जीवन में दिशा पाकर मैं अब खालीपन में नहीं रहता
सवेरे-सवेरे, मैं खिड़की के पास वाली अपनी छोटी सी मेज पर बैठ कर चुपचाप कनान की धरती पर खुशियाँ नामक नृत्य-संगीत वीडियो देख रहा था। मेरा दिल माधुर्य से भर गया और मैं अनजाने में मुस्कुराने लगा। मैंने वास्तव में परमेश्वर के सामने आने की शांति और स्थिरता को महसूस किया।
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- मैं पाप में पड़ गया और दर्द और खालीपन में जीने लगा
- मानवीय जीवन के खालीपन की जड़ क्या है?
- मेरे पास खोखलेपन से छुटकारा पाने की आशा है
- प्रलोभन का प्रतिरोध कर पाने की मेरी असमर्थता का मूल कारण
- मुझे जीवन की मेरी दिशा मिल गयी
मैं पाप में पड़ गया और दर्द और खालीपन में जीने लगा
अधिक पैसा कमाने के लिए मैं कुछ साल पहले दक्षिण कोरिया आया था। कड़ी मेहनत करने के कुछ समय के बाद, मैं धीरे-धीरे अधिक समृद्ध जीवन जीने लगा, लेकिन मुझे दिल में मैं अक्सर खालीपन और खोखलेपन का एहसास होता था। मेरे दोस्त अक्सर मुझे शराब पीने, बाहर खाना खाने और कराओके बार जाने के लिए आमंत्रित करते थे, उन्हें नाचना-गाना पसंद था। अक्सर, हम देर रात घर पहुँचते थे। उस समय, हमारे बीच लोकप्रिय कहावतें थीं: "हर दिन का भरपूर आनंद लो, क्योंकि ज़िन्दगी बहुत छोटी है," "आज नशे में डूबो और बाकी की चिंता कल करो," और "खाने, पीने और मज़े करने के लिए जवां होने का लाभ उठाओ, बुढ़ापे में, किसी चीज़ के मजे नहीं लिए जा सकते।" इन बातों से मेरे दिल के तार जुड़ गये थे और मुझे लगा कि हमें अपना जीवन ऐसे ही जीना चाहिए। बाद में, हर बार जब मेरे दोस्त एक साथ बाहर जाते, वे हमेशा मुझे उनके साथ आने के लिए कहते। वैसे भी, मेरे पास काम करने के बाद कुछ और करने को नहीं था और मैं बैठ-बैठे ऊब जाता था, इसलिए मैं हमेशा उनके साथ चला जाया करता था। जब हम खाने के लिए कहीं जाते थे, तो हम भाइयों की तरह खाते और पीते थे, बातें करते थे, हँसते थे, और बहुत ख़ुशी महसूस करते थे। खाने और पीने के बाद, हम कराओके बार और अन्य जगहों पर नाच-गाने के लिए जाते थे। दावत और मौजमस्ती के बाद, मैंने महसूस किया कि दोस्तों का इतना बड़ा समूह होना, बात करना, हंसना, उनके साथ रहना और इस तरह के मज़े करना, वास्तव में बहुत अच्छा था। कभी-कभी, वे बाहर नहीं जाना चाहते थे, लेकिन मैं जाना चाहता था। वैसी स्थिति में, काम की थकावट, जीवन की सारी निराशाएं और जिससे भी मैं खुश नहीं था, वह सब एक पल में गायब हो जाता था। धीरे-धीरे, मुझे विश्वास हो गया कि जीवन में खाना, पीना और मजे न करना मूर्खता है, और खान-पान का जीवन ही ऐसा जीवन है जो आनंद देता है, और मुझे नीरसता से ऊपर उठाता है। काम के बाद, मैं लगभग हर दिन बिना किसी रोक के पीता था, लेकिन अपने खाली समय में, मेरे दिल को अभी भी खालीपन और उजाड़ता का एहसास होता था। मैं सोचे बिना रह पाया: लोग क्यों जीते हैं? अपनी आत्मा के खाली स्थान को मैं कैसे भरूं?
हालाँकि मुझे तरह-तरह की भावनाएँ महसूस हो रही थीं, लेकिन जीवन और काम रुक नहीं सकता। चूँकि मुझे और मेरे साथ काम करने वालों को बारिश होने पर काम रोकना पड़ता था, इसलिए हम सभी अपने खाली समय में एक ताश खेलने के कमरे में जाकर, खुद को ताश के खेल से बहलाते थे। उन्होंने मुझे भी साथ जाने के लिए कहा, और मैंने सोचा: "मैं थोड़ी देर के लिए खेलूँगा। हमारे पास वैसे भी खाली समय है। मैं समय गुजारने के लिए ताश खेलूँगा और इन उबाऊ दिनों में खुद को बहलाए रखूंगा।" इसलिए, मैंने पूरा दिन ताश की मेज पर बिताया, मैं ज़्यादा कुछ जीत तो नहीं पा रहा था लेकिन बहुत कुछ हार ज़रुर रहा था। कभी-कभी, एक दिन में मैं दो से तीन मिलियन के बीच कोरियाई राशि हार में गँवा देता था। जब मैं खेलता होता था, तो मैं वास्तव में खुश महसूस करता था और पूरी तरह से आनंदित महसूस करता था, लेकिन जब मैं घर वापस आता, तो सभी चीजें वैसी की वैसी होती थीं, और मुझे उन पैसे के लिए बहुत बुरा लगता था जो मैंने खो दिये थे। मैं अपने आप से कहता था कि अब से मैं ताश नहीं खेलूंगा, लेकिन अगले दिन, मैं फिर से ताश खेलने वापस चला जाता था। मैंने ज़्यादा से ज़्यादा पैसे हारने लगा, मुझ पर मेरे दोस्तों का भी कर्ज़ हो गया। मैं थोड़ा भी आत्म-संयम न रख पाने के लिए खुद से नफरत करता था। शुरुआत में, मेरा खेलने का इरादा केवल उबाऊ समय गुज़ारने के लिए और मज़े के लिए थोड़ा-बहुत ताश खेलना था। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं अपने खालीपन में इस तरह का दर्द जोड़ रहा हूँ। बाद में, काम की परियोजना समाप्त हो गई। चूँकि मैं लगभग क़र्ज़ का सारा पैसा भुगतान करने में कामयाब रहा था, इसलिए मैं काम करने की दूसरी जगह चला गया।
वहाँ पहुँचने के बाद, मैंने अपने दोस्तों के साथ मिलना, खाना-पीना और अपने कमाए पैसों से मौजमस्ती करना जारी रखा। इन सब बातों से मुझे क्षणिक ख़ुशी मिलती थी और मेरा जीवन अभी भी इतना खाली था, कि मुझे ऐसा लगता था कि मैं एक झूठी दुनिया में रह रहा हूँ। बाहर से हर कोई दोस्त था—साथ में खाना-पीना, मज़े करना, ज़िन्दगी का आनंद लेना—लेकिन वास्तव में हर कोई केवल अपनी परवाह करता था। खासकर जब कोई ऐसी बात होती थी जो उनके व्यक्तिगत हितो को छूती थी तो वे पीठ पीछे एक-दूसरे पर हमला करते और आलोचना करते थे। अपने खाली समय में मैं अक्सर सोचता था: "क्या मुझे ऐसे ही अपना जीवन जीना है? मेरे आसपास के अनगिनत लोग दूसरों के नक्शेकदमों पर चल रहे हैं। क्या यह सम्भव है कि इस तरह जीने के अलावा कोई और तरीका नहीं है?"
मानवीय जीवन के खालीपन की जड़ क्या है?
एक दिन काम के स्थान पर, मैं एनहाओ से मिला। हमने एक-दूसरे को जाना और एक-दूसरे को सब कुछ बताया, और हम करीबी दोस्त बन गए। एक बार, बातचीत के दौरान, मैंने उसके सामने अपने दिल के उन सारे अवसादों को रख दिया जिन्हें मैं अनुभव कर रहा था। उसने मुझसे कहा, "मैं तुम्हें एक जगह ले जा रहा हूँ, जहाँ तुम्हारी सारी समस्याएँ हल हो जाएँगी।" इस तरह आखिर में, मैं कलीसिया में पहुँचा। मैंने अपने अनुभवों के बारे में भाई-बहनों को बताया, और मैंने सवाल पूछने की पहल की: "मानव जीवन इतना खाली क्यों है? आखिरकार हम जीवन के इस खालीपन और दर्द से छुटकारा कैसे पा सकते हैं?"
एक बहन ने मुझसे कहा, "भाई, ये सवाल जो आपने पूछा है, कई लोगों को परेशान करता है। लोगों का जीवन स्तर अब बेहतर हो रहा है, और हम अधिक से अधिक भौतिक सुखों का आनंद लेते हैं, और फिर भी हमारी आत्माओं के भीतर का शून्य दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। कोई भी यह नहीं समझता कि ऐसा क्यों है, लेकिन परमेश्वर के वचन मानवजाति के दर्द और खालीपन के मूल कारण को उजागर करते हैं। आइए, परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ें, 'हृदय में परमेश्वर के बिना मनुष्य की आंतरिक दुनिया अंधकारमय, आशारहित और खोखली है। बाद में मनुष्य के हृदय और मन को भरने के लिए कई समाज-वैज्ञानिकों, इतिहासकारों और राजनीतिज्ञों ने सामने आकर सामाजिक विज्ञान के सिद्धांत, मानव-विकास के सिद्धांत और अन्य कई सिद्धांत व्यक्त किए, जो इस सच्चाई का खंडन करते हैं कि परमेश्वर ने मनुष्य की रचना की है, और इस तरह, यह विश्वास करने वाले बहुत कम रह गए हैं कि परमेश्वर ने सब-कुछ बनाया है, और विकास के सिद्धांत पर विश्वास करने वालों की संख्या और अधिक बढ़ गई है। अधिकाधिक लोग पुराने विधान के युग के दौरान परमेश्वर के कार्य के अभिलेखों और उसके वचनों को मिथक और किंवदंतियाँ समझते हैं। अपने हृदयों में लोग परमेश्वर की गरिमा और महानता के प्रति, और इस सिद्धांत के प्रति भी कि परमेश्वर का अस्तित्व है और वह सभी चीज़ों पर प्रभुत्व रखता है, उदासीन हो जाते हैं। मानवजाति का अस्तित्व और देशों एवं राष्ट्रों का भाग्य उनके लिए अब और महत्वपूर्ण नहीं रहे, और मनुष्य केवल खाने-पीने और भोग-विलासिता की खोज में चिंतित, एक खोखले संसार में रहता है। ... कुछ लोग स्वयं इस बात की खोज करने का उत्तरदायित्व लेते हैं कि आज परमेश्वर अपना कार्य कहाँ करता है, या यह तलाशने का उत्तरदायित्व कि वह किस प्रकार मनुष्य के गंतव्य पर नियंत्रण और उसकी व्यवस्था करता है। और इस तरह, मनुष्य के बिना जाने ही मानव-सभ्यता मनुष्य की इच्छाओं के अनुसार चलने में और भी अधिक अक्षम हो गई है, और कई ऐसे लोग भी हैं, जो यह महसूस करते हैं कि इस प्रकार के संसार में रहकर वे, उन लोगों के बजाय जो चले गए हैं, कम खुश हैं। यहाँ तक कि उन देशों के लोग भी, जो अत्यधिक सभ्य हुआ करते थे, इस तरह की शिकायतें व्यक्त करते हैं। क्योंकि परमेश्वर के मार्गदर्शन के बिना शासक और समाजशास्त्री मानवजाति की सभ्यता को सुरक्षित रखने के लिए अपना कितना भी दिमाग क्यों न ख़पा लें, कोई फायदा नहीं होगा। मनुष्य के हृदय का खालीपन कोई नहीं भर सकता, क्योंकि कोई मनुष्य का जीवन नहीं बन सकता, और कोई सामाजिक सिद्धांत मनुष्य को उस खालीपन से मुक्ति नहीं दिला सकता, जिससे वह व्यथित है। विज्ञान, ज्ञान, स्वतंत्रता, लोकतंत्र, फुरसत, आराम : ये मनुष्य को केवल अस्थायी सांत्वना देते हैं। यहाँ तक कि इन बातों के साथ मनुष्य निश्चित रूप से पाप करेगा और समाज के अन्याय का रोना रोएगा। ये चीज़ें मनुष्य की अन्वेषण की लालसा और इच्छा को दबा नहीं सकतीं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि मनुष्य को परमेश्वर द्वारा बनाया गया था और मनुष्यों के बेतुके त्याग और अन्वेषण केवल और अधिक कष्ट की ओर ही ले जा सकते हैं और मनुष्य को एक निरंतर भय की स्थिति में रख सकते हैं, और वह यह नहीं जान सकता कि मानवजाति के भविष्य या आगे आने वाले मार्ग का सामना किस प्रकार किया जाए। यहाँ तक कि मनुष्य विज्ञान और ज्ञान से भी डरने लगेगा, और खालीपन के एहसास से और भी भय खाने लगेगा। इस संसार में, चाहे तुम किसी स्वंतत्र देश में रहते हो या बिना मानवाधिकारों वाले देश में, तुम मानवजाति के भाग्य से बचकर भागने में सर्वथा असमर्थ हो। तुम चाहे शासक हो या शासित, तुम भाग्य, रहस्यों और मानवजाति के गंतव्य की खोज करने की इच्छा से बचकर भागने में सर्वथा अक्षम हो, और खालीपन के व्याकुल करने वाले बोध से बचकर भागने में तो और भी ज्यादा अक्षम हो। इस प्रकार की घटनाएँ, जो समस्त मानवजाति के लिए सामान्य हैं, समाजशास्त्रियों द्वारा सामाजिक घटनाएँ कही जाती हैं, फिर भी कोई महान व्यक्ति इस समस्या का समाधान करने के लिए सामने नहीं आ सकता। मनुष्य आखिरकार मनुष्य है, और परमेश्वर का स्थान और जीवन किसी मनुष्य द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता। मानवजाति को केवल एक निष्पक्ष समाज की ही आवश्यकता नहीं है, जिसमें हर व्यक्ति को नियमित रूप से अच्छा भोजन मिलता हो और जिसमें सभी समान और स्वतंत्र हों, बल्कि मानवजाति को आवश्यकता है परमेश्वर के उद्धार और अपने लिए जीवन की आपूर्ति की। केवल जब मनुष्य परमेश्वर का उद्धार और जीवन की आपूर्ति प्राप्त करता है, तभी उसकी आवश्यकताओं, अन्वेषण की लालसा और आध्यात्मिक रिक्तता का समाधान हो सकता है।'"
परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद, उस बहन ने संगति करना जारी रखा और कहा: "परमेश्वर के वचनों ने हमारे खालीपन और पीड़ा के मूल कारण को पूरी तरह समझाया है। शैतान द्वारा भ्रष्ट किए जाने के बाद, हमने परमेश्वर को दूर करना शुरू कर दिया, हमने परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन और आपूर्ति को खो दिया और हम शैतान की शक्ति के अधीन रहते थे, यही कारण है कि मानवजाति ऐसा खाली, पीड़ा से भरा जीवन जीती है। अपने जीवन में, हम सभी धन, प्रसिद्धि, भाग्य, भौतिक सुखों के लिए संघर्ष और दौड़-धूप करते हैं। जितना अधिक हम इन चीज़ों का पीछा करते हैं, हम उतने ही असंतुष्ट और लालची होते जाते हैं। जब हम इन चीज़ों को प्राप्त करते हैं, तो हमारे भौतिक जीवन स्तर में सुधार होता है और हमारी देह को भोग प्राप्त होता है, लेकिन जब हम उनका आनंद ले लेते हैं, तो हमारा दिल एक बार फिर खाली लगने लगता है। जब हम इन चीजों को प्राप्त नहीं कर पाते हैं, तो हम और भी अधिक पीड़ा में और असहाय महसूस करते हैं। इसलिए, जिन लोगों के पास पैसा या पद नहीं है, वे खालीपन महसूस करते हैं और उनके जीवन में कोई प्रेरणा नहीं होती है, और यही वे भी अनुभव करते हैं जिनके पास पैसा, पद और जीवन में बड़ा आनंद होता है—खाली और बगैर किसी प्रेरणा के। कुछ लोगों ने अपनी आत्माओं के खाली स्थान को भरने के लिए बहुत से तरीक आजमाए हैं; वे नृत्य-क्लब में जाते हैं, धूम्रपान करते और शराब पीते हैं, खरीदारी करते हैं, यात्रा करते हैं, और कुछ लोग नशीले पदार्थ भी आजमाते हैं। लेकिन चाहे हम जो भी करें, इससे कोई फायदा नहीं है। इससे पता चलता है कि पैसा, प्रसिद्धि और भाग्य और भौतिक सुख मानवजाति के खालीपन को हल नहीं कर सकते हैं, न ही वे हमें खुश और आनंदमय बना सकते हैं। मानवजाति यानि की हम, परमेश्वर द्वारा बनाए गए थे; परमेश्वर के सामने आने से, उनके उद्धार को स्वीकार करने, उनके वचन के अनुसार जीने से ही हमारे दिल को आराम और शांति की अनुभूति हो सकती है, और हम खुद को इस खालीपन से छुटकारा दिला सकते हैं।"
उस बहन की संगति को सुनने के बाद, मैं फिर से परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा और ये महसूस किया कि उनके वचनों ने सीधे मेरे दिल से बात की थी। भले ही उस वक्त मुझे कपड़े और भोजन पाने की चिंता नहीं थी, फिर भी मैं जीवन में खुश नहीं था। समय बिताने और अपने खालीपन से खुद को छुड़ाने के लिए मैं अक्सर अपने दोस्तों के साथ बाहर जाकर खाता-पीता और मजे करता था। उस वक्त भौतिक रूप से मैं संतुष्ट महसूस करता था, बाहर से खुश दिखाई देता था, लेकिन जब मैं अकेला होता था तो, असाधारण रूप से खाली और असहाय महसूस करता था, इस हद तक कि मुझे लगता था कि जीवन में मेरा कोई लक्ष्य नहीं है और यह जीवन भी निरथर्क है। फिज़ूल-खर्च, व्यभिचार और बेखटके पीने का मेरा जीवन मुझे केवल क्षणिक ख़ुशी दे पाया, लेकिन मैंने कभी सच्ची ख़ुशी का एहसास नहीं किया। वास्तव में, शायद परमेश्वर पर विश्वास करना ही वो एकमात्र रास्ता था जो कि मेरे आध्यात्मिक खालीपन का समाधान कर सकता था।
मेरे पास खोखलेपन से छुटकारा पाने की आशा है
इसके बाद उस बहन ने एक भजन वीडियो, अगर परमेश्वर ने मुझे बचाया न होता, चलाया। इस भजन ने मुझे ऐसा महसूस कराया जैसे मैंने स्वयं इन वचनों को अनुभव किया है और साथ में गाते हुए, मेरे जीवन का हर दृश्य, मेरे दिमाग में एक फिल्म की तरह चलता गया। यह न जानते हुए कि मानवजाति कहाँ से आई है या हमें कैसे जीना चाहिए, मेरा पिछला जीवन बेरोकटोक शराब पीने वाला था, जीवन में मेरा कोई लक्ष्य नहीं था, किसी बात का इंतज़ार नहीं था, इसके बजाय बस दिनभर मैं यों ही भटकता था जैसा कि भजन में कहा गया है "पाप में कष्टों संग संघर्ष करते हुए, निराशा में जीते हुए।" इसके अलावा, मैंने देखा कि, वीडियो में जो भाई-बहन थे, उन्होंने जबसे परमेश्वर में विश्वास करना शुरू किया, तबसे वे स्वतंत्र और मुक्त जीवन जीते थे। इस बात ने मेरे दिल को गहराई से द्रवित किया और उस पल में, मैंने महसूस किया कि परमेश्वर वास्तव में हमारे खाली और दर्दनाक जीवन से हमें बचाने में सक्षम थे। मैं परमेश्वर के काम का अध्ययन करना जारी रखना चाहता था।
बाद में, परमेश्वर के वचनों को पढ़ने, भाई-बहनों के साथ मिलने और संगति करने के माध्यम से, मुझे सत्य के इन पहलुओं के बारे में समझ आया, जैसे कि मानवजाति के पतन का स्रोत, कैसे शैतान मनुष्य को भ्रष्ट करता है, कैसे परमेश्वर मनुष्य को बचाते हैं, और एक वास्तविक मानवीय समानता को कैसे जीना है। मैंने देखा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए वचन संभवतः किसी भी इंसान द्वारा नहीं बोले जा सकते हैं, उनके वचनों ने मुझे जीवन में चलने की दिशा दिखाई और मुझे सिखाया कि सार्थक जीवन जीने के लिए मुझे किसका अनुसरण करना है—वे मेरे लिए बड़े ही मददगार थे। बाद में मैं कलीसिया से जुड़ गया, मैं अक्सर सभाओं में में भाग लेता था और अपने भाई-बहनों के साथ परमेश्वर के वचनों पर संगति करता था। इस तरह से जीने में मैंने बहुत समृद्धि महसूस की, और मेरी आत्मा ने ऐसी शांति और आनंद का अनुभव किया जो उसने पहले कभी महसूस नहीं किया था।
प्रलोभन का प्रतिरोध कर पाने की मेरी असमर्थता का मूल कारण
एक दिन, मेरे काम पूरा कर लेने के बाद, सहकर्मियों ने मुझे उनके साथ बाहर चलने के लिए कहा। मैंने सोचा कि मैं लंबे समय से उनके साथ खाने-पीने नहीं गया हूँ और मेरा जीवन कितना नीरस हो गया है। मुझे लगा कि उनके साथ बाहर जाना और थोड़ी देर के लिए मन बहलाना बहुत अच्छा रहेगा। इसलिए, मैं उनके साथ बाहर चला गया। उस शाम घर आने के बाद, मैंने अपने दिल को शांत किया और विचार किया: "मैं अब परमेश्वर में विश्वास करता हूँ, लेकिन क्या अविश्वासियों की तरह मेरा इस तरह चरित्रहीन जीवन जीना, परमेश्वर को आनंद देगा? एक ईसाई को ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए।" इसलिए मैं परमेश्वर के सामने प्रार्थना करने गया: "हे परमेश्वर! मैं अब और पतित होना नहीं चाहता, लेकिन मैं प्रलोभन से खुद को छुड़ा नहीं पा रहा हूँ। कृपया इन भौतिक इच्छाओं और प्रलोभनों से उबरने में मेरी मदद करें।" बाद में, मैंने परमेश्वर के वचनों को पढ़ा, "ऐसी गन्दी जगह में जन्म लेकर, मनुष्य समाज के द्वारा बुरी तरह संक्रमित किया गया है, वह सामंती नैतिकता से प्रभावित किया गया है, और उसे "उच्च शिक्षा के संस्थानों" में सिखाया गया है। पिछड़ी सोच, भ्रष्ट नैतिकता, जीवन पर मतलबी दृष्टिकोण, जीने के लिए तिरस्कार-योग्य दर्शन, बिल्कुल बेकार अस्तित्व, पतित जीवन शैली और रिवाज—इन सभी चीज़ों ने मनुष्य के हृदय में गंभीर रूप से घुसपैठ कर ली है, और उसकी अंतरात्मा को बुरी तरह खोखला कर दिया है और उस पर गंभीर प्रहार किया है। फलस्वरूप, मनुष्य परमेश्वर से और अधिक दूर हो गया है, और परमेश्वर का और अधिक विरोधी हो गया है। दिन-प्रतिदिन मनुष्य का स्वभाव और अधिक शातिर बन रहा है, और एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो स्वेच्छा से परमेश्वर के लिए कुछ भी त्याग करे, एक भी व्यक्ति नहीं जो स्वेच्छा से परमेश्वर की आज्ञा का पालन करे, इसके अलावा, न ही एक भी व्यक्ति ऐसा है जो स्वेच्छा से परमेश्वर के प्रकटन की खोज करे। इसकी बजाय, इंसान शैतान की प्रभुता में रहकर, कीचड़ की धरती पर बस सुख-सुविधा में लगा रहता है और खुद को देह के भ्रष्टाचार को सौंप देता है। सत्य को सुनने के बाद भी, जो लोग अन्धकार में जीते हैं, इसे अभ्यास में लाने का कोई विचार नहीं करते, यदि वे परमेश्वर के प्रकटन को देख लेते हैं तो इसके बावजूद उसे खोजने की ओर उन्मुख नहीं होते हैं। इतनी पथभ्रष्ट मानवजाति को उद्धार का मौका कैसे मिल सकता है? इतनी पतित मानवजाति प्रकाश में कैसे जी सकती है?"
परमेश्वर के वचनों से, मुझे समझ में आया कि मैं परमेश्वर में विश्वास कर पाने के बाद भी क्यों अपने सहकर्मियों के प्रलोभन को सह नहीं पाया था, और क्यों मेरा दिल अभी भी उनके साथ ऐसा चरित्रहीन जीवन व्यतीत करने में आनंदित होता है: इसका कारण समाज में फैली बुरी प्रवृत्ति है। समाज में सभी तरह की प्रचलित कहावतें, जैसे कि: "हर दिन का भरपूर आनंद लो, क्योंकि ज़िन्दगी बहुत छोटी है," "ज़िन्दगी छोटी है, मज़े करो जब तक कर सकते हो," जैसी त्रुटियुक्त जीवन सूक्तियों ने मेरे दिल में जडें जमा लीं थीं। मेरा मानना था कि लोगों को जीवन में भौतिक सुखों का पीछा करना चाहिए और खाने, पीने और मज़े करने पर ध्यान लगाना चाहिए, मैं सोचता था कि केवल इस तरह का जीवन लोगों को खुशी दे सकता है और उन्हें नीरस दुनिया से ऊपर उठा सकता है, इससे एक व्यक्ति का पूरा जीवन व्यर्थ नहीं होगा। इन चीजों के बिना, जीवन पूरी तरह से व्यर्थ लगता था, और इसलिए अगर मैं कुछ समय के लिए खाने-पीने और मौज-मस्ती करने बाहर नहीं जाता था, तो मेरा दिल इसके लिए तरसने लगता था। चूँकि मेरे पास सत्य नहीं था और मुझे नहीं पता था कि सकारात्मक क्या है और नकारात्मक क्या है, इसलिए मैं इन बुरी प्रवृत्तियों में फंसकर पापी सुखों का आनंद ले रहा था और बेरोकटोक शराब पीने, अवनति और पतन का जीवन जी रहा था। भले ही मेरे देह ने क्षणिक आनंद प्राप्त किया था, लेकिन जीवन में आगे बढ़ने के सही लक्ष्यों के बिना, जीवन के अर्थ से अनजान, मेरी आत्मा खाली और दर्द से भरी थी। परमेश्वर के वचनों के खुलासे के माध्यम से, मैं अंत में समझ गया कि ये जीवन सूक्तियां शैतान की थीं, और इन विचारों और दृष्टिकोणों के अनुसार अपना जीवन जीने से मैं केवल अपनी दिशा खो सकता था। अगर मैं इस तरह से जीता रहा, तो मैं पाप के सुखों के लालच को एक सकारात्मक चीज मानता रहूँगा, मैं शारीरिक सुखों का अंधाधुंध पीछा करूँगा, ज्यादा से ज्यादा नीच होता जाउँगा और मेरा दिल सत्य का अनुसरण करने या जीवन में सही राह पर चलने वाला नहीं होगा। आखिर में, शैतान द्वारा मुझे नुकसान पहुंचाये जाने और भक्षण कर लिए जाने से मेरा अंत हो जायेगा। मामले की सच्चाई को देखने की अनुमति देने के लिए परमेश्वर का धन्यवाद।
मुझे जीवन की मेरी दिशा मिल गयी
मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा, "जब तुम जीवन के उन विभिन्न लक्ष्यों की, जिनकी लोग खोज करते हैं और जीवन जीने के उनके अनेक अलग-अलग तरीकों की बार-बार जाँच-पड़ताल करोगे और सावधानीपूर्वक उनका विश्लेषण करोगे, तो तुम यह पाओगे कि उनमें से एक भी सृजनकर्ता के उस मूल इरादे के अनुरूप नहीं है जिसके साथ उसने मानवजाति का सृजन किया था। वे सभी, लोगों को सृजनकर्ता की संप्रभुता और उसकी देखभाल से दूर करते हैं; ये सभी ऐसे जाल हैं जो लोगों को भ्रष्ट बनने पर मजबूर करते हैं, और जो उन्हें नरक की ओर ले जाते हैं। जब तुम इस बात को समझ लेते हो, उसके पश्चात्, तुम्हारा काम है जीवन के अपने पुराने दृष्टिकोण को अपने से अलग करना, अलग-अलग तरह के जालों से दूर रहना, परमेश्वर को तुम्हारे जीवन को अपने हाथ में लेने देना और तुम्हारे लिए व्यवस्थाएं करने देना; तुम्हारा काम है केवल परमेश्वर के आयोजनों और मार्गदर्शन के प्रति समर्पण करने का प्रयास करना, अपनी कोई निजी पसंद मत रखना, और एक ऐसा इंसान बनना जो परमेश्वर की आराधना करता है।" परमेश्वर के वचनों ने मुझे जीवन में चलने की दिशा दिखाई। चूँकि मैं पहले ही समझ गया था कि भौतिक सुखों का पीछा करना पतन का मार्ग है, इसलिए मैं जानता था कि मुझे इसे छोड़ देना चाहिए, परमेश्वर का अनुसरण करना चाहिए, सत्य का पालन करने एवं परमेश्वर की आराधना करने के मार्ग पर चलना चाहिए। तब मैंने समाज की बुरी प्रवृत्तियों से दूर रहने, फिर कभी पहले जैसा चरित्रहीन जीवन व्यतीत न करने और लगन से सत्य का अनुसरण करने का संकल्प लिया।
कुछ समय बीत जाने के बाद, मध्य शरद ऋतु समारोह का समय निकट ही था, मेरे दोस्तों और रिश्तेदारों ने मुझे फोन किया और उनके साथ बाहर चलने के लिए मुझसे आग्रह किया। इससे पहले, मैं इस तरह की छुट्टी पर दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ खाने, पीने और मौज-मस्ती करने के मौके पर उछल पड़ता था, और मैं खुद को संतुष्ट करने के लिए सब कुछ करता था, मेरा विश्वास था कि इससे मुझे बहुत खुशी होगी। हालाँकि, अब मैं समझने लगा हूँ कि केवल सत्य का पालन करने से, मैं शांति और स्थिरता प्राप्त कर सकता हूँ। अगर मैं उनके साथ बाहर गया, तो मुझे केवल क्षणिक शारीरिक आनंद मिलेगा लेकिन यह मेरे दिल को परमेश्वर से दूर कर देगा, और मैं बाद में भी खालीपन महसूस करूंगा। इसलिए, मैंने विनम्रता से मना कर दिया और फिर परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के और अपने भाई-बहनों के साथ सत्य की संगति करने के लिए लिए कलीसिया चला गया। इससे मुझे खुशी और स्थिरता की ऐसी भावना का एहसास हुआ जिसे मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया था।
मैंने सोचा कि कैसे मैंने पहले एक गलत रास्ता चुना था, समाज की बुरी प्रवृत्तियों में लिप्त हो गया था, पाप के सुखों का लालच करता था, बेहद नीच होता जा रहा था और एक इंसान होने के आभास को खो दिया था, यह सब मेरे खालीपन को भरने की खातिर था। यह परमेश्वर की दया थी जो मुझे उनके परिवार में वापस ले आयी थी। परमेश्वर द्वारा व्यक्त किये गये सत्यों को स्वीकार करने के बाद ही मुझे इन बुरी सामाजिक प्रवृत्तियों और शैतान की जीवन-सूक्तियों के बारे में कुछ समझ प्राप्त हुई, मुझे यह पता चला कि सच्ची खुशी क्या है और हमारे जीवन में अनुसरण करने हेतु सबसे मूल्यवान क्या है, इससे मुझे जीवन में सही दिशा मिली। मैं परमेश्वर को अपना हार्दिक धन्यवाद अर्पित करता हूँ।
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