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विजेता बनने के मानदंड क्या हैं?

जब विजेताओं का उल्लेख किया जाता है, तो प्रकाशितवाक्य की किताब में लिखी भविष्यवाणियां हमारे दिमाग में आती हैं: "फिर मैं ने दृष्‍टि की, और देखो, वह मेम्ना सिय्योन पहाड़ पर खड़ा है, और उसके साथ एक लाख चौवालीस हज़ार जन हैं, जिनके माथे पर उसका और उसके पिता का नाम लिखा हुआ है" (प्रकाशितवाक्य 14:1)"ये वे हैं, जो उस महाक्लेश में से निकलकर आए हैं; इन्होंने अपने-अपने वस्त्र मेम्ने के लहू में धोकर श्‍वेत किए हैं" (प्रकाशितवाक्य 7:14)। यहाँ, शास्त्र में वर्णित संख्या 144,000 उनकी है जिन्हें परमेश्वर विजेता बनाना चाहते हैं। वे ऐसे विजेता हैं जो महान क्लेश के दौरान गवाही देते हैं, जो परमेश्वर द्वारा अनुमोदित हैं और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के योग्य हैं। प्रभु का हर विश्वासी एक विजेता बनने की लालसा रखता है, और यह वह लक्ष्य है जिसका हम पीछा करते हैं। कई भाई-बहन यह मानते हैं: हमने कई वर्षों तक प्रभु का अनुसरण किया है, जिसके दौरान हमने बहुत मेहनत की है, चीजों का त्याग किया है, स्वयं को व्यय किया है, सुसमाचार का प्रचार किया है, कलीसिया की चरवाही की है और इस पूरे समय के दौरान, हमने सांसारिक लोगों का मजाक और बदनामी और अपने रिश्तेदारों की गलतफहमी झेली है। अपनी ही सरकार द्वारा सताए जाने और गिरफ्तार किए जाने के बावजूद हम कभी पीछे नहीं हटते हैं। जब तक हम अंत तक इस तरह से प्रभु का अनुसरण करते हैं, हम विजेता बनेंगे।

प्रकाशितवाक्य की भविष्यवाणी,अंत के दिनों में,आपदा से पहले,विजयी,न्याय के दिन,स्वर्ग का साम्राज्य

वास्तव में, हमारी आस्था और मुसीबतें झेलने का संकल्प काबिल-ए-तारीफ है, लेकिन क्या "जब तक हम प्रभु के नाम को नहीं छोड़ते हैं, सब कुछ त्याग देते हैं, और प्रभु के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, तो अंत में हम विजेता बन जाएंगे", यह दृष्टिकोण हमारी समझ के अनुसार वास्तव में सही है? इस प्रश्न का जवाब देने के लिए हमें देखना चाहिए कि परमेश्वर के वचन क्या कहते हैं। प्रकाशितवाक्य की किताब में यह भविष्यवाणी की गयी है, "ये वे हैं जो स्त्रियों के साथ अशुद्ध नहीं हुए, पर कुँवारे हैं; ये वे ही हैं कि जहाँ कहीं मेम्ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं; ये तो परमेश्‍वर के निमित्त पहले फल होने के लिये मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं। उनके मुँह से कभी झूठ न निकला था, वे निर्दोष हैं" (प्रकाशितवाक्य 14:4-5), "ये वे हैं, जो उस महाक्लेश में से निकलकर आए हैं; इन्होंने अपने-अपने वस्त्र मेम्ने के लहू में धोकर श्‍वेत किए हैं" (प्रकाशितवाक्य 7:14)। परमेश्वर के वचन कहते हैं, "जिन लोगों का उल्लेख परमेश्वर 'विजेताओं' के रूप में करता है, वे लोग वे होते हैं, जो तब भी गवाह बनने और परमेश्वर के प्रति अपना विश्वास और भक्ति बनाए रखने में सक्षम होते हैं, जब वे शैतान के प्रभाव और उसकी घेरेबंदी में होते हैं, अर्थात् जब वे स्वयं को अंधकार की शक्तियों के बीच पाते हैं। यदि तुम, चाहे कुछ भी हो जाए, फिर भी परमेश्वर के समक्ष पवित्र दिल और उसके लिए अपना वास्तविक प्यार बनाए रखने में सक्षम रहते हो, तो तुम परमेश्वर के सामने गवाह बनते हो, और इसी को परमेश्वर 'विजेता' होने के रूप में संदर्भित करता है।" "जिन्हें आपदा से पहले पूर्ण किया जाता है वे परमेश्वर के प्रति समर्पित होते हैं। वे मसीह पर निर्भर होकर जीते हैं, वे उसकी गवाही देते हैं, और वे उसकी जयकार करते हैं। वे मसीह के विजयी मर्द-बच्चे और अच्छे सैनिक होते हैं।" इन भविष्यवाणियों और परमेश्वर के वचनों से, हम यह जान सकते हैं कि सच्चे विजेता वे हैं जो झूठ नहीं बोलते और जिनके दिल में कोई षड्यंत्र नहीं होता है, और जिनके भ्रष्ट स्वभाव शुद्ध कर दिए गये हैं। इसके अलावा, वे वो लोग हैं जो मेमने के नक्शेकदम पर चलते हैं, जो सत्य को समझते हैं और परमेश्वर को जानते हैं। चाहे मसीह कुछ भी कहें या किन्हीं भी तरीकों से काम करें, वे उनका पालन और अनुसरण करते हैं, सभी चीजों में परमेश्वर का साक्ष्य देते हैं, उन्हें ऊँचा उठाते हैं, और उनकी परमेश्वर के प्रति निष्ठा पूर्ण और अविभाजित है। शैतान के द्वारा लोगों के निर्मम उत्पीड़न, पीछा किये जाने और पकड़े जाने की भयानक परिस्थितियों का सामना करते हुए, वे सत्य को अभ्यास में लाना जारी रखने में समर्थ होते हैं, परमेश्वर के प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाते हैं, और एक सुंदर और गुंजायमान गवाही देते हुए मृत्यु तक परमेश्वर की आज्ञा मानते हैं। केवल इन मानदंडों को प्राप्त करने से ही कोई व्यक्ति वचन के सही अर्थों में विजेता हो सकता है; यह सिर्फ उन लोगों के लिए नहीं है जो अत्यधिक मेहनत करते हैं, चीजों को त्याग देते हैं, स्वयं को प्रभु के लिए व्यय करते हैं, और जो उत्पीड़न और क्लेशों के दौरान पीछे नहीं हटते हैं।

इस बिंदु पर, आइए हम अपने आप पर एक नज़र डालें: हालाँकि हमने कई वर्षों तक प्रभु का अनुसरण किया है, जिसके दौरान हमने कई चीजों को त्याग दिया है, अपने आप को व्यय किया है, पीड़ा भोगी है और प्रभु के लिए एक मूल्य चुकाया है, लेकिन यह निर्विवाद है कि हम अभी भी अपने भ्रष्ट स्वभावों से बच नहीं पाए हैं और हमें शुद्ध किया जाना अभी भी बाकी है। उदाहरण के लिए, प्रभु के लिए मेहनत और काम करते हुए, हम अक्सर पाप कर सकते हैं, परमेश्वर की अवज्ञा और विरोध कर सकते हैं, हम प्रभु के वचनों का अभ्यास करने पर ध्यान नहीं देते हैं, बल्कि चीजों को अपनी इच्छा के अनुसार और मनमाने ढंग से करते हैं। कभी-कभी हम प्रसिद्धि, भाग्य और हैसियत का लालच करते हैं, अपने आप की गवाही देते हैं और स्वयं को ऊँचा उठाते हैं ताकि भाई-बहन हमें बड़े सम्मान से देखें और हमारी प्रशंसा करें। हम अपने सामने विश्वासियों को लाते हैं; जब हम दूसरों के साथ बातचीत करते हैं, तो हम अपने व्यक्तिगत हितों की रक्षा करने के लिए खुद को झूठ बोलने और उन्हें धोखा देने से रोक नहीं पाते हैं, और जब हमारी खुद की प्रसिद्धि, धन-दौलत और हैसियत की बात होती है, तो हम अपने भाई-बहनों से ईर्ष्या करते और उनके खिलाफ षड्यंत्र तक बना बैठते हैं। हमारे काम और कष्ट परमेश्वर से प्यार करने और उन्हें संतुष्ट करने के लिए नहीं हैं, बल्कि मुकुट और पुरस्कार पाने के लिए हैं, इसलिए कुछ काम करने और कुछ कष्टों को सहन करने के बाद, हम अपनी वरिष्ठता का प्रदर्शन करते हैं, दम्भी बनकर परमेश्वर से बदले में स्वर्ग में राज्य का एक हिस्सा मांगने लगते हैं। जब परमेश्वर के परीक्षण हमारे ऊपर आते हैं, तो हम परमेश्वर को गलत समझ सकते हैं और उन्हें दोष दे सकते हैं, और यहाँ तक कि उनके साथ विश्वासघात कर सकते हैं; जब कोई हमारे लिए अंतिम दिनों के परमेश्वर के कार्य का साक्ष्य देता है, तो हमारे अंदर गलतफहमी पैदा हो सकती है और हम लापरवाही से उसकी आलोचना कर सकते हैं और उसके कार्य की निंदा कर सकते हैं... हम अभी भी बार-बार पाप करने में सक्षम हैं, अपने पापी स्वभाव के नियन्त्रण और कब्जे में हैं, और हम परमेश्वर का विरोध करने और उन्हें धोखा देने में सक्षम हैं। इस तरह का व्यक्ति जिसे बदला नहीं गया है या जिसे शुद्ध नहीं किया गया है उसे विजेता कैसे कहा जा सकता है?

फिर कोई पूछ सकता है, "हमारे आचरणों को नज़र में रखते हुए, यह सही है कि हम विजेता बनने की कसौटी पर खरे नहीं उतरते। तो, हमें विजेता बनने के लिए आखिर में क्या करना चाहिए?" बाइबल में कहा गया है, "उस तिहाई को मैं आग में डालकर ऐसा निर्मल करूँगा, जैसा रूपा निर्मल किया जाता है, और ऐसा जाँचूँगा जैसा सोना जाँचा जाता है" (जकर्याह 13:9)। 1 पतरस 4:17 में कहा गया है, "क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्‍वर के लोगों का न्याय किया जाए।" परमेश्वर के वचन कहते हैं, "मैं पहले कह चुका हूँ कि पूर्व से विजेताओं का एक समूह प्राप्त किया जा रहा है, ऐसे विजेताओं का, जो भारी क्लेश के बीच से आते हैं। इन वचनों का क्या अर्थ है? इनका अर्थ है कि केवल इन प्राप्त किए गए लोगों ने ही न्याय और ताड़ना, और व्यवहार और काँट-छाँट, और सभी प्रकार के शुद्धिकरण से गुजरने के बाद वास्तव में आज्ञापालन किया। इन लोगों का विश्वास अस्पष्ट और अमूर्त नहीं, बल्कि वास्तविक है। उन्होंने कोई संकेत और चमत्कार, या अचंभे नहीं देखे हैं; वे गूढ़ शाब्दिक अर्थों और सिद्धांतों या गहन अंर्तदृष्टियों की बात नहीं करते; इसके बजाय उनके पास वास्तविकता और परमेश्वर के वचन और परमेश्वर की वास्तविकता का सच्चा ज्ञान है।"

परमेश्वर के वचनों से हम जान सकते हैं कि सच्चे विजेता वे हैं जो परमेश्वर के न्याय और उनकी ताड़ना के साथ-साथ सभी प्रकार के परीक्षणों और शुद्धिकरण से होकर गुज़रे हैं, और जिन्हें परमेश्वर का कुछ ज्ञान है। उन्हें अपने स्वयं के भ्रष्ट स्वभाव का भी कुछ ज्ञान है, उन्होंने सच्ची आज्ञाकारिता प्राप्त की है, और चाहे कोई भी परीक्षा या क्लेश उन पर आये, वे परमेश्वर की आज्ञा मानने और परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना को स्वीकार करने में सक्षम होते हैं और अंततः, उनकी शैतानी भ्रष्ट स्वभाव बदले और शुद्ध किए जाते हैं। जब शैतान के प्रलोभन उनके सामने आते हैं, तो वे परमेश्वर के लिए गवाही दे सकते हैं, शैतान के गुट पर विजय पा सकते हैं और उसके प्रभाव से मुक्त हो सकते हैं। फिर वे अपने भ्रष्ट स्वभावों के अनुसार नहीं जीते, उनके कार्य और आचरण सभी परमेश्वर के वचनों पर आधारित होते हैं और वे परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता को जीते हैं। केवल ऐसे लोग ही सच्चे विजेता होते हैं। परमेश्वर के कार्य का अनुभव करते हुए, वे धीरे-धीरे अपने शैतानी भ्रष्ट स्वभाव का कुछ ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं, जैसे अहंकार, दम्भ, स्वार्थ, नीचता, झूठ बोलना और धोखा देना, और वे इस सत्य को देखते हैं कि कैसे शैतान द्वारा उन्हें बिल्कुल अंदर तक भ्रष्ट किया गया है और कैसे वे किसी भी समय परमेश्वर का विरोध और उनसे विश्वासघात कर सकते हैं। वे देखते हैं कि वे पूरी तरह से शैतान की छवि में जी रहे हैं और वे परमेश्वर के सामने रहने के लायक नहीं हैं। इसके साथ ही, वे इस बात की भी सराहना करते हैं कि परमेश्वर का स्वभाव किसी भी अपराध को बर्दाश्त नहीं करता है, इस प्रकार वे एक ऐसे हृदय को विकसित करते हैं, जो परमेश्वर का आदर करता है और वे परमेश्वर की आज्ञा मानने और उनके वचनों द्वारा जीने में सक्षम हो जाते हैं। और तो और, चूँकि वे सत्य को समझते हैं और परमेश्वर को जानते हैं, उन्हें नकारात्मक चीजों के बारे समझ प्राप्त होती है, और वे शैतान के षड्यंत्रों को समझ सकते हैं और शैतान से सभी प्रकार के प्रलोभनों का सामना करते हुए परमेश्वर के लिए गवाह बन सकते हैं। वे वो व्यक्ति बनते हैं जो वास्तव में प्रेम करते हैं, परमेश्वर की आज्ञा का पालन करते हैं, उनका सम्मान करते हैं। उनके शैतानी भ्रष्ट स्वभावों को पूरी तरह से शुद्ध और बदल दिया गया है, और उन्हें पूरी तरह से परमेश्वर द्वारा प्राप्त कर लिया गया है—केवल यही वे लोग हैं जो विजेता होने के मानदंडों तक पहुंचते हैं।

प्रकाशितवाक्य की कितव में यह भविष्यवाणी भी की गयी है, "मैं शीघ्र ही आनेवाला हूँ; जो कुछ तेरे पास है उसे थामे रह कि कोई तेरा मुकुट छीन न ले। जो जय पाए उसे मैं अपने परमेश्‍वर के मन्दिर में एक खंभा बनाऊँगा, और वह फिर कभी बाहर न निकलेगा; और मैं अपने परमेश्‍वर का नाम और अपने परमेश्‍वर के नगर अर्थात् नये यरूशलेम का नाम, जो मेरे परमेश्‍वर के पास से स्वर्ग पर से उतरनेवाला है, और अपना नया नाम उस पर लिखूँगा" (प्रकाशितवाक्य 3:11-12)

"जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है। जो जय पाए, उस को मैं गुप्‍त मन्ना में से दूँगा, और उसे एक श्‍वेत पत्थर भी दूँगा; और उस पत्थर पर एक नाम लिखा हुआ होगा, जिसे उसके पानेवाले के सिवाय और कोई न जानेगा" (प्रकाशितवाक्य 2:17)

"क्योंकि मेम्ना जो सिंहासन के बीच में है उनकी रखवाली करेगा, और उन्हें जीवन रूपी जल के सोतों के पास ले जाया करेगा; और परमेश्‍वर उनकी आँखों से सब आँसू पोंछ डालेगा" (प्रकाशितवाक्य 7:17)

इन अंशों से, यह समझना आसान है कि विजेताओं के एक समूह को पूर्ण करना ही वह कार्य है जिसे करने के लिए प्रभु यीशु पुनः आए हैं। इसलिए, यदि हम उन विजेताओं में से एक बनना चाहते हैं, तो हमें प्रभु के दूसरे आगमन को स्वीकार करने की, परमेश्वर के नक्शेकदम पर चलने और उनके वचन द्वारा न्याय और ताड़ना के कार्य का अनुभव करने की आवश्यकता है, क्योंकि परमेश्वर हमें शुद्ध करने और बचाने का कार्य करने के लिए अपने कथन व्यक्तिगत रूप से बोलेंगे। यदि हम बुद्धिमान कुंवारी हो सकते हैं जो परमेश्वर की वाणी को सुनती हैं, तो हम मेमने के विवाह भोज में शामिल हो सकेंगे और उनसे सत्य और जीवन प्राप्त कर सकेंगे। आखिर में, चूँकि हमने अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य का अनुभव कर लिया होगा, हमें न केवल परमेश्वर के बारे में सच्चा ज्ञान होगा, बल्कि हमारे भ्रष्ट स्वभावों को भी अलग-अलग हद तक साफ किया जाएगा। तभी हम सही अर्थों में, विजेताओं का एक समूह बनेंगे, जो महान क्लेश से सफल होकर गुजरे हैं।

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