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बाइबल की भविष्यवाणियों के प्रति परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप व्यवहार कैसे करें?

बाइबल में लिखा है: "पर पहले यह जान लो कि पवित्रशास्त्र की कोई भी भविष्यद्वाणी किसी के अपने ही विचारधारा के आधार पर पूर्ण नहीं होती, क्योंकि कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई, पर भक्‍त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्‍वर की ओर से बोलते थे" (2 पतरस 1:20-21)। "वैसे ही उसने अपनी सब पत्रियों में भी इन बातों की चर्चा की है, जिनमें कुछ बातें ऐसी हैं जिनका समझना कठिन है, और अनपढ़ और चंचल लोग उन के अर्थों को भी पवित्रशास्त्र की अन्य बातों की तरह खींच तानकर अपने ही नाश का कारण बनाते हैं" (2 पतरस 3:16)। "क्योंकि शब्द मारता है, पर आत्मा जिलाता है" (2 कुरिन्थियों 3:6)। ये पद बताते हैं कि हम भविष्यवाणियों की व्याख्या सचमुच अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के भरोसे नहीं कर सकते हैं, क्योंकि भविष्यवाणियाँ परमेश्वर से आयीं हैं, और केवल पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता के माध्यम से हम उन्हें समझ सकते हैं। हालाँकि, भविष्यवाणियाँ पूरी होने से पहले, हमारे लिए खुद की धारणाओं पर भरोसा करते हुए उनकी शाब्दिक व्याख्या करना आसान है। इससे भविष्यवाणियों की गलत व्याख्या करना आसान हो जाता है। हमारी बेतुकी व्याख्या दूसरों को गुमराह करेगी। उदाहरण के लिए, जब मसीहा के आगमन के बारे में भविष्यवाणियों की बात आई, तो फरीसियों ने अपने विचारों पर भरोसा किया। प्रभु यीशु के जन्म से पहले, यशायाह 7:14, 9:6-7 और मीका 5:2 में की गयी भविष्यवाणियों के शाब्दिक अर्थ के आधार पर, उन्होंने मसीहा के आगमन की कल्पना की: मसीहा बेथलेहेम में एक कुंवारी से पैदा होगा, और उसका नाम इम्मानुएल रखा जाएगा; वह एक महल में बड़ा होगा और एक सिंहासन पर बैठकर इस्राएल पर शासन करेगा। लेकिन, जब भविष्यवाणियाँ पूरी हुईं, तो उनकी कल्पनाएं, तथ्यों के विपरीत ठहरीं। जो उन्होंने वास्तव में देखा था वह यह था: प्रभु विवाहित मरियम से और एक बढ़ई के परिवार में पैदा हुए, और उन्हें यीशु के नाम से पुकारा गया; वे नाज़रेथ से थे, और अंत में उन्हें क्रूस पर चढ़ाया गया था। यह भविष्यवाणियों के शाब्दिक अर्थ से बहुत अलग है। इसलिए, उन्होंने देखा कि प्रभु यीशु के कार्यों और उपदेश में अधिकार और सामर्थ्य था, फिर भी फरीसियों ने प्रभु यीशु को उस मसीहा के रूप में स्वीकार नहीं किया जिसका वादा किया गया था। इसके बजाय, यह कहते हुए कि वे दुष्टात्माओं को बाहर निकालने के लिए शैतानों के राजकुमार पर निर्भर रहते हैं, उन्होंने प्रभु यीशु की निंदा की। इस प्रकार, उन्होंने पवित्र आत्मा के विरुद्ध ईशनिंदा का पाप किया, परमेश्वर के स्वभाव कोका अपमान किया और उन्हें प्रभु की क्षमा कभी हासिल नहीं होगी। और वे आम लोग, जिनके पास कोई विवेक नहीं था, जो फरीसियों के कहे पर विश्वास करते थे, वे भी परमेश्वर का उद्धार खो बैठे। इस उदाहरण से, हम यह देख सकते हैं कि फरीसियों ने अपनी कल्पनाओं और भविष्यवाणियों के शाब्दिक अर्थ पर ही विश्वास रखने के कारण, खुद को और दूसरों को भी बर्बाद कर दिया।

बाइबल की भविष्यवाणियों के प्रति परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप व्यवहार कैसे करें?

दो हज़ार साल बीतने के बाद, अब प्रभु के आगमन का स्वागत करने का महत्वपूर्ण समय है। बाइबल में, प्रभु के आने के बारे में कई अलग-अलग भविष्यवाणियाँ हैं और हम अक्सर उनका शाब्दिक अर्थ निकालते हुए समझाते हैं, इसलिए हमारे पास उनके बारे में कई धारणाएँ हैं। उदाहरण के लिए, जब हम प्रभु के आगमन के बारे में बाइबल के पदों में "आधी रात को" और "चोर के समान" (देखें प्रकाशितवाक्य 16:15; मत्ती 25:6), उल्लेख को पढ़ते हैं तो हम शाब्दिक अर्थ निकालते हुए निश्चित हो जाते हैं कि प्रभु आधी रात को आयेंगे। नतीजतन, रात में कुछ ईसाई, यह उम्मीद करते हुए कि पूरी तरह से कपड़े पहने हुए उन्हें स्वर्गारोहित किया जायेगा, अपने कोट और पतलून में सोते हैं। हालाँकि, जब हम देखते हैं कि बाइबल कहती है, "वह बादलों के साथ आनेवाला है, और हर एक आंख उसे देखेगी" (प्रकाशितवाक्य 1:7), हम इसका शाब्दिक अर्थ लेते हैं कि प्रभु मानवजाति को दर्शन देने के लिए दिन में एक बादल पर लौटेंगे, और हर कोई उन्हें देखेगा। नतीजतन, कुछ लोग अक्सर आसमान में देखते हैं, उस दिन के लिए तरसते हैं जब परमेश्वर अचानक हमारे बीच एक बादल पर उतरेंगे। संक्षेप में, इस विषय के बारे में हमारी कई गलत धारणाएँ हैं। परमेश्‍वर के वचन कहते हैं "जो कुछ भी मनुष्य समझता है, वह शाब्दिक अर्थ के अनुसार है, और साथ ही उसकी कल्पना के अनुसार है; वे पवित्र आत्मा के कार्य के सिद्धांतों के प्रतिकूल हैं, और परमेश्वर के इरादों के अनुरूप नहीं हैं। ... क्या तुम नहीं जानते कि कोई मनुष्य परमेश्वर के रहस्यों की थाह नहीं पा सकता? क्या तुम नहीं जानते कि कोई मनुष्य परमेश्वर के वचनों की व्याख्या नहीं कर सकता? क्या तुम, बिना लेशमात्र संदेह के, निश्चित हो कि तुम्हें पवित्र आत्मा द्वारा प्रबुद्ध और रोशन कर दिया गया था? निश्चित रूप से ऐसा नहीं था कि पवित्र आत्मा ने तुम्हें इतने प्रत्यक्ष तरीके से दिखाया था। क्या वह पवित्र आत्मा था, जिसने तुम्हें निर्देश दिए थे, या तुम्हारी स्वयं की धारणाओं ने तुम्हें ऐसा सोचने के लिए प्रेरित किया?" परमेश्वर के वचन हमें बताते हैं कि कोई भी परमेश्वर के रहस्यों को नहीं समझ सकता है। भविष्यवाणियों की शाब्दिक रूप से व्याख्या करने में अपनी कल्पनाओं पर भरोसा करना परमेश्वर के इरादों के अनुरूप नहीं है, इसलिए हमें प्रभु के आगमन के दृश्यों की कल्पना करना बंद कर देना चाहिए, क्योंकि हम परमेश्वर स्वयं के उन्हें पूरा करने के लिए आने से पहले, यह बिल्कुल नहीं जानते कि भविष्यवाणियां कैसे सच होंगी। हम सभी परमेश्वर की रचनाएं हैं, और इसलिए यह नहीं जानते कि परमेश्वर अपने कार्य को कैसे पूरा करेंगे। भले ही कुछ भविष्यवक्ताओं ने परमेश्वर के प्रकाशन को प्राप्त करने के बाद कुछ भविष्यवाणियां की थीं, लेकिन उन्हें उनका सही अर्थ नहीं पता था, न ही वे ये जानते थे कि वे कैसे पूरी होंगी।

इसलिए, प्रभु की वापसी की भविष्यवाणियों के संबंध में, हमें अधिक प्रार्थना करनी चाहिए, परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय रखना चाहिए और विनम्रता से खोज करनी चाहिए। केवल इस प्रकार से हम पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता प्राप्त कर सकते हैं और प्रभु का स्वागत कर सकते हैं। पतरस, यूहन्ना और नतनएल जैसे प्रभु यीशु के मूल शिष्य, भविष्यवाणियों के शाब्दिक अर्थ से चिपके हुए नहीं थे या इसकी तुलना परमेश्वर ने जो किया उससे नहीं करते थे, और न ही उन्होंने इस बारे में कोई नियम बनाया कि परमेश्वर को कैसे आना चाहिए, बल्कि उन्होंने प्रभु यीशु द्वारा व्यक्त किये गये सत्य पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने देखा कि उनका काम अधिकार और सामर्थ्य से परिपूर्ण था और किसी अन्य के द्वारा नहीं किया जा सकता था। इस कारण से, उन्होंने निर्धारित किया कि प्रभु यीशु आने वाले मसीहा हैं, इस प्रकार प्रभु यीशु का स्वागत करते हुए अंत में परमेश्वर का उद्धार प्राप्त किया। यही वो सही मार्ग है जिसके द्वारा उन्होंने मसीहा का स्वागत किया। इसलिए, जब यह सवाल उठता है कि प्रभु की वापसी के प्रति कैसे पेश आया जाए, तो हमें ऐसा व्यक्ति बनना चाहिए जो खुले दिल से सत्य की तलाश करता है। यदि कोई प्रभु की वापसी की गवाही देता है, तो हमें वैसी गलती नहीं करनी चाहिए जैसी फरीसियों ने की थी—अपनी कल्पनाओं, धारणाओं, और भविष्यवाणियों के शाब्दिक अर्थ पर भरोसा करते हुए आँख बंद करके इनसे इंकार करना—इसके बजाय हमें जांच और खोज करनी चाहिए। केवल इस प्रकार के परमेश्वर पर श्रद्धा रखने वाले हृदय के साथ ही हमें प्रभु का स्वागत करने का मौका मिल सकता है और हम लगभग अनजाने में ही यह समझ जायेंगे कि भविष्यवाणियां कैसे साकार होती हैं।

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