ऑनलाइन बैठक

मेन्‍यू

2 कुरिन्थियों 5

1क्योंकि हम जानते हैं, कि जब हमारा पृथ्वी पर का डेरा सरीखा घर* गिराया जाएगा तो हमें परमेश्‍वर की ओर से स्वर्ग पर एक ऐसा भवन मिलेगा, जो हाथों से बना हुआ घर नहीं परन्तु चिरस्थाई है। (इब्रा. 9:11, अय्यू. 4:19)

2इसमें तो हम कराहते, और बड़ी लालसा रखते हैं; कि अपने स्वर्गीय घर को पहन लें।

3कि इसके पहनने से हम नंगे न पाए जाएँ।

4और हम इस डेरे में रहते हुए बोझ से दबे कराहते रहते हैं; क्योंकि हम उतारना नहीं, वरन् और पहनना चाहते हैं, ताकि वह जो मरनहार है जीवन में डूब जाए।

5और जिस ने हमें इसी बात के लिये तैयार किया है वह परमेश्‍वर है, जिस ने हमें बयाने में आत्मा भी दिया है।

6इसलिए हम सदा ढाढ़स बाँधे रहते हैं और यह जानते हैं; कि जब तक हम देह में रहते हैं, तब तक प्रभु से अलग हैं।

7क्योंकि हम रूप को देखकर नहीं, पर विश्वास से चलते हैं।

8इसलिए हम ढाढ़स बाँधे रहते हैं, और देह से अलग होकर प्रभु के साथ रहना और भी उत्तम समझते हैं।

9इस कारण हमारे मन की उमंग यह है, कि चाहे साथ रहें, चाहे अलग रहें पर हम उसे भाते रहें।

10क्योंकि अवश्य है, कि हम सब का हाल मसीह के न्याय आसन के सामने खुल जाए, कि हर एक व्यक्ति अपने-अपने भले बुरे कामों का बदला जो उसने देह के द्वारा किए हों, पाए। (इफि. 6:8, मत्ती 16:27, सभो. 12:14)

11इसलिए प्रभु का भय मानकर हम लोगों को समझाते हैं और परमेश्‍वर पर हमारा हाल प्रगट है; और मेरी आशा यह है, कि तुम्हारे विवेक पर भी प्रगट हुआ होगा।

12हम फिर भी अपनी बड़ाई तुम्हारे सामने नहीं करते वरन् हम अपने विषय में तुम्हें घमण्ड करने का अवसर देते हैं, कि तुम उन्हें उत्तर दे सको, जो मन पर नहीं, वरन् दिखावटी बातों पर घमण्ड करते हैं।

13यदि हम बेसुध हैं, तो परमेश्‍वर के लिये; और यदि चैतन्य हैं, तो तुम्हारे लिये हैं।

14क्योंकि मसीह का प्रेम हमें विवश कर देता है; इसलिए कि हम यह समझते हैं, कि जब एक सब के लिये मरा तो सब मर गए।

15और वह इस निमित्त सब के लिये मरा, कि जो जीवित हैं, वे आगे को अपने लिये न जीएँ परन्तु उसके लिये जो उनके लिये मरा और फिर जी उठा।

16इस कारण अब से हम किसी को शरीर के अनुसार न समझेंगे, और यदि हमने मसीह को भी शरीर के अनुसार जाना था, तो भी अब से उसको ऐसा नहीं जानेंगे।

17इसलिए यदि कोई मसीह में है तो वह नई सृष्टि है: पुरानी बातें बीत गई हैं; देखो, वे सब नई हो गईं। (यशा. 43:18-19)

18और सब बातें परमेश्‍वर की ओर से हैं*, जिस ने मसीह के द्वारा अपने साथ हमारा मेल मिलाप कर लिया, और मेल मिलाप की सेवा हमें सौंप दी है।

19अर्थात् परमेश्‍वर ने मसीह में होकर अपने साथ संसार का मेल मिलाप कर लिया, और उनके अपराधों का दोष उन पर नहीं लगाया और उसने मेल मिलाप का वचन हमें सौंप दिया है।

20इसलिए हम मसीह के राजदूत हैं; मानो परमेश्‍वर हमारे द्वारा समझाता है: हम मसीह की ओर से निवेदन करते हैं, कि परमेश्‍वर के साथ मेल मिलाप कर लो। (इफि. 6:10, मला. 2:7)

21जो पाप से अज्ञात था, उसी को उसने हमारे लिये पाप ठहराया, कि हम उसमें होकर परमेश्‍वर की धार्मिकता बन जाएँ।

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