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परमेश्वर की इच्छा का अनुसरण करना क्या है और परमेश्वर की इच्छा का अनुसरण करने वालों की अभिव्यक्तियाँ कैसी होती हैं

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

हर युग में, जब परमेश्वर संसार में कार्य करता है तब वह मनुष्य को कुछ वचन प्रदान करता है, और उन्हें कुछ सत्य बताता है। ये सत्य ऐसे मार्ग के रूप में कार्य करते हैं जिसके मुताबिक मनुष्य को चलना चाहिए, जिस पर मनुष्य को चलना चाहिए, ऐसा मार्ग जो मनुष्य को परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने में सक्षम बनाता है, ऐसा मार्ग जिसे मनुष्य को अभ्यास में लाना चाहिए और अपने जीवन में और अपनी जीवन यात्राओं के दौरान उसके मुताबिक चलना चाहिए। इन्हीं कारणों से परमेश्वर इन वचनों को मनुष्य को प्रदान करता है। ये वचन जो परमेश्वर से आते हैं उनके मुताबिक ही मनुष्य को चलना चाहिए, और उनके मुताबिक चलना ही जीवन पाना है। यदि कोई व्यक्ति उनके मुताबिक नहीं चलता, उन्हें अभ्यास में नहीं लाता, और अपने जीवन में परमेश्वर के वचनों को नहीं जीता, तो वह व्यक्ति सत्य को अभ्यास में नहीं ला रहा है। यदि लोग सत्य को अभ्यास में नहीं ला रहे हैं, तो वे परमेश्वर का भय नहीं मान रहे हैं और बुराई से दूर नहीं रह रहे हैं, और न ही वे परमेश्वर को संतुष्ट कर रहे हैं। यदि कोई परमेश्वर को संतुष्ट नहीं कर पाता, तो वह परमेश्वर की प्रशंसा प्राप्त नहीं कर सकता, ऐसे लोगों का कोई परिणाम नहीं होता।

— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर का स्वभाव और उसका कार्य जो परिणाम हासिल करेगा, उसे कैसे जानें' से उद्धृत

यीशु परमेश्वर का आदेश—समस्त मानवजाति के छुटकारे का कार्य—पूरा करने में समर्थ था, क्योंकि उसने अपने लिए कोई योजना या व्यवस्था किए बिना परमेश्वर की इच्छा का पूरा ध्यान रखा। इसलिए वह परमेश्वर का अंतरंग—स्वयं परमेश्वर भी था, एक ऐसी बात, जिसे तुम सभी लोग अच्छी तरह से समझते हो। (वास्तव में, वह स्वयं परमेश्वर था, जिसकी गवाही परमेश्वर के द्वारा दी गई थी। मैंने इसका उल्लेख मुद्दे को उदहारण के साथ समझाने हेतु यीशु के तथ्य का उपयोग करने के लिए किया है।) वह परमेश्वर की प्रबंधन योजना को बिलकुल केंद्र में रखने में समर्थ था, और हमेशा स्वर्गिक पिता से प्रार्थना करता था और स्वर्गिक पिता की इच्छा जानने का प्रयास करता था। उसने प्रार्थना की और कहा : "परमपिता परमेश्वर! जो तेरी इच्छा हो, उसे पूरा कर, और मेरी इच्छाओं के अनुसार नहीं, बल्कि अपनी योजना के अनुसार कार्य कर। मनुष्य कमज़ोर हो सकता है, किंतु तुझे उसकी चिंता क्यों करनी चाहिए? मनुष्य, जो कि तेरे हाथों में एक चींटी के समान है, तेरी चिंता के योग्य कैसे हो सकता है? मैं अपने हृदय में केवल तेरी इच्छा पूरी करना चाहता हूँ, और चाहता हूँ कि तू वह कर सके, जो तू अपनी इच्छाओं के अनुसार मुझमें करना चाहता है।" यरूशलम जाने के मार्ग पर यीशु बहुत संतप्त था, मानो उसके हृदय में कोई चाकू भोंक दिया गया हो, फिर भी उसमें अपने वचन से पीछे हटने की जरा-सी भी इच्छा नहीं थी; एक सामर्थ्यवान ताक़त उसे लगातार उस ओर बढ़ने के लिए बाध्य कर रही थी, जहाँ उसे सलीब पर चढ़ाया जाना था। अंततः उसे सलीब पर चढ़ा दिया गया और वह मानवजाति के छुटकारे का कार्य पूरा करते हुए पापमय देह के सदृश बन गया। वह मृत्यु एवं अधोलोक की बेड़ियों से मुक्त हो गया। उसके सामने नैतिकता, नरक एवं अधोलोक ने अपना सामर्थ्य खो दिया और उससे परास्त हो गए। वह तेंतीस वर्षों तक जीवित रहा, और इस पूरे समय उसने परमेश्वर के उस वक्त के कार्य के अनुसार परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए, कभी अपने व्यक्तिगत लाभ या नुकसान के बारे में विचार किए बिना और हमेशा परमपिता परमेश्वर की इच्छा के बारे में सोचते हुए, हमेशा अपना अधिकतम प्रयास किया। अत:, उसका बपतिस्मा हो जाने के बाद, परमेश्वर ने कहा : "यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ।" परमेश्वर के सामने उसकी सेवा के कारण, जो परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप थी, परमेश्वर ने उसके कंधों पर समस्त मानवजाति के छुटकारे की भारी ज़िम्मेदारी डाल दी और उसे पूरा करने के लिए उसे आगे बढ़ा दिया, और वह इस महत्वपूर्ण कार्य को पूरा करने के योग्य और उसका पात्र बन गया। जीवन भर उसने परमेश्वर के लिए अपरिमित कष्ट सहा, उसे शैतान द्वारा अनगिनत बार प्रलोभन दिया गया, किंतु वह कभी भी निरुत्साहित नहीं हुआ। परमेश्वर ने उसे इतना बड़ा कार्य इसलिए दिया, क्योंकि वह उस पर भरोसा करता था और उससे प्रेम करता था, और इसलिए परमेश्वर ने व्यक्तिगत रूप से कहा : "यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ।" उस समय, केवल यीशु ही इस आदेश को पूरा कर सकता था, और यह अनुग्रह के युग में परमेश्वर द्वारा पूर्ण किए गए समस्त लोगों के छुटकारे के उसके कार्य का एक भाग था।

यदि, यीशु के समान, तुम लोग परमेश्वर की ज़िम्मेदारी पर पूरा ध्यान देने में समर्थ हो, और अपनी देह की इच्छाओं से मुँह मोड़ सकते हो, तो परमेश्वर अपने महत्वपूर्ण कार्य तुम लोगों को सौंप देगा, ताकि तुम लोग परमेश्वर की सेवा करने की शर्तें पूरी कर सको। केवल ऐसी परिस्थितियों में ही तुम लोग यह कहने की हिम्मत कर सकोगे कि तुम परमेश्वर की इच्छा और आदेश पूरे कर रहे हो, और केवल तभी तुम लोग यह कहने की हिम्मत कर सकोगे कि तुम सचमुच परमेश्वर की सेवा कर रहे हो।

— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप सेवा कैसे करें' से उद्धृत

परमेश्वर की इच्छा का अनुसरण करना क्या है और परमेश्वर की इच्छा का अनुसरण करने वालों की अभिव्यक्तियाँ कैसी होती हैं

राज्य के लोगों से परमेश्वर की अपेक्षाएँ अपेक्षाएं इस प्रकार हैं:

1. उन्हें परमेश्वर के आदेशों को अवश्य स्वीकार करना होगा। इसका अर्थ है, उन्हें आखिरी दिनों के परमेश्वर के कार्य के दौरान कहे गए सभी वचन स्वीकार करने होंगे।

2. उन्हें राज्य के प्रशिक्षण में अवश्य प्रवेश करना होगा।

3. उन्हें प्रयास करना होगा कि परमेश्वर उनके दिलों को स्पर्श करे। जब तुम्हारा दिल पूरी तरह से परमेश्वर उन्मुख होजाता है और तुम्हारा जीवन सामान्य रूप से आध्यात्मिक होता है, तो तुम स्वतंत्रता के क्षेत्र में रहोगे, जिसका अर्थ है कि तुम परमेश्वर के प्रेम की देख-रेख और उसकी सुरक्षा में जिओगे। जब तुम परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा में रहते हो, तभी तुम परमेश्वर के होते हो।

4. उन्हें परमेश्वर द्वारा प्राप्त होना होगा।

5. उन्हें पृथ्वी पर परमेश्वर की महिमा की अभिव्यक्ति बनना होगा।

ये पाँचबातें तुम सबके लिए मेरे आदेश हैं। मेरे वचन परमेश्वर के लोगों से कहे जाते हैं और यदि तुम इन आदेशों को स्वीकार करने के इच्छुकनहीं हो, तो मैं तुम्हें मजबूर नहींकरूँगा—लेकिन अगर तुम सचमुच उन्हें स्वीकार करते हो, तो तुम परमेश्वर की इच्छा पर चलने में सक्षम होंगे होगे। आज तुम सभी परमेश्वर के आदेश स्वीकार करना शुरू करो और राज्य के लोग बनने की कोशिश करो और राज्य के लोगों के लिए आवश्यक मानक हासिल करने का प्रयास करो। यह प्रवेश का पहला चरण है। यदि तुम पूरी तरह से परमेश्वर की इच्छा पर चलना चाहते हो, तो तुम्हें इन पाँचआदेशों को स्वीकार करना होगा और यदि तुम ऐसाकर पाने में सक्षम रहे, तो तुम परमेश्वर की इच्छा के मुताबिक होंगे और परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारा महान उपयोग करेगा।

— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करो' से उद्धृत

परमेश्वर को, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कोई व्यक्ति महान है या मामूली, जब तक वे उसे सुन सकते हैं, उसके निर्देशों और जो कुछ वह सौंपता है उसका पालन कर सकते हैं और उसके कार्य, उसकी इच्छा एवं उसकी योजना के साथ सहयोग कर सकते हैं, ताकि उसकी इच्छा एवं उसकी योजना निर्विघ्न से पूरी की जा सके, तो ऐसा आचरण उसके द्वारा स्मरण रखने और उसकी आशीष प्राप्त करने के योग्य है। परमेश्वर ऐसे लोगों को बहुमूल्य समझता है और वह उनके कार्यों एवं अपने लिए उनके प्रेम एवं उनके स्नेह को हृदय में संजोता है। यह परमेश्वर का रवैया है।

— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर I' से उद्धृत

जो परमेश्वर की सेवा करते हैं, वे परमेश्वर के अंतरंग होने चाहिए, वे परमेश्वर को प्रिय होने चाहिए, और उन्हें परमेश्वर के प्रति परम निष्ठा रखने में सक्षम होना चाहिए। चाहे तुम निजी कार्य करो या सार्वजनिक, तुम परमेश्वर के सामने परमेश्वर का आनंद प्राप्त करने में समर्थ हो, तुम परमेश्वर के सामने अडिग रहने में समर्थ हो, और चाहे अन्य लोग तुम्हारे साथ कैसा भी व्यवहार क्यों न करें, तुम हमेशा उसी मार्ग पर चलते हो जिस पर तुम्हें चलना चाहिए, और तुम परमेश्वर की ज़िम्मेदारी का पूरा ध्यान रखते हो। केवल इसी तरह के लोग परमेश्वर के अंतरंग होते हैं। परमेश्वर के अंतरंग सीधे उसकी सेवा करने में इसलिए समर्थ हैं, क्योंकि उन्हें परमेश्वर का महान आदेश और परमेश्वर की ज़िम्मेदारी दी गई है, वे परमेश्वर के हृदय को अपना हृदय बनाने और परमेश्वर की ज़िम्मेदारी को अपनी जिम्मेदारी की तरह लेने में समर्थ हैं, और वे अपने भविष्य की संभावना पर कोई विचार नहीं करते : यहाँ तक कि जब उनके पास कोई संभावना नहीं होती, और उन्हें कुछ भी मिलने वाला नहीं होता, तब भी वे हमेशा एक प्रेमपूर्ण हृदय से परमेश्वर में विश्वास करते हैं। और इसलिए, इस प्रकार का व्यक्ति परमेश्वर का अंतरंग होता है। परमेश्वर के अंतरंग उसके विश्वासपात्र भी हैं; केवल परमेश्वर के विश्वासपात्र ही उसकी बेचैनी और उसके विचार साझा कर सकते हैं, और यद्यपि उनकी देह पीड़ायुक्त और कमज़ोर होती, फिर भी वे परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए दर्द सहन कर सकते हैं और उसे छोड़ सकते हैं, जिससे वे प्रेम करते हैं। परमेश्वर ऐसे लोगों को और अधिक ज़िम्मेदारी देता है, और जो कुछ परमेश्वर करना चाहता है, वह ऐसे लोगों की गवाही से प्रकट होता है। इस प्रकार, ये लोग परमेश्वर को प्रिय हैं, ये परमेश्वर के सेवक हैं जो उसके हृदय के अनुरूप हैं, और केवल ऐसे लोग ही परमेश्वर के साथ मिलकर शासन कर सकते हैं।

— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप सेवा कैसे करें' से उद्धृत

जो कुछ तुम लोगों ने अनुभव किया और देखा है, वह हर युग के संतों और पैगंबरों के अनुभवों से बढ़कर है, लेकिन क्या तुम लोग अतीत के इन संतों और पैगंबरों के वचनों से बड़ी गवाही देने में सक्षम हो? अब जो कुछ मैं तुम लोगों को देता हूँ, वह मूसा से बढ़कर और दाऊद से बड़ा है, अतः उसी प्रकार मैं कहता हूँ कि तुम्हारी गवाही मूसा से बढ़कर और तुम्हारे वचन दाऊद के वचनों से बड़े हों। मैं तुम लोगों को सौ गुना देता हूँ—अत: उसी प्रकार मैं तुम लोगों से कहता हूँ मुझे उतना ही वापस करो। तुम लोगों को पता होना चाहिए कि वह मैं ही हूँ, जो मनुष्य को जीवन देता है, और तुम्हीं लोग हो, जो मुझसे जीवन प्राप्त करते हो और तुम्हें मेरी गवाही अवश्य देनी चाहिए। यह तुम लोगों का वह कर्तव्य है, जिसे मैं नीचे तुम लोगों के लिए भेजता हूँ और जिसे तुम लोगों को मेरे लिए अवश्य निभाना चाहिए। मैंने अपनी सारी महिमा तुम लोगों को दे दी है, मैंने तुम लोगों को वह जीवन दिया है, जो चुने हुए लोगों, इजरायलियों को भी कभी नहीं मिला। उचित तो यही है कि तुम लोग मेरे लिए गवाही दो, अपनी युवावस्था मुझे समर्पित कर दो और अपना जीवन मुझ पर कुर्बान कर दो। जिस किसी को मैं अपनी महिमा दूँगा, वह मेरा गवाह बनेगा और मेरे लिए अपना जीवन देगा। इसे मैंने पहले से नियत किया हुआ है। यह तुम लोगों का सौभाग्य है कि मैं अपनी महिमा तुम्हें देता हूँ, और तुम लोगों का कर्तव्य है कि तुम लोग मेरी महिमा की गवाही दो। अगर तुम लोग केवल आशीष प्राप्त करने के लिए मुझ पर विश्वास करते हो, तो मेरे कार्य का ज़्यादा महत्व नहीं रह जाएगा, और तुम लोग अपना कर्तव्य पूरा नहीं कर रहे होगे। इजराइलियों ने केवल मेरी दया, प्रेम और महानता को देखा था, और यहूदी केवल मेरे धीरज और छुटकारे के गवाह बने थे। उन्होंने मेरे आत्मा के कार्य का एक बहुत ही छोटा भाग देखा था; इतना कि तुम लोगों ने जो देखा और सुना है, वह उसका दस हज़ारवाँ हिस्सा ही था। जो कुछ तुम लोगों ने देखा है, वह उससे भी बढ़कर है, जो उनके बीच के महायाजकों ने देखा था। आज तुम लोग जिन सत्यों को समझते हो, वह उनके द्वारा समझे गए सत्यों से बढ़कर है; जो कुछ तुम लोगों ने आज देखा है, वह उससे बढ़कर है जो व्यवस्था के युग में देखा गया था, साथ ही अनुग्रह के युग में भी, और जो कुछ तुम लोगों ने अनुभव किया है, वह मूसा और एलियाह के अनुभवों से कहीं बढ़कर है। क्योंकि जो कुछ इजरायलियों ने समझा था, वह केवल यहोवा की व्यवस्था थी, और जो कुछ उन्होंने देखा था, वह केवल यहोवा की पीठ की झलक थी; जो कुछ यहूदियों ने समझा था, वह केवल यीशु का छुटकारा था, जो कुछ उन्होंने प्राप्त किया था, वह केवल यीशु द्वारा दिया गया अनुग्रह था, और जो कुछ उन्होंने देखा था, वह केवल यहूदियों के घर के भीतर यीशु की तसवीर थी। आज तुम लोग यहोवा की महिमा, यीशु का छुटकारा और आज के मेरे सभी कार्य देख रहे हो। तुम लोगों ने मेरे आत्मा के वचनों को भी सुना है, मेरी बुद्धिमत्ता की तारीफ की है, मेरे चमत्कार देखे हैं, और मेरे स्वभाव के बारे में जाना है। मैंने तुम लोगों को अपनी संपूर्ण प्रबंधन योजना के बारे में भी बताया है। तुम लोगों ने मात्र एक प्यारा और दयालु परमेश्वर ही नहीं, बल्कि धार्मिकता से भरा हुआ परमेश्वर देखा है। तुम लोगों ने मेरे आश्चर्यजनक कामों को देखा है और जान गए हो कि मैं प्रताप और क्रोध से भरपूर हूँ। इतना ही नहीं, तुम लोग जानते हो कि मैंने एक बार इजराइल के घराने पर अपने क्रोध का प्रकोप उड़ेला था, और आज यह तुम लोगों पर आ गया है। तुम लोग यशायाह और यूहन्ना की अपेक्षा स्वर्ग के मेरे रहस्यों को कहीं ज़्यादा समझते हो; पिछली पीढ़ियों के सभी संतों की अपेक्षा तुम लोग मेरी मनोरमता और पूजनीयता को कहीं ज़्यादा जानते हो। तुम लोगों ने केवल मेरे सत्य, मेरे मार्ग और मेरे जीवन को ही प्राप्त नहीं किया है, अपितु मेरी उस दृष्टि और प्रकटीकरण को भी प्राप्त किया है, जो यूहन्ना को प्राप्त दृष्टि और प्रकटीकरण से भी बड़ा है। तुम लोग कई और रहस्य समझते हो, और तुमने मेरा सच्चा चेहरा भी देख लिया है; तुम लोगों ने मेरे न्याय को अधिक स्वीकार किया है और मेरे धर्मी स्वभाव को अधिक जाना है। और इसलिए, यद्यपि तुम लोग इन अंत के दिनों में जन्मे हो, फिर भी तुम लोग पूर्व की और पिछली बातों की भी समझ रखते हो, और तुम लोगों ने आज की चीजों का भी अनुभव किया है, और यह सब मेरे द्वारा व्यक्तिगत रूप से किया गया था। जो मैं तुम लोगों से माँगता हूँ, वह बहुत ज्यादा नहीं है, क्योंकि मैंने तुम लोगों को इतना ज़्यादा दिया है और तुम लोगों ने मुझमें बहुत-कुछ देखा है। इसलिए, मैं तुम लोगों से कहता हूँ कि सभी युगों के संतों के लिए मेरी गवाही दो, और यह मेरे हृदय की एकमात्र इच्छा है।

— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'तुम विश्वास के बारे में क्या जानते हो?' से उद्धृत

अब मैं तुम्हारी निष्ठा और आज्ञाकारिता, तुम्हारा प्रेम और गवाही चाहता हूँ। यहाँ तक कि अगर तुम इस समय नहीं जानते कि गवाही क्या होती है या प्रेम क्या होता है, तो तुम्हें अपना सब-कुछ मेरे पास ले आना चाहिए और जो एकमात्र खजाना तुम्हारे पास है : तुम्हारी निष्ठा और आज्ञाकारिता, उसे मुझे सौंप देना चाहिए। तुम्हें जानना चाहिए कि मेरे द्वारा शैतान को हराए जाने की गवाही मनुष्य की निष्ठा और आज्ञाकारिता में निहित है, साथ ही मनुष्य के ऊपर मेरी संपूर्ण विजय की गवाही भी। मुझ पर तुम्हारे विश्वास का कर्तव्य है मेरी गवाही देना, मेरे प्रति वफादार होना, और किसी और के प्रति नहीं, और अंत तक आज्ञाकारी बने रहना। इससे पहले कि मैं अपने कार्य का अगला चरण आरंभ करूँ, तुम मेरी गवाही कैसे दोगे? तुम मेरे प्रति वफादार और आज्ञाकारी कैसे बने रहोगे? तुम अपने कार्य के प्रति अपनी सारी निष्ठा समर्पित करते हो या उसे ऐसे ही छोड़ देते हो? इसके बजाय तुम मेरे प्रत्येक आयोजन (चाहे वह मृत्यु हो या विनाश) के प्रति समर्पित हो जाओगे या मेरी ताड़ना से बचने के लिए बीच रास्ते से ही भाग जाओगे? मैं तुम्हारी ताड़ना करता हूँ ताकि तुम मेरी गवाही दो, और मेरे प्रति निष्ठावान और आज्ञाकारी बनो। इतना ही नहीं, ताड़ना वर्तमान में मेरे कार्य के अगले चरण को प्रकट करने के लिए और उस कार्य को निर्बाध आगे बढ़ने देने के लिए है। अतः मैं तुम्हें समझाता हूँ कि तुम बुद्धिमान हो जाओ और अपने जीवन या अस्तित्व के महत्व को बेकार रेतकी तरह मत समझो। क्या तुम सही-सही जान सकते हो कि मेरा आने वाला काम क्या होगा? क्या तुम जानते हो कि आने वाले दिनों में मैं किस तरह काम करूँगा और मेरा कार्य किस तरह प्रकट होगा? तुम्हें मेरे कार्य के अपने अनुभव का महत्व और साथ ही मुझ पर अपने विश्वास का महत्व जानना चाहिए। मैंने इतना कुछ किया है; मैं उसे बीच में कैसे छोड़ सकता हूँ, जैसा कि तुम सोचते हो? मैंने ऐसा व्यापक काम किया है; मैं उसे नष्ट कैसे कर सकता हूँ? निस्संदेह, मैं इस युग को समाप्त करने आया हूँ। यह सही है, लेकिन इससे भी बढ़कर तुम्हें जानना चाहिए कि मैं एक नए युग का आरंभ करने वाला हूँ, एक नया कार्य आरंभ करने के लिए, और, सबसे बढ़कर, राज्य के सुसमाचार को फैलाने के लिए। अतः तुम्हें जानना चाहिए कि वर्तमान कार्य केवल एक युग का आरंभ करने और आने वाले समय में सुसमाचार को फैलाने की नींव डालने तथा भविष्य में इस युग को समाप्त करने के लिए है। मेरा कार्य उतना सरल नहीं है जितना तुम समझते हो, और न ही वैसा बेकार और निरर्थक है, जैसा तुम्हें लग सकता है। इसलिए, मैं अब भी तुमसे कहूँगा : तुम्हें मेरे कार्य के लिए अपना जीवन देना ही होगा, और इतना ही नहीं, तुम्हें मेरी महिमा के लिए अपने आपको समर्पित करना हगा। लंबे समय से मैं उत्सुक हूँ कि तुम मेरी गवाही दो, और इससे भी बढ़कर, लंबे समय से मैं उत्सुक हूँ कि तुम सुसमाचार फैलाओ। तुम्हें समझना ही होगा कि मेरे हृदय में क्या है।

— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'तुम विश्वास के बारे में क्या जानते हो?' से उद्धृत

यद्यपि तुम लोगों का विश्वास बहुत सच्चा है, फिर भी तुम लोगों में से कोई भी मेरा पूर्ण विवरण दे पाने में समर्थ नहीं है कोई भी उन सारे तथ्यों की पूर्ण गवाही नहीं दे सकता जिन्हें तुम देखते हो। इसके बारे में सोचो: आज तुममें से ज्यादातर लोग अपने कर्तव्यों में लापरवाह हैं, शरीर का अनुसरण कर रहे हैं, शरीर को तृप्त कर रहे हैं, और लालचपूर्वक शरीर का आनंद ले रहे हैं। तुम लोगों के पास सत्य बहुत कम है। तो फिर तुम लोग उस सबकी गवाही कैसे दे सकते हो जो तुम लोगों ने देखा है? क्या तुम लोग सचमुच आश्वस्त हो कि तुम लोग मेरे गवाह बन सकते हो? यदि ऐसा एक दिन आता है जब तुम उस सबकी गवाही देने में असमर्थ हो जो तुमने आज देखा है, तो तुम सृजित प्राणी के कार्यकलाप गंवा चुके होगे, और तुम्हारे अस्तित्व का ज़रा-भी कोई अर्थ नहीं रह जाएगा। तुम एक मनुष्य होने के लायक नहीं होगे। यह कहा जा सकता है कि तुम मानव नहीं रहोगे! मैंने तुम लोगों पर अथाह कार्य किया है, परन्तु चूंकि फिलहाल तुम न कुछ सीख रहे हो, न कुछ जानते हो, और तुम्हारा परिश्रम अकारथ है, इसलिए जब मेरे लिए अपने कार्य का विस्तार करने का समय होगा, तब तुम बस शून्य में ताकोगे, तुम्हारे मुँह से आवाज़ न निकलेगी और सर्वथा बेकार हो जाओगे। क्या यह तुम्हें सदा के लिए पापी नहीं बना देगा? जब वह समय आएगा, क्या तुम सबसे अधिक पछतावा महसूस नहीं करोगे? क्या तुम उदासी में नहीं डूब जाओगे? आज का मेरा सारा कार्य बेकारी और ऊब के कारण नहीं, बल्कि भविष्य के मेरे कार्य की नींव रखने के लिए किया जाता है। ऐसा नहीं है कि मैं बंद गली में हूँ और मुझे कुछ नया सोचने की जरूरत है। मैं जो कार्य करता हूँ, उसे तुम्हें समझना चाहिए; यह ऐसा कुछ नहीं है जिसे सड़क पर खेल रहे किसी बच्चे द्वारा नहीं किया गया है, बल्कि यह ऐसा कार्य है जो मेरे पिता के प्रतिनिधित्व में किया जाता है। तुम लोगों को यह जानना चाहिए कि यह केवल मैं नहीं हूँ जो स्वयं यह सब कर रहा है; बल्कि, मैं अपने पिता का प्रतिनिधित्व कर रहा हूँ। इस बीच, तुम लोगों की भूमिका केवल दृढ़ता से अनुसरण, आज्ञापालन, परिवर्तन करने और गवाही देने की है। तुम लोगों को समझना चाहिए कि तुम लोगों को मुझमें विश्वास क्यों करना चाहिए; यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण प्रश्न है जो तुम लोगों में से प्रत्येक को समझना चाहिए। मेरे पिता ने अपनी महिमा के वास्ते तुम सब लोगों को उसी क्षण मेरे लिए पूर्वनियत कर दिया था, जिस क्षण उसने इस संसार की सृष्टि की थी। मेरे कार्य के वास्ते, और उसकी महिमा के वास्ते उसने तुम लोगों को पूर्वनियत किया था। यह मेरे पिता के कारण ही है कि तुम लोग मुझ में विश्वास करते हो; यह मेरे पिता द्वारा पूर्वनियत करने के कारण ही है कि तुम मेरा अनुसरण करते हो। इसमें से कुछ भी तुम लोगों का अपना चुनाव नहीं है। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि तुम लोग यह समझो कि तुम्हीं वे लोग हो जिन्हें मेरे लिए गवाही देने के उद्देश्य से मेरे पिता ने मुझे प्रदान किया है। चूंकि उसने तुम लोगों को मुझे दिया है, इसलिए तुम लोगों को उन तरीकों का पालन करना चाहिए, जो मैं तुम लोगों को प्रदान करता हूँ, साथ ही उन तरीकों और वचनों का भी, जो मैं तुम लोगों को सिखाता हूँ, क्योंकि मेरे तरीकों का पालन करना तुम लोगों का कर्तव्य है। यह मुझ में तुम्हारे विश्वास का मूल उद्देश्य है। इसलिए मैं तुम लोगों से कहता हूँ: तुम मात्र वे लोग हो, जिन्हें मेरे पिता ने मेरे तरीकों का पालन करने के लिए मुझे प्रदान किया है। हालाँकि, तुम लोग सिर्फ़ मुझ में विश्वास करते हो; तुम लोग मेरे नहीं हो क्योंकि तुम लोग इस्राएली परिवार के नहीं हो, और इसके बजाय प्राचीन साँप जैसे हो। मैं तुम लोगों से सिर्फ़ इतना करने को कह रहा हूँ कि मेरे लिए गवाही दो, परन्तु आज तुम लोगों को मेरे तौर-तरीकों के अनुसार चलना ही चाहिए। यह सब भविष्य की गवाही के वास्ते है। यदि तुम लोग केवल उन लोगों की तरह कार्य करते हो जो मेरे तरीकों को सुनते हैं, तो तुम्हारा कोई मूल्य नहीं होगा और मेरे पिता द्वारा तुम लोगों को मुझे प्रदान किए जाने का महत्त्व व्यर्थ हो जायेगा। तुम लोगों को जो बताने पर मैं जोर दे रहा हूँ, वह यह है: तुम्हें मेरे तरीकों पर चलना चाहिए।

— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर के बारे में तुम्हारी समझ क्या है?' से उद्धृत

जो सच्चे अर्थों में परमेश्वर की गवाही देते हैं, वे उसकी शानदार गवाही इसलिए दे पाते हैं क्योंकि उनकी गवाही परमेश्वर के सच्चे ज्ञान और उसके लिए सच्ची तड़प की नींव पर टिकी होती है। ऐसी गवाही किसी भावनात्मक आवेग के अनुसार नहीं, बल्कि परमेश्वर और उसके स्वभाव के उनके ज्ञान के अनुसार दी जाती है। चूँकि वे परमेश्वर को जानने लगे हैं, इसलिए उन्हें लगता है कि उन्हें परमेश्वर की गवाही निश्चित रूप से देनी चाहिए, और उन सबको जो परमेश्वर के लिए तड़पते हैं, परमेश्वर को जानने, और परमेश्वर की सुंदरता एवं उसकी वास्तविकता से अवगत होने का अवसर मिलना चाहिए। परमेश्वर के प्रति लोगों के प्रेम की तरह उनकी गवाही भी स्वतः स्फूर्त होती है, वह वास्तविक होती है और उसका महत्व एवं मूल्य वास्तविक होता है। वह निष्क्रिय या खोखली और अर्थहीन नहीं होती। जो परमेश्वर से सचमुच प्रेम करते हैं केवल उन्हीं के जीवन में सर्वाधिक मूल्य और अर्थ होता है, और केवल वही लोग क्यों परमेश्वर में सचमुच विश्वास करते हैं, इसका कारण यह है कि ये लोग परमेश्वर के प्रकाश में रह पाते हैं और परमेश्वर के कार्य और प्रबंधन के लिए जी पाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे अंधकार में नहीं जीते, बल्कि प्रकाश में जीते हैं; वे अर्थहीन जीवन नहीं जीते, बल्कि परमेश्वर द्वारा धन्य किया गया जीवन जीते हैं। केवल वे जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं, परमेश्वर की गवाही दे पाते हैं, केवल वे ही परमेश्वर के गवाह हैं, केवल वे ही परमेश्वर द्वारा धन्य किए जाते हैं, और केवल वे ही परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ प्राप्त कर पाते हैं। वे जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं, परमेश्वर के अंतरंग हैं; वे परमेश्वर के प्रिय लोग हैं, और वे परमेश्वर के साथ आशीषों का आनंद ले सकते हैं। केवल ऐसे लोग ही अनंत काल तक जीवित रहेंगे, और केवल वे ही हमेशा के लिए परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा में रहेंगे। परमेश्वर लोगों द्वारा प्रेम किए जाने के लिए है, और वह सभी लोगों द्वारा प्रेम किए जाने योग्य है, परंतु सभी लोग परमेश्वर से प्रेम करने में सक्षम नहीं हैं, और न ही सभी लोग परमेश्वर की गवाही दे सकते हैं और परमेश्वर के सामर्थ्य में सहभागी हो सकते हैं। चूँकि परमेश्वर से सचमुच प्रेम करने वाले लोग ही परमेश्वर की गवाही दे पाते हैं और परमेश्वर के कार्य के लिए अपने सभी प्रयास समर्पित कर पाते हैं, इसलिए वे स्वर्ग के नीचे कहीं भी घूम सकते हैं और कोई उनका विरोध करने की हिम्मत नहीं कर सकता, और वे पृथ्वी पर शक्ति का प्रयोग और परमेश्वर के सभी लोगों पर शासन कर सकते हैं। ये लोग दुनिया भर से एक-साथ आए हैं। वे अलग-अलग भाषाएँ बोलते हैं और उनकी त्वचा के रंग भिन्न-भिन्न हैं, परंतु उनके अस्तित्व का समान अर्थ है; उन सबके पास परमेश्वर से प्रेम करने वाला हृदय है, वे सब एक ही गवाही देते हैं, और उनका एक ही संकल्प और एक ही इच्छा है। जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं, वे समूचे संसार में कहीं भी स्वतंत्रता से घूम सकते हैं; और जो परमेश्वर की गवाही देते हैं, वे संपूर्ण ब्रह्मांड में यात्रा कर सकते हैं। वे लोग परमेश्वर के प्रिय लोग हैं, वे परमेश्वर द्वारा धन्य किए गए लोग हैं, और वे सदैव उसके प्रकाश के भीतर रहेंगे।

— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर से प्रेम करने वाले लोग सदैव उसके प्रकाश के भीतर रहेंगे' से उद्धृत

आज, परमेश्वर ने आधिकारिक रूप से इंसान को पूर्ण करने का कार्य आरंभ कर दिया है। पूर्ण बनाए जाने के लिए, लोगों को उसके वचनों के प्रकाशन, न्याय और ताड़ना से गुज़रना होगा, उन्हें उसके वचनों के परीक्षणों और शुद्धिकरण का अनुभव करना होगा (जैसे सेवाकर्ताओं के परीक्षण), और उन्हें मृत्यु के परीक्षणों को सहन करने योग्य बनना होगा। इसका अर्थ यह है कि परमेश्वर के न्याय, ताड़ना और परीक्षणों के मध्य, जो लोग सचमुच परमेश्वर की इच्छा का पालन करते हैं, वही अपने दिल की गहराइयों से परमेश्वर की स्तुति कर पाते हैं, पूरी तरह से परमेश्वर का आज्ञापालन कर पाते हैं और स्वयं का त्याग कर पाते हैं, इस तरह वे लोग परमेश्वर को सच्चे, पूरे और शुद्ध हृदय से प्रेम करते हैं; ऐसा व्यक्ति पूर्ण होता है, और ठीक यही काम परमेश्वर करना चाहता है, और इसी काम को वह करेगा।

— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर के कार्य के चरणों के विषय में' से उद्धृत

आज तुम्हें पता होना चाहिए कि विजित कैसे हुआ जाए, और विजित होने के बाद लोग अपना आचरण कैसा रखें। तुम कह सकते हो कि तुम पर विजय पा ली गई है, पर क्या तुम मृत्युपर्यंत आज्ञाकारी रह सकते हो? इस बात की परवाह किए बिना कि इसमें कोई संभावना है या नहीं, तुम्हें बिलकुल अंत तक अनुसरण करने में सक्षम होना चाहिए, और कैसा भी परिवेश हो, तुम्हें परमेश्वर में विश्वास नहीं खोना चाहिए। अतंतः तुम्हें गवाही के दो पहलू प्राप्त करने चाहिए : अय्यूब की गवाही—मृत्युपर्यंत आज्ञाकारिता; और पतरस की गवाही—परमेश्वर से परम प्रेम। एक मामले में तुम्हें अय्यूब की तरह होना चाहिए : उसने समस्त भौतिक संपत्ति गँवा दी और शारीरिक पीड़ा से घिर गया, फिर भी उसने यहोवा का नाम नहीं त्यागा। यह अय्यूब की गवाही थी। पतरस मृत्युपर्यंत परमेश्वर से प्रेम करने में सक्षम रहा। जब उसे क्रूस पर चढ़ाया गया और उसने अपनी मृत्यु का सामना किया, तब भी उसने परमेश्वर से प्रेम किया, उसने अपनी संभावनाओं का विचार नहीं किया या सुंदर आशाओं अथवा अनावश्यक विचारों का अनुसरण नहीं किया, और केवल परमेश्वर से प्रेम करने और परमेश्वर की व्यवस्थाओं का पूरी तरह से पालन करने की ही इच्छा की। इससे पहले कि यह माना जा सके कि तुमने गवाही दी है, इससे पहले कि तुम ऐसा व्यक्ति बन सको जिसे जीते जाने के बाद पूर्ण बना दिया गया है, तुम्हें यह स्तर हासिल करना होगा।

— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'विजय के कार्य की आंतरिक सच्चाई (2)' से उद्धृत

आओ, आज हम नूह के जहाज की कहानी पर फिर से विचार करें। यह एक बड़ी घटना थी या छोटी? क्या यह एक बूढ़े आदमी की साधारण-सी कहानी है, जिसने बीते समय में जहाज बनाया था? (नहीं।) नूह एक ऐसा व्यक्ति था, जो सभी मनुष्यों में अधिक अनुकरणीय था, जिसने परमेश्वर का भय माना, परमेश्वर की आज्ञा का पालन किया, और जो कुछ परमेश्वर ने उसे सौंपा था, उसे पूरा किया; परमेश्वर ने उसकी प्रशंसा की थी, और आज परमेश्वर का अनुसरण करने वालों के लिए वह एक आदर्श होना चाहिए। और उसके बारे में सबसे अनमोल बात क्या थी? परमेश्वर के वचनों के प्रति उसका केवल एक ही दृष्टिकोण था : सुनना और स्वीकार करना, स्वीकार करना और पालन करना, और मृत्यु तक पालन करना। उसका यह रवैया ही था, जो सबसे अनमोल था, जिसने उसे परमेश्वर की प्रशंसा दिलाई। जब परमेश्वर के वचनों की बात आई, तो उसने केवल सांकेतिक प्रयास नहीं किया, उसने बेमन से प्रयास नहीं किया, और उसने अपने दिमाग में उनका अध्ययन, विश्लेषण, विरोध या उसे अस्वीकार कर उन्हें अपने दिमाग में पीछे नहीं धकेला; इसके बजाय, उसने उन्हें गंभीरता से सुना, धीरे-धीरे अपने हृदय में उन्हें स्वीकार किया, और फिर इस बात पर विचार किया कि परमेश्वर के वचनों को फलीभूत कैसे किया जाए, उन्हें अभ्यास में कैसे लाया जाए, उन्हें विकृत किए बिना उस तरह कैसे कार्यान्वित किया जाए, जैसा कि मूल रूप में अभीष्ट था। और जिस समय उसने परमेश्वर के वचनों पर विचार किया, उसी समय उसने अपने आप से अकेले में कहा, "ये परमेश्वर के वचन हैं, ये परमेश्वर के निर्देश हैं, परमेश्वर का आदेश हैं, मैं कर्तव्यबद्ध हूँ, मुझे इनका पालन करना ही चाहिए, मैं कुछ भी नहीं छोड़ सकता, मैं किसी भी तरह से परमेश्वर की इच्छा के विरुद्ध नहीं जा सकता, न ही मैं उसके द्वारा कही गई बातों में से किसी चीज को नजरअंदाज कर सकता हूँ, अन्यथा मैं मानव कहलाने के योग्य नहीं हूँगा, मैं परमेश्वर के आदेश के योग्य नहीं हूँगा, और उसके द्वारा उन्नत किए जाने के योग्य नहीं हूँगा। अगर मैं वह सब पूरा करने में असफल रहता हूँ, जो परमेश्वर ने मुझे बताया और सौंपा है, तो मुझे बहुत पछतावा होगा; इससे भी बढ़कर, मैं अपने आप को परमेश्वर के आदेश और उसके द्वारा उन्नत किए जाने के योग्य नहीं जानूँगा, और सृष्टिकर्ता को दोबारा मुँह नहीं दिखा सकूँगा।" वह सब, जो नूह ने अपने दिल में सोचा और विचारा, उसका हर दृष्टिकोण और रवैया, इन सभी ने निर्धारित किया कि कैसे वह परमेश्वर के वचनों को अभ्यास में लाने, और परमेश्वर के वचनों को वास्तविकता बनाने, परमेश्वर के वचनों को फलीभूत करने, हासिल करने में सक्षम हुआ ताकि वे उसके माध्यम से पूरे हो जाएँ और उसके माध्यम से वास्तविकता में बदल जाएँ, शून्य न हो जाएँ। नूह ने जो कुछ भी सोचा, उसके दिल में उठने वाले हर विचार और परमेश्वर के प्रति उसके रवैये को देखते हुए, नूह परमेश्वर के आदेश के योग्य था, वह परमेश्वर के भरोसे का व्यक्ति था, और परमेश्वर द्वारा अधिक पसंद किया जाने वाला व्यक्ति था। परमेश्वर मनुष्य के हर शब्द और कर्म को जाँचता है, वह उसके विचार और मत देखता है। परमेश्वर की दृष्टि में, नूह के लिए ऐसा सोचने में सक्षम होने का अर्थ था कि उसने गलत चुनाव नहीं किया था। नूह ने खुद को परमेश्वर की आज्ञा स्वीकार करने, परमेश्वर का भरोसा प्राप्त करने के योग्य दिखाया, वह परमेश्वर का आदेश पूरा करने में सक्षम था : वह पूरी मानवजाति के बीच एकमात्र विकल्प था।

— "मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'परिशिष्ट तीन : कैसे नूह और अब्राहम ने परमेश्वर के वचन सुने और उसकी आज्ञा का पालन किया (II)' से उद्धृत

जब अय्यूब पहले-पहल अपनी परीक्षाओं से गुज़रा, तब उसकी सारी संपत्ति और उसके सभी बच्चों को उससे छीन लिया गया था, परंतु इसके परिणामस्वरूप वह गिरा नहीं या उसने ऐसा कुछ नहीं कहा जो परमेश्वर के विरुद्ध पाप था। उसने शैतान के प्रलोभनों पर विजय प्राप्त कर ली थी, और उसने अपनी भौतिक संपत्ति, अपनी संतान और अपनी समस्त सांसारिक संपत्तियों को गँवाने की परीक्षा पर विजय प्राप्त कर ली थी, जिसका तात्पर्य यह है कि वह उस समय परमेश्वर का आज्ञापालन करने में समर्थ था जब उसने चीज़ें उससे ली थीं, और परमेश्वर ने जो किया उसके लिए वह परमेश्वर को धन्यवाद देने और उसकी स्तुति करने में समर्थ था। ऐसा था अय्यूब का आचरण शैतान के प्रथम प्रलोभन के दौरान, और ऐसी ही थी अय्यूब की गवाही भी परमेश्वर के प्रथम परीक्षण के दौरान। दूसरी परीक्षा में, अय्यूब को पीड़ा पहुँचाने के लिए शैतान ने अपना हाथ आगे बढ़ाया, और हालाँकि अय्यूब ने इतनी अधिक पीड़ा अनुभव की जितनी उसने पहले कभी महसूस नहीं की थी, तब भी उसकी गवाही लोगों को अचंभित कर देने के लिए काफी थी। उसने एक बार फिर शैतान को हराने के लिए अपनी सहनशक्ति, दृढ़विश्वास, और परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता का, और साथ ही परमेश्वर के प्रति अपने भय का उपयोग किया, और उसका आचरण और उसकी गवाही एक बार फिर परमेश्वर द्वारा अनुमोदित और उपकृत की गई। इस प्रलोभन के दौरान, अय्यूब ने अपने वास्तविक आचरण का उपयोग करते हुए शैतान के समक्ष घोषणा की कि देह की पीड़ा परमेश्वर के प्रति उसकी आस्था और आज्ञाकारिता को पलट नहीं सकती है या परमेश्वर के प्रति उसकी निष्ठा और परमेश्वर के भय को छीन नहीं सकती है; इसलिए कि मृत्यु उसके सामने खड़ी है वह न तो परमेश्वर को त्यागेगा या न ही स्वयं अपनी पूर्णता और खरापन छोड़ेगा। अय्यूब के दृढ़संकल्प ने शैतान को कायर बना दिया, उसकी आस्था ने शैतान को भीतकातर और कँपकँपाता छोड़ दिया, जीवन और मरण की लड़ाई के दौरान वह शैतान के विरुद्ध जितनी उत्कटता से लड़ा था उसने शैतान के भीतर गहरी घृणा और रोष उत्पन्न कर दिया; उसकी पूर्णता और खरेपन ने शैतान की ऐसी हालत कर दी कि वह उसके साथ और कुछ नहीं कर सकता था, ऐसे कि शैतान ने उस पर अपने आक्रमण तज दिए और अपने वे आरोप छोड़ दिए जो उसने अय्यूब के विरुद्ध यहोवा परमेश्वर के समक्ष लगाए थे। इसका अर्थ था कि अय्यूब ने संसार पर विजय पा ली थी, उसने देह पर विजय पा ली थी, उसने शैतान पर विजय पा ली थी, और उसने मृत्यु पर विजय पा ली थी; वह पूर्णतः और सर्वथा ऐसा मनुष्य था जो परमेश्वर का था। इन दो परीक्षाओं के दौरान, अय्यूब अपनी गवाही पर डटा रहा, और उसने अपनी पूर्णता और खरेपन को सचमुच जिया, और परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के अपने जीवन जीने के सिद्धांतों का दायरा व्यापक कर लिया। इन दोनों परीक्षाओं से गुज़रने के पश्चात्, अय्यूब में एक अधिक समृद्ध अनुभव ने जन्म लिया, और इस अनुभव ने उसे और भी अधिक परिपक्व तथा तपा हुआ बना दिया, इसने उसे और मज़बूत, और अधिक दृढ़विश्वास वाला बना दिया, और इसने जिस सत्यनिष्ठा पर वह दृढ़ता से डटा रहा था उसकी सच्चाई और योग्यता के प्रति उसे अधिक आत्मविश्वासी बना दिया। यहोवा परमेश्वर द्वारा ली गई अय्यूब की परीक्षाओं ने उसे मनुष्य के प्रति परमेश्वर की चिंता की गहरी समझ और बोध प्रदान किया, और उसे परमेश्वर के प्रेम की अनमोलता को समझने दिया, जिस बिंदु से परमेश्वर के उसके भय में परमेश्वर के प्रति सोच-विचार और उसके लिए प्रेम भी जुड़ गए थे। यहोवा परमेश्वर की परीक्षाओं ने न केवल अय्यूब को उससे पराया नहीं किया, बल्कि वे उसके हृदय को परमेश्वर के और निकट ले आईं। जब अय्यूब द्वारा सही गई दैहिक पीड़ा अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच गई, तब परमेश्वर यहोवा से जो सरोकार उसने महसूस किया था उसने उसे अपने जन्म के दिन को कोसने के अलावा कोई विकल्प नहीं दिया। ऐसे आचरण की योजना बहुत पहले से नहीं बनाई गई थी, बल्कि यह उसके हृदय के भीतर से परमेश्वर के प्रति सोच-विचार का और उसके लिए प्रेम का स्वाभाविक प्रकाशन था, यह एक स्वाभाविक प्रकाशन था जो परमेश्वर के प्रति उसके सोच-विचार और उसके लिए उसके प्रेम से आया था। कहने का तात्पर्य यह है कि चूँकि वह स्वयं से घृणा करता था, और वह परमेश्वर को यंत्रणा देने का अनिच्छुक था, और यह सहन नहीं कर सकता था, इसलिए उसका सोच-विचार और प्रेम निःस्वार्थता के बिंदु पर पहुँच गए थे। इस समय, अय्यूब ने परमेश्वर के लिए अपनी लंबे समय से चली आती श्रृद्धा और ललक को और परमेश्वर के प्रति निष्ठा को सोच-विचार और प्रेम करने के स्तर तक ऊँचा उठा दिया था। साथ ही साथ, उसने परमेश्वर के प्रति अपनी आस्था और आज्ञाकारिता और परमेश्वर के भय को सोच-विचार और प्रेम करने के स्तर तक ऊँचा उठा दिया था। उसने स्वयं को ऐसा कोई कार्य नहीं करने दिया जो परमेश्वर को हानि पहुँचाता, उसने स्वयं को ऐसे किसी आचरण की अनुमति नहीं दी जो परमेश्वर को ठेस पहुँचाता, और उसने अपने को स्वयं अपने कारणों से परमेश्वर पर कोई दुःख, संताप, या यहाँ तक कि अप्रसन्नता लाने की अनुमति नहीं दी। परमेश्वर की नज़रों में, यद्यपि अय्यूब अब भी वह पहले वाला अय्यूब ही था, फिर भी अय्यूब की आस्था, आज्ञाकारिता, और परमेश्वर के भय ने परमेश्वर को पूर्ण संतुष्टि और आनन्द पहुँचाया था। इस समय, अय्यूब ने वह पूर्णता प्राप्त कर ली थी जिसे प्राप्त करने की अपेक्षा परमेश्वर ने उससे की थी; वह परमेश्वर की नज़रों में सचमुच "पूर्ण और खरा" कहलाने योग्य व्यक्ति बन गया था। उसके धार्मिक कर्मों ने उसे शैतान पर विजय प्राप्त करने दी और परमेश्वर की अपनी गवाही पर डटे रहने दिया। इसलिए, उसके धार्मिक कर्मों ने उसे पूर्ण भी बनाया, और उसके जीवन के मूल्य को पहले किसी भी समय से अधिक ऊँचा उठाने, और श्रेष्ठतर होने दिया, और उन्होंने उसे वह सबसे पहला व्यक्ति भी बना दिया जिस पर शैतान अब और न हमले करेगा और न लुभाएगा। चूँकि अय्यूब धार्मिक था, इसलिए शैतान द्वारा उस पर दोष मढ़े गए और उसे प्रलोभित किया गया था; चूँकि अय्यूब धार्मिक था, इसलिए उसे शैतान को सौंपा गया था; चूँकि अय्यूब धार्मिक था, इसलिए उसने शैतान पर विजय प्राप्त की और उसे हराया था, और वह अपनी गवाही पर डटा रहा था। अब से, अय्यूब ऐसा पहला व्यक्ति बन गया जिसे फिर कभी शैतान को नहीं सौंपा जाएगा, वह सचमुच परमेश्वर के सिंहासन के सम्मुख आ गया और उसने, शैतान की जासूसी या तबाही के बिना, परमेश्वर की आशीषों के अधीन प्रकाश में जीवन जिया...। वह परमेश्वर की नज़रों में सच्चा मनुष्य बन गया था, उसे स्वतंत्र कर दिया गया था ...

— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II' से उद्धृत

जब पतरस को परमेश्वर द्वारा ताड़ना दी जा रही थी, तो उसने प्रार्थना की, "हे परमेश्वर! मेरी देह अवज्ञाकारी है, और तू मुझे ताड़ना देकर मेरा न्याय कर रहा है। मैं तेरी ताड़ना और न्याय से खुश हूँ, अगर तू मुझे न भी चाहे, तो भी मैं तेरे न्याय में तेरा पवित्र और धार्मिक स्वभाव देखता हूँ। जब तू मेरा न्याय करता है, ताकि अन्य लोग तेरे न्याय में तेरा धार्मिक स्वभाव देख सकें, तो मैं संतुष्टि का एहसास करता हूँ। अगर यह तेरा धार्मिक स्वभाव प्रकट कर सके, सभी प्राणी तेरा धार्मिक स्वभाव देख सकें, और अगर यह तेरे लिए मेरे प्रेम को और शुद्ध बना सके ताकि मैं एक धार्मिक व्यक्ति की तरह बन सकूँ, तो तेरा न्याय अच्छा है, क्योंकि तेरी अनुग्रहकारी इच्छा ऐसी ही है। मैं जानता हूँ कि अभी भी मेरे भीतर बहुत कुछ ऐसा है जो विद्रोही है, और मैं अभी भी तेरे सामने आने के योग्य नहीं हूँ। मैं चाहता हूँ कि तू मेरा और भी अधिक न्याय करे, चाहे क्रूर वातावरण के जरिए करे या घोर क्लेश के जरिए; तू मेरा न्याय कैसे भी करे, यह मेरे लिए बहुमूल्य है। तेरा प्यार बहुत गहरा है, और मैं बिना कोई शिकायत किए स्वयं को तेरे आयोजन पर छोड़ने को तैयार हूँ।" यह परमेश्वर के कार्य का अनुभव कर लेने के बाद का पतरस का ज्ञान है, यह परमेश्वर के प्रति उसके प्रेम की गवाही भी है। ... पूर्ण बना दिए जाने पर, अपने जीवन के आखिरी पलों में, पतरस ने कहा "हे परमेश्वर! यदि मैं कुछ वर्ष और जीवित रहता, तो मैं तेरे और ज्यादा शुद्ध और गहरे प्रेम को हासिल करने की कामना करता।" जब उसे क्रूस पर चढ़ाया जा रहा था, तो उसने मन ही मन प्रार्थना की, "हे परमेश्वर! अब तेरा समय आ गया है, तूने मेरे लिए जो समय तय किया था वह आ गया है। मुझे तेरे लिए क्रूस पर चढ़ना चाहिए, मुझे तेरे लिए यह गवाही देनी चाहिए, मुझे उम्मीद है मेरा प्रेम तेरी अपेक्षाओं को संतुष्ट करेगा, और यह और ज्यादा शुद्ध बन सकेगा। आज, तेरे लिए मरने में सक्षम होने और क्रूस पर चढ़ने से मुझे तसल्ली मिल रही है और मैं आश्वस्त हो रहा हूँ, क्योंकि तेरे लिए क्रूस पर चढ़ने में सक्षम होने और तेरी इच्छाओं को संतुष्ट करने, स्वयं को तुझे सौंपने और अपने जीवन को तेरे लिए अर्पित करने में सक्षम होने से बढ़कर कोई और बात मुझे तृप्त नहीं कर सकती। हे परमेश्वर! तू कितना प्यारा है! यदि तू मुझे और जीवन बख्श देता, तो मैं तुझसे और भी अधिक प्रेम करना चाहता। मैं आजीवन तुझसे प्रेम करूँगा, मैं तुझसे और गहराई से प्रेम करना चाहता हूँ। तू मेरा न्याय करता है, मुझे ताड़ना देता है, और मेरी परीक्षा लेता है क्योंकि मैं धार्मिक नहीं हूँ, क्योंकि मैंने पाप किया है। और तेरा धार्मिक स्वभाव मेरे लिए और अधिक स्पष्ट होता जाता है। यह मेरे लिए एक आशीष है, क्योंकि मैं तुझे और भी अधिक गहराई से प्रेम कर सकता हूँ, अगर तू मुझसे प्रेम न भी करे तो भी मैं तुझसे इसी तरह से प्रेम करने को तैयार हूँ। मैं तेरे धार्मिक स्वभाव को देखने की इच्छा करता हूँ, क्योंकि यह मुझे अर्थपूर्ण जीवन जीने के और ज्यादा काबिल बनाता है। मुझे लगता है कि अब मेरा जीवन और भी अधिक सार्थक हो गया है, क्योंकि मैं तेरे लिए क्रूस पर चढ़ा हूँ, और तेरे लिए मरना सार्थक है। फिर भी मुझे अब तक संतुष्टि का एहसास नहीं हुआ है, क्योंकि मैं तेरे बारे में बहुत थोड़ा जानता हूँ, मैं जानता हूँ कि मैं तेरी इच्छाओं को संपूर्ण रूप से पूरा नहीं कर सकता, और मैंने बदले में तुझे बहुत ही कम लौटाया है। मैं अपने जीवन में तुझे अपना सब कुछ नहीं लौटा पाया हूँ; मैं इससे बहुत दूर हूँ। इस घड़ी पीछे मुड़कर देखते हुए, मैं तेरा बहुत ऋणी महसूस करता हूँ, और अपनी सारी गलतियों की भरपाई करने और सारे बकाया प्रेम को चुकाने के लिए मेरे पास यही एक घड़ी है।"

— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान' से उद्धृत

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