परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर के कार्य को जानना | अंश 216
परमेश्वर का प्रबंधन-कार्य संसार की उत्पत्ति से प्रारंभ हुआ, और मनुष्य इस कार्य के केंद्र में है। ऐसा कहा जा सकता है कि परमेश्वर द्वारा सभी चीज़ों की सृष्टि मनुष्य के लिए ही है। चूँकि उसके प्रबंधन का कार्य हज़ारों सालों में फैला हुआ है, और वह केवल एक ही मिनट या सेकंड के अंतराल में या पलक झपकते या एक या दो सालों में पूरा नहीं होता, इसलिए उसे मनुष्य के अस्तित्व के लिए आवश्यक और अधिक चीज़ों का सृजन करना पड़ा, जैसे कि सूर्य, चंद्रमा, सभी प्रकार के जीव, भोजन और एक अनुकूल पर्यावरण। यह परमेश्वर के प्रबंधन का प्रारंभ था।
इसके बाद परमेश्वर ने मनुष्य को शैतान के हाथों में सौंप दिया, और मनुष्य शैतान के अधिकार-क्षेत्र में रहने लगा, जिसने धीरे-धीरे परमेश्वर के प्रथम युग के कार्य की शुरुआत की : व्यवस्था के युग की कहानी...। व्यवस्था के युग के दौरान कई हज़ार सालों में, मानवजाति व्यवस्था के युग के मार्गदर्शन की आदी हो गई और उसे हलके में लेने लगी। धीरे-धीरे मनुष्य ने परमेश्वर की देखभाल छोड़ दी। और इसलिए, व्यवस्था का अनुसरण करते हुए लोग मूर्तिपूजा और बुरे कर्म भी करने लगे। वे यहोवा की सुरक्षा से वंचित थे और केवल मंदिर की वेदी के सामने अपना जीवनयापन कर रहे थे। वास्तव में, परमेश्वर का कार्य उन्हें बहुत पहले छोड़ चुका था, और हालाँकि इस्राएली अभी भी व्यवस्था से चिपके हुए थे और यहोवा का नाम लेते थे, यहाँ तक कि गर्व से विश्वास करते थे कि केवल वे ही यहोवा के लोग हैं और वे यहोवा के चुने हुए हैं, किंतु परमेश्वर की महिमा ने उन्हें चुपके से त्याग दिया था ...
जब परमेश्वर अपना कार्य करता है, तो वह हमेशा चुपचाप एक स्थान को छोड़ कर धीरे से दूसरे स्थान पर अपना नया कार्य प्रारंभ कर देता है। यह उन लोगों को अविश्वसनीय लगता है, जो सुन्न होते हैं। लोगों ने हमेशा पुरानी बातों को सँजोया है और नई, अपरिचित चीज़ों से शत्रुता बरती है या उन्हें विघ्न माना है। इसलिए, जो कुछ भी नया कार्य परमेश्वर करता है, प्रारंभ से बिलकुल अंत तक, मनुष्य समस्त चीज़ों में अंतिम होता है, जो इसे जान पाता है।
जैसा कि हमेशा से होता आया है, व्यवस्था के युग में यहोवा के कार्य के बाद परमेश्वर ने दूसरे चरण का अपना कार्य प्रारंभ किया : देह धारण कर—दस, बीस साल के लिए मनुष्य के समान देह में आकर—विश्वासियों के बीच बोलते और अपना कार्य करते हुए उसने ऐसा किया। फिर भी बिना किसी अपवाद के, कोई भी यह बात नहीं जान पाया और प्रभु यीशु को सलीब पर लटकाए जाने और उसके पुनर्जीवित होने के बाद बहुत थोड़े-से लोगों ने ही माना कि वह देहधारी परमेश्वर था। ... जैसे ही परमेश्वर के कार्य का दूसरा चरण पूरा हुआ—सलीब पर चढ़ाए जाने के बाद—मनुष्य को पाप से बचाने (अर्थात मनुष्य को शैतान के हाथों से छुड़ाने) का परमेश्वर का कार्य संपन्न हो गया। और इसलिए, उस क्षण के बाद से, मानवजाति को केवल प्रभु यीशु को अपने उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करना था, और उसके पाप क्षमा कर दिए जाते। मोटे तौर पर, मनुष्य के पाप अब उसके द्वारा उद्धार प्राप्त करने और परमेश्वर के सामने आने में बाधक नहीं रहे थे और न ही शैतान द्वारा मनुष्य को दोषी ठहराने का कारण रह गए थे। ऐसा इसलिए है, क्योंकि परमेश्वर स्वयं ने वास्तविक कार्य किया था, उसने पापमय देह के समान बनकर उसका अनुभव किया था, और परमेश्वर स्वयं ही पापबलि था। इस प्रकार, मनुष्य सलीब से उतर गया, परमेश्वर के देह—इस पापमय देह की समानता के जरिये छुड़ा और बचा लिया गया। और इसलिए, शैतान द्वारा बंदी बना लिए जाने के बाद, मनुष्य परमेश्वर के सामने उसका उद्धार स्वीकार करने के एक कदम और पास आ गया। बेशक, कार्य का यह चरण व्यवस्था के युग में परमेश्वर के प्रबंधन से अधिक गहन और अधिक विकसित था।
परमेश्वर का प्रबंधन ऐसा है : मनुष्य को शैतान के हवाले करना—मनुष्य, जो नहीं जानता कि परमेश्वर क्या है, सृष्टिकर्ता क्या है, परमेश्वर की आराधना कैसे करे, या परमेश्वर के प्रति समर्पित होना क्यों आवश्यक है—और शैतान को उसे भ्रष्ट करने देना। कदम-दर-कदम, परमेश्वर तब मनुष्य को शैतान के हाथों से बचाता है, जबतक कि मनुष्य पूरी तरह से परमेश्वर की आराधना नहीं करने लगता और शैतान को अस्वीकार नहीं कर देता। यही परमेश्वर का प्रबंधन है। यह किसी मिथक-कथा जैसा और अजीब लग सकता है। लोगों को यह किसी मिथक-कथा जैसा इसलिए लगता है, क्योंकि उन्हें इसका भान नहीं है कि पिछले हज़ारों सालों में मनुष्य के साथ कितना कुछ घटित हुआ है, और यह तो वे बिलकुल भी नहीं जानते कि इस ब्रह्मांड और नभमंडल में कितनी कहानियाँ घट चुकी हैं। इसके अलावा, यही कारण है कि वे उस अधिक आश्चर्यजनक, अधिक भय-उत्प्रेरक संसार को नहीं समझ सकते, जो इस भौतिक संसार से परे मौजूद है, परंतु जिसे देखने से उनकी नश्वर आँखें उन्हें रोकती हैं। वह मनुष्य को अबोधगम्य लगता है, क्योंकि मनुष्य को परमेश्वर द्वारा मानवजाति के उद्धार या परमेश्वर के प्रबंधन-कार्य की महत्ता की समझ नहीं है, और वह यह नहीं समझता कि परमेश्वर अंततः मनुष्य को कैसा देखना चाहता है। क्या वह उसे शैतान द्वारा बिलकुल भी भ्रष्ट न किए गए आदम और हव्वा के समान देखना चाहता है? नहीं! परमेश्वर के प्रबंधन का उद्देश्य लोगों के एक ऐसे समूह को प्राप्त करना है, जो उसकी आराधना करे और उसके प्रति समर्पित हो। हालाँकि ये लोग शैतान द्वारा भ्रष्ट किए जा चुके हैं, परंतु वे अब शैतान को अपने पिता के रूप में नहीं देखते; वे शैतान के घिनौने चेहरे को पहचानते हैं और उसे अस्वीकार करते हैं, और वे परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार करने के लिए उसके सामने आते हैं। वे जान गए हैं कि क्या बुरा है और वह उससे कितना विषम है जो पवित्र है, और वे परमेश्वर की महानता और शैतान की दुष्टता को भी पहचान गए हैं। इस प्रकार के मनुष्य अब शैतान के लिए कार्य नहीं करेंगे, या शैतान की आराधना नहीं करेंगे, या शैतान को प्रतिष्ठापित नहीं करेंगे। इसका कारण यह है कि यह एक ऐसे लोगों का समूह है, जो सचमुच परमेश्वर द्वारा प्राप्त कर लिए गए हैं। यही परमेश्वर द्वारा मानवजाति के प्रबंधन की महत्ता है। इस समय परमेश्वर के प्रबंधन-कार्य के दौरान मानवजाति शैतान की भ्रष्टता और परमेश्वर के उद्धार दोनों की वस्तु है, और मनुष्य वह उत्पाद है, जिसके लिए परमेश्वर और शैतान दोनों लड़ रहे हैं। चूँकि परमेश्वर अपना कार्य कर रहा है, इसलिए वह धीरे-धीरे मनुष्य को शैतान के हाथों से बचा रहा है, और इसलिए मनुष्य पहले से ज्यादा परमेश्वर के निकट आता जा रहा है ...
और फिर राज्य का युग आया, जो कार्य का अधिक व्यावहारिक चरण है, और फिर भी जिसे स्वीकार करना मनुष्य के लिए सबसे कठिन भी है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि जितना अधिक मनुष्य परमेश्वर के नज़दीक आता है, परमेश्वर की छड़ी उसके उतने ही करीब पहुँचती है और परमेश्वर का चेहरा उतनी ही अधिक स्पष्टता से मनुष्य के सामने प्रकट हो जाता है। मानवजाति के छुटकारे के बाद मनुष्य औपचारिक रूप से परमेश्वर के परिवार में लौट आता है। मनुष्य ने सोचा कि अब आनंद का समय आया है, किंतु परमेश्वर द्वारा उसे ऐसे पुरज़ोर आक्रमण का भागी बनाया जाता है, जैसा कभी किसी ने अनुमान नहीं लगाया होगा। होता यह है कि, यह एक बपतिस्मा है, जिसका परमेश्वर के लोगों को "आनंद" लेना है। इस प्रकार के व्यवहार के अंतर्गत, लोगों के पास ठहरकर स्वयं के बारे में यह सोचने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचता, "मैं, कई सालों तक खोया हुआ वह मेमना हूँ, जिसे वापस पाने के लिए परमेश्वर ने कितना कुछ खर्च किया है, फिर परमेश्वर मुझसे ऐसा व्यवहार क्यों करता है? क्या यह परमेश्वर का मुझपर हँसने और मुझे उजागर करने का तरीका है? ..." बरसों बीत जाने के बाद, शुद्धिकरण और ताड़ना की कठिनाइयाँ सहकर मनुष्य वैसा मजबूत हो गया है, जैसा मौसम की मार से हो जाता है। हालाँकि मनुष्य ने अतीत की "महिमा" और "रोमांस" खो दिया है, पर उसने अनजाने ही मानवीय आचरण के सिद्धांतों को समझ लिया है, और वह मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर के वर्षों के समर्पण को समझ गया है। मनुष्य धीरे-धीरे अपनी बर्बरता से घृणा करने लगता है। वह अपनी असभ्यता से, परमेश्वर के प्रति सभी प्रकार की गलतफहमियों से और परमेश्वर से की गई अपनी सभी अनुचित माँगों से घृणा करने लगता है। समय को वापस नहीं लाया जा सकता। अतीत की घटनाएँ मनुष्य की खेदजनक स्मृतियाँ बन जाती हैं, और परमेश्वर के वचन और उसके प्रति प्रेम मनुष्य के नए जीवन में प्रेरक शक्ति बन जाते हैं। मनुष्य के घाव दिन-प्रतिदिन भरने लगते हैं, उसकी सामर्थ्य लौट आती है, और वह उठ खड़ा होता है और सर्वशक्तिमान के चेहरे की ओर देखने लगता है ... और यही पाता है कि परमेश्वर हमेशा मेरे साथ रहा है, और उसकी मुस्कान और उसका सुंदर चेहरा अभी भी भावोद्दीपक हैं। उसके हृदय में अभी भी अपने द्वारा सृजित मानवजाति के लिए चिंता रहती है, और उसके हाथ अभी भी उतने ही गर्मजोशी से भरे और सशक्त हैं, जैसे वे आरंभ में थे। यह ऐसा है, मानो मनुष्य अदन के बाग में लौट आया हो, लेकिन इस बार मनुष्य साँप के प्रलोभन नहीं सुनता और अब वह यहोवा के चेहरे से विमुख नहीं होता। मनुष्य परमेश्वर के सामने घुटने टेकता है, परमेश्वर के मुस्कुराते हुए चेहरे को देखता है, और उसे अपनी सबसे कीमती भेंट चढ़ाता है—ओह! मेरे प्रभु, मेरे परमेश्वर!
परमेश्वर का प्रेम और उसकी दया उसके प्रबंधन-कार्य के हर ब्योरे में व्याप्त रहती है और चाहे लोग परमेश्वर के अच्छे इरादे समझ पाएँ या नहीं, वह अभी भी अथक रूप से अपने उस कार्य में लगा हुआ है, जिसे वह पूरा करना चाहता है। इस बात की परवाह किए बिना कि परमेश्वर के प्रबंधन को लोग कितना समझते हैं, परमेश्वर के कार्य से मनुष्य को हुए लाभ और सहायता को हर व्यक्ति भली-भाँति समझ सकता है। शायद आज तुमने परमेश्वर द्वारा प्रदत्त प्रेम या जीवन को थोड़ा भी महसूस नहीं किया है, परंतु यदि तुम परमेश्वर को और सत्य का अनुसरण करने के अपने संकल्प को नहीं छोड़ते, तो एक दिन ऐसा आएगा, जब परमेश्वर की मुस्कान तुम पर प्रकट होगी। क्योंकि परमेश्वर के प्रबंधन-कार्य का उद्देश्य शैतान के अधिकार-क्षेत्र में मौजूद लोगों को बचाना है, न कि उन लोगों को त्याग देना, जो शैतान द्वारा भ्रष्ट किए जा चुके हैं और परमेश्वर का विरोध करते हैं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 3: मनुष्य को केवल परमेश्वर के प्रबंधन के बीच ही बचाया जा सकता है
“परमेश्वर का वचन” खंड अंत के दिनों में सभी मनुष्यों के लिए परमेश्वर के वचन को साझा करता है, जिससे ईसाईयों को परमेश्वर के बारे में अधिक जानने में मदद मिलती है।