ऑनलाइन बैठक

मेन्‍यू

परमेश्वर की भेड़ें उसकी वाणी सुनती हैं, और केवल परमेश्वर की वाणी सुनकर ही व्यक्ति लौटकर आए परमेश्वर से मिल सकता है

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:

"आधी रात को धूम मची : 'देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो'" (मत्ती 25:6)

"मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं" (यूहन्ना 10:27)

"जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है" (प्रकाशितवाक्य 2:7)

"देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20)

परमेश्वर की वाणी को कैसे पहचानना चाहिए?

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

चूँकि हम परमेश्वर के पदचिह्नों की खोज कर रहे हैं, इसलिए हमारा कर्तव्य बनता है कि हम परमेश्वर की इच्छा, उसके वचन और कथनों की खोज करें—क्योंकि जहाँ कहीं भी परमेश्वर द्वारा बोले गए नए वचन हैं, वहाँ परमेश्वर की वाणी है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर के पदचिह्न हैं, वहाँ परमेश्वर के कर्म हैं। जहाँ कहीं भी परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, वहाँ परमेश्वर प्रकट होता है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर प्रकट होता है, वहाँ सत्य, मार्ग और जीवन विद्यमान होता है। परमेश्वर के पदचिह्नों की तलाश में तुम लोगों ने इन वचनों की उपेक्षा कर दी है कि "परमेश्वर सत्य, मार्ग और जीवन है।" और इसलिए, बहुत-से लोग सत्य को प्राप्त करके भी यह नहीं मानते कि उन्हें परमेश्वर के पदचिह्न मिल गए हैं, और वे परमेश्वर के प्रकटन को तो बिलकुल भी स्वीकार नहीं करते। कितनी गंभीर ग़लती है! परमेश्वर के प्रकटन का समाधान मनुष्य की धारणाओं से नहीं किया जा सकता, और परमेश्वर मनुष्य के आदेश पर तो बिलकुल भी प्रकट नहीं हो सकता। परमेश्वर जब अपना कार्य करता है, तो वह अपनी पसंद और अपनी योजनाएँ बनाता है; इसके अलावा, उसके अपने उद्देश्य और अपने तरीके हैं। वह जो भी कार्य करता है, उसके बारे में उसे मनुष्य से चर्चा करने या उसकी सलाह लेने की आवश्यकता नहीं है, और अपने कार्य के बारे में हर-एक व्यक्ति को सूचित करने की आवश्यकता तो उसे बिलकुल भी नहीं है। यह परमेश्वर का स्वभाव है, जिसे हर व्यक्ति को पहचानना चाहिए। यदि तुम लोग परमेश्वर के प्रकटन को देखने और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करने की इच्छा रखते हो, तो तुम लोगों को पहले अपनी धारणाओं को त्याग देना चाहिए। तुम लोगों को यह माँग नहीं करनी चाहिए कि परमेश्वर ऐसा करे या वैसा करे, तुम्हें उसे अपनी सीमाओं और अपनी धारणाओं तक सीमित तो बिलकुल भी नहीं करना चाहिए। इसके बजाय, तुम लोगों को यह पूछना चाहिए कि तुम्हें परमेश्वर के पदचिह्नों की तलाश कैसे करनी है, तुम्हें परमेश्वर के प्रकटन को कैसे स्वीकार करना है, और तुम्हें परमेश्वर के नए कार्य के प्रति कैसे समर्पण करना है। मनुष्य को ऐसा ही करना चाहिए। चूँकि मनुष्य सत्य नहीं है, और उसके पास भी सत्य नहीं है, इसलिए उसे खोजना, स्वीकार करना और आज्ञापालन करना चाहिए।

— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है' से उद्धृत

किसी भी रूप या राष्ट्र की बाध्यताओं से मुक्त, परमेश्वर के प्रकटन का लक्ष्य उसे अपनी योजना के अनुसार कार्य पूरा करने में सक्षम बनाना है। यह वैसा ही है जैसे, जब परमेश्वर यहूदिया में देह बना, तब उसका लक्ष्य समस्त मानवजाति के छुटकारे के लिए सलीब पर चढ़ने का कार्य पूरा करना था। फिर भी यहूदियों का मानना था कि परमेश्वर के लिए ऐसा करना असंभव है, और उन्हें यह असंभव लगता था कि परमेश्वर देह बन सकता है और प्रभु यीशु का रूप ग्रहण कर सकता है। उनका "असंभव" वह आधार बन गया, जिस पर उन्होंने परमेश्वर की निंदा और उसका विरोध किया, और जो अंततः इस्राएल को विनाश की ओर ले गया। आज कई लोगों ने उसी तरह की ग़लती की है। वे अपनी समस्त शक्ति के साथ परमेश्वर के आसन्न प्रकटन की घोषणा करते हैं, मगर साथ ही उसके प्रकटन की निंदा भी करते हैं; उनका "असंभव" परमेश्वर के प्रकटन को एक बार फिर उनकी कल्पना की सीमाओं के भीतर कैद कर देता है। और इसलिए मैंने कई लोगों को परमेश्वर के वचनों के आने के बाद जँगली और कर्कश हँसी का ठहाका लगाते देखा है। लेकिन क्या यह हँसी यहूदियों के तिरस्कार और ईशनिंदा से किसी भी तरह से भिन्न है? तुम लोग सत्य की उपस्थिति में श्रद्धावान नहीं हो, और सत्य के लिए तरसने की प्रवृत्ति तो तुम लोगों में बिलकुल भी नहीं है। तुम बस इतना ही करते हो कि अंधाधुंध अध्ययन करते हो और पुलक भरी उदासीनता के साथ प्रतीक्षा करते हो। इस तरह से अध्ययन और प्रतीक्षा करने से तुम क्या हासिल कर सकते हो? क्या तुम्हें लगता है कि तुम्हें परमेश्वर से व्यक्तिगत मार्गदर्शन मिलेगा? यदि तुम परमेश्वर के कथनों को नहीं समझ सकते, तो तुम किस तरह से परमेश्वर के प्रकटन को देखने के योग्य हो? जहाँ कहीं भी परमेश्वर प्रकट होता है, वहाँ सत्य व्यक्त होता है, और वहाँ परमेश्वर की वाणी होगी। केवल वे लोग ही परमेश्वर की वाणी सुन पाएँगे, जो सत्य को स्वीकार कर सकते हैं, और केवल इस तरह के लोग ही परमेश्वर के प्रकटन को देखने के योग्य हैं। अपनी धारणाओं को जाने दो! स्वयं को शांत करो और इन वचनों को ध्यानपूर्वक पढ़ो। यदि तुम सत्य के लिए तरसते हो, तो परमेश्वर तुम्हें प्रबुद्ध करेगा और तुम उसकी इच्छा और उसके वचनों को समझोगे। "असंभव" के बारे में अपनी राय जाने दो! लोग किसी चीज़ को जितना अधिक असंभव मानते हैं, उसके घटित होने की उतनी ही अधिक संभावना होती है, क्योंकि परमेश्वर की बुद्धि स्वर्ग से ऊँची उड़ान भरती है, परमेश्वर के विचार मनुष्य के विचारों से ऊँचे हैं, और परमेश्वर का कार्य मनुष्य की सोच और धारणा की सीमाओं के पार जाता है। जितना अधिक कुछ असंभव होता है, उतना ही अधिक उसमें सत्य होता है, जिसे खोजा जा सकता है; कोई चीज़ मनुष्य की धारणा और कल्पना से जितनी अधिक परे होती है, उसमें परमेश्वर की इच्छा उतनी ही अधिक होती है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि भले ही वह स्वयं को कहीं भी प्रकट करे, परमेश्वर फिर भी परमेश्वर है, और उसका सार उसके प्रकटन के स्थान या तरीके के आधार पर कभी नहीं बदलेगा। परमेश्वर के पदचिह्न चाहे कहीं भी हों, उसका स्वभाव वैसा ही बना रहता है, और चाहे परमेश्वर के पदचिह्न कहीं भी हों, वह समस्त मनुष्यजाति का परमेश्वर है, ठीक वैसे ही, जैसे कि प्रभु यीशु न केवल इस्राएलियों का परमेश्वर है, बल्कि वह एशिया, यूरोप और अमेरिका के सभी लोगों का, और इससे भी अधिक, समस्त ब्रह्मांड का एकमात्र परमेश्वर है। तो आओ, हम परमेश्वर की इच्छा खोजें और उसके कथनों में उसके प्रकटन की खोज करें, और उसके पदचिह्नों के साथ तालमेल रखें! परमेश्वर सत्य, मार्ग और जीवन है। उसके वचन और उसका प्रकटन साथ-साथ विद्यमान हैं, और उसका स्वभाव और पदचिह्न मनुष्यजाति के लिए हर समय खुले हैं।

— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है' से उद्धृत

मैं पूरे ब्रह्मांड में अपना कार्य कर रहा हूँ, और पूरब से असंख्य गर्जनाएं निरंतर गूँज रही हैं, जो सभी राष्ट्रों और संप्रदायों को झकझोर रही हैं। यह मेरी वाणी है जो सभी मनुष्यों को वर्तमान में लाई है। मैं अपनी वाणी से सभी मनुष्यों को जीत लूँगा, उन्हें इस धारा में बहाऊँगा और अपने सामने समर्पण करवाऊँगा, क्योंकि मैंने बहुत पहले पूरी पृथ्वी से अपनी महिमा को वापस लेकर इसे नये सिरे से पूरब में जारी किया है। भला कौन मेरी महिमा को देखने के लिए लालायित नहीं है? कौन बेसब्री से मेरे लौटने का इंतज़ार नहीं कर रहा है? किसे मेरे पुनः प्रकटन की प्यास नहीं है? कौन मेरी सुंदरता को देखने के लिए तरस नहीं रहा है? कौन प्रकाश में नहीं आना चाहता? कौन कनान की समृद्धि को नहीं देखना चाहता? किसे उद्धारकर्ता के लौटने की लालसा नहीं है? कौन महान सर्वशक्तिमान की आराधना नहीं करता है? मेरी वाणी पूरी पृथ्वी पर फैल जाएगी; मैं चाहता हूँ कि अपने चुने हुए लोगों के समक्ष मैं और अधिक वचन बोलूँ। मैं पूरे ब्रह्मांड के लिए और पूरी मानवजाति के लिए अपने वचन बोलता हूँ, उन शक्तिशाली गर्जनाओं की तरह जो पर्वतों और नदियों को हिला देती हैं। इस प्रकार, मेरे मुँह से निकले वचन मनुष्य का खज़ाना बन गए हैं, और सभी मनुष्य मेरे वचनों को सँजोते हैं। बिजली पूरब से चमकते हुए दूर पश्चिम तक जाती है। मेरे वचन ऐसे हैं कि मनुष्य उन्हें छोड़ना बिलकुल पसंद नहीं करता, पर साथ ही उनकी थाह भी नहीं ले पाता, लेकिन फिर भी उनमें और अधिक आनंदित होता है। सभी मनुष्य खुशी और आनंद से भरे होते हैं और मेरे आने की खुशी मनाते हैं, मानो किसी शिशु का जन्म हुआ हो। अपनी वाणी के माध्यम से मैं सभी मनुष्यों को अपने समक्ष ले आऊँगा। उसके बाद, मैं औपचारिक तौर पर मनुष्य जाति में प्रवेश करूँगा ताकि वे मेरी आराधना करने लगें। मुझमें से झलकती महिमा और मेरे मुँह से निकले वचनों से, मैं ऐसा करूँगा कि सभी मनुष्य मेरे समक्ष आएंगे और देखेंगे कि बिजली पूरब से चमकती है और मैं भी पूरब में "जैतून के पर्वत" पर अवतरित हो चुका हूँ। वे देखेंगे कि मैं बहुत पहले से पृथ्वी पर मौजूद हूँ, यहूदियों के पुत्र के रूप में नहीं, बल्कि पूरब की बिजली के रूप में। क्योंकि बहुत पहले मेरा पुनरुत्थान हो चुका है, और मैं मनुष्यों के बीच से जा चुका हूँ, और फिर अपनी महिमा के साथ लोगों के बीच पुनः प्रकट हुआ हूँ। मैं वही हूँ जिसकी आराधना असंख्य युगों पहले की गई थी, और मैं वह शिशु भी हूँ जिसे असंख्य युगों पहले इस्राएलियों ने त्याग दिया था। इसके अलावा, मैं वर्तमान युग का संपूर्ण-महिमामय सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ! सभी लोग मेरे सिंहासन के सामने आएँ और मेरे महिमामयी मुखमंडल को देखें, मेरी वाणी सुनें और मेरे कर्मों को देखें। यही मेरी संपूर्ण इच्छा है; यही मेरी योजना का अंत और उसका चरमोत्कर्ष है, यही मेरे प्रबंधन का उद्देश्य भी है। सभी राष्ट्र मेरी आराधना करें, हर ज़बान मुझे स्वीकार करे, हर मनुष्य मुझमें आस्था रखे और सभी लोग मेरी अधीनता स्वीकार करें!

— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'सात गर्जनाएँ गूँजती हैं—भविष्यवाणी करती हैं कि राज्य के सुसमाचार पूरे ब्रह्मांड में फैल जाएँगे' से उद्धृत

"जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है।" क्या तुम लोगों ने अब पवित्र आत्मा के वचन सुन लिए हैं? तुम लोगों पर परमेश्वर के वचन आ चुके हैं। क्या तुम लोग उन्हें सुनते हो? अंत के दिनों में परमेश्वर वचनों का कार्य करता है, और ऐसे वचन पवित्र आत्मा के वचन हैं, क्योंकि परमेश्वर पवित्र आत्मा है और वह देहधारी भी हो सकता है; इसलिए, पवित्र आत्मा के वचन, जैसे अतीत में बोले गए थे, आज देहधारी परमेश्वर के वचन हैं। कई बेतुके लोगों का मानना है कि चूँकि पवित्र आत्मा बोल रहा है, इसलिए उसकी वाणी स्वर्ग से आनी चाहिए ताकि सब सुन सकें। इस प्रकार सोचने वाला कोई भी मनुष्य परमेश्वर के कार्य को नहीं जानता। वास्तव में, पवित्र आत्मा के द्वारा कहे गए कथन वही हैं जो देहधारी परमेश्वर द्वारा कहे गए हैं। पवित्र आत्मा प्रत्यक्ष रूप से मनुष्य से बात नहीं कर सकता; व्यवस्था के युग में भी, यहोवा ने प्रत्यक्ष रूप से लोगों से बात नहीं की थी। क्या इस बात की संभावना और भी कम नहीं होगी कि वह आज के युग में ऐसा करेगा? कार्य करने और वचन बोलने की खातिर परमेश्वर के लिए देहधारण करना ज़रूरी है; अन्यथा उसका कार्य अपने उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकता। जो लोग देहधारी परमेश्वर को नकारते हैं, वे आत्मा को या उन सिद्धान्तों को नहीं जानते जिनके द्वारा परमेश्वर कार्य करता है। जो मानते हैं कि अब पवित्र आत्मा का युग है, फिर भी उसके नए कार्य को स्वीकार नहीं करते, वे अस्पष्ट और अमूर्त विश्वास के बीच जीने वाले लोग हैं। ऐसे लोगों को कभी भी पवित्र आत्मा का कार्य प्राप्त नहीं होगा। जो लोग बस चाहते हैं कि पवित्र आत्मा प्रत्यक्ष रूप से उनसे बात करके अपना कार्य करे और देहधारी परमेश्वर के वचनों या कार्य को स्वीकार नहीं करते, वे कभी भी नए युग में प्रवेश या परमेश्वर से पूरी तरह से उद्धार प्राप्त नहीं कर पाएँगे।

— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'वो मनुष्य, जिसने परमेश्वर को अपनी ही धारणाओं में सीमित कर दिया है, किस प्रकार उसके प्रकटनों को प्राप्त कर सकता है?' से उद्धृत

इस बार, परमेश्वर कार्य करने आध्यात्मिक देह में नहीं, बल्कि एकदम साधारण देह में आया है। इसके अलावा, यह न केवल परमेश्वर के दूसरी बार देहधारण का देह है, बल्कि यह वही देह है जिसमें वह लौटकर आया है। यह बिलकुल साधारण देह है। इस देह में तुम ऐसा कुछ नहीं देख सकते जो इसे दूसरों से अलग करता हो, परंतु तुम उससे वह सत्य ग्रहण कर सकते हो जिसके विषय में पहले कभी नहीं सुना गया। यह तुच्छ देह, परमेश्वर के सभी सत्य के वचनों का मूर्त रूप है, जो अंत के दिनों में परमेश्वर के काम की ज़िम्मेदारी लेता है, और मनुष्यों के समझने के लिये परमेश्वर के संपूर्ण स्वभाव को अभिव्यक्त करता है। क्या तुम स्वर्ग के परमेश्वर को देखने की प्रबल अभिलाषा नहीं करते हो? क्या तुम स्वर्ग के परमेश्वर को समझने की प्रबल अभिलाषा नहीं करते हो? क्या तुम मनुष्यजाति के गंतव्य को जानने की प्रबल अभिलाषा नहीं करते हो? वह तुम्हें वो सभी अकल्पनीय रहस्य बतायेगा—वो रहस्य जो कभी कोई इंसान नहीं बता सका, और तुम्हें वो सत्य भी बतायेगा जिन्हें तुम नहीं समझते। वह राज्य में तुम्हारे लिये द्वार है, और नये युग में तुम्हारा मार्गदर्शक है। ऐसी साधारण देह अनेक अथाह रहस्यों को समेटे हुये है। उसके कार्य तुम्हारे लिए गूढ़ हो सकते हैं, परंतु उसके कार्य का संपूर्ण लक्ष्य, तुम्हें इतना बताने के लिये पर्याप्त है कि वह कोई साधारण देह नहीं है, जैसा लोग मानते हैं। क्योंकि वह परमेश्वर की इच्छा का प्रतिनिधित्व करता है, साथ ही साथ अंत के दिनों में मानवजाति के प्रति परमेश्वर की परवाह को भी दर्शाता है। यद्यपि तुम उसके द्वारा बोले गये उन वचनों को नहीं सुन सकते, जो आकाश और पृथ्वी को कंपाते-से लगते हैं, या उसकी ज्वाला-सी धधकती आंखों को नहीं देख सकते, और यद्यपि तुम उसके लौह दण्ड के अनुशासन का अनुभव नहीं कर सकते, तुम उसके वचनों से सुन सकते हो कि परमेश्वर क्रोधित है, और जान सकते हो कि परमेश्वर मानवजाति पर दया दिखा रहा है; तुम परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव और उसकी बुद्धि को समझ सकते हो, और इसके अलावा, समस्त मानवजाति के लिये परमेश्वर की चिंता और परवाह को समझ सकते हो। अंत के दिनों में परमेश्वर के काम का उद्देश्य स्वर्ग के परमेश्वर को मनुष्यों के बीच पृथ्वी पर रहते हुए दिखाना है और मनुष्यों को इस योग्य बनाना है कि वे परमेश्वर को जानें, उसकी आज्ञा मानें, आदर करें, और परमेश्वर से प्रेम करें। यही कारण है कि वह दूसरी बार देह में लौटकर आया है। यद्यपि आज मनुष्य देखता है कि परमेश्वर मनुष्यों के ही समान है, उसकी एक नाक और दो आँखें हैं और वह एक साधारण परमेश्वर है, अंत में परमेश्वर तुम लोगों को दिखाएगा कि अगर यह मनुष्य नहीं होता तो स्वर्ग और पृथ्वी एक अभूतपूर्व बदलाव से होकर गुज़रते; अगर यह मनुष्य नहीं होता तो, स्वर्ग मद्धिम हो जाता, पृथ्वी पर उथल-पुथल हो जाती, समस्त मानवजाति अकाल और महामारियों के बीच जीती। परमेश्वर तुम लोगों को दर्शायेगा कि यदि अंत के दिनों में देहधारी परमेश्वर तुम लोगों को बचाने के लिए नहीं आया होता तो परमेश्वर ने समस्त मानवजाति को बहुत पहले ही नर्क में नष्ट कर दिया होता; यदि यह देह नहीं होता तो तुम लोग सदैव ही कट्टर पापी होते, और तुम हमेशा के लिए लाश बन जाते। तुम सबको यह जानना चाहिये कि यदि यह देह नहीं होता तो समस्त मानवजाति को एक अवश्यंभावी संकट का सामना करना होता, और अंत के दिनों में मानवजाति के लिये परमेश्वर के कठोर दण्ड से बच पाना कठिन होता। यदि इस साधारण शरीर का जन्म नहीं होता तो तुम सबकी दशा ऐसी होती जिसमें तुम लोग जीने में सक्षम न होते हुए जीवन की भीख माँगते और मृत्यु के लिए प्रार्थना करते लेकिन मर न पाते; यदि यह देह नहीं होता तो तुम लोग सत्य को नहीं पा सकते थे और न ही आज परमेश्वर के सिंहासन के पास आ पाते, बल्कि तुम लोग परमेश्वर से दण्ड पाते क्योंकि तुमने जघन्य पाप किये हैं। क्या तुम सब जानते हो, यदि परमेश्वर का वापस देह में लौटा न होता, तो किसी को भी उद्धार का अवसर नहीं मिलता; और यदि इस देह का आगमन न होता, तो परमेश्वर ने बहुत पहले पुराने युग को समाप्त कर दिया होता? अब जबकि यह स्पष्ट है, क्या तुम लोग अभी भी परमेश्वर के दूसरी बार के देहधारण को नकार सकते हो? जब तुम लोग इस साधारण मनुष्य से इतने सारे लाभ प्राप्त कर सकते हो, तो तुम लोग उसे प्रसन्नतापर्वूक स्वीकार क्यों नहीं करते हो?

— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'क्या तुम जानते हो? परमेश्वर ने मनुष्यों के बीच एक बहुत बड़ा काम किया है' से उद्धृत

उत्तर यहाँ दें