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प्रभु यीशु मनुष्य को छुटकारा दे चुका है, तो अंत के दिनों में लौटकर आने पर वह न्याय का कार्य क्यों करेगा?

2,000 साल पहले देहधारी प्रभु यीशु को मनुष्य को पापों से छुटकारा देने के लिए, एक पाप-बलि के रूप में सूली पर चढ़ा दिया गया था, और उसने छुटकारे का कार्य पूरा कर दिया था। उसने वचन दिया था कि वह अंत के दिनों में वापस लौटकर आएगा, इसलिए सभी विश्वासी प्रभु के आगमन की चौकस होकर प्रतीक्षा करते रहे हैं, वे सोचते हैं कि प्रभु के विश्वासी होने के नाते उनके सारे पाप माफ़ कर दिए गए हैं, और वह उन्हें अब पापी नहीं समझता। वे समझते हैं कि वे पूरी तरह से तैयार हैं, इसलिए उन्हें बस प्रभु के वापस आने की प्रतीक्षा करनी है, ताकि वे उसके राज्य में ले जाए जा सकें। इसीलिए लोग हमेशा आकाश में आँखें गड़ाए रहते हैं, उस दिन की प्रतीक्षा करते हुए जब वह बादलों पर सवार होकर एकाएक प्रकट होगा और खुद से मिलने के लिए उन्हें ऊपर स्वर्ग में ले जाएगा। लेकिन यह देख उन्हें बड़ा अचरज होता है कि वे महाविपत्तियों को शुरू होते तो देख रहे हैं, लेकिन अब तक वे प्रभु का स्वागत नहीं कर पाए हैं। कोई नहीं जानता कि असल में क्या चल रहा है। भले ही उन्होंने प्रभु को बादल पर सवार होकर आते हुए न देखा हो, मगर उन्होंने चमकती पूर्वी बिजली की सुसंगत गवाही देखी है कि वह देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में लौट आया है। उसने सत्य व्यक्त किए हैं, और परमेश्वर के घर से शुरू करके न्याय का कार्य कर रहा है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकटन और कार्य ने संपूर्ण धार्मिक संसार में हलचल मचा दी है और इसकी जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई है। देहधारी परमेश्वर का न्याय-कार्य लोगों की धारणाओं और कल्पनाओं से बिल्कुल अलग है। बहुत-से लोग पूछ रहे हैं : प्रभु यीशु छुटकारे का अपना महान कार्य पूरा कर चुका है, और परमेश्वर ने हमें धार्मिक कहा है, तो फिर अंत के दिनों में उसे न्याय-कार्य करने की क्या जरूरत है? उन्हें लगता है, यह संभव नहीं है। धार्मिक समुदाय तो सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य पर गौर करने से इनकार करते हुए उसका प्रतिरोध और निंदा भी कर रहा है, जबकि सारे लोग महाविपत्तियों से बच निकलने की आशा से उत्सुकता से प्रभु के बादल पर आने और खुद को राज्य में आरोहित किए जाने की बाट जोह रहे हैं। मगर, परमेश्वर का कार्य विशाल और प्रबल है और उसे कोई रोक नहीं सकता। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने विजेताओं का एक समूह बनाया है और विपत्तियाँ शुरू हो चुकी हैं, जबकि धार्मिक वर्ग रोते और दांत पीसते हुए विपत्ति में डूब रहा है। विपत्तियों से पहले उन्हें स्वर्गारोहित नहीं किया गया, इसलिए उन्हें आशा है कि यह या तो विपत्ति के दौरान होगा या फिर बाद में। उन्होंने विपातियों से पहले प्रभु का स्वागत क्यों नहीं किया? उन्होंने कहाँ गलती की? क्या प्रभु यीशु ने विपत्तियों से पहले विश्वासियों को अपने राज्य में न ले जाकर अपना वचन तोड़ दिया, और उन्हें बुरी तरह निराश कर दिया? या लोगों ने बाइबल की भविष्यवाणियों का गलत अर्थ निकाला, उन्होंने परमेश्वर की वाणी सुनने से इनकार करके, अपनी धारणाओं पर भरोसा किया कि प्रभु एक बादल पर सवार होकर आएगा, और इस तरह प्रभु का स्वागत करने से चूक गए और विपत्ति में डूब गए? अब सभी लोग बड़ी उलझन में हैं कि प्रभु बादल पर सवार होकर क्यों नहीं आया और विपत्तियों से पहले विश्वासियों को स्वर्गारोहित क्यों नहीं किया। आज मैं मनुष्य के पुत्र के रूप में देहधारी परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय-कार्य के बारे में अपनी व्यक्तिगत समझ साझा करूँगा।

प्रभु यीशु मनुष्य को छुटकारा दे चुका है, तो अंत के दिनों में लौटकर आने पर वह न्याय का कार्य क्यों करेगा?

बाइबल से परिचित सभी लोग समझते हैं कि बाइबल की अधिकतर भविष्यवाणियों में दो बातें बताई गई हैं : प्रभु लौटकर आएगा और वह अंत के दिनों में न्याय का कार्य करेगा। हालांकि ये दोनों बातें दरअसल एक ही हैं, अर्थात् परमेश्वर अपना न्याय-कार्य करने के लिए अंत के दिनों में देहधारी बनकर आएगा। कुछ लोग यह जरूर पूछेंगे कि क्या ऐसा कहने के पीछे बाइबल का कोई आधार है। हाँ, बिल्कुल है। इन चीजों के बारे में बाइबल में अनेक भविष्यवाणियाँ हैं—200 से भी ज्यादा। आइए, एक उदाहरण पर नजर डालें, जैसा कि पुराने नियम में है : "वह जाति जाति का न्याय करेगा, और देश देश के लोगों के झगड़ों को मिटाएगा" (यशायाह 2:4)। "क्योंकि वह आनेवाला है। वह पृथ्वी का न्याय करने को आनेवाला है, वह धर्म से जगत का, और सच्‍चाई से देश देश के लोगों का न्याय करेगा" (भजन संहिता 96:13)। नए नियम में भी कहा गया है : "क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्‍वर के लोगों का न्याय किया जाए" (1 पतरस 4:17)। प्रभु यीशु ने स्वयं भी भविष्यवाणी की कि वह अंत के दिनों में वापस आकर न्याय कार्य करेगा। प्रभु यीशु ने कहा था, "यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता; क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा" (यूहन्ना 12:47-48)। "पिता किसी का न्याय नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है" (यूहन्ना 5:22)। "वरन् उसे न्याय करने का भी अधिकार दिया है, इसलिये कि वह मनुष्य का पुत्र है" (यूहन्ना 5:27)। प्रकाशितवाक्य में भविष्यवाणी है : "उसने बड़े शब्द से कहा, 'परमेश्‍वर से डरो, और उसकी महिमा करो, क्योंकि उसके न्याय करने का समय आ पहुँचा है'" (प्रकाशितवाक्य 14:7)। इन भविष्यवाणियों में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि प्रभु मनुष्य के पुत्र के रूप में वापस आएगा और अंत के दिनों में न्याय का कार्य करेगा। इस बारे में कोई शक नहीं है। हम देख सकते हैं कि अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु ने स्पष्ट भविष्यवाणी की कि अंत के दिनों में वह अपना न्याय-कार्य करने के लिए मनुष्य के पुत्र के रूप में वापस आएगा। प्रकाशितवाक्य में स्पष्ट भविष्यवाणी की गई है, "क्योंकि उसके न्याय करने का समय आ पहुँचा है।" ये भविष्यवाणियाँ दर्शाती हैं कि प्रभु अंत के दिनों में मनुष्य के पुत्र के रूप में देहधारण कर रहा है, वह न्याय का कार्य करने के लिए हमारे बीच स्वयं आ रहा है। परमेश्वर ने बहुत पहले इसकी स्पष्ट योजना बना ली थी, इसे कोई नहीं नकार सकता। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने न्याय के कार्य के लिए सत्य व्यक्त किए हैं, उसने अनेक वचन बोले हैं और विजेताओं का एक समूह बनाया है। यह दर्शाता है कि ये भविष्यवाणियाँ पूरी तरह से साकार हो गई हैं। आइए, अब एक सामान्य धार्मिक विश्वास पर नजर डालें, कि प्रभु ने अपना छुटकारे का कार्य पूरा कर लिया है, इसलिए यह असंभव है कि वह अंत के दिनों में न्याय का कार्य करेगा। क्या बाइबल में इसका कोई आधार है? क्या प्रभु यीशु ने यह बात कही? बिल्कुल नहीं। ये विचार कुछ और नहीं, बल्कि इंसान की धारणाएँ और कल्पनाएँ हैं—ये खयाली पुलाव हैं। ये बाइबल की भविष्यवाणियों से बिल्कुल उल्टी चलती हैं, और परमेश्वर का कोई भी वचन इनका समर्थन नहीं करता। यह सोच बहुत मूर्खतापूर्ण है! लोग बाइबल में प्रभु के वचनों और भविष्यवाणियों को ईमानदारी से क्यों नहीं खोजते, इसके बजाय वे अपनी धारणाओं के चलते परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की आलोचना और निंदा करने पर क्यों उतारू हैं? क्या यह मनमानी और हेकड़ी नहीं है? बाइबल में मनुष्य के पुत्र के आने और अंत के दिनों में न्याय करने के बारे में अनेक भविष्यवाणियाँ हैं, तो लोग अपनी आँखों के सामने रखे पवित्रशास्त्र को क्यों नहीं देखते? जैसा कि बाइबल में कहा गया है, "तुम कानों से तो सुनोगे, पर समझोगे नहीं; और आँखों से तो देखोगे, पर तुम्हें न सूझेगा। क्योंकि इन लोगों का मन मोटा हो गया है, और वे कानों से ऊँचा सुनते हैं और उन्होंने अपनी आँखें मूंद ली हैं; कहीं ऐसा न हो कि वे आँखों से देखें, और कानों से सुनें और मन से समझें, और फिर जाएँ, और मैं उन्हें चंगा करूँ" (मत्ती 13:14-15)। बुद्धिमान लोगों को खोज और जाँच-पड़ताल करनी चाहिए कि परमेश्वर अंत के दिनों में न्याय का कार्य क्यों करता है, कार्य करने के लिए मनुष्य का पुत्र क्यों प्रकट होता है। बाइबल की भविष्यवाणियों को सही तरह से समझने से पहले हमें इन सवालों के जवाब देने होंगे।

आइए, अब इस बात पर गौर करें कि प्रभु मनुष्य को छुटकारा देने के बाद न्याय के कार्य के लिए फिर से क्यों देहधारी हुआ है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर पहले ही इस रहस्य पर से परदा उठा चुका है। आइए देखें, इस बारे में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में क्या कहा गया है। "यद्यपि यीशु ने मनुष्यों के बीच अधिक कार्य किया, फिर भी उसने केवल समस्त मानवजाति की मुक्ति का कार्य पूरा किया और वह मनुष्य की पाप-बलि बना; उसने मनुष्य को उसके समस्त भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाने के लिए यीशु को न केवल पाप-बलि बनने और मनुष्य के पाप वहन करने की आवश्यकता थी, बल्कि मनुष्य को उसके शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए स्वभाव से मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़ा कार्य करने की आवश्यकता थी। और इसलिए, अब जबकि मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिया गया है, परमेश्वर मनुष्य को नए युग में ले जाने के लिए वापस देह में लौट आया है, और उसने ताड़ना एवं न्याय का कार्य आरंभ कर दिया है। यह कार्य मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में ले गया है। वे सब, जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे, उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़े आशीष प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे और सत्य, मार्ग और जीवन प्राप्त करेंगे" ("वचन देह में प्रकट होता है" की 'प्रस्तावना')। "क्योंकि मनुष्य को छुटकारा दिए जाने और उसके पाप क्षमा किए जाने को केवल इतना ही माना जा सकता है कि परमेश्वर मनुष्य के अपराधों का स्मरण नहीं करता और उसके साथ अपराधों के अनुसार व्यवहार नहीं करता। किंतु जब मनुष्य को, जो कि देह में रहता है, पाप से मुक्त नहीं किया गया है, तो वह निरंतर अपना भ्रष्ट शैतानी स्वभाव प्रकट करते हुए केवल पाप करता रह सकता है। यही वह जीवन है, जो मनुष्य जीता है—पाप करने और क्षमा किए जाने का एक अंतहीन चक्र। अधिकतर मनुष्य दिन में सिर्फ इसलिए पाप करते हैं, ताकि शाम को उन्हें स्वीकार कर सकें। इस प्रकार, भले ही पापबलि मनुष्य के लिए हमेशा के लिए प्रभावी हो, फिर भी वह मनुष्य को पाप से बचाने में सक्षम नहीं होगी। उद्धार का केवल आधा कार्य ही पूरा किया गया है, क्योंकि मनुष्य में अभी भी भ्रष्ट स्वभाव है। ... मनुष्य के लिए अपने पापों से अवगत होना आसान नहीं है; उसके पास अपनी गहरी जमी हुई प्रकृति को पहचानने का कोई उपाय नहीं है, और उसे यह परिणाम प्राप्त करने के लिए वचन के न्याय पर भरोसा करना चाहिए। केवल इसी प्रकार से मनुष्य इस बिंदु से आगे धीरे-धीरे बदल सकता है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'देहधारण का रहस्य (4)')। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन बहुत स्पष्ट हैं, है न? प्रभु यीशु ने अनुग्रह के युग में मनुष्य को छुटकारा दिया, तो फिर वह न्याय के कार्य के लिए अंत के दिनों में क्यों लौटकर आएगा? इसलिए कि प्रभु यीशु ने सिर्फ छुटकारे का कार्य पूरा किया था, जो परमेश्वर के उद्धार-कार्य का सिर्फ आधा ही था। इससे मनुष्य को पापों से छुटकारा मिला, जिससे हम इस योग्य बन गए कि प्रभु से प्रार्थना कर उसकी संगति पा सकें, उसके अनुग्रह और आशीषों का आनंद ले सकें। हमारे पापों को माफ़ कर दिया गया है और हम पवित्र आत्मा द्वारा दी गई शांति और खुशी का आनंद लेते हैं, मगर हम अभी भी हर समय पाप करते रहते हैं, हम पाप करने, उन्हें स्वीकार करने और फिर से पाप करने के कुचक्र में फँसे हुए हैं। कोई भी पाप के बंधनों और जंजीरों से बच नहीं सकता, बल्कि हम उनके साथ संघर्ष करते हुए जीते हैं। यह दुखदायी है, और इससे आजाद होने का कोई रास्ता नहीं है। यह दर्शाता है कि हालांकि प्रभु ने हमारे पापों को माफ़ कर दिया, मगर हमारी पापी प्रकृति अभी भी मौजूद है; हमारा भ्रष्ट स्वभाव अभी भी मौजूद है। हम किसी भी पल परमेश्वर के प्रति विद्रोह, उसका प्रतिरोध और उसकी आलोचना कर सकते हैं। इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता। चाहे कोई कितने भी लंबे समय से विश्वासी हो, वह पाप से बचकर पवित्रता हासिल नहीं कर सकता, परमेश्वर के सामने आने लायक नहीं बन सकता। यह प्रभु की इस भविष्यवाणी को पूरा करता है : "जो मुझ से, 'हे प्रभु! हे प्रभु!' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है। उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, 'हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्‍टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत से आश्‍चर्यकर्म नहीं किए?' तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, 'मैं ने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ'" (मत्ती 7:21-23)। इब्रानियों 12:14 में कहा गया है, "पवित्रता जिसके बिना कोई इंसान प्रभु को कभी नहीं देखेगा।" हम यहाँ देख सकते हैं कि सिर्फ वही लोग स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं, जो परमेश्वर की इच्छा का पालन करते हैं। लेकिन प्रभु ने ऐसा क्यों कहा कि जो लोग उसके नाम पर प्रचार करते हैं और दानवों को बाहर निकालते हैं, वे दुष्कर्मी हैं? यह बात बहुत-से लोगों को उलझन में डाल सकती है। इसका अर्थ यह है कि वे अपनी आस्था की घोषणा तो करते हैं, मगर वे पाप करते रहते हैं और उन्होंने सच में प्रायश्चित नहीं किया होता। उन्होंने प्रभु के नाम पर चाहे जितना प्रचार किया हो, ओझाई की हो, कितने भी चमत्कार किए हों, उनके पास प्रभु की स्वीकृति नहीं है। प्रभु की नजरों में ऐसे लोग दुष्कर्मी हैं। वे प्रभु के नाम पर चीजें कर सकते हैं, मगर यह प्रभु का अपमान है और वह इससे घृणा करता है। क्या ये लोग, जिनके पाप माफ़ कर दिए गए हैं, राज्य में प्रवेश के लायक हैं? बिल्कुल नहीं। वे अभी भी उस दिन का सपना देख रहे हैं, जब प्रभु आकर उन्हें आकाश में ले जाएगा। यह इंसानी कल्पना है। स्पष्ट रूप से, प्रभु यीशु द्वारा अपनी वापसी की भविष्यवाणी का यह अर्थ नहीं है कि वह लोगों को सीधे स्वर्ग में खुद से मिलने के लिए ले जाएगा, बल्कि यह है कि वह लोगों की पापी प्रकृति और भ्रष्टता का न्याय कर उन्हें शुद्ध करेगा, वह हमें पाप और शैतान की ताकतों से पूरी तरह से बचाएगा, और हमें एक ख़ूबसूरत मंजिल तक ले जाएगा। परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय-कार्य का यही अर्थ है। अब मुझे यकीन है कि हम सब समझ गए होंगे कि अनुग्रह के युग में छुटकारे का कार्य सिर्फ हमें पापों से छुटकारा देने के लिए था, इसलिए हमारे पापों को माफ कर दिया गया। इससे उद्धार-कार्य का आधा भाग ही पूरा हो पाया, और परमेश्वर अंत के दिनों में कार्य का उससे भी बड़ा कदम पूरा कर रहा है। प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य की बुनियाद पर, मनुष्य को पापों से पूरी तरह शुद्ध करने और हमें शैतान की ताकतों से आजाद करने के लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों के न्याय-कार्य के लिए सत्य व्यक्त कर रहा है। यहाँ हम देख सकते हैं कि प्रभु यीशु का छुटकारे का कार्य पूर्णत: परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय-कार्य का मार्ग प्रशस्त करना था। यह बुनियादी काम था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का न्याय-कार्य मनुष्य को बचाने की परमेश्वर की प्रबंधन योजना का सबसे अहम कदम है, और इससे युग का समापन होगा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय-कार्य को स्वीकार किए बिना सिर्फ प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य को स्वीकार करने का अर्थ है आस्था के मार्ग पर आधे रास्ते में ही रुक जाना, और अंतिम कदम सबसे अहम है, जो हमारा भाग्य और परिणाम तय करेगा। इस कदम को सही ढंग से न अपनाना आधे रास्ते में ही प्रयास छोड़ देना और पहले के सभी प्रयासों को व्यर्थ कर देना है। मेरे ख्याल से सभी समझते हैं कि यात्रा का अंतिम भाग अक्सर सबसे मुश्किल होता है। आपकी आस्था के मार्ग का यह अंतिम चरण सबसे महत्वपूर्ण है, जो आपके भाग्य का फैसला करेगा। विश्वासियों के लिए हमारा परिणाम और भाग्य जो तय करता है, वह है परमेश्वर का अंत के दिनों का न्याय-कार्य। अगर लोग इसे स्वीकार नहीं करेंगे, तो परमेश्वर उन्हें हटा देगा; यह सच में एक त्रासदी है। इसलिए हम सुनिश्चित हो सकते हैं कि कोई कितने भी लंबे समय से विश्वासी रहा हो, अगर वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार नहीं करता, तो परमेश्वर उन्हें हटा देगा, और वे मूर्ख कुँआरियाँ होंगी, जो रोते और दांत पीसते हुए विपत्ति में डूब जाएंगी। बहुत-से पुराने अविश्वासियों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को सीधे स्वीकार कर लिया है, और परमेश्वर के अंत के दिनों के उद्धार को हासिल कर लिया है। वे सौभाग्यशाली व्यक्ति हैं, और वे उन विश्वासियों की भरपाई कर देते हैं, जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार करने से मना करते हैं और हटा दिए जाते हैं। क्या विश्वासियों के लिए यह सबसे बड़ा पछतावा नहीं होगा? इतने वर्षों तक प्रभु की प्रतीक्षा करने के बाद, वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर को न्याय-कार्य करते हुए और अनेक सत्य व्यक्त करते हुए देखते हैं, मगर उसे स्वीकार करने से इनकार करते हैं, और इसके बजाय अड़ियल होकर प्रभु के बादल पर सवार होकर आने की प्रतीक्षा करते हैं, और परमेश्वर से इसकी शर्त लगाते हैं। आखिरकार वे उद्धार का अपना मौक़ा गँवा देंगे। क्या किसी विश्वासी के लिए यह भयानक रूप से दुखदायी नहीं होगा?

कुछ लोग पूछ सकते हैं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर मनुष्य को पूरी तरह से बचाने के लिए न्याय-कार्य और शुद्धिकरण कैसे करता है। इससे जुड़े अनेक सत्यों के बारे में संगति करने को बहुत-कुछ है, इसलिए आज हम इस पर थोड़ी-सी ही बात कर सकते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "अंत के दिनों का मसीह मनुष्य को सिखाने, उसके सार को उजागर करने और उसके वचनों और कर्मों की चीर-फाड़ करने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्यों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को परमेश्वर का आज्ञापालन किस प्रकार करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मनुष्यता का जीवन जीना चाहिए, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और उसका स्वभाव, इत्यादि। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खास तौर पर वे वचन, जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर का तिरस्कार करता है, इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरुद्ध शत्रु-बल है। अपने न्याय का कार्य करने में परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता; बल्कि वह लंबे समय तक उसे उजागर करता है, उससे निपटता है और उसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने, निपटने और काट-छाँट करने की इन तमाम विधियों को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि उस सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसका मनुष्य में सर्वथा अभाव है। केवल इस तरह की विधियाँ ही न्याय कही जा सकती हैं; केवल इस तरह के न्याय द्वारा ही मनुष्य को वशीभूत और परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इतना ही नहीं, बल्कि मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है')। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन बहुत स्पष्ट हैं कि अंत के दिनों में उसका न्याय सत्य व्यक्त कर ख़ास तौर से मनुष्य के भ्रष्ट सार का न्याय करना है, हमारी भ्रष्टता को उजागर करना है, ताकि हम आत्मचिंतन कर खुद को जान सकें, और अपनी भ्रष्टता को समझ सकें। फिर हम पछताते हैं, खुद से घृणा करते हैं, दैहिक सुखों से घृणा करते हैं, जो सच्चे प्रायश्चित की ओर ले जाता है। यह न्याय-कार्य लोगों को समझाने के लिए सिर्फ कुछ सत्य व्यक्त करके नहीं किया जाता, बल्कि परमेश्वर सत्य के अनेक पहलू व्यक्त करता है। ये सभी सत्य मनुष्य का न्याय करने, उसे उजागर करने, उसकी काँट-छाँट करने और उससे निपटने के लिए हैं, साथ ही हमारा परीक्षण और शोधन करने के लिए हैं। ख़ास तौर से परमेश्वर के वे वचन, जो मनुष्य के भ्रष्ट सार का न्याय कर उसे उजागर करते हैं, मनुष्य के शैतानी स्वभाव, उसकी प्रकृति और सार को तीक्ष्णता से प्रकट करते हैं। पढ़ने में ये वचन बहुत मर्मस्पर्शी हैं, और सीधे दिल में उतर जाते हैं। हम समझ जाते हैं कि हम कितनी गहराई तक भ्रष्ट हैं, यहाँ तक कि हम इंसान कहलाने लायक भी नहीं हैं। हम कहीं छिप नहीं सकते, और परमेश्वर के क्रोध से बचने के लिए हम अपना सिर पृथ्वी की दरारों में घुसा लेना चाहते हैं। अपनी भ्रष्टता के सत्य को समझने के लिए इस न्याय से होकर गुजरना ही एकमात्र मार्ग है, फिर हम पछतावे में डूब जाते हैं, और जान लेते हैं कि हम परमेश्वर के आशीषों और उसके राज्य में ले जाए जाने लायक नहीं हैं। हम इतने भ्रष्ट हैं कि हम परमेश्वर का दर्शन करने लायक नहीं हैं। परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के बिना हम कभी भी खुद को जान नहीं पाएँगे, बल्कि अपने पापों को स्वीकार करने के लिए झूठी बातें कहते रहेंगे, यह जाने बिना कि हम पूरी तरह से शैतानी स्वभाव के साथ जी रहे हैं। हम परमेश्वर के प्रति विद्रोह और उसका प्रतिरोध करते रहेंगे, और फिर भी सोचेंगे कि हम स्वर्ग जा सकेंगे। यह पूरी तरह से आत्मज्ञान से रहित, बेशर्म और भ्रामक सोच है। हममें से जिन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय और शुद्धिकरण का अनुभव किया है, उन्होंने खुद यह ज्ञान पाया है कि उसके वचन सत्य और अनमोल हैं! सिर्फ परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्य ही हमारी भ्रष्टता को शुद्ध कर सकते हैं और हमें पाप से बचा सकते हैं। सिर्फ उसके वचनों के न्याय का अनुभव ही हमारे भ्रष्ट स्वभाव को शुद्ध करके बदल सकता है, ताकि हम ऐसे बन सकें कि परमेश्वर की इच्छा का पालन कर राज्य में प्रवेश करने लायक हो जाएं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का न्याय-कार्य ही हमारे लिए मार्ग, सत्य और जीवन लाता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य के जरिये ही हम सत्य और जीवन पा सकते हैं, और परमेश्वर के सामने जी सकते हैं, जो कि परमेश्वर का बहुत बड़ा आशीष है!

हमारी संगति के इस मुकाम पर, मेरे विचार से हममें से अधिकतर यह समझते हैं कि मनुष्य को बचाने का परमेश्वर का कार्य उतना सरल नहीं है, जितना हमने सोचा था। यह सिर्फ हमें छुटकारा देना और हमारे पापों को माफ़ करना ही नहीं है, बल्कि उसका उद्धार-कार्य हमें बुराई और पाप से पूरी तरह से बचाने के लिए है, हमें शैतान की जकड़ से बचाने के लिए है, ताकि हम परमेश्वर के सामने समर्पण कर उसकी आराधना कर सकें। न्याय-कार्य ही इसे हासिल करने का एकमात्र उपाय है। अब सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने अनेक सत्य व्यक्त किए हैं, और वह न्याय-कार्य कर रहा है। उसका यह कार्य बहुत बड़ा और अतुलनीय है! सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों ने पूरी दुनिया में हलचल मचा दी है और ब्रह्मांड को हिलाकर रख दिया है। अंत के दिनों में परमेश्वर के महान कार्य पर सबकी नजर है, और इसने पूरी दुनिया को चौंका दिया है। सत्य से प्रेम करने वाले सभी लोग परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की जांच-पड़ताल कर रहे हैं, और सिर्फ वही लोग, जो सत्य से प्रेम नहीं करते, आँखें फेरकर परमेश्वर के कार्य को अनदेखा कर रहे हैं। लेकिन परमेश्वर के कार्य पर कभी भी धार्मिक दुनिया या अविश्वासियों का असर नहीं होगा। वह आगे बढ़ता रहेगा, कभी रुकेगा नहीं। पलक झपकते ही, महाविपत्तियाँ शुरू हो चुकी हैं, और परमेश्वर का अंत के दिनों का न्याय-कार्य अपने चरम पर है। उसके अनुयायियों के लिए यह परमेश्वर के घर से शुरू होने वाला न्याय है, जो कुछ लोगों को पूर्ण कर रहा है और बहुतों को हटा रहा है। दूसरों के लिए यह परमेश्वर का प्रतिरोध करने वाले दुष्कर्मियों को धीरे-धीरे संभालने के लिए विपत्तियों का प्रयोग करना, और शैतान की कमान से चल रहे इस बुरे युग का पूर्ण समापन करना। फिर हम एक नए युग का स्वागत कर उसमें प्रवेश करेंगे, जिसमें पृथ्वी पर मसीह का राज्य साकार होगा। जो लोग अभी भी प्रभु के बादल पर सवार होकर आने के लिए लालायित हैं, वे विपत्ति में डूब जाएंगे, रोयेंगे और दांत पीसेंगे, और प्रकाशितवाक्य की भविष्यवाणी साकार हो जाएगी, "देखो, वह बादलों के साथ आनेवाला है, और हर एक आँख उसे देखेगी, वरन् जिन्होंने उसे बेधा था वे भी उसे देखेंगे, और पृथ्वी के सारे कुल उसके कारण छाती पीटेंगे" (प्रकाशितवाक्य 1:7)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने यह भी कहा, "बहुत से लोगों को शायद इसकी परवाह न हो कि मैं क्या कहता हूँ, किंतु मैं ऐसे हर तथाकथित संत को, जो यीशु का अनुसरण करते हैं, बताना चाहता हूँ कि जब तुम लोग यीशु को एक श्वेत बादल पर स्वर्ग से उतरते अपनी आँखों से देखोगे, तो यह धार्मिकता के सूर्य का सार्वजनिक प्रकटन होगा। शायद वह तुम्हारे लिए एक बड़ी उत्तेजना का समय होगा, मगर तुम्हें पता होना चाहिए कि जिस समय तुम यीशु को स्वर्ग से उतरते देखोगे, यही वह समय भी होगा जब तुम दंडित किए जाने के लिए नीचे नरक में जाओगे। वह परमेश्वर की प्रबंधन योजना की समाप्ति का समय होगा, और वह समय होगा, जब परमेश्वर सज्जन को पुरस्कार और दुष्ट को दंड देगा। क्योंकि परमेश्वर का न्याय मनुष्य के देखने से पहले ही समाप्त हो चुका होगा, जब सिर्फ़ सत्य की अभिव्यक्ति होगी। वे जो सत्य को स्वीकार करते हैं और संकेतों की खोज नहीं करते और इस प्रकार शुद्ध कर दिए गए हैं, वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने लौट चुके होंगे और सृष्टिकर्ता के आलिंगन में प्रवेश कर चुके होंगे। सिर्फ़ वे जो इस विश्वास में बने रहते हैं कि 'ऐसा यीशु जो श्वेत बादल पर सवारी नहीं करता, एक झूठा मसीह है' अनंत दंड के अधीन कर दिए जाएँगे, क्योंकि वे सिर्फ़ उस यीशु में विश्वास करते हैं जो संकेत प्रदर्शित करता है, पर उस यीशु को स्वीकार नहीं करते, जो कड़े न्याय की घोषणा करता है और जीवन और सच्चा मार्ग प्रकट करता है। इसलिए केवल यही हो सकता है कि जब यीशु खुलेआम श्वेत बादल पर वापस लौटे, तो वह उनके साथ निपटे" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'जब तक तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे, परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नया बना चुका होगा')

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