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एक सच्चा परमेश्वर कौन है?

आजकल, ज्यादातर लोगों को विश्वास है कि परमेश्वर है और वे उसमें आस्था रखते हैं। वे उस परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, जो उनके दिल में होता है। इसलिए समय के साथ, लोग अलग-अलग जगहों में, बहुत-से अलग-अलग परमेश्वरों में विश्वास करने लगे हैं, शायद सैकड़ों-हजारों परमेश्वर। क्या इतने ज्यादा हो सकते हैं? बिल्कुल नहीं। फिर कितने परमेश्वर हैं, और सच्चा परमेश्वर कौन है? कोई कितना भी प्रसिद्ध या महान क्यों न हो, इसका स्पष्ट उत्तर नहीं दे सकता, क्योंकि कोई भी इंसान न तो परमेश्वर को देख सकता है, न ही उससे सीधे संपर्क कर सकता है। हर इंसान का जीवनकाल छोटा होता है, वे जो अनुभव करते या जिसके साक्षी होते हैं, वह बहुत सीमित होता है, तो फिर परमेश्वर की स्पष्ट गवाही कौन दे सकता है? जो दे सकते हैं, वे बहुत थोड़े होते हैं, विरले ही मिलते हैं। हम जानते हैं कि बाइबल एक शास्त्रीय और आधिकारिक कृति है, जो परमेश्वर की गवाही देती है। इसमें गवाही है कि परमेश्वर ने सबका सृजन किया, और मनुष्य का सृजन करने के बाद से, वह हमेशा पृथ्वी पर उसके जीवन को रास्ता दिखाता रहा है। उसने मनुष्य के लिए व्यवस्थाएं और आदेश जारी किए, बाइबल में देहधारी परमेश्वर की भी गवाही है कि प्रभु यीशु मनुष्य को छुटकारा दिलाने के लिए आया। इसमें भविष्यवाणी है कि मनुष्य को पूरी तरह से बचाने की खातिर, परमेश्वर न्याय कार्य करने के लिए अंत के दिनों में वापस आयेगा, और मनुष्य को एक सुंदर मंजिल तक ले जाएगा। इसलिए यह स्पष्ट है कि बाइबल में जिस परमेश्वर की गवाही दी गई है, वही सृष्टिकर्ता है, एकमात्र सच्चा परमेश्वर है। इसकी बुनियाद बहुत मजबूत है। कुछ लोग पूछते हैं, "बाइबल जिस परमेश्वर की गवाही देता है, वह वास्तव में कौन है? उसका नाम क्या है? हम उसे किस नाम से पुकारें?" उसे यहोवा कहा गया, बाद में देहधारी रूप में उसे प्रभु यीशु कहा गया, फिर प्रकाशित वाक्य में, अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान के आने की भविष्यवाणी है—सर्वशक्तिमान परमेश्वर। यही वह परमेश्वर है, जिसने स्वर्ग, पृथ्वी, सभी चीजों और मनुष्य का सृजन किया। वही एकमात्र परमेश्वर है, जो हमेशा से मनुष्य को रास्ता दिखाकर बचाता रहा है। वह अनंत है, सबका अधिपति है, हर चीज पर उसका शासन है। तो इस सृष्टिकर्ता और एकमात्र सच्चे परमेश्वर के अलावा, कोई भी दूसरा झूठा परमेश्वर है। शैतान एक झूठा परमेश्वर है, और उसका अनुसरण करने वाले पतित दूतों ने, बिना अपवाद के, लोगों को धोखा देने के लिए, परमेश्वर का रूप धर लिया है। जैसे कि बुद्ध, ग्वानयिन, और ताओ धर्म के जेड सम्राट, सभी झूठे परमेश्वर हैं। और भी बहुत-से झूठे परमेश्वर हैं, जो प्राचीन सम्राटों द्वारा नियुक्त किए गए, और दूसरे धर्मों के परमेश्वरों की चर्चा की जरूरत ही नहीं है। तो हम ऐसा क्यों कह रहे हैं कि ये झूठे परमेश्वर हैं? इसलिए कि उन्होंने स्वर्ग और पृथ्वी की सभी चीजों या मनुष्य का सृजन नहीं किया। यह इस बात का सबसे ठोस प्रमाण है। वे सभी जो सब चीजों का सृजन करने और हर चीज पर शासन करने में सक्षम नहीं हैं, झूठे परमेश्वर हैं। क्या आपको लगता है कि कोई झूठा परमेश्वर यह दावा करने की हिम्मत करेगा कि सभी चीजों का सृजन उसने किया? नहीं। क्या मनुष्य ऐसा करेगा? हिम्मत ही नहीं करेगा। क्या वह दावा करने की हिम्मत करेगा कि वह मनुष्य को शैतान से बचा सकता है? बिल्कुल नहीं। जब सच में विपत्तियाँ आएंगी, तो किसी झूठे परमेश्वर से विनती करने पर क्या वह प्रकट होगा? वह प्रकट नहीं हो पाएगा—वह छिप जाएगा, सही है? तो हम देख सकते हैं कि झूठे परमेश्वर मनुष्य को नहीं बचा सकते, उनमें विश्वास रखना बेकार की आस्था है। उनमें विश्वास रखने से आप फंस जाएंगे और तबाही में धंस कर खत्म हो जाएंगे। यही कारण है कि सबका सृजन करने वाले प्रभु, सच्चे परमेश्वर के निर्धारण के महत्व पर, जितना भी कहो कम है।

आइए देखें, उत्पत्ति 1:1 में क्या कहा गया है, "आदि में परमेश्‍वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्‍टि की।" यह बाइबल का सबसे पहला पद है। बहुत प्रामाणिक और अर्थपूर्ण है। इसमें परमेश्वर द्वारा स्वर्ग, पृथ्वी और मनुष्य के साथ सभी चीजों के सृजन का रहस्य बताया गया है। उत्पत्ति में, परमेश्वर द्वारा अपने वचनों से प्रकाश और वायु, साथ ही सभी प्राणियों और वनस्पतियों के सृजन, और अपने खुद के हाथों से मनुष्य के सृजन की बात भी दर्ज है। परमेश्वर ने सब चीजों का सृजन किया, वही सबका पोषण कर उन्हें बनाए रखता है। वह हमारे जिंदा रहने के लिए सब चीजें देता है। मनुष्य और दूसरे जीव परमेश्वर द्वारा निर्धारित व्यवस्थाओं के तहत जिंदा रहते हैं। यही सृजनकर्ता की अनोखी सामर्थ्य और उसका अधिकार है, एक ऐसी चीज, जिसे कोई भी इंसान, देवदूत या शैतान की दुष्ट आत्मा हासिल नहीं कर सकती। हम यह पक्के तौर पर कह सकते हैं कि सभी चीजों और मनुष्य का सृजन करने में सक्षम अगर कोई है, तो वह एकमात्र सृजनकर्ता, एकमात्र सच्चा परमेश्वर ही है।

एक सच्चा परमेश्वर कौन है?

परमेश्वर ने सभी चीजों का सृजन किया, उसने मनुष्य का सृजन किया; वह हर चीज पर शासन करता है। साथ ही वह सभी मनुष्यों की अगुआई करके उन्हें बचाता है। आइए देखें, बाइबल में क्या कहा गया है। शुरुआत में परमेश्वर ने मनुष्य का सृजन किया, फिर आदम और हव्वा के शैतान के प्रलोभन में आने के बाद से, मनुष्य पाप में जीता रहा। आदम और हव्वा की संतानें पृथ्वी पर कई गुना बढ़ गईं, लेकिन ये संतानें जीवन को जीने या सच्चे परमेश्वर की आराधना करने का तरीका नहीं जानती थीं। अपनी प्रबंधन योजना के आधार पर, परमेश्वर ने व्यवस्था के युग का अपना कार्य शुरू किया, व्यवस्थाएं और आदेश जारी किए, मनुष्य को बताया कि पाप क्या है, उसे क्या करना और क्या नहीं करना चाहिए, ताकि वह जान सके कि कैसे जिये और कैसे यहोवा परमेश्वर की आराधना करे। इस तरह से परमेश्वर ने मनुष्य को जीवन के लिए सही मार्ग दिखाया। व्यवस्था के युग के दौरान, थोड़ा बाद में, मनुष्य को शैतान ने इतनी गहराई से भ्रष्ट कर दिया था कि वह व्यवस्था का पालन नहीं कर सका, और ज्यादा-से-ज्यादा पाप करने लगा। पापबलि भी देने के लिए पर्याप्त नहीं थीं। अगर यूं ही चलता रहता तो व्यवस्थाओं के तहत पूरी मानव जाति दंडित होकर मौत को प्यारी हो जाती। मनुष्य को बचाने के लिए परमेश्वर ने प्रभु यीशु के रूप में देहधारण किया। हमारी पापबलि के रूप में उसे खुद मनुष्य के पाप ढोते हुए सूली पर चढ़ा दिया गया, इसके बाद, किसी को भी अपने पापों के लिए पापबलि नहीं देनी पड़ी। जब भी उन्होंने विश्वास रखा, पाप स्वीकार करके प्रभु के सामने प्रायश्चित किया, तो उनके पाप माफ कर दिए गए, और वे परमेश्वर के सामने आकर उसके अनुग्रह की हर चीज का आनंद ले सके। प्रभु यीशु की पापबलि के बिना, व्यवस्था के तहत सबको दंडित करके मार दिया गया होता, फिर किसी भी हाल में आज हम यहाँ नहीं होते। तो हम जानते हैं कि प्रभु यीशु ही पूरी मनुष्य जाति को छुटकारा दिलाने वाला है, एकमात्र सच्चे परमेश्वर का प्रकटन है। उसका आत्मा ही यहोवा परमेश्वर का आत्मा है। वह देहधारी यहोवा परमेश्वर का प्रकटन है। आसान शब्दों में कहें, तो मनुष्य को छुटकारा दिलाने के लिए यहोवा परमेश्वर दुनिया में मनुष्य रूप में आया, और वही है एकमात्र सच्चा परमेश्वर।

अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु ने छुटकारे का कार्य किया और प्रभु में विश्वास रखने वाले हर किसी के पापों को माफ कर दिया गया। पापों की माफी से मिलनेवाले सुकून, उल्लास और परमेश्वर द्वारा मनुष्य को दिए गए समूचे अनुग्रह का आनंद लेने के बावजूद, मनुष्य ने कभी भी पाप करना नहीं छोड़ा। लोग पाप करने, उसे स्वीकार करने और फिर से पाप करने के कुचक्र में जीते रहते हैं। उन्होंने पवित्रता हासिल नहीं की है, न ही वे परमेश्वर के राज्य में प्रवेश के लायक बन पाए हैं। प्रभु यीशु ने वादा किया कि वह मनुष्य को पूरी तरह बचाने के लिए, उसे शुद्ध करने और अपने राज्य में ले जाने के लिए अंत के दिनों में फिर से आयेगा। अपने वादे के अनुसार, परमेश्वर अब देहधारी होकर खुद पृथ्वी पर आया है। वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर है, जो सत्य व्यक्त करके अंत के दिनों का न्याय कार्य कर रहा है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने करोड़ों वचन कहे हैं, जिनमें बताया गया है कि परमेश्वर की 6,000-वर्षीय प्रबंधन योजना का रहस्य क्या है, मनुष्य के पाप करने और परमेश्वर का विरोध करने के मूल में क्या है, शैतान मनुष्य को कैसे भ्रष्ट करता है और परमेश्वर मनुष्य को बचाने के लिए कैसे चरण-दर-चरण कार्य करता है, शुद्ध होने और उसके राज्य में प्रवेश करने के लिए आस्था का अभ्यास कैसे करें, परमेश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण कैसे प्राप्त करें, और हर किस्म के इंसान का परिणाम और अंतिम मंजिल क्या होती है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्यों में बहुत संपन्न विविधता है—कोई कमी नहीं है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्य को देखकर हम यह पुष्टि कर सकते हैं कि वही है लौट कर आया हुआ प्रभु यीशु, क्योंकि प्रभु ने भविष्यवाणी की थी, "जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा" (यूहन्ना 16:13)। क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर का इतने अधिक सत्य प्रकट करना प्रभु यीशु की भविष्यवाणी का पूरा होना नहीं है? क्या इससे साबित नहीं होता कि वही देहधारी होकर लौटे हुए प्रभु यीशु का आत्मा है? इस तरह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर और प्रभु यीशु एक ही आत्मा हैं, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर मनुष्य को पूरी तरह बचाने के लिए पृथ्वी पर आया हुआ उद्धारकर्ता है। एकमात्र स्वयं परमेश्वर ही सत्य व्यक्त कर सकता है। परमेश्वर को छोड़कर, कोई भी इंसान यह नहीं कर सकता। मनुष्य के पूरे इतिहास के दौरान, कोई भी इंसान सत्य व्यक्त नहीं कर पाया है। उन सब प्रसिद्ध और महान लोगों और परमेश्वर का रूप धरनेवाले उन दानवों और दुष्ट आत्माओं की कही हुई बातें भ्रांतियाँ और गुमराह करनेवाले झूठ हैं, जिनमें सत्य का एक भी शब्द नहीं है। सिर्फ स्वयं परमेश्वर ही सत्य व्यक्त करके मनुष्य को बचा सकता है। इसमें कोई शक नहीं है।

परमेश्वर ने स्वर्ग, पृथ्वी, सब चीजों और मनुष्य का सृजन किया। इस पूरे समय में, वह मनुष्य को रास्ता दिखाने और उसे बचाने के लिए बोल रहा है और कार्य कर रहा है। हम विश्वास के साथ कह सकते हैं कि जिस सृष्टिकर्ता ने स्वर्ग, धरती और सारी चीजें बनाई हैं और जो मनुष्य की नियति को नियंत्रित करता है, वही एकमात्र सच्चा परमेश्वर है। परमेश्वर ने ही मनुष्य का सृजन किया, सिर्फ परमेश्वर ही मनुष्य के भाग्य और उसकी उन्नति से सरोकार रखता है। संसार के सृजन का कार्य पूरा करने के बाद से, परमेश्वर का ध्यान मनुष्य पर केन्द्रित रहा है, वह हमारी चरवाही कर रहा है, हमारे लिए आवश्यक सभी चीजों को प्रदान कर रहा है, हमें भरपूर पोषण प्रदान कर रहा है। हमें बनाने के बाद, वह न तो हमसे अलग हुआ और न ही हमारी ओर से लापरवाह हुआ। जब मनुष्य आधिकारिक रूप से पृथ्वी पर रहने लगा, तो परमेश्वर ने व्यवस्था के युग का अपना कार्य शुरू किया, पृथ्वी पर मनुष्य के जीवन के मार्गदर्शन के लिए आज्ञाएँ जारी कीं। जब मनुष्य ने शैतान के हाथों बुरी तरह से भ्रष्ट होकर व्यवस्था का पालन करना छोड़ दिया, जब हर कोई व्यवस्था के अधीन निंदित होकर इस मुकाम पर पहुँच गया जहाँ से उसके लिए लौटकर आना मुश्किल हो गया, तो परमेश्वर स्वयं देहधारण करके प्रभु यीशु बना और उसने खुद छुटकारे का कार्य पूरा किया ताकि मनुष्य को उसके पापों के लिए माफ किया जा सके, और वह परमेश्वर द्वारा प्रदान किए गए अनुग्रह और आशीषों का आनंद ले सके। जब वह युग समाप्त हो गया, तो परमेश्वर ने फिर से देहधारण किया, इस बार वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में आया ताकि वह अंत के दिनों में न्याय-कार्य कर सके, पूरी मानवता को पाप से और शैतान की ताकतों से पूरी तरह से बचा सके और मनुष्य को एक सुंदर गंतव्य में ले जा सके। हालाँकि परमेश्वर के कार्य के हर युग का एक अलग नाम होता है, और उसने अलग-अलग कार्य किए हैं, लेकिन सारे कार्य एक ही परमेश्वर द्वारा किए जाते हैं। वह एक ही आत्मा है और वही एकमात्र सच्चा परमेश्वर है। यह अकाट्य सत्य है। जैसे कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने कहा है, "परमेश्वर की संपूर्ण प्रबंधन योजना का कार्य व्यक्तिगत रूप से स्वयं परमेश्वर द्वारा किया जाता है। प्रथम चरण—संसार का सृजन—परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से किया गया था, और यदि ऐसा न किया जाता, तो कोई भी मनुष्य का सृजन कर पाने में सक्षम न हुआ होता; दूसरा चरण संपूर्ण मानव-जाति के छुटकारे का था, और उसे भी देहधारी परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से कार्यान्वित किया गया था; तीसरा चरण स्वत: स्पष्ट है : परमेश्वर के संपूर्ण कार्य के अंत को स्वयं परमेश्वर द्वारा किए जाने की और भी अधिक आवश्यकता है। संपूर्ण मानव-जाति के छुटकारे, उस पर विजय पाने, उसे प्राप्त करने, और उसे पूर्ण बनाने का समस्त कार्य स्वयं परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से किया जाता है। यदि वह व्यक्तिगत रूप से इस कार्य को न करता, तो मनुष्य द्वारा उसकी पहचान नहीं दर्शाई जा सकती थी, न ही उसका कार्य मनुष्य द्वारा किया जा सकता था। शैतान को हराने, मानव-जाति को प्राप्त करने, और मनुष्य को पृथ्वी पर एक सामान्य जीवन प्रदान करने के लिए वह व्यक्तिगत रूप से मनुष्य की अगुआई करता है और व्यक्तिगत रूप से मनुष्यों के बीच कार्य करता है; अपनी संपूर्ण प्रबधंन योजना के वास्ते और अपने संपूर्ण कार्य के लिए उसे व्यक्तिगत रूप से इस कार्य को करना चाहिए" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'मनुष्य के सामान्य जीवन को बहाल करना और उसे एक अद्भुत मंज़िल पर ले जाना')। "आरंभ से आज तक किए गए कार्य के सभी तीन चरण स्वयं परमेश्वर के द्वारा किए गए थे और एक ही परमेश्वर के द्वारा किए गए थे। कार्य के तीन चरणों का तथ्य परमेश्वर की समस्त मानवजाति की अगुआई का तथ्य है, एक ऐसा तथ्य जिसे कोई नकार नहीं सकता। कार्य के तीन चरणों के अंत में, सभी चीजें उनके प्रकारों के आधार पर वर्गीकृत की जाएँगी और परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन लौट जाएँगी, क्योंकि संपूर्ण ब्रह्मांड में केवल इसी एक परमेश्वर का अस्तित्व है, और कोई दूसरे धर्म नहीं हैं। जो संसार का निर्माण करने में अक्षम है वह उसका अंत करने में भी अक्षम होगा, जबकि जिसने संसार की रचना की है वह उसका अंत करने में भी निश्चित रूप से समर्थ होगा। इसलिए, यदि कोई युग का अंत करने में असमर्थ है और केवल मानव के मस्तिष्क को विकसित करने में उसकी सहायता करने में सक्षम है, तो वह निश्चित रूप से परमेश्वर नहीं होगा, और निश्चित रूप से मानवजाति का प्रभु नहीं होगा। वह इस तरह के महान कार्य को करने में असमर्थ होगा; केवल एक ही है जो इस प्रकार का कार्य कर सकता है, और वे सभी जो यह कार्य करने में असमर्थ हैं, निश्चित रूप से शत्रु हैं, न कि परमेश्वर। सभी दुष्ट धर्म परमेश्वर के साथ असंगत हैं, और चूँकि वे परमेश्वर के साथ असंगत हैं, वे परमेश्वर के शत्रु हैं। समस्त कार्य केवल इसी एक सच्चे परमेश्वर द्वारा किया जाता है, और संपूर्ण ब्रह्मांड केवल इसी एक परमेश्वर द्वारा आदेशित किया जाता है। चाहे उसका इस्राएल का काम हो या चीन का, चाहे यह कार्य पवित्रात्मा द्वारा किया जाए या देह के द्वारा, किया सब कुछ परमेश्वर के द्वारा ही जाता है, किसी अन्य के द्वारा नहीं। बिल्कुल इसीलिए क्योंकि वह समस्त मानवजाति का परमेश्वर है और किसी भी परिस्थिति से बाधित हुए बिना, स्वतंत्र रूप से कार्य करता है—यह सभी दर्शनों में सबसे महान है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है')परमेश्वर के वचनों से हम समझ सकते हैं कि सिर्फ एक ही परमेश्वर है, और एक ही सृष्टिकर्ता, सिर्फ परमेश्वर ही सब चीजों का सृजन कर सकता है, मनुष्य के पूरे भाग्य पर राज कर सकता है, पृथ्वी पर मनुष्य के जीवन को रास्ता दिखा सकता है, उसे बचा सकता है और मनुष्य को एक सुंदर मंजिल का रास्ता दिखा सकता है। जैसा कि प्रकाशित वाक्य में कहा गया है, "मैं अल्फा और ओमेगा, पहला और अन्तिम, आदि और अन्त हूँ" (प्रकाशितवाक्य 22:13)। झूठे परमेश्वर मनुष्य को बचाना और एक युग को समाप्त करना तो दूर रहा, सारी चीजों का सृजन भी नहीं कर सकते। झूठा परमेश्वर वह कार्य कभी नहीं कर सकता जो सच्चा परमेश्वर करता है। एक झूठा परमेश्वर लोगों को गुमराह और भ्रष्ट करने के लिए सिर्फ कुछ चिन्ह और चमत्कार दिखा सकता है, या कुछ भ्रांतियाँ और विधर्मी बातें फैला सकता है। वह लोगों को अपनी तरफ करने के लिए छोटे-मोटे लाभ दे सकता है, लोगों से अपने लिए अगरबत्तियाँ जलवाकर परमेश्वर के रूप में आराधना करवा सकता है। लेकिन झूठे परमेश्वर पाप को माफ नहीं कर सकते या लोगों की भ्रष्टता शुद्ध करने के लिए सत्य व्यक्त नहीं कर सकते। ख़ास तौर से वे मनुष्य को शैतान की ताकतों से नहीं बचा सकते। झूठे परमेश्वरों द्वारा सच्चे परमेश्वर का वेश धरना यह दिखाता है कि वे बहुत ज्यादा दुष्ट और बेशर्म हैं, अंत में वे परमेश्वर द्वारा बेड़ियों में बांधकर अथाह खाई में फेंक दिये जाएंगे—उन्हें दंडित किया जाएगा। जो भी परमेश्वर का विरोध करते हैं, परमेश्वर उन्हें अंत में मिटा देगा।

इसलिए, सच्चे परमेश्वर को खोजने के लिए आपको उसकी खोज करनी चाहिए, जिसने सब चीजों का सृजन किया हो, जो सब चीजों पर शासन करता हो, जो सत्य व्यक्त करके मनुष्य को बचाने के लिए कार्य कर सकता हो। यही अहम बात है। इस एकमात्र परमेश्वर में विश्वास रखकर उसकी आराधना करना, उसके द्वारा व्यक्त सत्य को स्वीकार करके, उस सत्य को अपने जीवन में उतारकर आप अपने पापों से मुक्त हो सकते हैं, परमेश्वर का उद्धार पा सकते हैं और सुंदर मंजिल में प्रवेश कर सकते हैं। अगर आप नहीं जानते कि सच्चा परमेश्वर कौन है, तो आपको खोजने और जांच-पड़ताल करने की जरूरत है। हम झूठे परमेश्वरों द्वारा कुछ अद्भुत चमत्कार दिखाने या कुछ रोग दूर करने के कारण उन्हें सच्चा परमेश्वर नहीं मान सकते। यह एक वर्जना होगी, क्योंकि वे सच्चे परमेश्वर नहीं हैं। झूठे परमेश्वर की आराधना करना ईशनिंदा है, यह परमेश्वर के विरुद्ध कार्य करना है, सच्चे परमेश्वर को धोखा देना है। परमेश्वर का स्वभाव मनुष्य का कोई भी अपमान सहन नहीं करता, इसलिए झूठे परमेश्वर में विश्वास रखने वाले सभी लोग परमेश्वर द्वारा दंडित होकर नष्ट कर दिए जाएंगे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "जब तक पुराने संसार का अस्तित्व बना रहता है, मैं अपना प्रचण्ड रोष इसके राष्ट्रों के ऊपर पूरी ज़ोर से बरसाऊंगा, समूचे ब्रह्माण्ड में खुलेआम अपनी प्रशासनिक आज्ञाएँ लागू करूँगा, और जो कोई उनका उल्लंघन करेगा, उनको ताड़ना दूँगा: जैसे ही मैं बोलने के लिए ब्रह्माण्ड की तरफ अपना चेहरा घुमाता हूँ, सारी मानवजाति मेरी आवाज़ सुनती है, और उसके उपरांत उन सभी कार्यों को देखती है जिन्हें मैंने समूचे ब्रह्माण्ड में गढ़ा है। वे जो मेरी इच्छा के विरूद्ध खड़े होते हैं, अर्थात् जो मनुष्य के कर्मों से मेरा विरोध करते हैं, वे मेरी ताड़ना के अधीन आएँगे। मैं स्वर्ग के असंख्य तारों को लूँगा और उन्हें फिर से नया कर दूँगा, और, मेरी बदौलत, सूर्य और चन्द्रमा नये हो जाएँगे—आकाश अब और वैसा नहीं रहेगा जैसा वह था और पृथ्वी पर बेशुमार चीज़ों को फिर से नया बना दिया जाएगा। मेरे वचनों के माध्यम से सभी पूर्ण हो जाएँगे। ब्रह्माण्ड के भीतर अनेक राष्ट्रों को नए सिरे से बाँटा जाएगा और उनका स्थान मेरा राज्य लेगा, जिससे पृथ्वी पर विद्यमान राष्ट्र हमेशा के लिए विलुप्त हो जाएँगे और एक राज्य बन जाएँगे जो मेरी आराधना करता है; पृथ्वी के सभी राष्ट्रों को नष्ट कर दिया जाएगा और उनका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। ब्रह्माण्ड के भीतर मनुष्यों में से उन सभी का, जो शैतान से संबंध रखते हैं, सर्वनाश कर दिया जाएगा, और वे सभी जो शैतान की आराधना करते हैं उन्हें मेरी जलती हुई आग के द्वारा धराशायी कर दिया जायेगा—अर्थात उनको छोड़कर जो अभी धारा के अन्तर्गत हैं, शेष सभी को राख में बदल दिया जाएगा। जब मैं बहुत-से लोगों को ताड़ना देता हूँ, तो वे जो धार्मिक संसार में हैं, मेरे कार्यों के द्वारा जीते जाने के उपरांत, भिन्न-भिन्न अंशों में, मेरे राज्य में लौट आएँगे, क्योंकि उन्होंने एक श्वेत बादल पर सवार पवित्र जन के आगमन को देख लिया होगा। सभी लोगों को उनकी किस्म के अनुसार अलग-अलग किया जाएगा, और वे अपने-अपने कार्यों के अनुरूप ताड़नाएँ प्राप्त करेंगे। वे सब जो मेरे विरुद्ध खड़े हुए हैं, नष्ट हो जाएँगे; जहाँ तक उनकी बात है, जिन्होंने पृथ्वी पर अपने कर्मों में मुझे शामिल नहीं किया है, उन्होंने जिस तरह अपने आपको दोषमुक्त किया है, उसके कारण वे पृथ्वी पर मेरे पुत्रों और मेरे लोगों के शासन के अधीन निरन्तर अस्तित्व में बने रहेंगे। मैं अपने आपको असंख्य लोगों और असंख्य राष्ट्रों के सामने प्रकट करूँगा, और अपनी वाणी से, पृथ्वी पर ज़ोर-ज़ोर से और ऊंचे तथा स्पष्ट स्वर में, अपने महा कार्य के पूरे होने की उद्घोषणा करूँगा, ताकि समस्त मानवजाति अपनी आँखों से देखे" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन' के 'अध्याय 26')

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