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4 पहलुओं से परमेश्वर की कृपा को जानना

कृपा ईश्वर से है, और यह मानव जाति के लिए उनकी देखभाल और सुरक्षा, दया और प्रेम को दर्शाता है। इसमें भौतिक आशीर्वाद और जीवन की जीविका भी शामिल है। जब से परमेश्वर ने हम मनुष्यों को बनाया है, उनकी कृपा हमेशा हमारे साथ रही है। परमेश्वर की कृपा के सहारे, कई भाई-बहन कहेंगे: "परमेश्वर ने मेरी बीमारी ठीक कर दी है; वह मेरे परिवार को बीमारी और आपदा से बचाते हैं; वह मेरे परिवार में सब कुछ ठीक कर देते हैं और मेरे परिवार को खुश रखते हैं; उन्होंने मुझे पर्याप्त भोजन, कपड़े या उपयोग की जाने वाली चीजें दीं हैं, और मुझे किसी चीज की कमी नहीं है। ..." यह सभी परमेश्वर की कृपा है। परमेश्वर हमें जो देते हैं वह सच में प्रचुर, समृद्ध और संख्या से परे होता है। परमेश्वर के कार्य सच में अद्भुत हैं। हालाँकि, परमेश्वर के वचन हमारे जीवन के लिए सबसे ज़्यादा फायदेमंद है। परमेश्वर के वचन हमारे जीवन की शक्ति के रूप में काम कर सकते हैं, हमें प्रार्थना का तरीका दिखा सकते हैं और हमें उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद में जीवन जीने के लिए मार्गदर्शित कर सकते हैं। जब तक हम परमेश्वर के शब्दों पर जीते हैं, हम जीवन और परमेश्वर की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करेंगे, परमेश्वर के प्रकाश में रहेंगे, और शैतान के क़हर से दूर रहेंगे।

4 पहलुओं से परमेश्वर की कृपा को जानना

जब आदम और हव्वा ने परमेश्वर के वचनों का पालन किया, तो उन्हें परमेश्वर की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त हुआ।

हमारे पूर्वजों आदम और हव्वा को परमेश्वर के पैदा करने के बाद, उन्होंने उन्हें ईडन गार्डन में बसा दिया, और उन्हें कहा: "तू वाटिका के किसी भी वृक्षों का फल खा सकता है; पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवश्य मर जाएगा" (उत्पत्ति 2:16-17)। परमेश्वर के वचनों को सुनने के बाद आदम और हव्वा ने उसी के अनुसार काम किया। उन्होंने ईडन गार्डन में पेड़ों से फल तोड़कर खाए लेकिन उन्होंने अच्छाई और बुराई के ज्ञान के पेड़ को छोड़ दिया। उन्होंने वहाँ के पौधों और जानवरों का ध्यान रखा, एक दूसरे से प्यार किया, और शांति और खुशी में रहे। हालाँकि, एक दिन, एक नाग उन्हें अच्छाई और बुराई के ज्ञान के पेड़ से फल खाने के लिए लुभाने आया, और उनके विवेक की कमी के कारण, वह शैतान की चालाक योजना में फँस गए—उन्होंने परमेश्वर के वचनों को भंग कर दिया और फल खा लिया जो परमेश्वर ने उन्हें खाने से मना किया था। नतीजतन, उन्हें ईडन गार्डन से बाहर निकाल दिया गया; इसके बाद, उन्हें अपने परिवार को पालने के लिए श्रम का दर्द सहना पड़ा, और पसीना बहाना पड़ा। यह उनके ईश्वर के वचनों को भंग करने का परिणाम है—उन्होंने परमेश्वर की कृपा और आशीर्वाद खो दिया।

पुराने नियम के युग में, जब लोगों ने परमेश्वर की व्यवस्थाओं और आज्ञाओं को माना, तो उन्हें परमेश्वर अनुग्रह और आशीर्वाद प्राप्त हुआ था।

पुराने नियमके युग में, लोग अपने जीवन का संचालन करना नहीं जानते थे, इसलिए यहोवा परमेश्वर ने व्यवस्थाओं और आदेशों की घोषणा की, उन्हें बताया कि कैसे जीना है, कैसे परमेश्वर की आराधना करनी है, किस प्रकार के व्यक्ति को परमेश्वर आशीर्वाद देते हैं, किस प्रकार के व्यक्ति को परमेश्वर शाप देते हैं, और पाप क्या है। यहोवा परमेश्‍वर के सभी वचन ऐसे थे जिनकी मनुष्य को ज़रूरत थी और जिनका उन्हें पालन करना चाहिए। जब इस्राएलियों ने व्यवस्थाओं का अनुसरण किया, तो उन्हें परमेश्वर का अनुग्रहऔर आशीर्वाद प्राप्त हुआ : वे पृथ्वी पर शांति से एक साथ रहते थे, और परमेश्वर हमेशा उनके साथ थे, उनकी देखभाल और सुरक्षा करते थे। जैसा कि बाइबल में कहा गया है, "और जो कुछ तेरे परमेश्‍वर यहोवा ने तुझे सौंपा है, उसकी रक्षा करके उसके मार्गों पर चला करना और जैसा मूसा की व्यवस्था में लिखा है, वैसा ही उसकी विधियों तथा आज्ञाओं, और नियमों, और चितौनियों का पालन करते रहना; जिससे जो कुछ तू करे और जहाँ कहीं तू जाए, उसमें तू सफल होए" (1 राजाओं 2:3)

हालाँकि, पुराने नियम के युग के अंत में, मानव जाति को शैतान ने इस हद तक भ्रष्ट कर दिया था कि वह अब व्यवस्थाओं का पालन नहीं करती थी। उन्होंने मंदिर को चोरों की मांद में तब्दील करके, गरीबों की बलि देनी शुरू कर दी और मवेशियों, भेड़ों, और कबूतरों को बेचना शुरू कर दिया। उन्होंने जो कुछ किया उससे परमेश्वर को उनसे नफ़रत और घृणा हो गयी। उन्होंने परमेश्वर की व्यवस्थाओं और आज्ञाओं को भंग कर दिया, और इसलिए उन्हें व्यवस्थाओं द्वारा दोषी ठहराए जाने के खतरे का सामना करना पड़ा।

नए नियम के युग में, जिसने भी प्रभु यीशु के सुसमाचार को स्वीकार किया, उसे उनकाअनुग्रह और आशीर्वाद प्राप्त हुआ।

जब प्रभु यीशु धरती पर देहधारण किया, तो वे स्वर्ग के राज्य का सुसमाचार लाए, पश्चाताप का तरीका प्रचारित किया, लोगों से कहा कि वे पाप-स्वीकारोक्ति करें और पश्चाताप करें, लोगों को अपने दुश्मनों से प्यार करना, विनम्र और धैर्यवान रहना, दूसरों को माफ करना, अपनी तरह अपने पड़ोसी से प्यार करना, आदि सिखाया। जिन लोगों ने प्रभु यीशु के वचनों का अनुसरण किया, उन्हें पापों की माफी मिली, उन्हें पाप करने के लिए व्यवस्था द्वारा दंडित किए जाने के खतरे का सामना नहीं करना पड़ा, बल्कि वे परमेश्वर के अनुग्रह और आशीर्वाद में रहते थे। जबकि, जिन लोगों ने प्रभु यीशु के सिखाए गए पश्चाताप के तरीके को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, उन्होंने परमेश्वर के उद्धार को खो दिया, और इसके बावजूद व्यवस्थाओं से बंधे रहने का कड़वा जीवन जिया।

परमेश्वर के पिछले कार्य से, हम समझते हैं कि परमेश्वर के वचन सबसे बड़ा अनुग्रहऔर आशीर्वाद हैं जो परमेश्वर ने आदमी को दिए हैं। जब तक हम परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण करते हैं और उनके वचनों के अनुसार चलते हैं, तब तक हम उनकी देखभाल और सुरक्षा में रहेंगे। प्रभु यीशु ने कहा, "मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्‍वर के मुख से निकलता है जीवित रहेगा" (मत्ती 4:4)। ये वचन बताते हैं कि हम सिर्फ़ भोजन के सहारे नहीं जीते हैं, बल्कि इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि हम परमेश्वर के वचनों को नहीं छोड़ सकते। केवल परमेश्वर के वचन ही हमारा जीवन बन सकते हैं, और वही हमारे अस्तित्व की नींव हैं।

अंत के दिनों में, हमें परमेश्वर का अनुग्रह और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए परमेश्वर की नई उक्तियों को स्वीकार करना चाहिए।

प्रभु यीशु ने कहा है, "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा, परन्तु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। प्रकाशित-वाक्य की पुस्तक में भविष्यवाणी की गयी है कि, "जिसके कान हों, वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है: जो जय पाए, उसको दूसरी मृत्यु से हानि न पहुँचेगी" (प्रकाशितवाक्य 2:11)। प्रभु के वचन हमें एक संदेश देते हैं: जब प्रभु अंत के दिनों में प्रकट होने और काम करने के लिए लौटेंगे, तो वे अधिक वचनों का उच्चारण करेंगे और हमें बचाने के लिए सत्य व्यक्त करेंगे; जब हम उन वचनों को सुनेंगे जो परमेश्वर ने हमारे जीवन के रूप में हमें प्रदान किए हैं और जब हमारे पापों का सफ़ाया हो जाएगा, तो हम स्वर्ग के राज्य में लाए जा सकेंगे और स्वर्ग के आशीर्वाद का आनंद ले सकेंगे। इसका मतलब है, आज अंत के दिनों में, प्रभु काम करने के लिए देहधारण करके लौट आएंगे, और हमारे लिए अनंत जीवन का मार्ग लाएंगे। तो हमें बुद्धिमान कुँवारियाँ बनकर रहना चाहिए, और सुनने पर ध्यान देना चाहिए। जब हम किसी को यह गवाही देते सुनेंगे कि परमेश्वर नए वचन कह रहे हैं, तो हमें जल्दी खोजबीन और जांच करनी चाहिए, मेमने के पदचिह्नों पर साथ-साथ चलना चाहिए और परमेश्वर के नए कथनों को स्वीकार करना चाहिए। तभी हम अंत के दिनों के परमेश्वर के उद्धार को प्राप्त कर पाएंगे और परमेश्वर द्वारा – अनंत जीवन—का सबसे बड़ा वचन प्राप्त कर पाएँगे। इसके अलावा, जो केवल प्रभु यीशु के कार्य को स्वीकार करते हैं, लेकिन लौटकर आए प्रभु यीशु के कार्य को स्वीकार नहीं करते, वे ऐसे लोग हैं जो परमेश्वर में विश्वास तो करते हैं, लेकिन अंत तक उनका अनुसरण नहीं करते। उनका विश्वास शून्य के समान है और इससे विफलता प्राप्त होती है—वे कभी भी अनन्त जीवन प्राप्त नहीं करेंगे। वह परमेश्वर का अनुग्रह और आशीर्वाद खो देंगे, और इसके लिए अनंत काल तक पछताएंगे।

Translated by Mini Garg | MiniWrites.com

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