ईसाई धर्म में इतने सम्प्रदाय क्यों हैं?
मेरी उलझन
कई साल पहले, मैं अक्सर व्यवसायिक कारणों से बाहर रहता था। जहाँ भी मैं जाता, अपनी इच्छा से सप्ताहांत पर प्रभु के वचनों को साझा करने और प्रार्थना करने के लिए मैं एक बैठक की जगह की तलाश करता था। लेकिन कुछ बैठकों के बाद, कलीसिया के अगुआ मुझसे पूछते थे, "भाई झोउ, आप किस संप्रदाय से हैं? आपके कलीसिया के सिद्धांत क्या हैं?" मैं हमेशा चकित रह जाता और जवाब देता, "मुझे प्रभु यीशु पर विश्वास है, और मैं किसी संप्रदाय से संबंधित नहीं हूँ। हम सभी मसीह में एक परिवार हैं।" इस पर वे जवाब देते, "वैसे तो कई कलीसियायें हैं, लेकिन केवल हमारी कलीसिया ही सच्ची है, केवल हमारी कलीसिया ही बाकी सभी को शामिल करती है।" बाद में, जो मुझे और भी ज्यादा चकित करता था, वह यह था कि जब मैं अपनी गृह कलीसिया में वापस आता था तो कलीसिया के दोस्त मुझसे पूछते कि अन्य कलीसियाओं में मैंने कौन-कौन से सिद्धांत सुने। बाइबल के पदों की अलग-अलग समझ पर हम झगड़ पड़ते और कभी समझौता नहीं कर पाते थे। हमारी मुलाकातें अक्सर कड़वे सुर पर खत्म होती थीं। कई साल बीत गए, और चाहे मैं जहाँ भी जाऊं, जिस बात ने मुझे प्रभावित किया, वह थी संप्रदायों की बहुलता और कैसे वे सभी एक दूसरे के लिए आलोचनात्मक थे। यह देखकर, मैंने बाइबल के इन वचनों के बारे में सोचा, "एक ही प्रभु है, एक ही विश्वास, एक ही बपतिस्मा, और सब का एक ही परमेश्वर और पिता है, जो सब के ऊपर और सब के मध्य में और सब में है" (इफिसियों 4:5-6)। हम सभी प्रभु में विश्वास करते हैं, बाइबल और प्रभु के वचनों को पढ़ते हैं; तो फिर इतने सारे ईसाई संप्रदाय क्यों हैं? इसका मूल क्या है? प्रभु की इच्छा के अनुरूप कौन सा है? भ्रम और उलझन से भरा, मैं बेसब्री से जवाब ढूंढना चाहता था।
इतने अधिक ईसाई सम्प्रदाय क्यों हैं
बाद में, अपने एक रिश्तेदार के घर में सह-कार्यकर्ता बैठक में, मैं एक धर्म-प्रचारक भाई युआन से मिला। हमने मेरी उलझन पर चर्चा की। जब मैंने पूछा कि इतने सारे संप्रदाय क्यों हैं, तो भाई युआन ने ईसाई धर्म की उत्पत्ति और विकास के बारे में बात की। फिर उन्होंने कहा, "समय के साथ, भूगोल, इतिहास और संस्कृति से प्रभावित विश्वासियों ने धर्मशास्त्रों को अलग-अलग तरह से समझा। उनके बहुत से भिन्न मत थे, और उन्होंने उन पर अंतहीन बहस की। इस प्रकार, कई संप्रदाय अस्तित्व में आए, और ईसाई धर्म अराजकता में पड़ गया।"
"अब, जो लोग वास्तव में परमेश्वर के लिए प्यासे हैं, उन्होंने देखा है कि अधिकांश संप्रदायों में लोग नियंत्रण में हैं। अपनी स्वयं की कल्पना और तर्क के आधार पर, कुछ पादरी और एल्डर अपने स्वयं के प्रबंधन को लागू करने की कोशिश में परमेश्वर में विश्वास की आड़ लेते हैं, जिसका उद्देश्य ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को अपने अधिकार-क्षेत्र में लाना या अपने से भिन्न संप्रदायों पर हमला करना होता है। शायद कुछ लोग सोचेंगे कि यह एक अतिशयोक्ति है और सुनना नहीं चाहेंगे। हालाँकि, हम इसकी पुष्टि परमेश्वर के कार्य के ऐतिहासिक अभिलेखों से कर सकते हैं। आइए इसके बारे में सोचते हैं: व्यवस्था के युग के दौरान, परमेश्वर ने इस्राएल के लोगों की सीधी अगुआई करने के लिए मूसा का उपयोग किया था, और मूसा ने याजक प्रणाली की स्थापना की। मूसा का काम पूरा होने के बाद, पृथ्वी पर इस्राएलियों की अगुआई करने के लिए परमेश्वर द्वारा सीधे तौर पर नियुक्त किए गए अन्य लोग नहीं थे। यहूदी धर्म की याजक प्रणाली तब चुनावों द्वारा आयोजित की जाने लगी। बहुत बार, धार्मिक मंडल इसलिए भ्रष्ट हो गए क्योंकि गलत याजक चुने गए थे। अनुग्रह के युग के अंत तक, याजकों ने परमेश्वर के मार्गदर्शन को पूरी तरह से खो दिया था। किसी भी अनुशासन के अधीन न रहते हुए उन्होंने बुराई के कर्म किये, गुटों का गठन किया, मंदिर को चोरों की मांद में बदल दिया गया। उस समय, कई संप्रदाय बनाए गए थे। जब देहधारी प्रभु यीशु प्रकट हुए और उन्होंने अनुग्रह के युग के दौरान कार्य किया, तो उन्होंने व्यक्तिगत रूप से बारह प्रेरितों का चयन किया, और पवित्र आत्मा ने भी उनके प्रेरितों में बहुत काम किया। वे सभी जो प्रभु का अनुसरण करते थे उन्हें, उन लोगों की चरवाही और अगुआई मिली जिन्हें परमेश्वर ने नियुक्त किया था। किसी की भी स्वार्थी विचार या उल्टे मकसद रखने की हिम्मत नहीं थी। उन्होंने पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन के साथ प्रभु की आराधना की। इस प्रकार, सच्ची कलीसिया बनायी गयी। उस समय संप्रदायों की धारणा मौजूद नहीं थी। प्रभु यीशु की मृत्यु, पुनरुत्थान, और स्वर्ग में आरोहित होने के लगभग तीस साल बाद, बारह प्रेरितों में से अधिकांश शहीद हो गए थे और पृथ्वी पर कलीसिया अब प्रभु यीशु द्वारा सीधे नियुक्त किए गए प्रेरितों द्वारा चरवाही नहीं पाती थी। फिर विभिन्न धार्मिक समूह बनने लगे और आज ईसाई धर्म में 2,000 से अधिक संप्रदाय हैं। इसलिए, मसीह के व्यक्तिगत मार्गदर्शन के बिना, और अपने दिल में परमेश्वर के लिए जगह के बिना, बहुत से लोग घमंड से अपना बखान करने, अपनी वरीयताओं का पालन करने और अपने स्वयं के रास्ते पर चलने में सक्षम हैं, इस प्रकार अनजाने में भटक रहे हैं।"
"इसके अलावा, इन संप्रदायों के अधिकांश अगुआओं का उपयोग पवित्र आत्मा द्वारा नहीं किया जा रहा है, न ही उन्हें पवित्र आत्मा द्वारा परिपूर्ण बनाया गया है। वे निश्चित रूप से मसीह को जानने और उनके मार्गदर्शन का पालन करने के लिए अनुयायियों की अगुआई करने में असमर्थ हैं। मूसा—जो परमेश्वर की परीक्षा और पूर्णता से होकर गुज़रा था—और शिष्य—जिन्हें प्रभु यीशु ने व्यक्तिगत रूप से बुलाया था और कुछ समय तक उनकी चरवाही पाने के बाद जो परमेश्वर द्वारा सौंपे गये कार्य को करते थे—के विपरीत अधिकांश धार्मिक अगुआ परमेश्वर की सेवा के लिए अपने जुनून और स्वाभाविकता पर भरोसा करते हैं। ये सभी ईसाई धर्म में विभाजन के प्रत्यक्ष कारण हैं।"
मैंने पहली बार इस तरह की संगति सुनी थी। इससे पता चला कि ईसाई संप्रदायों का अस्तित्व लोगों की इच्छा से है और वे लोगों द्वारा शासित हैं। लेकिन उनका व्यवहार मसीह की इच्छा नहीं है, पवित्र आत्मा की इच्छा तो और भी नहीं है, इसलिए कि वे पवित्र आत्मा द्वारा परिपूर्ण नहीं किए गए हैं और लोगों की अगुआई का काम नहीं कर सकते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि पवित्र आत्मा के अनुशासन के बिना संप्रदाय आपसे में हमला करते हैं और एक दूसरे को अस्वीकार करते हैं। इससे मुझे स्पष्ट हो गया कि जहाँ भी मैं गया, वहाँ लोग मुझसे बात करते समय हमेशा थोड़े चौकन्ना क्यों रहते थे। कलीसिया के इन अगुआओं ने परमेश्वर की कलीसिया के साथ अपनी निजी संपत्ति जैसा व्यवहार किया है, जैसे कि दाख की बारी की देखभाल करने वाले दुष्ट पट्टेदा। पिछले दो हजार वर्षों में, यह किसने स्पष्ट रूप से देखा है? उस समय, प्रभु के वचन मेरे मन में कौंध गये, "ये लोग जो मुँह से मेरा आदर करते हुए समीप आते परन्तु अपना मन मुझ से दूर रखते हैं, और जो केवल मनुष्यों की आज्ञा सुन सुनकर मेरा भय मानते हैं" (यशायाह 29:13)। ये वचन मेरी लिए अलार्म-घड़ी के स्वर थे। मैंने इन "ईश्वरीय" कलीसिया अगुआओं द्वारा धोखा खाया है। फिर मैंने पूछा, "इतने सारे लोग प्रत्येक धार्मिक अगुआ का समर्थन और अनुसरण क्यों करते हैं?"
प्रत्येक सम्प्रदाय से लोगों के जुड़े रहने का कारण और धार्मिक अगुआओं का अनुसरण करने का परिणाम
भाई युआन ने कहा, "सभी धार्मिक नेता स्वाभाविक रूप से अच्छी क्षमता के होते हैं। उन्होंने बाइबल की अपनी व्याख्या या अपने पादरी प्रमाणपत्रों के आधार पर लोगों के एक समूह की अगुआई करने के लिए कलीसियाओं की स्थापना की। इसके अतिरिक्त, वे विशेष रूप से दूसरों के सामने दिखावा करने और उन्हें धोखा देने में कुशल होते हैं, इसलिए बहुत सारे लोग उनकी क्षमता के दिखावे के धोखे में आ जाते हैं और अनजाने में उन्हें अपने दिलों में जगह दे देते हैं। इसके अलावा, सत्य के बिना, लोग यह नहीं समझ सकते हैं कि इन अगुआओं के पास पवित्र आत्मा के कार्य हैं या नहीं, प्रचार करते हुए वे पवित्र आत्मा द्वारा प्रकाशित और प्रबुद्ध किए गए हैं या नहीं, और वे जो भी करते हैं उसकी पुष्टि परमेश्वर द्वारा की गयी है या नहीं। इसके अलावा, लोग सच्चे और झूठे चरवाहों के बीच अंतर नहीं कर सकते। वे अंधों जैसे उन सभी का पालन और आराधना करते हैं, उन सभी को अपना स्वामी और आदर्श मानते हैं। इसलिए, वे धार्मिक अगुआओं द्वारा नुकसान झेलते हुए, पवित्र आत्मा के कार्य को खो देते हैं, अंधकार में गिर जाते हैं। जैसा कि प्रभु ने कहा, 'वे अंधे मार्गदर्शक हैं और अंधा यदि अंधे को मार्ग दिखाए, तो दोनों ही गड़हे में गिर पड़ेंगे'" (मत्ती 15:14)।
सभी सम्प्रदायों को परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन होना है
भाई युआन ने परमेश्वर के वचन का एक अंश मेरे लिए पढ़ा, "संसार में कई प्रमुख धर्म हैं, प्रत्येक का अपना प्रमुख, या अगुआ है, और उनके अनुयायी संसार भर के देशों और सम्प्रदायों में सभी ओर फैले हुए हैं; प्रत्येक देश में, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, भिन्न-भिन्न धर्म हैं। फिर भी, संसार भर में चाहे कितने ही धर्म क्यों न हों, ब्रह्मांड के सभी लोग अंततः एक ही परमेश्वर के मार्गदर्शन के अधीन अस्तित्व में हैं, और उनका अस्तित्व धर्म-प्रमुखों या अगुवाओं द्वारा मार्गदर्शित नही है। कहने का अर्थ है कि मानवजाति किसी विशेष धर्म-प्रमुख या अगुवा द्वारा मार्गदर्शित नहीं है; बल्कि संपूर्ण मानवजाति को एक ही रचयिता के द्वारा मार्गदर्शित किया जाता है, जिसने स्वर्ग और पृथ्वी का और सभी चीजों का और मानवजाति का भी सृजन किया है—यह एक तथ्य है। यद्यपि संसार में कई प्रमुख धर्म हैं, किंतु वे कितने ही महान क्यों न हों, वे सभी सृष्टिकर्ता के प्रभुत्व के अधीन अस्तित्व में हैं और उनमें से कोई भी इस प्रभुत्व के दायरे से बाहर नहीं जा सकता है। मानवजाति का विकास, सामाजिक प्रगति, प्राकृतिक विज्ञानों का विकास—प्रत्येक सृष्टिकर्ता की व्यवस्थाओं से अविभाज्य है और यह कार्य ऐसा नहीं है जो किसी धर्म-प्रमुख द्वारा किया जा सके। धर्म-प्रमुख किसी विशेष धर्म के सिर्फ़ अगुआ हैं, और वे परमेश्वर का, या उसका जिसने स्वर्ग, पृथ्वी और सभी चीज़ों को रचा है, प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते हैं। धर्म-प्रमुख पूरे धर्म के भीतर सभी का नेतृत्व कर सकते हैं, परंतु वे स्वर्ग के नीचे के सभी प्राणियों को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं—यह सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत तथ्य है। धर्म-प्रमुख मात्र अगुआ हैं, और वे परमेश्वर (सृष्टिकर्ता) के समकक्ष खड़े नहीं हो सकते। सभी चीजें रचयिता के हाथों में हैं, और अंत में वे सभी रचयिता के हाथों में लौट जाएँगी। मानवजाति मूल रूप से परमेश्वर द्वारा बनाई गई थी, और किसी का धर्म चाहे कुछ भी हो, प्रत्येक व्यक्ति परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन लौट जाएगा—यह अपरिहार्य है। केवल परमेश्वर ही सभी चीज़ों में सर्वोच्च है, और सभी प्राणियों में उच्चतम शासक को भी उसके प्रभुत्व के अधीन लौटना होगा। मनुष्य की कद-काठी चाहे कितनी भी ऊँची क्यों न हो, लेकिन वह मनुष्य मानवजाति को किसी उपयुक्त गंतव्य तक नहीं ले जा सकता, और कोई भी सभी चीजों को उनके प्रकार के आधार पर वर्गीकृत करने में सक्षम नहीं है।"
उन्होंने कहा, "परमेश्वर के इन वचनों से, हम देख सकते हैं कि किसी भी देश में चाहे जितने भी धर्म हों, प्रत्येक धर्म में चाहे जितने भी अगुआ हों, चाहे वे कितने भी ऊंचे ओहदे पर हों या वे जितने भी लोगों की अगुआई करें, वे मानव जाति के भाग्य के प्रभारी नहीं हैं। कोई भी व्यक्ति या चीज़ सृष्टिकर्ता के आयोजन और व्यवस्था से बचने में सक्षम नहीं है। सभी सृष्टिकर्ता के प्रभुत्व के तहत मौजूद हैं। दिन के अंत में, सभी सच्चे विश्वासी, सृष्टिकर्ता का पालन करने के लिए हर संप्रदाय को छोड़ देंगे। वे किसी का भी अनुसरण या आराधना करना बंद कर देंगे। भविष्य में कोई संप्रदाय नहीं होगा। पुरुष या स्त्री द्वारा बनाए गए सभी संप्रदाय परमेश्वर द्वारा नष्ट कर दिए जाएंगे।"
उसकी संगति सुनकर मुझे प्रभु यीशु के ये वचन याद आये, "मेरी और भी भेड़ें हैं, जो इस भेड़शाला की नहीं। मुझे उनका भी लाना अवश्य है। वे मेरा शब्द सुनेंगी, तब एक ही झुण्ड और एक ही चरवाहा होगा" (यूहन्ना 10:16)। प्रभु के वचनों ने मुझे दिखाया कि ईसाई धर्म में चाहे जितने भी संप्रदाय हों, सभी अंत में मसीह द्वारा शासित होंगे और मसीह के वचनों के माध्यम से मसीह में एकीकृत होंगे। यह अंत में परमेश्वर द्वारा पूरा किया जाने वाला कार्य है। भाई की संगति ने न केवल मेरे सोच के दायरे को बढ़ाया, बल्कि मुझे यह भी समझाया कि संप्रदायों का निर्माण करने के पीछे, कुछ लोगों का उद्देश्य विश्वासियों को नियंत्रित करना था। किसी व्यक्ति का अनुसरण करने के खतरनाक परिणामों को भी मैंने स्पष्ट रूप से देखा। उस समय, मुझे तत्काल अहसास हुआ और मैं धर्म से बाहर निकलना चाहता था और पवित्र आत्मा के कार्य के साथ तारतम्य बिठाना चाहता था।
परमेश्वर के मार्गदर्शन के लिए उनका धन्यवाद। कई ईसाई संप्रदायों का अस्तित्व क्यों है, इसके पीछे के कारण को मैं वास्तव में समझता हूँ। इस संगति के बाद, मुझे अपनी आत्मा में ऐसा आनंद और आज़ादी महसूस हुई जैसी पहले कभी नहीं हुई थी।
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