एक गरीब परिवार में आने की वजह से, बहुत छोटी उम्र से ही डु जुआन एक बेहतर ज़िंदगी जीने के लिए बहुत सा धन कमाने को दृढ़-संकल्पित थी। अपने इस लक्ष्य को साकार करने के लिए, धन कमाने के लिए वह हाथ से जो कुछ भी काम कर सकती थी वह करने के लिए उसने बहुत जल्दी स्कूल की पढ़ाई छोड़ दी। काम मुश्किल और थकाने वाला होने पर भी वह शिकायत नहीं करती थी। हालाँकि, उसे वांछित परिणाम प्राप्त नहीं हुए। उसने चाहे कितनी ही कड़ी मेहनत क्यों न की, वह उस जीवन को न पा सकी जो वह अपने लिए चाहती थी। सन् 2008 में, बहुत सारा धन कमाने के सपने को मन में रखे, वह और उसका पति काम करने के लिए जापान चले गए। कुछ वर्षों के पश्चात्, कष्टदायक कार्य के दबाव और अत्यधिक कामकाज के घंटों ने उसे थकान से बीमार कर दिया। अस्पताल की जाँच के नतीजों ने उनकी मनोदशा को सबसे बुरी स्थिति में पँहुचा दिया, लेकिन अपने आदर्शों को साकार करने के लिए, डु जुआन हार मानने को तैयार नहीं थी। अपनी बीमारी के बावजूद, अपने मन को संघर्ष पर केंद्रित कर कार्य करती रही। अंततः उसकी हालत की यंत्रणा ने धन का पीछा करने की उसकी प्रगति को रोकने के लिए उसे बाध्य कर दिया। अपनी पीड़ा के बीच, उसने चिंतन करना शुरू किया: कोई मनुष्य आख़िरकार इस जीवन को क्यों जीता है? क्या धन के वास्ते अपने जीवन का जोखिम उठाने में कोई सार्थकता है? क्या ऐसा है कि पैसे वाला जीवन ही एक सुखी जीवन है? ऐसे संदेह उनके मन में लगातार घूमते रहे। थोड़े ही समय के बाद, अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर का उद्धार उसके पास आया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से उसे मनुष्य के जीवन की पीड़ा के स्रोत का पता चला, और उसे यह भी समझ में आ गया कि मनुष्य को किस लिए जीना चाहिए, और इससे पहले कि एक सार्थक मानव जीवन पाया जाए किस प्रकार से जीना चाहिए। ... जब कभी भी वह इस अनुभव के बारे में सोचती, तो डु जुआन भावकुता से आह भर कर कहती: बीमारी के इस दौर ने वाकई उसे अभिशाप से आशीष प्राप्त करवाया है।