मुख्य किरदार एक निष्ठावान ईसाई है, जो बाइबल के इस पद में दृढ़ता से विश्वास रखता है: "किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिसके द्वारा हम उद्धार पा सकें" (प्रेरितों 4:12)। उसका मानना है कि अगर वह हमेशा प्रभु यीशु का नाम कायम रखेगा, तो प्रभु के आने पर उसे स्वर्ग के राज्य में ले जाया जाएगा। अचानक एक दिन, उसकी पत्नी उसे बताती है कि परमेश्वर ने अंत के दिनों में एक नया नाम रख लिया है, जिससे वह उलझन में पड़ जाता है। जल्दी ही उसे बाइबल से पता चलता है कि पुराने नियम में परमेश्वर का नाम "यहोवा" है, जबकि नये नियम में उसका नाम “यीशु” है। परमेश्वर का नाम वास्तव में बदल सकता है! वह सत्य को खोजने के लिए अपनी धारणाओं को छोड़ने लगता है, और आखिरकार वह परमेश्वर के नामों के रहस्य की समझ हासिल कर लेता है। वह परमेश्वर के नये नाम को स्वीकार कर लेता है, और इस प्रकार वह मेमने के विवाह-भोज में शामिल हो जाता है। परमेश्वर के नामों के पीछे का रहस्य क्या है? इस व्यक्ति के अनुभव सुन कर आप जान सकते हैं।
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