहते हैं जैसे परमेश्वर के साथ रहते हैं। हर इंसान शैतान की भ्रष्टता से गुज़रा है, और उसने पूरी तरह से जीवन के खट्टे-मीठे अनुभव लिए हैं। अब, मेरी रोशनी में रहते हुए, कोई आनंद कैसे न उठाएगा? कोई इस खूबसूरत पल को यों ही कैसे छोड़ देगा और हाथ से कैसे जाने देगा? तुम लोग! मेरे लिए अपने दिलों के गीत गाओ और खुशी से नाचो! अपने सच्चे दिलों को उन्नत करो और उन्हें मुझे अर्पित करो! ढोल बजाओ और मेरे लिए खुशी से क्रीड़ा करो! मैं पूरी कायनात भर में अपनी प्रसन्नता बिखेरता हूँ! मैं सभी लोगों के सामने अपना महिमामय चेहरा प्रकट करता हूँ! मैं ऊँची आवाज़ में पुकारूँगा! मैं कायनात की सीमाओं के परे जाँऊगा! मैं पहले ही लोगों के मध्य शासन करता हूँ! लोगों ने मेरा उत्कर्ष किया है! मैं ऊपर नीले आसमान में बहता हूँ और लोग मेरे साथ चलते हैं। मैं लोगों के मध्य चलता हूँ और मेरे लोग मुझे घेर लेते हैं! लोगों के दिल प्रसन्नचित्त हैं, उनके गीत कायनात को हिलाते हैं, आकाश फाड़ देते हैं! अब कायनात धुंध से घिरी हुई नहीं है; अब न कीचड़ है, न मल का जमाव है। कायनात के पवित्र लोगो! मेरी निगरानी में, तुम अपना असली चेहरा दिखाते हो। तुम लोग मल से ढके हुए इंसान नहीं हो, बल्कि हरिताश्म की तरह निर्मल संत हो, तुम सब लोग मेरे प्रिय हो, तुम सब लोग मेरा आनंद हो! हर चीज़ पुन: जीवन को प्राप्त होती है! सभी संत स्वर्ग में मेरी सेवा के लिए लौट आए हैं, मेरे स्नेहपूर्ण आलिंगन में प्रवेश कर रहे हैं, अब वे विलाप नहीं कर रहे, अब वे बेचैन नहीं हैं, वे स्वयं को मुझे अर्पित कर रहे हैं, मेरे घर वापस आ रहे हैं, और वे अपनी जन्मभूमि में बिना रुके मुझसे प्रेम करेंगे! यह अनंतकाल तक अपरिवर्तनीय होगा! कहाँ है दुख! कहाँ हैं आँसू! कहाँ है देह! धरती गुज़र जाती है, मगर स्वर्ग सदा के लिए हैं। मैं सभी लोगों के समक्ष प्रकट होता हूँ, और सभी लोग मेरी स्तुति करते हैं। यह जीवन, यह सुंदरता, चिरकाल से समय के अंत तक, बदलेगी नहीं। यही राज्य का जीवन है।"

वास्तव में स्वर्गिक राज्य कहाँ है?

"तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो" (मत्ती 6:10)

"जब सातवें स्वर्गदूत ने तुरही फूँकी, तो स्वर्ग में इस विषय के बड़े-बड़े शब्द होने लगे: 'जगत का राज्य हमारे प्रभु का और उसके मसीह का हो गया और वह युगानुयुग राज्य करेगा'" (प्रकाशितवाक्य 11:15)

"फिर मैंने पवित्र नगर नये यरूशलेम को स्वर्ग से परमेश्‍वर के पास से उतरते देखा, और वह उस दुल्हन के समान थी, जो अपने दुल्हे के लिये श्रृंगार किए हो। फिर मैंने सिंहासन में से किसी को ऊँचे शब्द से यह कहते हुए सुना, 'देख, परमेश्‍वर का डेरा मनुष्यों के बीच में है; वह उनके साथ डेरा करेगा, और वे उसके लोग होंगे, और परमेश्‍वर आप उनके साथ रहेगा; और उनका परमेश्‍वर होगा'" (प्रकाशितवाक्य 21:2-3)

परमेश्वर कहते हैं: "एक बार जब विजय का कार्य पूरा कर लिया जाएगा, तब मनुष्य को एक सुंदर संसार में लाया जाएगा। निस्संदेह, यह जीवन तब भी पृथ्वी पर ही होगा, किंतु यह मनुष्य के आज के जीवन के बिलकुल विपरीत होगा। यह वह जीवन है, जो संपूर्ण मानव-जाति पर विजय प्राप्त कर लिए जाने के बाद मानव-जाति के पास होगा, यह पृथ्वी पर मनुष्य के लिए एक नई शुरुआत होगी, और मनुष्य के पास इस प्रकार का जीवन होना इस बात का सबूत होगा कि मनुष्य ने एक नए और सुंदर क्षेत्र में प्रवेश कर लिया है। यह पृथ्वी पर मनुष्य और परमेश्वर के जीवन की शुरुआत होगी। ऐसे सुंदर जीवन का आधार ऐसा होना चाहिए, कि मनुष्य को शुद्ध कर दिए जाने और उस पर विजय पा लिए जाने के बाद वह परमेश्वर के सम्मुख समर्पण कर दे। और इसलिए, मानव-जाति के अद्भुत मंज़िल में प्रवेश करने से पहले विजय का कार्य परमेश्वर के कार्य का अंतिम चरण है। ऐसा जीवन ही पृथ्वी पर मनुष्य का भविष्य का जीवन है, पृथ्वी पर सबसे अधिक सुंदर जीवन, उस प्रकार का जीवन जिसकी लालसा मनुष्य करता है, और उस प्रकार का जीवन, जिसे मनुष्य ने संसार के इतिहास में पहले कभी प्राप्त नहीं किया है। यह 6,000 वर्षों के प्रबधंन के कार्य का अंतिम परिणाम है, यह वही है जिसकी मानव-जाति सर्वाधिक अभिलाषा करती है, और यह मनुष्य के लिए परमेश्वर की प्रतिज्ञा भी है।"

कौन से लोग स्वर्गिक राज्य में प्रवेश कर सकते हैं?

"जो मुझसे, 'हे प्रभु, हे प्रभु' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है" (मत्ती 7:21)

"धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है" (मत्ती 5:3)

"धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है" (मत्ती 5:10)

"मैं तुम से सच कहता हूँ, यदि तुम न फिरो और बालकों के समान न बनो, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे" (मत्ती 18:3)

"ये वे हैं, जो स्त्रियों के साथ अशुद्ध नहीं हुए, पर कुँवारे हैं; ये वे ही हैं, कि जहाँ कहीं मेम्‍ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं; ये तो परमेश्‍वर और मेम्‍ने के निमित्त पहले फल होने के लिये मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं" (प्रकाशितवाक्य 14:4)

"धन्य वे हैं, जो अपने वस्त्र धो लेते हैं, क्योंकि उन्हें जीवन के पेड़ के पास आने का अधिकार मिलेगा, और वे फाटकों से होकर नगर में प्रवेश करेंगे" (प्रकाशितवाक्य 22:14)

परमेश्वर कहते हैं: "जब परमेश्वर लोगों को पूर्ण बनाता है, तो वह उन्हें शुद्ध करता है, और जितने अधिक वे शुद्ध होते हैं, उतने ही अधिक वे परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाते हैं। जब तुम्हारे भीतर से अशुद्धता, विद्रोहशीलता, विरोध और देह की इच्छाओं को बाहर निकाल दिया जाएगा, जब तुम्हें शुद्ध कर दिया जाएगा, तब परमेश्वर तुमसे प्रेम करेगा (दूसरे शब्दों में, तुम एक संत होगे); जब तुम्हें परमेश्वर द्वारा पूर्ण बना दिया जाएगा और तुम एक संत बन जाओगे, तब तुम सहस्राब्दि राज्य में होगे।"

परमेश्वर कहते हैं: "यदि सत्य का मार्ग खोजने से तुम्हें प्रसन्नता मिलती है, तो तुम सदैव प्रकाश में रहने वाले व्यक्ति हो। यदि तुम परमेश्वर के घर में सेवाकर्मी बने रहकर बहुत प्रसन्न हो, गुमनाम बनकर कर्मठतापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से काम करते हो, हमेशा देने का भाव रखते हो, लेने का नहीं, तो मैं कहता हूँ कि तुम एक निष्ठावान संत हो, क्योंकि तुम्हें किसी फल की अपेक्षा नहीं है, तुम एक ईमानदार व्यक्ति हो। यदि तुम स्पष्टवादी बनने को तैयार हो, अपना सर्वस्व खपाने को तैयार हो, यदि तुम परमेश्वर के लिए अपना जीवन दे सकते हो और दृढ़ता से अपनी गवाही दे सकते हो, यदि तुम इस स्तर तक ईमानदार हो जहाँ तुम्हें केवल परमेश्वर को संतुष्ट करना आता है, और अपने बारे में विचार नहीं करते हो या अपने लिए कुछ नहीं लेते हो, तो मैं कहता हूँ कि ऐसे लोग प्रकाश में पोषित किए जाते हैं और वे सदा राज्य में रहेंगे।"

कैसे लोग स्वर्गिक राज्य में प्रवेश कर सकते हैं?

"मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है" (मत्ती 4:17)

"जिसके कान हों, वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है" (प्रकाशितवाक्य 2:29)

"मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं, और मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे-पीछे चलती हैं" (यूहन्ना 10:27)

"आधी रात को धूम मची, कि देखो, दूल्हा आ रहा है, उससे भेंट करने के लिये चलो" (मत्ती 25:6)

"देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा, और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20)

"यहोवा की यह भी वाणी है, कि इस देश के सारे निवासियों की दो तिहाई मार डाली जाएँगी और बची हुई तिहाई उसमें बनी रहेगी। उस तिहाई को मैं आग में डालकर ऐसा निर्मल करूँगा, जैसा रूपा निर्मल किया जाता है, और ऐसा जाँचूँगा जैसा सोना जाँचा जाता है। वे मुझसे प्रार्थना किया करेंगे, और मैं उनकी सुनूँगा। मैं उनके विषय में कहूँगा, 'ये मेरी प्रजा हैं,' और वे मेरे विषय में कहेंगे, 'यहोवा हमारा परमेश्‍वर है'" (जकर्याह 13:8-9)

"उसने कहा, 'हे दानिय्येल चला जा; क्योंकि ये बातें अन्त समय के लिये बन्द हैं और इन पर मुहर दी हुई है। बहुत लोग तो अपने-अपने को निर्मल और उजले करेंगे, और स्वच्छ हो जाएँगे; परन्तु दुष्ट लोग दुष्टता ही करते रहेंगे; और दुष्टों में से कोई ये बातें न समझेगा; परन्तु जो बुद्धिमान है वे ही समझेंगे'" (दानिय्येल 12:9-10)

"ये वे हैं, जो स्त्रियों के साथ अशुद्ध नहीं हुए, पर कुँवारे हैं; ये वे ही हैं, कि जहाँ कहीं मेम्‍ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं; ये तो परमेश्‍वर और मेम्‍ने के निमित्त पहले फल होने के लिये मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं" (प्रकाशितवाक्य 14:4)

परमेश्वर कहते हैं: "चूँकि हम परमेश्वर के पदचिह्नों की खोज कर रहे हैं, इसलिए हमारा कर्तव्य बनता है कि हम परमेश्वर की इच्छा, उसके वचन और कथनों की खोज करें—क्योंकि जहाँ कहीं भी परमेश्वर द्वारा बोले गए नए वचन हैं, वहाँ परमेश्वर की वाणी है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर के पदचिह्न हैं, वहाँ परमेश्वर के कर्म हैं। जहाँ कहीं भी परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, वहाँ परमेश्वर प्रकट होता है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर प्रकट होता है, वहाँ सत्य, मार्ग और जीवन विद्यमान होता है। परमेश्वर के पदचिह्नों की तलाश में तुम लोगों ने इन वचनों की उपेक्षा कर दी है कि "परमेश्वर सत्य, मार्ग और जीवन है।" और इसलिए, बहुत-से लोग सत्य को प्राप्त करके भी यह नहीं मानते कि उन्हें परमेश्वर के पदचिह्न मिल गए हैं, और वे परमेश्वर के प्रकटन को तो बिलकुल भी स्वीकार नहीं करते। कितनी गंभीर ग़लती है! परमेश्वर के प्रकटन का समाधान मनुष्य की धारणाओं से नहीं किया जा सकता, और परमेश्वर मनुष्य के आदेश पर तो बिलकुल भी प्रकट नहीं हो सकता। परमेश्वर जब अपना कार्य करता है, तो वह अपनी पसंद और अपनी योजनाएँ बनाता है; इसके अलावा, उसके अपने उद्देश्य और अपने तरीके हैं। वह जो भी कार्य करता है, उसके बारे में उसे मनुष्य से चर्चा करने या उसकी सलाह लेने की आवश्यकता नहीं है, और अपने कार्य के बारे में हर-एक व्यक्ति को सूचित करने की आवश्यकता तो उसे बिलकुल भी नहीं है। यह परमेश्वर का स्वभाव है, जिसे हर व्यक्ति को पहचानना चाहिए। यदि तुम लोग परमेश्वर के प्रकटन को देखने और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करने की इच्छा रखते हो, तो तुम लोगों को पहले अपनी धारणाओं को त्याग देना चाहिए। तुम लोगों को यह माँग नहीं करनी चाहिए कि परमेश्वर ऐसा करे या वैसा करे, तुम्हें उसे अपनी सीमाओं और अपनी धारणाओं तक सीमित तो बिलकुल भी नहीं करना चाहिए। इसके बजाय, तुम लोगों को यह पूछना चाहिए कि तुम्हें परमेश्वर के पदचिह्नों की तलाश कैसे करनी है, तुम्हें परमेश्वर के प्रकटन को कैसे स्वीकार करना है, और तुम्हें परमेश्वर के नए कार्य के प्रति कैसे समर्पण करना है। मनुष्य को ऐसा ही करना चाहिए। चूँकि मनुष्य सत्य नहीं है, और उसके पास भी सत्य नहीं है, इसलिए उसे खोजना, स्वीकार करना और आज्ञापालन करना चाहिए।"

"अंत के दिनों का कार्य सभी को उनके स्वभाव के आधार पर पृथक करना और परमेश्वर की प्रबंधन योजना का समापन करना है, क्योंकि समय निकट है और परमेश्वर का दिन आ गया है। परमेश्वर उन सभी को, जो उसके राज्य में प्रवेश करते हैं—वे सभी, जो बिलकुल अंत तक उसके वफादार रहे हैं—स्वयं परमेश्वर के युग में ले जाता है। फिर भी, स्वयं परमेश्वर के युग के आगमन से पूर्व, परमेश्वर का कार्य मनुष्य के कर्मों को देखना या मनुष्य के जीवन की जाँच-पड़ताल करना नहीं, बल्कि उसकी अवज्ञा का न्याय करना है, क्योंकि परमेश्वर उन सभी को शुद्ध करेगा, जो उसके सिंहासन के सामने आते हैं। वे सभी, जिन्होंने आज के दिन तक परमेश्वर के पदचिह्नों का अनुसरण किया है, वे लोग हैं, जो परमेश्वर के सिंहासन के सामने आते हैं, और ऐसा होने से, हर वह व्यक्ति, जो परमेश्वर के कार्य को उसके अंतिम चरण में स्वीकार करता है, परमेश्वर द्वारा शुद्ध किए जाने लायक है। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर के कार्य को उसके अंतिम चरण में स्वीकार करने वाला हर व्यक्ति परमेश्वर के न्याय का पात्र है।"

"जो अंत के दिनों के दौरान परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के कार्य के दौरान अडिग रहने में समर्थ हैं—यानी, शुद्धिकरण के अंतिम कार्य के दौरान—वे लोग होंगे, जो परमेश्वर के साथ अंतिम विश्राम में प्रवेश करेंगे; वैसे, वे सभी जो विश्राम में प्रवेश करेंगे, शैतान के प्रभाव से मुक्त हो चुके होंगे और परमेश्वर के शुद्धिकरण के अंतिम कार्य से गुज़रने के बाद उसके द्वारा प्राप्त किए जा चुके होंगे। ये लोग, जो अंततः परमेश्वर द्वारा प्राप्त किए जा चुके होंगे, अंतिम विश्राम में प्रवेश करेंगे। परमेश्वर की ताड़ना और न्याय के कार्य का मूलभूत उद्देश्य मानवता को शुद्ध करना है और उन्हें उनके अंतिम विश्राम के लिए तैयार करना है; इस शुद्धिकरण के बिना संपूर्ण मानवता अपने प्रकार के मुताबिक़ विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत नहीं की जा सकेगी, या विश्राम में प्रवेश करने में असमर्थ होगी। यह कार्य ही मानवता के लिए विश्राम में प्रवेश करने का एकमात्र मार्ग है।"

विषय के अनुसार बाइबल के पद” और “बाइबल अध्ययन” खंडों में दैनिक भक्ति संसाधनों का उपयोग करने के लिए आपका स्वागत है, ये आपके आध्यात्मिक जीवन को समृद्ध कर सकते हैं।

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