ऑनलाइन बैठक

मेन्‍यू

बाइबल में, पौलुस ने कहा था "सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है" (2 तीमुथियुस 3:16), पौलुस के वचन बाइबल में हैं। इसीलिए, वे परमेश्‍वर द्वारा प्रेरित थे; वे परमेश्‍वर के वचन हैं। प्रभु में विश्वास करना बाइबल में विश्वास करना है। चाहे कोई भी विचारधारा क्‍यों न हो, यदि वह बाइबल से भटकती है, तो वह विधर्म है! हम प्रभु में विश्वास करते हैं, इसीलिए हमें सदा बाइबल के अनुसार कार्य करना चाहिए, अर्थात्, हमें बाइबल के वचनों का पालन करना चाहिए। बाइबल ईसाई धर्म का मूलभूत सिद्धांत है, हमारे विश्वास की नींव है। बाइबल को त्‍यागना प्रभु में अविश्‍वास करने के समान है; यदि हम बाइबल को त्‍याग देते हैं, तो हम प्रभु में कैसे विश्वास कर सकते हैं? बाइबल में प्रभु के वचन लिखे हैं। क्या कहीं और भी ऐसी जगह है जहां हम उनके वचनों को पा सकते हैं? यदि प्रभु में हमारा विश्वास बाइबल पर आधारित नहीं है, तो इसका आधार क्या है?

उत्तर: आप कहती हैं कि चूंकि पौलुस के वचन बाइबल में हैं, वे प्रभु द्वारा प्रेरित हैं; इसीलिए वे प्रभु के वचन हैं। यह वास्तव में उचित नहीं है, क्या ये उचित है? क्या प्रभु यीशु ने कभी कहा, "सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है"? क्या पवित्र आत्मा ने इसकी गवाही दी? नहीं। आप वास्तव में कह सकते हैं कि बाइबल के सभी वचन परमेश्‍वर द्वारा प्रेरित थे? बाइबल से परिचित कोई भी व्यक्ति जानता है कि भविष्यवक्ताओं द्वारा व्यक्त किये गये परमेश्वर के वचन स्पष्ट रूप से चिन्हित हैं। यह देखने में स्पष्ट है कि कौन से वचन परमेश्वर द्वारा हैं और परमेश्वर से हैं और कौन से मनुष्‍यों से हैं। हालांकि, पौलुस के पत्रों में से कोई भी वचन इस रूप में चिन्हित नहीं हैं कि वे परमेश्वर द्वारा प्रेरित किये गये और परमेश्वर से हैं। इसीलिए, आप कैसे कह सकते हैं कि पौलुस के सभी शब्‍द परमेश्वर के वचन हैं? क्या बाइबल कहती है कि पौलुस को परमेश्वर द्वारा उसके वचनों को सम्प्रेषित करने के निर्देश दिये गये थे? हम सभी जानते हैं कि पौलुस सुसमाचार का केवल एक प्रचारक था। प्रत्येक कलीसिया को जो उसने पत्र लिखे थे, वे कठिनाई के समय में अपने भाइयों और बहनों को सांत्वना और प्रोत्साहन देने का प्रयास भर थे। हालांकि, ये वचन पौलुस के व्यक्तिगत अनुभवों और ज्ञान का केवल प्रतिनिधित्व करते हैं। ये सभी मनुष्य के वचन हैं। हम कैसे कह सकते हैं कि वे वचन परमेश्वर द्वारा प्रेरित थे और परमेश्वर से आए? यह एक तथ्‍य है जिसके बारे में हमें अवश्य स्पष्ट रहना चाहिए। केवल परमेश्वर का अवतरण परमेश्वर के वचनों को अभिव्यक्त कर सकता है, क्योंकि मसीहा का सार खुद परमेश्वर है। पौलुस केवल एक मनुष्‍य है; वह मसीहा नहीं है। इसीलिए, भले ही पौलुस के वचन बाइबल में दर्ज हैं या नहीं, वे केवल मनुष्य के वचन हैं। यह एक असंदिग्‍ध तथ्य है! परमेश्वर के वचन परमेश्वर के वचन हैं; मनुष्य के वचन मनुष्य के वचन हैं। मनुष्य के वचन कभी भी परमेश्वर के वचन नहीं बन सकते। हम मनुष्य के वचनों को केवल इसीलिए कि वे बाइबल में हैं, परमेश्वर के वचनों के रूप में मान नहीं सकते। यदि हम समझते हैं कि वे मनुष्य के वचन हैं, लेकिन फिर भी उन्हें परमेश्वर के वचनों के रूप में मानते हैं। क्या हम तथ्यों को विकृत कर सत्य के साथ विश्वासघात नहीं कर रहे हैं? क्या यह परमेश्वर का विरोध करना और उनकी निंदा करना नहीं है?

यदि प्रभु में हमारा विश्वास बाइबल पर आधारित नहीं है, तो इसका आधार क्या है?

धार्मिक दुनिया के कई विश्वासी ऐसा सोचते हैं कि "बाइबल में विश्वास करना यानी प्रभु में विश्वास करना; बाइबल रखना यानी प्रभु में विश्वास करना है।" क्या यह नजरिया प्रभु के वचनों के अनुसार है? क्या प्रभु यीशु ने कभी कहा था, "बाइबल रखना यानी प्रभु में विश्वास रखना है?" अच्छा इस दृष्टिकोण के अनुसार, "बाइबल में विश्वास करना यानी परमेश्वर में विश्वास करना है। हमें हमेशा बाइबल के अनुसार काम करना चाहिए। बाइबल रखना यानी परमेश्वर में विश्वास रखना है।" हर कोई एक क्षण के लिए यहूदी प्रमुख पुजारियों, शासकों और फरीसियों के बारे में विचार करे... परमेश्वर में उनका विश्वास बाइबल का अनुसरण था; उन्होंने बाइबल रखी थी। परिणाम क्या हुए? जब प्रभु यीशु प्रकट हुए और अपना कार्य किया, तो उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया या उनकी आज्ञा का पालन नहीं किया। इसके बजाय, उन्होंने इस तथ्य के आधार पर प्रभु यीशु का न्याय किया और दोषी ठहराया कि उनके वचनों और कार्यों ने पूर्व विधान के कानून का उल्लंघन किया है। उन्होंने उन पर ईश-निंदा का आरोप लगाया, इस तथ्य के आधार पर कि उन्होंने परमेश्वर के वचनों को व्यक्त किया। उन्होंने उन्हें क्रूस पर चढ़ा दिया। इस तथ्य के प्रकाश में, क्या लोग अभी भी यह कहने की हिम्मत करते हैं कि प्रभु में विश्वास करना यानी बाइबल में विश्वास करना है और बाइबल रखना याने प्रभु में विश्वास करना है? जब लोग बाइबल को सबसे ऊपर रखते हैं, क्या इसका मतलब यह है कि वे प्रभु से डरते हैं और प्रभु को महिमामंडित करते हैं? जब लोग बाइबल में अंधविश्वास रखते हैं और बाइबल रखते हैं, क्या इसका मतलब यह है कि वे प्रभु की आज्ञा मानते हैं और प्रभु की आराधना करते हैं? क्या इसका मतलब है कि वे परमेश्वर की इच्छा का पालन करते हैं? कुछ विश्वासी केवल बाइबल में विश्वास करते हैं और बाइबल रखते हैं; वे प्रभु को महिमामंडित नहीं कर सकते या उनके वचनों को आत्मसात या उनका अनुभव नहीं कर सकते, न ही वे सत्य की खोज करते हैं, परमेश्वर के कार्यों का पालन करते हैं या उनके नक्शे-कदम पर चलते हैं। ये लोग बाइबल के शाब्दिक वचनों के आधार पर परमेश्वर के काम का कट्टरतापूर्वक विरोध करते हैं और निंदा करते हैं। क्या वे पाखंडी फरीसी नहीं हैं? क्या वे ईसा-विरोधी नहीं हैं जो परमेश्वर को अपने दुश्मन के रूप में लेते हैं? प्रभु यीशु ने एक बार फरीसियों को फटकारा "तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है; और यह वही है जो मेरी गवाही देता है; फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते" (यूहन्ना 5:39-40)। प्रभु यीशु ने फरीसियों के विश्वास के दोषपूर्ण तरीके को बहुत स्पष्ट रूप से उजागर किया। परमेश्वर पर फ़रीसियों का विश्वास केवल बाइबल पर आधारित था। वे सब कुछ बाइबल के अनुसार करते थे। उन्होंने बाइबल को बाकी सब से ऊपर रखा; उन्होंने सोचा कि बाइबल रखने से उन्हें अनन्त जीवन मिलेगा। हालांकि, उन्होंने प्रभु यीशु द्वारा प्रकट सत्य को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने प्रभु यीशु के अनुसरण से अधिक बाइबल रखना ज्यादा पसंद किया। वे हठपूर्वक बाइबल से चिपके रहे और प्रभु यीशु पर हमला करने के लिए उसके पाठ के शाब्दिक अर्थों का इस्तेमाल करने की कोशिश करते थे। उन्होंने प्रभु यीशु द्वारा प्रकट सत्यों को इनकार किया और उनकी निंदा की। अंत में, उन्होंने उन्हें क्रूस पर चढ़ा दिया। यही कारण है कि उन्हें शाप दिया गया और दंडित किया गया था। इसलिए, हम यह देख सकते हैं कि यदि कोई आस्तिक केवल बाइबल में विश्वास करता है और उसकी आराधना करता है, लेकिन देहधारी मसीह को नकारता है और परमेश्वर के कार्य और नेतृत्व को अस्वीकार करता है, वह निश्चित रूप से परमेश्वर की प्रशंसा प्राप्त नहीं करेगा।

हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के दो अंश पढ़ते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "बाइबल के समय से प्रभु में लोगों का विश्वास, बाइबल में विश्वास रहा है। यह कहने के बजाय कि लोग प्रभु में विश्वास करते हैं, यह कहना बेहतर है कि वे बाइबल में विश्वास करते हैं; यह कहने के बजाय कि उन्होंने बाइबल पढ़नी आरंभ कर दी है, यह कहना बेहतर है कि उन्होंने बाइबल पर विश्वास करना आरंभ कर दिया है; और यह कहने के बजाय कि वे प्रभु के सामने लौट आए हैं, यह कहना बेहतर होगा कि वे बाइबल के सामने लौट आए हैं। इस तरह से, लोग बाइबल की आराधना ऐसे करते हैं मानो वह परमेश्वर हो, मानो वह उनका जीवन-रक्त हो और उसे खोना अपने जीवन को खोने के समान हो। लोग बाइबल को परमेश्वर जितना ही ऊँचा समझते हैं, और यहाँ तक कि कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो उसे परमेश्वर से भी ऊँचा समझते हैं। यदि लोगों के पास पवित्र आत्मा का कार्य नहीं है, यदि वे परमेश्वर को महसूस नहीं कर सकते, तो वे जीते रह सकते हैं—परंतु जैसे ही वे बाइबल को खो देते हैं, या बाइबल के प्रसिद्ध अध्याय और उक्तियाँ खो देते हैं, तो यह ऐसा होता है, मानो उन्होंने अपना जीवन खो दिया हो" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'बाइबल के विषय में (1)')

"वे मेरा अस्तित्व मात्र बाइबल के दायरे में ही सीमित मानते हैं, और वे मेरी बराबरी बाइबल से करते हैं; बाइबल के बिना मैं नहीं हूँ, और मेरे बिना बाइबल नहीं है। वे मेरे अस्तित्व या क्रियाकलापोंपर कोई ध्यान नहीं देते, बल्कि पवित्रशास्त्र के हर एक वचन पर परम और विशेष ध्यान देते हैं। बहुत सेलोग तो यहाँ तक मानते हैं कि अपनी इच्छा से मुझे ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए, जो पवित्रशास्त्र द्वारा पहले से न कहा गया हो। वे पवित्रशास्त्र को बहुत अधिक महत्त्व देते हैं। कहा जा सकता है कि वे वचनों और उक्तियों को बहुत महत्वपूर्ण समझते हैं, इस हद कि हर एक वचन जो मैं बोलता हूँ, वे उसे मापने और मेरी निंदा करने के लिए बाइबल के छंदों का उपयोग करते हैं। वे मेरे साथ अनुकूलता का मार्ग या सत्य के साथ अनुकूलता का मार्ग नहीं खोजते, बल्कि बाइबल के वचनों के साथ अनुकूलता का मार्ग खोजते हैं, औरविश्वास करते हैं कि कोई भी चीज़ जो बाइबल के अनुसार नहीं है, बिना किसी अपवाद के, मेरा कार्य नहीं है। क्या ऐसे लोग फरीसियों के कर्तव्यपरायण वंशज नहीं हैं? यहूदी फरीसी यीशु को दोषी ठहराने के लिए मूसा की व्यवस्था का उपयोग करते थे। उन्होंने उस समय के यीशु के साथ अनुकूल होने की कोशिश नहीं की, बल्कि कर्मठतापूर्वक व्यवस्था का इस हद तक अक्षरशः पालन किया कि—यीशु पर पुराने विधान की व्यवस्था का पालन न करने और मसीहा न होने का आरोप लगाते हुए—निर्दोष यीशु को सूली पर चढ़ा दिया। उनका सार क्या था? क्या यह ऐसा नहीं था कि उन्होंने सत्य के साथ अनुकूलता के मार्ग की खोज नहीं की? उनके दिमाग़ में पवित्रशास्त्र का एक-एक वचन घर कर गया था, जबकि मेरी इच्छा और मेरे कार्य के चरणों और विधियों पर उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। वे सत्य की खोज करने वाले लोग नहीं, बल्कि सख्तीसे पवित्रशास्त्र के वचनों से चिपकने वाले लोग थे; वे परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोग नहीं, बल्कि बाइबल में विश्वास करने वाले लोग थे। दरअसल वे बाइबल की रखवाली करने वाले कुत्ते थे। बाइबल के हितों की रक्षा करने, बाइबल की गरिमा बनाए रखने और बाइबल की प्रतिष्ठा बचाने के लिए वे यहाँ तक चले गए कि उन्होंने दयालु यीशु को सूली पर चढ़ा दिया। ऐसा उन्होंने सिर्फ़ बाइबल का बचाव करने के लिए और लोगों के हृदय में बाइबल के हर एक वचन की प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए किया। इस प्रकार उन्होंने अपना भविष्य त्यागने और यीशु की निंदा करने के लिए उसकी मृत्यु के रूप में पापबलि देने को प्राथमिकता दी, क्योंकि यीशु पवित्रशास्त्र के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं था। क्या वे लोग पवित्रशास्त्र के एक-एक वचन के नौकर नहीं थे?" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'तुम्हें मसीह के साथ अनुकूलता का तरीका खोजना चाहिए')

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन धार्मिक समुदायों के परमेश्‍वर में विश्वास के सबसे बड़े भटकाव और गलतियों को उजागर करते हैं। धर्म में हमारे अपने पिछले अनुभवों की तुलना में, ऐसा लगता है कि हमने परमेश्वर पर कई सालों तक विश्वास किया है, लेकिन उनके वचनों का कभी भी वास्तव में अभ्यास या अनुभव नहीं किया। हमने भी प्रभु के वचनों में न तो कभी सत्य की खोज की या न कभी पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता और रोशनी प्राप्त की। हमने निश्चित रूप से कभी भी प्रभु के वचनों में उनकी इच्छा ढूँढ़ने पर ध्यान नहीं दिया। नतीजा यह है कि हम कभी भी प्रभु के पथ पर नहीं चले और प्रभु को वास्तव में कभी नहीं जाना। हमने सोचा कि अगर हम बाइबल के कुछ अनुच्छेद याद कर सकें तो हमारे दिल में परमेश्वर के लिए एक जगह बन जायेगी।; हमने सोचा कि अगर हम बाइबल के कुछ वाक्य समझा सकते, तो उसका मतलब होगा कि हम परमेश्वर को जानते हैं; हमने यहां तक गलत सोचा कि अगर हम बाइबल की व्याख्या और बहुत से पाठ याद कर सकें, तो हम ज्यादा से ज्यादा परमेश्वर की इच्छा के मुताबिक होंगे। सभी विश्वासी बाइबल को सबसे ऊपर रखते हैं। उनके दिलों में पहले ही बाइबल ने प्रभु का स्थान ले लिया है। हर कोई सोचता है कि बाइबल को ऊंचा दर्जा देना और उसे रखना, प्रभु को ऊंचा दर्जा देना और उनकी गवाही देना है। वास्तव में, ये कार्यकलाप पूरी तरह से प्रभु की इच्छा और मार्ग से भटक जाते हैं। यह विशेष रूप से प्रभु की उपस्थिति की प्रमुख अवधि के दौरान और अंत के दिनों के कार्य में सत्य है। कई विश्वासी अब भी बाइबल से चिपके रहते हैं और तब तक इंतजार करते हैं जब तक कि वे प्रभु को अपनी आँखों से बादलों के साथ उतरते नहीं देख लेते। हालांकि, वे पवित्र आत्मा के कार्य और कथन की खोज नहीं करते हैं। यद्यपि उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कलीसिया के गवाह को सुना है कि प्रभु वापस आये हैं और वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर हैं और सत्य को व्यक्त कर रहे हैं और अंत के दिनों में न्याय के उनके कार्य कर रहे हैं, वे परमेश्वर की उपस्थिति और कार्य की खोज नहीं करते हैं। वे धार्मिक पादरियों और एल्‍डर्स का भी पालन करते हैं जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर को नकारते हैं, न्याय करते हैं और निंदा करते हैं। वे ऐसे लोग बन गए हैं जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं और फिर भी परमेश्वर का विरोध करते हैं। आखिरकार, वे परमेश्वर द्वारा त्याग दिए जाएंगे, महान आपदा में फेंक दिए जाएंगे और दंडित किए जाएंगे। ऐसा तब होता है जब लोग बाइबल में अंध-विश्वास करते हैं और आराधना करते हैं, बाइबल की सीमाओं के भीतर परमेश्वर को सीमित करते हैं, और अनजाने में परमेश्वर के खिलाफ प्रतिरोध के रास्ते पर चलते हैं। फरीसियों को परमेश्वर ने शाप दिया था क्योंकि वे बाइबल से चिपके रहे और प्रभु यीशु का विरोध करते थे। उनकी विफलता से हम क्या सबक सीख सकते हैं? विश्वासियों के लिए बाइबल के शब्दों को पकड़ रखना यह बिल्कुल गलत है। हमें प्रभु के वचनों का अभ्यास और अनुभव करना चाहिए। हमें सत्य को परमेश्वर के वचनों में खोजना चाहिए और पवित्र आत्मा का कार्य प्राप्त करना चाहिए। यह विशेष रूप से सत्य है जब प्रभु वापस लौटेंगे। जब हम सुनते हैं कि किसी ने प्रभु के आगमन के बारे में गवाही दी है, तो हमें परमेश्वर के वर्तमान कार्य और वचनों की खोज करनी होगी। इस तरह, हम परमेश्वर के कार्य के पदचिन्हों पर चल सकेंगे; हम परमेश्वर के सिंहासन के सामने आरोहण कर सकेंगे, जीवन जल की आपूर्ति का आनंद लें सकेंगे, सत्य और जीवन प्राप्त करेंगे, उद्धार प्राप्त करेंगे और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करें।

हकीकत में, परमेश्वर के अपने नए कार्य की बात करने या शुरू करने से पहले, बाइबल के अनुसार प्रभु में हमारा विश्वास गलत नहीं था। इसका कारण यह है कि बाइबल परमेश्वर की साक्षी है; व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के दौरान यह परमेश्वर के वचनों का और कार्य का सत्य संग्रह है। जो लोग बाइबल पढ़ते हैं, वे परमेश्वर के अस्तित्‍व से अवगत होते हैं। वे परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्‍ता और बुद्धिमत्‍ता के बारे में सीखते हैं, कैसे उन्‍होंने आकाश और पृथ्वी और अन्य सभी चीजों को बनाया और कैसे वे सब कुछ पर शासन करते हैं। वे देख सकते हैं कि परमेश्वर ने अपने कार्य के पिछले दो चरणों के दौरान क्या कहा और क्या किया, मानव जाति के प्रति उनकी इच्छा और मांग, उनके कई कार्यों का मानवता को प्रकटन। विशेष रूप से, बाइबल में प्रभु यीशु के अनुग्रह के युग के दौरान छुटकारे का जो कार्य शामिल हैं, प्रचुर मात्रा में जो अनुग्रह और सत्य जो उन्होने मानवता को दिए, उनसे मनुष्‍यों को मानवता के प्रति परमेश्वर का सच्चा प्रेम और दया देखने की अनुमति मिलती है। अगर हमारे पास बाइबल के अभिलेख नहीं होते, तो हमें परमेश्वर के अतीत के कार्य को समझना मुश्किल होता। इसलिए, सभी विश्वासियों के लिए बाइबल एक आवश्यक, उत्कृष्ट किताब बन गई है। परमेश्वर पर विश्वास करने के लिए, परमेश्वर को स्वीकार करने के लिए और जीवन के सही मार्ग पर चलने के लिए लोगों के लिए बाइबल बहुत ही मूल्यवान है। हालांकि, चाहे बाइबल कितनी ही मूल्‍यवान क्‍यों न होया उसने मानवता को चाहे जितना दिया हो, फिर भी, बाइबल परमेश्वर या पवित्र आत्मा के कार्य का प्रतिनिधित्व नहीं करती है, उद्धार के कार्य में परमेश्वर के निमित्‍त होना तो दूर की बात है। क्या यह सत्य नहीं है? परमेश्वर सृष्टि के प्रभु है, समस्‍त जीवन का स्रोत है। परमेश्वर मानवता को जीवन की एक स्थिर धारा देते हैं जो अक्षय है। हालांकि, बाइबल सिर्फ परमेश्वर के अतीत के कार्य के बारे में एक ऐतिहासिक किताब है। यह परमेश्वर के बराबर कैसे हो सकती है? बाइबल बाइबल है। परमेश्वर परमेश्वर हैं। बाइबल और परमेश्वर दो अलग चीजें हैं। बाइबल में विश्वास करने का मतलब यह नहीं है कि आप परमेश्वर पर विश्वास करते हैं! इसलिए, परमेश्वर पर हमारा विश्वास सिर्फ बाइबल पर आधारित नहीं हो सकता। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि परमेश्वर वास्तव में क्या कहते हैं और पवित्र आत्मा क्या करता है इस पर हमारी आस्था को आधारित करना चाहिए। यह परमेश्‍वर पर विश्वास के लिए सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है! यदि लोग परमेश्वर पर विश्वास के बारे में भी इस मूल तथ्य को नहीं समझते हैं, क्या वे बहुत मूर्ख और अज्ञानी नहीं हैं? यह ऐसा ही है जैसे यह अनुग्रह के युग में था, जब प्रभु यीशु प्रकट हुए थे और अपना कार्य किया था। अगर मनुष्यगण सिर्फ पुराना विधान पढ़ते लेकिन प्रभु यीशु के वचन और कार्य को स्‍वीकार नहीं करते, तो क्‍या वे पवित्र आत्‍मा का कार्य स्‍वीकार कर सकते थे? क्या वे प्रभु यीशु का उद्धार और अनुग्रह प्राप्त कर सकते थे? बेशक नहीं! तब, जब प्रभु यीशु अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में लौट आए हैं, और सत्य को व्यक्त करते हुए और न्याय का अपना कार्य कर रहे हैं, क्या वे लोग जो केवल बाइबल और प्रभु यीशु का कार्य रख सकते हैं पवित्र आत्मा का कार्य और अंत के दिनों के परमेश्वर के उद्धार को प्राप्त कर सकते हैं? इसलिए, जब सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में अपना नया कार्य करते हैं, हमें उनके वचनों में सत्य को खोजना, उनकी आवाज़ सुनना, और उनके कार्य के पदचिन्‍हों पर चलना होगा, और उनके वचनों के न्याय और ताड़ना को अनुभव करना होगा। केवल इस तरह से परमेश्वर के कार्य का अनुभव करके हम सत्य प्राप्त कर सकते हैं, परमेश्वर को जान सकते हैं और शुद्धि और उद्धार प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार का विश्वास एकमात्र तरीका है परमेश्वर की प्रशंसा प्राप्त करने का।

"परमेश्वर में आस्था" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

उत्तर यहाँ दें