एक गरीब परिवार में पली-बढ़ी नायिका, बहुत सारा पैसा कमाकर एक अच्छा जीवन जीना चाहती है। इस वजह से, वह स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर, काम करने लगती है। उसे चाहे जितना भी काम करना पड़े या कितनी भी थक जाए, वह कभी शिकायत नहीं करती। बरसों तक जी-तोड़ मेहनत करके, आखिर वह बीमार पड़ जाती है। बिस्तर पर पड़ी-पड़ी वह सोचती है : "इंसान किसलिए जीता है? क्या सिर्फ पैसा कमाने के लिए जीने की कोई सार्थकता है? क्या लोग अमीर बनकर सुखी हो जाते हैं?" इस पीड़ा और बेबसी के बीच, उसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के उद्धार को जानने का अवसर मिलता है। उसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से जानकारी मिलती है कि इंसान के दुख का मूल क्या है, कैसे इंसान एक सार्थक जीवन जी सकता है। वह अपने जीवन को बदलने का संकल्प लेती है और परमेश्वर के प्रति समर्पित होने का प्रयास करती है। आखिरकार, उसे वह शांति और स्थिरता मिल जाती है जो उसे पहले कभी नहीं मिली थी। उसकी चोट सचमुच दुर्भाग्य में सौभाग्य लेकर आती है।
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