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हमारे पाप माफ हो गए हैं—प्रभु जब लौटेगा तो क्या हमें सीधे अपने राज्य में ले जाएगा?

आपदाएँ बढ़ती ही जा रही हैं, सभी विश्वासी बड़ी बेसब्री से उद्धारकर्ता के आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, उनमें प्रभु से मिलने के लिए नींद में ही आकाश में ऊपर उठाए जाने और तीव्र होती आपदाओं के दुख से बचने की तड़प है। वे इतने आत्मविश्वास से प्रतीक्षा क्यों कर रहे हैं कि प्रभु यीशु अवतरित होगा और मिलने के लिए उन्हें स्वर्गारोहित करेगा? उनका मानना है कि जब प्रभु यीशु में आस्था के कारण उनके पाप क्षमा कर दिए गए हैं, तो प्रभु उन्हें पापी के रूप में नहीं देखता, उनके पास ज़रूरत की हर चीज़ है और प्रभु के आने पर उन्हें सीधे राज्य में ले जाया जाएगा। लेकिन बहुतों के लिए उलझन की बात यह है कि बड़ी आपदाएँ आ चुकी हैं, तो प्रभु अब तक क्यों नहीं आया? बहुत से लोग यह सोच रहे हैं कि प्रभु आएगा भी या नहीं। अगर नहीं आएगा, तो क्या इसका अर्थ यह नहीं होगा कि वे किसी भी समय विपत्ति में पड़कर मर सकते हैं? बहुत से पादरी अब कहने लगे हैं कि प्रभु या तो आपदाओं के बीच में आएगा या अंत में, उन्हें सूझ नहीं रहा कि इस बात को कैसे समझाएँ। लेकिन क्या यह सही है? धार्मिक जगत ने प्रभु का स्वागत नहीं किया है, लेकिन क्या इसका मतलब है कि वह नहीं आया है? हम सब प्रभु के इस वादे को जानते हैं कि आपदाओं से पहले फिलाडेल्फिया कलीसिया को आरोहित किया जाएगा और वह उन्हें आपदाओं के कष्ट से बचाएगा। क्या प्रभु वाकई अपना वादा तोड़ देगा? बिल्कुल नहीं। यह सच है कि प्रभु विश्वासियों को स्वर्ग में ले जाने के लिए बादल पर नहीं आया है, जैसा कि लोग मानते हैं, लेकिन हमें पता है कि चमकती पूर्वी बिजली लगातार गवाही दे रही है कि वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में पहले ही लौट आया है, बहुत से सत्य व्यक्त कर रहा है और परमेश्वर के घर से शुरू करके न्याय का कार्य कर रहा है। सभी संप्रदायों के सत्य-प्रेमी लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में परमेश्वर की वाणी सुनकर उसकी ओर मुड़ गए हैं, वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने लाए गए हैं, प्रतिदिन उसके वचन खाते-पीते हैं, मेमने के विवाह-भोज में शामिल होते हैं। उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय और शुद्धिकरण का अनुभव किया है, शानदार गवाही दी है। वे परमेश्वर की उपस्थिति में रहकर आनंद से उसकी स्तुति करते हैं। आपदाओं को लेकर धार्मिक जगत की असीम भय की स्थिति और उनकी स्थिति में दिन-रात का अंतर है। बहुत से विश्वासी सोच रहे हैं, क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर जिसकी गवाही चमकती पूर्वी बिजली देती है लौटकर आया प्रभु है? क्या प्रभु सच में अंत के दिनों में न्याय-कार्य का एक चरण पूरा कर रहा है? लेकिन बहुतों को अभी भी संदेह है, जैसे, "प्रभु ने मेरे पाप पहले ही क्षमा कर दिए हैं, अब वह मुझे पापी नहीं मानता। जब वो लौटेगा तो उसे मुझे सीधे स्वर्ग ले जाना चाहिए। वह मुझे सीधे स्वर्गारोहित करने के बजाय, अंत के दिनों में न्याय-कार्य का चरण क्यों पूरा करेगा?" आइए, आज इस विषय पर थोड़ा विचार करें। क्या हमारे पाप क्षमा होने का अर्थ है कि हम राज्य में प्रवेश कर सकते हैं?

पहले देखते हैं कि इस विचार का बाइबल में कोई आधार है भी या नहीं कि क्षमा पाए लोग सीधे राज्य में प्रवेश कर सकते हैं। क्या इसके समर्थन में प्रभु के कोई वचन हैं? प्रभु यीशु ने कब कहा कि जिनके पाप क्षमा कर दिए गए हैं वे सीधे स्वर्ग के राज्य में जा सकते हैं? न ही पवित्र आत्मा ने यह कहा है कि उन्हें सीधे राज्य में प्रवेश करने की अनुमति मिल जाएगी। जब प्रमाण के रूप में न तो प्रभु के ऐसे कोई वचन हैं और न ही बाइबल में कोई आधार है, तो लोगों को इतना यकीन क्यों है कि प्रभु के आने पर उन्हें स्वर्गारोहित किया जाएगा? ये अर्थहीन बात है। स्वर्ग के राज्य में कौन प्रवेश कर सकता है, इस बारे में प्रभु ने स्पष्ट कहा है : "जो मुझ से, 'हे प्रभु! हे प्रभु!' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है" (मत्ती 7:21)। इससे हम निश्चित हो सकते हैं कि क्षमा अपने आप में राज्य में प्रवेश करने के लिए काफी नहीं है। वो काफी क्यों नहीं है? मुख्यत:, पाप क्षमा किए जाने का अर्थ यह नहीं है कि आप शुद्ध हो गए हैं, कि आप परमेश्वर को समर्पित हैं, या तुम परमेश्वर की इच्छा पूरी करते हैं। हमने साफ तौर पर देखा है कि जिन विश्वासियों के पाप क्षमा कर दिए गए हैं, वो भी झूठ बोलते रहते हैं, धोखा देते हैं, कुटिल और धोखेबाज बने रहते हैं। वे अहंकारी हो जाते हैं, बाइबल का थोड़ा-सा ज्ञान होते ही किसी की नहीं सुनते। वे सत्ता और मुनाफे के लिए लड़ते हैं, पाप में जीते हैं और खुद को इससे मुक्त नहीं कर पाते। इससे साफ ज़ाहिर है कि क्षमा किए जाने के बावजूद, लोग मलिन और भ्रष्ट बने रहकर हर समय पाप में लिप्त रहते हैं। वे न तो सत्य स्वीकार पाते हैं, न ही उसके प्रति समर्पित हो पाते हैं, बल्कि परमेश्वर की आलोचना और विरोध करते हैं। फरीसियों की ही तरह, वे प्रभु का तिरस्कार, उसकी आलोचना और निन्दा करते हैं, वे तो उसे फिर से सूली पर चढ़ा देते हैं। इससे साबित होता है कि इंसान के पाप भले ही क्षमा कर दिए गए हैं, लेकिन हम अब भी मलिन और भ्रष्ट हैं, और हमारा भ्रष्ट सार परमेश्वर-विरोधी है। परमेश्वर के वचन कहते हैं, "इसलिये तुम पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ" (लैव्यव्यवस्था 11:45)। "पवित्रता जिसके बिना कोई इंसान प्रभु को कभी नहीं देखेगा" (इब्रानियों 12:14)। इसलिए, पाप में जीने वाले लोग राज्य के योग्य नहीं होते—इसमें कोई संदेह नहीं है, यह पूरी तरह से परमेश्वर की धार्मिकता और पवित्र स्वभाव से तय होता है। क्या ऐसा कोई विश्वासी है जो यह दावा करे कि वह पाप-मुक्त है, कि वह अब पाप नहीं करता और पवित्रता हासिल कर चुका है? ऐसा कोई नहीं है। यहाँ तक कि ऐसे महान, प्रसिद्ध आध्यात्मिक लोग भी जिन्होंने कई आध्यात्मिक लेख लिखे हैं, यह दावा नहीं करते कि वे पाप त्यागकर पवित्र बन गए हैं। दरअसल, सभी विश्वासी एक-से हैं, दिन में पाप करते हैं, रात को स्वीकार करते हैं, वे पाप में बुरी तरह संघर्षरत हैं। वे सब पाप के बंधन में फँसे होने का दर्द अनुभव करते हैं। इससे क्या ज़ाहिर होता है? इससे ज़ाहिर होता है कि जिनके पाप क्षमा कर दिए गए हैं, वे भी पाप-मुक्त होकर पवित्र नहीं बने हैं, तो हम यकीनी तौर पर कह सकते हैं कि वे स्वर्ग के राज्य के योग्य नहीं हैं। जैसा प्रभु यीशु ने कहा, "मैं तुम से सच सच कहता हूँ कि जो कोई पाप करता है वह पाप का दास है। दास सदा घर में नहीं रहता; पुत्र सदा रहता है" (यूहन्ना 8:34-35)। हम समझ सकते हैं कि बाइबल में इसका कोई आधार नहीं है कि पाप क्षमा कर दिए जाने पर आप राज्य में प्रवेश कर सकते हैं, यह केवल इंसानी धारणा है।

ऐसे में, बहुत से लोगों के मन में पहला सवाल होता है कि अगर इससे हमें स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं मिल सकता, तो फिर कैसे मिलेगा? राज्य में प्रवेश का मार्ग कौन-सा है? प्रभु यीशु ने कहा था, "परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है" (मत्ती 7:21)। निस्संदेह, यही प्रवेश का मार्ग है। तो हम कैसे परमेश्वर की इच्छा पूरी करके राज्य में प्रवेश कर सकते हैं? दरअसल, प्रभु यीशु ने बहुत पहले ही हमें प्रवेश का मार्ग बता दिया था। आइए प्रभु यीशु की भविष्यवाणियाँ पढ़कर इसे बेहतर समझें। प्रभु यीशु ने कहा था,"मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। "सत्य के द्वारा उन्हें पवित्र कर : तेरा वचन सत्य है" (यूहन्ना 17:17)। "यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता; क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा" (यूहन्ना 12:47-48)। "पिता किसी का न्याय नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है" (यूहन्ना 5:22)। प्रभु यीशु ने कई बार अपनी वापसी की भविष्यवाणी की है, ये पद उस कार्य की भविष्यवाणियाँ हैं जो वह लौटने पर करेगा, यानी न्याय-कार्य करने के लिए अनेक सत्य व्यक्त करना, लोगों को सत्य में ले जाना, उन्हें पाप से और शैतान की ताकतों से बचाना, और अंततः हमें अपने राज्य में ले जाना ताकि हमें सुंदर गंतव्य प्राप्त हो। इसलिए हमें प्रभु के लौटने पर उसका न्याय-कार्य स्वीकारना होगा। सत्य प्राप्त होने तक, हम भ्रष्टता से पूरी तरह मुक्त नहीं हो सकते, न ही हमारी पापी प्रकृति दूर हो सकती है। पाप से मुक्त होने, पवित्र बनने और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश-योग्य होने का यही एकमात्र तरीका है। अपनी पापी प्रकृति से पूरी तरह मुक्त होने के लिए हमारे भ्रष्ट स्वभाव का शुद्ध होना आवश्यक है। शैतानी ताकतों से मुक्त होने, परमेश्वर को समर्पित होने और उसकी इच्छा पूरी करने के लिए हमें अपने भ्रष्ट स्वभावों को त्यागना होगा। वरना हमें राज्य में प्रवेश का कोई अधिकार नहीं है। इसलिए हम आश्वस्त हो सकते हैं कि अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय और ताड़ना से शुद्ध हुए लोग ही परमेश्वर की इच्छा पूरी करने वाले बन सकते हैं। इससे साबित होता है कि अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय और शुद्धिकरण को स्वीकारना ही राज्य में प्रवेश का एकमात्र मार्ग है। आइए इस बारे में परमेश्वर के कुछ वचन पढ़ें। "तुम लोगों जैसा पापी, जिसे परमेश्वर के द्वारा अभी-अभी छुड़ाया गया है, और जो परिवर्तित नहीं किया गया है, या सिद्ध नहीं बनाया गया है, क्या तुम परमेश्वर के हृदय के अनुसार हो सकते हो? तुम्हारे लिए, तुम जो कि अभी भी पुराने अहम् वाले हो, यह सत्य है कि तुम्हें यीशु के द्वारा बचाया गया था, और कि परमेश्वर द्वारा उद्धार की वजह से तुम्हें एक पापी के रूप में नहीं गिना जाता है, परन्तु इससे यह साबित नहीं होता है कि तुम पापपूर्ण नहीं हो, और अशुद्ध नहीं हो। यदि तुम्हें बदला नहीं गया तो तुम संत जैसे कैसे हो सकते हो? भीतर से, तुम अशुद्धता से घिरे हुए हो, स्वार्थी और कुटिल हो, मगर तब भी तुम यीशु के साथ अवतरण चाहते हो—क्या तुम इतने भाग्यशाली हो सकते हो? तुम परमेश्वर पर अपने विश्वास में एक कदम चूक गए हो: तुम्हें मात्र छुटकारा दिया गया है, परन्तु परिवर्तित नहीं किया गया है। तुम्हें परमेश्वर के हृदय के अनुसार होने के लिए, परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से तुम्हें परिवर्तित और शुद्ध करने का कार्य करना होगा; यदि तुम्हें सिर्फ छुटकारा दिया जाता है, तो तुम पवित्रता को प्राप्त करने में असमर्थ होंगे। इस तरह से तुम परमेश्वर के आशीषों में साझेदारी के अयोग्य होंगे, क्योंकि तुमने मनुष्य का प्रबंधन करने के परमेश्वर के कार्य के एक कदम का सुअवसर खो दिया है, जो कि परिवर्तित करने और सिद्ध बनाने का मुख्य कदम है। और इसलिए तुम, एक पापी जिसे अभी-अभी छुटकारा दिया गया है, परमेश्वर की विरासत को सीधे तौर पर उत्तराधिकार के रूप में पाने में असमर्थ हो" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'पदवियों और पहचान के सम्बन्ध में')। "यद्यपि यीशु ने मनुष्यों के बीच अधिक कार्य किया, फिर भी उसने केवल समस्त मानवजाति की मुक्ति का कार्य पूरा किया और वह मनुष्य की पाप-बलि बना; उसने मनुष्य को उसके समस्त भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाने के लिए यीशु को न केवल पाप-बलि बनने और मनुष्य के पाप वहन करने की आवश्यकता थी, बल्कि मनुष्य को उसके शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए स्वभाव से मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़ा कार्य करने की आवश्यकता थी। और इसलिए, अब जबकि मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिया गया है, परमेश्वर मनुष्य को नए युग में ले जाने के लिए वापस देह में लौट आया है, और उसने ताड़ना एवं न्याय का कार्य आरंभ कर दिया है। यह कार्य मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में ले गया है। वे सब, जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे, उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़े आशीष प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे और सत्य, मार्ग और जीवन प्राप्त करेंगे" ("वचन देह में प्रकट होता है" की 'प्रस्तावना')। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन एकदम स्पष्ट हैं। प्रभु यीशु ने अनुग्रह के युग में छुटकारे का कार्य किया। यह केवल लोगों के पाप क्षमा करने के लिए था, उद्धार का सिर्फ आधा ही काम हुआ था। केवल अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का न्याय-कार्य ही इंसान को शुद्ध करके बचा सकता है। लोगों को उसके द्वारा व्यक्त किए गए सत्य और उसके न्याय और ताड़ना को स्वीकारना चाहिए, तभी उनकी भ्रष्टता दूर कर उन्हें बदला जा सकता है और वे लोग परमेश्वर की आज्ञा और उसकी इच्छा मानने वाले बन सकते हैं, उसके राज्य के योग्य बन सकते हैं। दूसरे शब्दों में, उनके पास स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए पासपोर्ट होगा। हम कह सकते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का न्याय-कार्य इंसान को बचाने के लिए परमेश्वर के कार्य का सबसे निर्णायक और महत्वपूर्ण चरण है, यह चरण किसी व्यक्ति के राज्य में प्रवेश को तय करेगा। सबसे महत्वपूर्ण चरण और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय और शुद्धिकरण से चूकने का मतलब है, अपनी आस्था में पूरी तरह से नाकाम होना। चाहे तुम्हारी आस्था कितनी भी पुरानी हो, तुमने कितनी भी मेहनत या त्याग किया हो, सर्वशक्तिमान परमेश्वर को नकारने से, सब किया-धरा बेकार हो जाएगा, यह आधे रास्ते में हार मानने जैसा है। तुम राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे, और जीवनभर पछताओगे!

तो परमेश्वर इंसान को अपने राज्य में लाने, उसका न्याय और शुद्धिकरण करने और उसे बचाने के लिए कैसे कार्य करता है? आइए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ें : "अंत के दिनों का मसीह मनुष्य को सिखाने, उसके सार को उजागर करने और उसके वचनों और कर्मों की चीर-फाड़ करने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्यों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को परमेश्वर का आज्ञापालन किस प्रकार करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मनुष्यता का जीवन जीना चाहिए, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और उसका स्वभाव, इत्यादि। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खास तौर पर वे वचन, जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर का तिरस्कार करता है, इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरुद्ध शत्रु-बल है। अपने न्याय का कार्य करने में परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता; बल्कि वह लंबे समय तक उसे उजागर करता है, उससे निपटता है और उसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने, निपटने और काट-छाँट करने की इन तमाम विधियों को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि उस सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसका मनुष्य में सर्वथा अभाव है। केवल इस तरह की विधियाँ ही न्याय कही जा सकती हैं; केवल इस तरह के न्याय द्वारा ही मनुष्य को वशीभूत और परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इतना ही नहीं, बल्कि मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है')। जिन्होंने परमेश्वर के न्याय और ताड़ना का अनुभव किया है वो गहराई से समझते हैं कि अगर परमेश्वर के वचन हमारी भ्रष्टता और सार को उजागर न करें, तो हम कभी नहीं समझ पाएँगे कि हम कितने भ्रष्ट हैं, हमारी भ्रष्टता कितनी गंभीर है। जब तक परमेश्वर हमारा न्याय और काट-छाँट न करे, हमें ताड़ना देकर निपटारा और अनुशासित न करे, हम अपने भ्रष्ट स्वभाव को कभी नहीं छोड़ सकते और न ही कभी खुद को जान सकते हैं। यही वजह है कि इतने सारे विश्वासी पाप करते हैं, स्वीकारते हैं, स्वीकारते हैं फिर पाप करते हैं, पर यह नहीं देखते कि उनके पाप की असली वजह शैतान द्वारा उनका बुरी तरह से भ्रष्ट होना है। वो फिर भी इसी गलतफहमी में रहते हैं कि चूँकि उन्हें क्षमा कर दिया गया है, इसलिए वे सीधे स्वर्ग जा सकते हैं। यह अंधा और मूर्ख होना है, अपने बारे में न जानना है। सच्चा पश्चाताप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय और ताड़ना से ही आता है, परमेश्वर का भय मानना और बुराई से दूर रहना केवल परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को जानने से ही आता है। तभी हम परमेश्वर की आराधना कर उसे समर्पित हो सकते हैं, और उसकी इच्छा पूरी करने वाले बन सकते हैं। तुम इसे अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय का अनुभव करने और शुद्ध होने के बाद ही जान सकते हो।

शायद अब यह स्पष्ट हो गया है कि राज्य में प्रवेश का मार्ग बहुत ही ठोस और व्यावहारिक है, यह केवल क्षमा कर दिया जाना और प्रभु द्वारा आरोहित किए जाने की प्रतीक्षा करना और फिर सीधे स्वर्ग में ले जाया जाना नहीं है। यह यथार्थवादी सोच नहीं है—मात्र ख्याली पुलाव है। अगर हमें स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना है, तो सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार करना सबसे महत्वपूर्ण है ताकि हमारी भ्रष्टता दूर हो और हम परमेश्वर की इच्छा पूरी कर सकें। तब हम परमेश्वर की प्रतिज्ञा और आशीष पाने योग्य होंगे और उसके राज्य में ले जाए जाएँगे। अगर हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय के कार्य को नकारेंगे, तो हम न कभी सत्य प्राप्त पर पाएँगे, न जीवन, न ही कभी हमारी भ्रष्टता दूर होगी। यह कामना करना कि प्रभु हमें इस तरह स्वर्ग में ले जाए मूर्खों का काम है, वे लोग मूर्ख कुँवारियाँ हैं जो विपत्तियों में गिरेंगे, रोएँगे और अपने दाँत पीसेंगे। हम कह सकते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों का कार्य स्वीकारना उसके सिंहासन के सामने उठाया जाना है। हमें उसके द्वारा व्यक्त सत्य, उसके न्याय और ताड़ना को स्वीकारना है, अपनी भ्रष्टता दूर करके शुद्ध होना है, ताकि परमेश्वर हमें आपदाओं के दौरान बचाकर सुरक्षित रखे, और हम उसके द्वारा तैयार सुन्दर गंतव्य में प्रवेश करें। सत्य स्वीकारे बिना सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकारने का दिखावा करना, उसके न्याय और ताड़ना के प्रति समर्पित न होना, न तो सच्चा विश्वास है और न ही सत्य से प्रेम करने वाला बनना है। ऐसे लोगों को उजागर करके हटा दिया जाएगा। आइए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के एक और अंश के साथ समाप्त करें। "मसीह द्वारा बोले गए सत्य पर भरोसा किए बिना जो लोग जीवन प्राप्त करना चाहते हैं, वे पृथ्वी पर सबसे बेतुके लोग हैं, और जो मसीह द्वारा लाए गए जीवन के मार्ग को स्वीकार नहीं करते हैं, वे कोरी कल्पना में खोए हैं। और इसलिए मैं कहता हूँ कि वे लोग जो अंत के दिनों के मसीह को स्वीकार नहीं करते हैं सदा के लिए परमेश्वर उनसे घृणा करेगा। मसीह अंत के दिनों के दौरान राज्य में जाने के लिए मनुष्य का प्रवेशद्वार है, और ऐसा कोई नहीं जो उससे कन्नी काटकर जा सके। मसीह के माध्यम के अलावा किसी को भी परमेश्वर द्वारा पूर्ण नहीं बनाया जा सकता। तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, और इसलिए तुम्हें उसके वचनों को स्वीकार करना और उसके मार्ग का पालन करना चाहिए। सत्य को प्राप्त करने में या जीवन का पोषण स्वीकार करने में असमर्थ रहते हुए तुम केवल आशीष प्राप्त करने के बारे में नहीं सोच सकते हो। मसीह अंत के दिनों में आता है ताकि वह उसमें सच्चा विश्वास करने वाले सभी लोगों को जीवन प्रदान कर सके। उसका कार्य पुराने युग को समाप्त करने और नए युग में प्रवेश करने के लिए है, और उसका कार्य वह मार्ग है जिसे उन सभी लोगों को अपनाना चाहिए जो नए युग में प्रवेश करेंगे। यदि तुम उसे पहचानने में असमर्थ हो, और इसकी बजाय उसकी भर्त्सना, निंदा, या यहाँ तक कि उसे उत्पीड़ित करते हो, तो तुम्हें अनंतकाल तक जलाया जाना तय है और तुम परमेश्वर के राज्य में कभी प्रवेश नहीं करोगे। क्योंकि यह मसीह स्वयं पवित्र आत्मा की अभिव्यक्ति है, और परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, वह जिसे परमेश्वर ने पृथ्वी पर करने के लिए अपना कार्य सौंपा है। और इसलिए मैं कहता हूँ कि यदि तुम वह सब स्वीकार नहीं करते हो जो अंत के दिनों के मसीह के द्वारा किया जाता है, तो तुम पवित्र आत्मा की निंदा करते हो। पवित्र आत्मा की निंदा करने वालों को जो प्रतिशोध सहना होगा वह सभी के लिए स्वत: स्पष्ट है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है')

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