दो अभ्यास जिन्हें सच्चे मार्ग की जाँच करते समय अपनाना चाहिए
मत्ती 25:6 के अनुसार, "आधी रात को धूम मची, कि देखो, दूल्हा आ रहा है, उससे भेंट करने के लिये चलो।" प्रभु यीशु के वचन हमें स्पष्ट रूप से बताते हैं कि, जब अंत के दिनों में वह लौटेगा, तो लोग हमें गवाही देंगे कि "दूल्हा आ रहा है," मतलब वे गवाही दे रहे हैं कि प्रभु वापस आ गया है। इसलिए प्रभु की इच्छा के अनुसार हमें किन अभ्यासों को अपनाना चाहिए और क्या इससे हम प्रभु का अभिवादन करने में सक्षम होंगे? दरअसल प्रभु यीशु ने बहुत पहले हमें सच्चे मार्ग की जाँच के अभ्यास के लिए दो मार्ग बताये थे।
1. सच्चे मार्ग की जाँच-पड़ताल करते समय खुले हृदय से खोजें
प्रभु यीशु ने हमें बताया, "धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है" (मत्ती 5:3)। "आधी रात को धूम मची, कि देखो, दूल्हा आ रहा है, उससे भेंट करने के लिये चलो" (मत्ती 25:6)। "माँगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूँढ़ो, तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा" (मत्ती 7:7)। हम यह देख सकते हैं कि जब हम सच्चे मार्ग की जाँच-पड़ताल करते हैं, यह प्रभु की इच्छा है कि हम खुले हृदय से खोज करें। जब हम किसी को गवाही देते हुए सुनें कि प्रभु लौट आया है, तो हमें यह देखने के लिए कि यह परमेश्वर का प्रकटन और कार्य है या नहीं, खोज और जाँच-पड़ताल करनी चाहिए। यदि हम ईमानदारी से प्रभु के प्रकटन के लिए तरसते हैं, तो वह निश्चित ही अपने पदचिह्नों का पता लगाने और उसका स्वागत करने के लिए हमारा मार्गदर्शन करेगा। प्रभु क्यों कहता है कि हमें प्रभु का स्वागत करने के सच्चे मार्ग की जाँच करते समय खुले हृदय से तलाश करनी चाहिए?
हम सभी जानते हैं कि परमेश्वर की बुद्धिमत्ता स्वर्गों से भी विस्तृत है और जब भी वह आता है हर बार नया कार्य करता है—ये चीज़ें हम इंसानों की समझ से परे हैं। उदाहरण के लिए, जब प्रभु यीशु छुटकारे का कार्य करने के लिए आया, उसने मंदिर के बाहर अपना कार्य किया और नियमों और आज्ञाओं का प्रचार नहीं किया, बल्कि इसके बजाय उसने पापियों के साथ भोजन किया और सब्त इत्यादि का पालन नहीं किया। उसका ज्यादातर काम यहोवा द्वारा किये गये कार्य से बिल्कुल अलग था, और यह कुछ ऐसा था जो उस समय के लोगों के लिए स्वीकार करना मुश्किल था। विनम्र हृदय और सच्चा रवैया रखने वाले लोग, जो अपनी धारणाओं और कल्पनाओं को अलग रखकर खोज और जाँच करने में पहल कर सकते थे, केवल वे ही प्रभु का उद्धार प्राप्त करने में सक्षम थे। उदाहरण के लिए, नतनेल को ही ले लें। हालाँकि प्रभु यीशु के बारे में उसकी अपनी धारणायें थीं, लेकिन वह उन्हें अलग रखकर सच्चे हृदय से खोज करने में सक्षम था, अंततः उसने माना कि यीशु मसीहा था, और उसका अनुसरण किया और उद्धार प्राप्त किया। फिर पतरस था, जिसने प्रभु यीशु को देखने से पहले, यहूदी अगुआओं को यीशु का मूल्यांकन और निंदा करते हुए सुना था, लेकिन यहूदी अगुआओं की बातों पर आँख मूँदकर विश्वास करने की बजाय, उसने प्रभु यीशु के उपदेशों को खुले हृदय से सुना। उसके बाद, पवित्र आत्मा द्वारा प्रबुद्ध होने पर, उसने यीशु को मसीह, चिरजीवी परमेश्वर के पुत्र के रूप में स्वीकार किया, और परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त किया। तो हम देख सकते हैं कि सच्चे मार्ग की जाँच-पड़ताल करते समय, हमें खुले हृदय से तलाश करनी चाहिए और परमेश्वर के कार्य की खोज और जाँच करने में पहल करनी चाहिए। केवल ऐसा करने से ही हम परमेश्वर की प्रबुद्धता और मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं और प्रभु का अभिवादन कर सकते हैं।
इसके विपरीत, यदि, सच्चे मार्ग की जाँच करते समय हम खुले हृदय से तलाश/खोज नहीं करते, तो हम प्रभु को नकारने और निंदा करने की तरफ उन्मुख होंगे और प्रभु का विरोध करने वाले लोग बनेंगे। हम बिल्कुल फरीसियों की तरह बन जायेंगे: वे अच्छी तरह जानते थे कि प्रभु यीशु के वचनों में सत्य था, फिर भी वे खुले हृदय से खोज और जाँच करने में असमर्थ थे। इसके बजाय, उन्होंने पुराने नियम का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल प्रभु यीशु की गलती ढूँढने और उसे ठुकराने और निंदा करने के लिए किया। अंत में उन्होंने प्रभु यीशु को सलीब पर चढ़ा दिया, इस तरह परमेश्वर के स्वभाव का अपमान किया और उसके दंड के भागी बने। सच्चे मार्ग का सामना करते समय खुले हृदय से जाँच न करने का फरीसियों का यह भयानक परिणाम था। इससे हम देख सकते हैं कि सच्चे मार्ग की जाँच करते समय खुले हृदय से खोज करना अनिवार्य है, क्योंकि इसका सीधा असर इस महत्वपूर्ण बात पर पड़ता है कि हम परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर पायेंगे या नहीं।
2. सच्चे मार्ग की जाँच करते समय परमेश्वर की वाणी को सुनने पर ध्यान दें
सच्चे मार्ग की जाँच करते समय, खुले हृदय से तलाश करने के साथ-साथ, परमेश्वर की वाणी को सुनने पर भी ध्यान देना जरूरी है। प्रभु यीशु ने कहा था, "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं, और मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे-पीछे चलती हैं" (यूहन्ना 10:27)। "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा, और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20)। "चूँकि हम परमेश्वर के पदचिह्नों की खोज कर रहे हैं, इसलिए हमारा कर्तव्य बनता है कि हम परमेश्वर की इच्छा, उसके वचन और कथनों की खोज करें—क्योंकि जहाँ कहीं भी परमेश्वर द्वारा बोले गए नए वचन हैं, वहाँ परमेश्वर की वाणी है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर के पदचिह्न हैं, वहाँ परमेश्वर के कर्म हैं। जहाँ कहीं भी परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, वहाँ परमेश्वर प्रकट होता है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर प्रकट होता है, वहाँ सत्य, मार्ग और जीवन विद्यमान होता है। परमेश्वर के पदचिह्नों की तलाश में तुम लोगों ने इन वचनों की उपेक्षा कर दी है कि 'परमेश्वर सत्य, मार्ग और जीवन है।' और इसलिए, बहुत-से लोग सत्य को प्राप्त करके भी यह नहीं मानते कि उन्हें परमेश्वर के पदचिह्न मिल गए हैं, और वे परमेश्वर के प्रकटन को तो बिलकुल भी स्वीकार नहीं करते। कितनी गंभीर ग़लती है!" इन पदों से हम देख सकते हैं कि, जब प्रभु अंत के दिनों में लौटता है, वह कलीसियाओं को अपने कथन कहेगा और, अपने वचनों के माध्यम से, वह अपनी भेड़ें खोज लेगा। केवल वे जो परमेश्वर की वाणी सुनते हैं और उसका अनुसरण करते हैं, वे ही प्रभु का स्वागत कर सकते हैं। जैसे कि हम सभी जानते हैं, परमेश्वर सत्य, मार्ग और जीवन है और केवल परमेश्वर ही सत्य व्यक्त कर सकता है। परमेश्वर की वाणी सुनने का अर्थ है कि हम उसका प्रकटन देख सकते हैं, और इसलिए यह निर्धारित करने के लिए कि यह परमेश्वर का प्रकटन और कार्य है या नहीं, परमेश्वर की वाणी का उपयोग करना एकमात्र बुद्धिमानी भरा विकल्प है। जब प्रभु यीशु ने प्रकट होकर अपना कार्य किया, पतरस ने उसके उपदेशों को सुनकर माना कि वह मसीह था। जब नतनेल ने यीशु को यह कहते सुना, "इससे पहले कि फिलिप्पुस ने तुझे बुलाया, जब तू अंजीर के पेड़ के तले था, तब मैंने तुझे देखा था" (यूहन्ना 1:48)। उसने देखा कि प्रभु मनुष्य के हृदय की अंतरिम गहराई में देख सकता है, कि वह सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञाता है, और तब उसने प्रभु यीशु को मसीहा के रूप में पहचाना। फिर एक सामरी महिला थी, जब उसने प्रभु यीशु से बात की, उसने प्रभु को महिला के हृदय में छिपे रहस्यों को उजागर करते सुना और उसे यकीन हो गया कि प्रभु यीशु आने वाला मसीहा ही था। इससे हमें पता चलता है कि सच्चे मार्ग की जाँच-पड़ताल करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण और बुनियादी आवश्यकता यह है कि यह देखने के लिए कि क्या इस मार्ग में सत्य की अभिव्यक्तियाँ हैं, परमेश्वर की वाणी सुनना जरूरी/आवश्यक है—यह सच्चे मार्ग की जाँच करने का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है। इसलिए जब हम अंत के दिनों में सच्चे मार्ग की खोज और जाँच-पड़ताल और प्रभु का अभिवादन करना चाहते हैं, तो हमें परमेश्वर की वाणी को सुनने पर जरूर ध्यान देना चाहिए। जब एक बार हमने परमेश्वर की वाणी सुन ली, तो क्या हम उसका प्रकटन नहीं देखते और प्रभु का अभिवादन नहीं करते हैं?
इन दिनों, आपदाएँ बड़े पैमाने पर बढ़ रही हैं, और प्रभु के आने के संकेत अब मुख्य रूप से देखे गये हैं। पूरी दुनिया में, केवल सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया ही खुले तौर पर गवाही दे रही है कि प्रभु देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में लौट आया है, जो अपने वचनों को व्यक्त करता है और परमेश्वर के घर से शुरू होने वाला न्याय का कार्य करता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर अवतरित हुआ और 1991 में अपना कार्य शुरू किया और तब से लाखों वचनों को व्यक्त किया। इन वचनों ने सभी सत्यों और रहस्यों को उजागर किया है, जैसे कि परमेश्वर की छह हजार-वर्षीय प्रबंधन योजना का रहस्य, परमेश्वर के तीन चरणों के कार्य के रहस्य, परमेश्वर के देहधारण का रहस्य, बाइबल की आंतरिक कथा और सार, मनुष्यजाति का अंत और उसका प्रतीक्षारत गंतव्य, इत्यादि। परमेश्वर के वचन शैतान द्वारा मानवजाति की भ्रष्टता की वास्तविक सच्चाई और हमारी शैतानी, परमेश्वर-विरोधी प्रकृति को उजागर करते हैं, साथ ही वे हमें अभ्यास के कई मार्ग दिखाते हैं, जैसे ईमानदार व्यक्ति कैसे बनें, परमेश्वर को प्रेम और उसका आज्ञापालन कैसे करें, परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप उसकी सेवा कैसे करें, और कैसे परमेश्वर का भय मानें और बुराई से दूर रहें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने बहुतायत में, सभी सत्यों और रहस्यों को उजागर करते, और प्रभु यीशु की भविष्वाणी को पूरा करते वचनों को व्यक्त किया है: "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा, परन्तु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। दुनिया के सभी राष्ट्रों, सभी धर्मों और सम्प्रदायों के लोग जो ईमानदारी से परमेश्वर के प्रकटन की तलाश करते हैं, उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ा है और सुनिश्चित हो गए है कि ये वचन परमेश्वर की वाणी हैं, सत्य की अभिव्यक्तियाँ हैं। एक-एक करके, वे परमेश्वर के वचनों द्वारा सिंचित और पोषित होने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के सामने आते हैं। ये लोग बुद्धिमान कुंवारियां हैं, जिन्हें परमेश्वर के सिंहासन के सामने स्वर्गारोहित किया जाता है और जो मेमने के विवाह-भोज में शामिल होते हैं।
अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य अब समापन के करीब है, बड़ी आपदाएँ आने को हैं, और परमेश्वर द्वारा हमें दी गई समयावधि समाप्त हो रही है। यदि हम वास्तव में प्रभु की वापसी के लिए तरसते हैं, तो जब हम किसी को यह गवाही देते हुए सुनते हैं कि वह आ गया है, तो भले ही अंत के दिनों में परमेश्वर का कार्य हमारी धारणाओं के अनुरूप है या नहीं, हमें उसे सीमांकित करना या नकारना नहीं चाहिए, न ही बिना सोचे समझे इसका आंकलन या निंदा करनी चाहिए। इसके बजाय, हमें बुद्धिमान कुंवारियां होना चाहिए जो सच्चे मार्ग की खोज और जाँच करने में पहल करती हैं और परमेश्वर की वाणी सुनने पर ध्यान देती हैं। केवल ऐसा करने से हमारे पास वह समझ होगी जो हमारे पास होनी चाहिए और हम उस तरीके से अभ्यास करेंगे, जिस तरीके से हमें सच्चे मार्ग की जाँच करते समय करना चाहिए। यदि हम इस बारे में निश्चित होना चाहते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर वापस आया हुआ प्रभु यीशु है या नहीं, तो क्या हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़कर ऐसा नहीं कर सकते? यदि हमने जाँच और खोज नहीं की, तो हम परमेश्वर की वाणी को कैसे सुन पायेंगे? तो हम अंत के दिनों में प्रभु के उद्धार को आसानी से खो देंगे, प्रभु द्वारा त्यागे और हटाये जायेंगे, और रोते और दांत पीसते हुए बड़ी आपदाओं में नष्ट हो जायेंगे।
- संपादक की टिप्पणी
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