ऑनलाइन बैठक

मेन्‍यू

क्या हम प्रभु का स्वागत कर सकते हैं यदि हम इस दृष्टिकोण से चिपके है कि परमेश्वर को देखना ही परमेश्वर में विश्वास करना है?

प्रश्न: तुम कहते हो कि प्रभु यीशु वापस आ गया है, तो हमने उसे देखा क्यों नहीं है? देखकर ही विश्वास किया जा सकता है। अगर हमने उसे नहीं देखा है, तो इसका मतलब यही होना चाहिए कि वह अभी तक लौटा नहीं है; हम तभी विश्वास करेंगे जब उसे देख लेंगे। तुम कहते हो कि प्रभु यीशु वापस आ गया है, तो वह इस समय कहाँ है? वह क्या काम कर रहा है? प्रभु ने क्या वचन कहे हैं? हम तभी विश्वास करेंगे जब तुम इन बातों की स्पष्ट रूप से गवाही दोगे।

उत्तर: अंत के दिनों में परमेश्वर का प्रकटन और कार्य ठीक वैसे ही है जैसी प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की थी। इसके दो भाग हैं—उसका गुप्त आगमन और उसका सार्वजनिक आगमन। गुप्त आगमन का अर्थ है अपने वचनों को कहना, और अंत के दिनों के अपने कार्य को करने के लिए परमेश्वर का मनुष्यजाति के बीच मनुष्य के पुत्र के रूप में देहधारण करना। यह उसका गुप्त आगमन है। सार्वजनिक आगमन प्रभु का सबके सामने बादलों पर आना है, अर्थात्, सभी राष्ट्रों और सभी लोगों को दिखाई देने वाले दसियों हजारों संतों के साथ प्रभु का आगमन। जब हम वर्तमान में अंत के दिनों के परमेश्वर के न्याय के कार्य की गवाही देते हैं, तो कई लोगों को संदेह होता है: "तुम कहते हो कि परमेश्वर प्रकट हुआ है और कार्य कर रहा है। हमने उसे क्यों नहीं देखा है? परमेश्वर कब और कैसे अपने वचनों को कह रहा है? जब परमेश्वर अपने वचनों को कह रहा होता है तो क्या किसी ने उन वचनों को दर्ज किया है, या क्या वह उन वचनों को सीधे हमारे पास लाता है? परमेश्वर तुम सभी के बीच में क्यों बोलता है? हम उसकी आवाज़ को क्यों नहीं सुन पाते या उसे देख पाते हैं?" ... परमेश्वर चीन में, पूर्व में प्रकट हुआ है; वह मनुष्य के देहधारी पुत्र की छवि में अपनी वाणी को व्यक्त करता है और कार्य करता है। इसमें अलौकिक तो कुछ भी नहीं है। परमेश्वर साधारण देह ग्रहण करता है, उसका रूप-रंग एक साधारण व्यक्ति का होता है, और वह हमारे बीच बोलता और कार्य करता है। अलौकिक कुछ नहीं होता है। कुछ लोग कहते हैं: "अगर यह थोड़ा भी अलौकिक नहीं है, तो वह परमेश्वर है भी या नहीं? यदि परमेश्वर प्रकट हो रहा है और कार्य कर रहा है, तो उसका प्रकटन और कार्य अलौकिक होना चाहिए।" मैं तुमसे पूछता हूँ, क्या जब प्रभु यीशु ने कार्य किया था तब वह अलौकिक था? जब वह पतरस से बोल रहा था, तो क्या अन्य स्थानों के लोग इसे देख सकते थे? जब वह एक स्थान पर संकेतों और अद्भुत काम प्रदर्शित कर रहा था, तो क्या अन्य स्थानों के लोग इसे देख सकते थे? निश्चित रूप से नहीं। प्रभु यीशु देह में मनुष्य का पुत्र था, और उसका कार्य और उसके वचन अलौकिक नहीं थे; संकेतों और अद्भुत कामों के उसके प्रदर्शनों के अलावा, इसमें कोई अलौकिक पहलू नहीं थे। इसीलिए दूसरी जगहों के लोग उसके वचनों को नहीं सुन सकते थे या उसके कार्य को नहीं देख सकते थे—केवल उसकी बगल के लोग ही उन्हें देख, सुन और अनुभव कर सकते थे। यह परमेश्वर के कार्य का व्यावहारिक और सामान्य पक्ष है। इसलिए, अन्य धर्मों और अन्य पंथों को उस कार्य के बारे में पता नहीं है जो परमेश्वर ने चीन में सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के माध्यम से किया है। उन्हें क्यों नहीं पता है? परमेश्वर अलौकिक तरीकों से कार्य नहीं करता है। केवल जिन लोगों के बीच उसने कार्य किया है वे ही इसे देख और सुन पाते हैं; जिन लोगों के बीच उसने कार्य नहीं किया है वे उसकी आवाज को नहीं सुन सकते हैं। जब प्रभु यीशु ने यहूदी लोगों के बीच अपना कार्य किया, तो क्या हम, चीनी लोग, इसे देखने या सुनने में समर्थ थे? क्या पश्चिम में ब्रिटिश और अमेरिकी इसे देख और सुन पा रहे थे? तब क्यों पश्चिमी और पूर्व में चीनी लोग अंततः प्रभु यीशु के कार्य को स्वीकार करने में समर्थ थे? क्योंकि ऐसे लोग थे जो गवाही देते थे, जो हमारे लिए सुसमाचार फैलाते थे, और उन्होंने यह बाइबल दी जिसमें हमारे लिए प्रभु यीशु के वचन और कार्य दर्ज थे। जब हमने प्रभु यीशु से प्रार्थना की, तो पवित्र आत्मा ने अपना कार्य किया और वह हमारे साथ था; उसने हम पर अनुग्रह किया, परिणामस्वरूप हमें विश्वास हो गया कि प्रभु यीशु परमेश्वर और उद्धारकर्ता है। इस तरह से हमें विश्वास हुआ। पश्चिमी लोगों का कहना है कि "परमेश्वर चीन में प्रकट हुआ है और उसने चीन में कार्य किया है—यह बात हमें क्यों नहीं पता है? इसे देखने और सुनने में हम लोग समर्थ क्यों नहीं हो पाये हैं?" क्या इस प्रश्न को समझाना आसान है?

क्या हम प्रभु का स्वागत कर सकते हैं यदि हम इस दृष्टिकोण से चिपके है कि परमेश्वर को देखना ही परमेश्वर में विश्वास करना है?

क्या अंत के दिनों के कार्य के बारे में बाइबल में परमेश्वर की ओर से भविष्यवाणियाँ हैं? प्रभु यीशु ने इस बारे में क्या कहा? "क्योंकि जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्‍चिम तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा" (मत्ती 24:27)। इसका क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि अंत के दिनों का परमेश्वर का कार्य चमकती बिजली की तरह है, जो पूर्व से बाहर आती है। मनुष्य का पुत्र पूर्व में कार्य करेगा, जो महान प्रकाश के प्रकटन को, सच्चे प्रकाश के प्रकटन को, परमेश्वर के प्रकटन को, सबसे पहले पूर्वी लोगों को देखने देगा, और उसके तुरंत बाद, यह महान प्रकाश चमकती बिजली की तरह ही पश्चिम में चमकेगा। अर्थात्, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के पूर्व से बाहर आने के बाद, वे ऑनलाइन प्रकाशित हुए और इस तरह पश्चिम में फैल गए। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन कब ऑनलाइन प्रकाशित किए गए थे? चीनी संस्करण ऑनलाइन, नवीनतम, 2007 में, या इससे पहले 2005 में प्रकाशित किया गया था। अंग्रेजी संस्करण शायद 2010 में ऑनलाइन डाला गया था। परमेश्वर के वचन कई वर्षों से ऑनलाइन हैं, फिर भी धार्मिक दुनिया के कितने लोग उनकी जाँच करने के लिए ऑनलाइन हुए हैं? ज्यादा नहीं; बहुत कम लोग ऐसा करते हैं। परमेश्वर का मार्ग और उसके द्वारा बोले गए वचन लंबे समय से ऑनलाइन रहे हैं। लोगों ने अब देखा है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन ऑनलाइन हैं, तो फिर प्रभु यीशु में वे तथाकथित धर्मनिष्ठ विश्वासी उनकी जाँच क्यों नहीं करते? इसमें समस्या क्या है? सभी देशों और सभी क्षेत्रों के लोगों को परमेश्वर के मार्ग की गवाही पहले ही दी जा चुकी है। यदि मनुष्य कभी उनकी जाँच-पड़ताल न करे, और अंततोगत्वा दुःख झेले और उसका सर्वनाश जाये, तो यह किसकी जिम्मेदारी होगी? इस ग़लती के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या यह ग़लती परमेश्वर की है, या मनुष्य की? यह ग़लती मनुष्य की है। हम ऐसा क्यों कहते हैं? क्योंकि प्रभु यीशु ने बहुत पहले कहा था, "इसलिये जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा" (मत्ती 24:42), "आधी रात को धूम मची: 'देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो'" (मत्ती 25:6), "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। प्रभु यीशु ने ऐसी बातें बहुत से दूसरे अवसरों पर कही हैं: "माँगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूँढ़ो तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा" (मत्ती 7:7)। यह परमेश्वर का वादा है, और प्रभु यीशु ने इस तरह की बातें काफ़ी बार कही हैं। प्रभु यीशु के वचनों के अनुसार, यदि मनुष्य कभी भी परमेश्वर की तलाश नहीं करता है, और जब वह किसी को परमेश्वर के आने की गवाही देते हुए सुनता है तो उस बात का पता नहीं लगाता है, इसके बजाय आँखें मूँद कर उनकी निंदा करता है, इस तरह की बातें कहता है जैसे कि "ऐसे सभी जो परमेश्‍वर के आगमन की गवाही देते हैं वे विधर्मी और पाखंडी सदस्‍य हैं," तो जिन लोगों ने बिल्कुल अंत में भी परमेश्वर के कार्य को स्वीकार नहीं किया है, वे तबाही में पड़ जाएँगे और आपदाओं में अपने दण्ड की टीस में मर जाएँगे। किसे दोषी ठहराया जाए? इस मामले को लेकर धार्मिक समुदाय के बहुत से लोगों को संदेह हैं। "परमेश्वर हमें दिखाई क्यों नहीं देता? वह हमसे क्यों छिपा है? वह हमें जानने क्यों नहीं देता?" क्या परमेश्वर ने कभी कहा है "जब मैं कार्य करने के लिए चुपके से आऊँगा, तो मैं प्रकट होऊँगा और सभी लोगों को प्रकाशन दूँगा"? परमेश्वर ने क्या कहा था? "यदि तू जागृत न रहेगा तो मैं चोर के समान आ जाऊँगा, और तू कदापि न जान सकेगा कि मैं किस घड़ी तुझ पर आ पड़ूँगा" (प्रकाशितवाक्य 3:3)। यह प्रकाशित वाक्य की पुस्तक में भविष्यवाणी की गई थी। इसलिए, यदि परमेश्वर के विश्वासियों के रूप में हम यह सुनते हैं कि किसी ने गवाही दी है कि "दूल्हा आ गया है; प्रभु वापस आ गया है," फिर भी हम अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य की सक्रिय रूप से जाँच नहीं करते हैं या उसे स्वीकार नहीं करते हैं, तो जब हम बरबादी में पड़ते हैं और सजा के दौरान मर जाते हैं, तो हम परमेश्वर को दोष नहीं दे सकते हैं। हमें यह देखने के लिए अपने भीतर से समस्या को ढूँढना चाहिए कि हमने किन पहलुओं पर ठीक से नहीं कार्य किया है। केवल यही उचित है। पीछे मुड़कर देखें, तो तुमने प्रभु यीशु को कैसे स्वीकार किया था? क्या प्रभु यीशु तुम्हारे पास आया था? क्या प्रभु तुम्हारे सामने प्रकट हुआ? उसने दोनों में से कोई नहीं किया। तुमने प्रभु यीशु को इसलिए स्वीकार किया क्योंकि अन्य लोगों ने सुसमाचार का उपदेश दिया और तुम्हें प्रभु की गवाही दी। मार्ग के बारे में सुनने से मार्ग में विश्वास आता है, जबकि मार्ग के बारे में सुनना परमेश्वर के वचनों से आता है। अब जबकि किसी ने इस सुसमाचार पर तुम्हें गवाही दी है और यह तथ्य कि परमेश्वर कार्य करने के लिए आ चुका है, तो यह तुम्हारे लिए परमेश्वर का प्रेम, दया और चिंता है—क्या इसे तुम्हें इस प्रकार से नहीं समझना चाहिए? एक धर्मपरायण व्यक्ति को इसे इसी प्रकार से समझना चाहिए। इसलिए, परमेश्वर के सामने अभिमानी मत बनो, अपने आप को बहुत ऊँचा मत समझो, केवल यह मत सोचो कि "जब परमेश्वर आए तो उसे सबसे पहले मुझे प्रकाशन देने चाहिए। उसे सबसे पहले इसे मेरे सामने प्रकट करना चाहिए। यदि वह आकर इसे मेरे सामने प्रकट नहीं करता है, तो वह परमेश्वर नहीं है, और मैं उसे स्वीकार नहीं करूँगा।" ये किस प्रकार के लोग हैं? उन्होंने क्या गलतियाँ की हैं? क्या तुम यह सुनिश्चित करने की हिम्मत करते हो कि जब परमेश्वर आये तो वह इसे तुम्हारे सामने प्रकट करे? इसके लिए तुम्हारे पास क्या आधार है? क्या प्रभु ने तुम्हें बताया है कि "जब मैं आऊँगा तो सबसे पहले इसे तुम्हारे सामने प्रकट करूँगा"? क्या उसने तुमसे ऐसे वचन कहे हैं? क्या तुम्हें लगता है कि तुम दुनिया में सबसे ऊपर हो, तुम सबसे महत्वपूर्ण हो, तुम परमेश्वर से सबसे ज्यादा प्रेम करते हो? क्या तुम बाकी सब से ऊपर हो? क्या तुम एक बहुत विशेष रूप से सृजित प्राणी हो? क्या उस तरह के किसी व्यक्ति को आसानी से बचाया जा सकता है? परमेश्वर को अंत के दिनों में न्याय का कार्य करने की आवश्यकता क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि भ्रष्ट मनुष्यजाति परमेश्वर को देखने के योग्य नहीं है। समस्त भ्रष्ट मनुष्यजाति में शैतान का स्वभाव है; वे सभी विशेष रूप से अभिमानी और दंभी हैं, और उन सभी में परमेश्वर के बारे में बहुत ही असाधारण इच्छाएँ हैं। वे स्वयं को अन्य सभी से ऊपर रखते हैं, आकाश से बस जरा-सा नीचे और दूसरों से बहुत ऊपर, मानो कि वे स्वर्ग द्वारा अनुग्रह प्राप्त हों। इस प्रकार के भ्रष्ट स्वभाव के साथ, जिस किसी ने भी परमेश्वर के न्याय और उसकी ताड़ना को स्वीकार नहीं किया है वह परमेश्वर को देखने के योग्य नहीं है।

— 'जीवन में प्रवेश पर धर्मोपदेश और संगति' से उद्धृत

तुम देखोगे कि धार्मिक व्यक्तियों सहित कई ऐसे लोग हैं जो कहते हैं: "अगर परमेश्वर आया है, तो मैंने उसे क्यों नहीं देखा? क्योंकि मैंने उसे नहीं देखा, तो इससे साबित होता है कि परमेश्वर नहीं आया है।" यह बात तुम्हें कैसी लगती है? यह हास्यास्पद और बेतुकी लगती है। क्या तुम उसे देख सकते हो? यदि तुम परमेश्वर के असली रूप को देखोगे तो तुम मर जाओगे! तो फिर परमेश्वर कैसे आता है? वह मनुष्य के पुत्र के रूप में देहधारण करता है, जो मानवजाति को बचाने के लिए बोलता है। यदि तुम उस देहधारी परमेश्वर को देखो तो क्या तुम उसे पहचान सकोगे? क्या तुम ऐसा कर पाओगे? (नहीं।) तुम ऐसा नहीं कर पाओगे। जब वह प्रभु यीशु के रूप में आया था, तो कई लोगों ने प्रभु यीशु को देखा था। लेकिन उनमें से कितने लोगों ने उसे मसीह यानी परमेश्वर के पुत्र के रूप में पहचाना? केवल एक ही व्यक्ति: पतरस ने, और वह भी इसलिए कि पवित्र आत्मा ने उसे प्रबुद्ध किया था। यह क्या साबित करता है? यह साबित करता है कि भ्रष्ट मानवजाति के लिए परमेश्वर के आध्यात्मिक शरीर को देखने का तब तक कोई मौका नहीं है, जब तक कि उनके पास भौतिक शरीर हैं। यदि तुम परमेश्वर के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे तो तुम मर ही जाओगे, इसलिए ऐसा मत सोचो कि तुम कभी उसे देख पाओगे। भ्रष्ट इंसानों द्वारा परमेश्वर को देखे जाने की बात करें तो, वे क्या वे उसे देखने में सक्षम हैं? अगर वे परमेश्वर की वाणी भी सुन सकें तो यह बहुत बड़ा सौभाग्य होगा, है ना? (हाँ।) जब परमेश्वर ने व्यवस्था के युग में कार्य किया था तो कितने लोग परमेश्वर की वाणी सुन सके थे? क्या मुट्ठी भर लोग भी थे जो उसकी वाणी सुन सके थे? नहीं, मुट्ठी भर भी ऐसे नहीं थे। हम जानते हैं कि अय्यूब ने परमेश्वर की वाणी सुनी थी, लेकिन क्या उसने परमेश्वर का चेहरा भी देखा था? नहीं, उसने सिर्फ यहोवा परमेश्वर को चक्रवात में से उससे बात करते हुए सुना, तो क्या हम यह कह सकते हैं कि परमेश्वर की वाणी सुनना उससे मिलने के बराबर है? (हाँ, हम ऐसा कह सकते हैं।) मूसा ने परमेश्वर को उसे पुकारते हुए सुना, लेकिन क्या उसने परमेश्वर का चेहरा देखा था? (नहीं, उसने नहीं देखा।) मूसा ने बाद में परमेश्वर को पीछे से देखा, लेकिन उसका चेहरा नहीं। इसलिए यदि तुम किसी को यह कहते हुए सुनते हो कि: "कुछ लोग परमेश्वर के आगमन के बारे में गवाही देते हैं। वे कहते हैं कि परमेश्वर आया है, लेकिन मैंने उसे कैसे नहीं देखा? यह राष्ट्रीय टीवी या रेडियो पर कैसे नहीं आया?" इस तरह की बात के बारे में तुम क्या कहोगे? यह बात तो बहुत ही बचकानी है! किसने प्रभु यीशु के आगमन को देखा है? यहूदियों ने। प्रभु यीशु के शब्दों में, जिन लोगों ने परमेश्वर की वाणी सुनी और उसके अधिकार और उसके सामर्थ्य के बारे में सुना, उन्होंने उसका अनुसरण किया। लेकिन अंत में, कितने लोगों ने वास्तव में प्रभु यीशु में विश्वास किया, कितनों ने वास्तव में उसका अनुसरण किया? पूरी मानव जाति में बहुत कम लोगों ने। इसलिए, जब अंत के दिनों के दौरान देहधारी परमेश्वर एक साधारण व्यक्ति के रूप में आता है, तो हमें परमेश्वर का चेहरे देखने के लिए इस व्यक्ति के चेहरे को देखने की ज़रूरत नहीं है। इसके बजाय, जब हम उसकी आवाज़ सुनते हैं और उन सत्यों को देखते हैं जिन्हें वह व्यक्त करता है, तो हमें उन्हें स्वीकार करना चाहिए, उनका पालन करना चाहिए और उन्हें अभ्यास में डालना चाहिए। ऐसा करने वाले लोग सत्य और जीवन को प्राप्त करेंगे, और परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करेंगे। जिन लोगों का कहना है: "इससे पहले कि मैं मसीह को स्वीकार करूँ, मुझे उस का चेहरा देखना होगा," क्या वे समझदारी की बात कर रहे हैं? (नहीं, वे ऐसा नहीं कर रहे।) क्या देहधारी परमेश्वर की छवि परमेश्वर के आध्यात्मिक शरीर का प्रतिनिधित्व कर सकती है? क्या प्रभु यीशु की छवि परमेश्वर की वास्तविक छवि का प्रतिनिधित्व कर सकती हैं? (नहीं, यह नहीं हो सकता।) इसलिए जो देहधारी व्यक्ति है उसकी छवि अस्थायी है, और यह केवल लोगों को आश्वस्त करती है कि वह मात्र एक सामान्य, साधारण व्यक्ति है। मनुष्य के लिए देहधारी परमेश्वर को स्वीकार करने में, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वह उसके वचनों को सुने और उन सभी सत्यों को स्वीकार करे जो वह व्यक्त करता है। यही परमेश्वर के प्रेम और उद्धार को पाने का मार्ग है! यदि तुम उसके वचनों को नहीं सुनते हो और उन सभी सच्चाइयों को स्वीकार नहीं करते हो, जिन्हें वह व्यक्त करता है तो तुम परमेश्वर के साथ कोई संबंध नहीं रख पाओगे, तुम परमेश्वर की सराहना कभी प्राप्त नहीं करोगे, है ना? (सही है।) इसलिए अंत के दिनों के दौरान परमेश्वर ने जो सत्य बताए हैं, वे वो सत्य हैं जो लोगों को शुद्ध कर सकते हैं और उन्हें बचा सकते हैं, और इस तरह वे सबसे महत्वपूर्ण सत्य हैं। जो लोग उन्हें स्वीकार नहीं करते हैं और उन्हें अभ्यास में नहीं डालते हैं, वे निश्चित रूप से परमेश्वर के उद्धार को कभी भी प्राप्त नहीं करेंगे।

— ऊपर से संगति से उद्धृत

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