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क्या सचमुच में लोग तुरन्त बदल दिए जाएंगे और स्वर्ग के राज्य में आरोहित किये जाएंगे?

तुरंत बदले जाने और स्वर्ग के राज्य में आरोहित किये जाने के बारे में दो दृष्टिकोण

पहला दृष्टिकोण:

"पर हमारा स्वदेश स्वर्ग में है; और हम एक उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह के वहाँ से आने की प्रतीक्षा करते हैं। वह अपनी शक्ति के उस प्रभाव के अनुसार जिसके द्वारा वह सब वस्तुओं को अपने वश में कर सकता है, हमारी दीन-हीन देह का रूप बदलकर, अपनी महिमा की देह के अनुकूल बना देगा" (फिलिप्पियों 3:20-21)

"और यह क्षण भर में, पलक मारते ही अन्तिम तुरही फूँकते ही होगा क्योंकि तुरही फूँकी जाएगी और मुर्दे अविनाशी दशा में उठाए जाएँगे, और हम बदल जाएँगे" (1 कुरिन्थियों 15:52)

इन पदों के अनुसार चलने वाले, कुछ लोग सोचते हैं कि प्रभु सर्वशक्तिमान है, इसलिए जब वह वापस आएगा और हमारे समक्ष प्रकट होगा, तो हमारी देह का प्रतिरूप एक पल में, पलक झपकते ही बदल जाएगा और हमें प्रभु से मिलने के लिए आकाश में ऊपर उठाया जाएगा, तब हम पाप के नियंत्रण और बंधन से पीड़ित नहीं होंगे, हम पूरी तरह से पवित्र हो जाएंगे और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगे।

दूसरा दृष्टिकोण:

"पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ" (1 पतरस 1:16)

"देख, मैं शीघ्र आनेवाला हूँ; और हर एक के काम के अनुसार बदला देने के लिये प्रतिफल मेरे पास है" (प्रकाशितवाक्य 22:12)

प्रभु यीशु के इन वचनों के आधार पर, कुछ लोगों का मानना है कि प्रभु धार्मिक और पवित्र हैं, इसलिए वे वापस आने पर सभी को उनके कार्यों के आधार पर पुरस्कृत या दंडित करेंगे। हालांकि, चाहे हम पाप करें या नहीं, प्रभु हमें तुरंत पवित्र बना देता है और सीधे स्वर्ग के राज्य में आरोहित करता है, तो फिर स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने का हमारे कर्मों से कोई लेना-देना नहीं है। अगर ऐसा होता, तो प्रभु यीशु के ऐसा कहने का क्या अर्थ होता, "हर एक के काम के अनुसार बदला देने के लिये"? इसलिए, वे इस विचार से सहमत नहीं हैं कि लोग तुरंत बदल दिए जाएंगे और स्वर्ग के राज्य में आरोहित किये जाएंगे।

क्या सचमुच में लोग तुरन्त बदल दिए जाएंगे और स्वर्ग के राज्य में आरोहित किये जाएंगे?

आगे, हम इस बारे में संगति करेंगे कि क्या लोग सचमुच में तुरंत बदल दिए जाएंगे और उन्हें स्वर्ग के राज्य में ले जाया जाएगा।

स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने का मानक परमेश्वर के वचनों पर आधारित है या मनुष्य के शब्दों पर?

यह दृष्टिकोण कि लोग सचमुच में तुरंत बदल दिए जाएंगे और स्वर्ग के राज्य में आरोहित किये जाएंगे, पौलुस के इस कथन पर आधारित है, "और यह क्षण भर में, पलक मारते ही अन्तिम तुरही फूँकते ही होगा क्योंकि तुरही फूँकी जाएगी और मुर्दे अविनाशी दशा में उठाए जाएँगे, और हम बदल जाएँगे" (1 कुरिन्थियों 15:52)। जैसा कि हम जानते हैं, प्रभु यीशु ने कभी नहीं कहा कि मनुष्य तुरंत बदल दिए जाएंगे और स्वर्ग के राज्य में आरोहित किये जाएंगे, न ही पौलुस को छोड़कर उसके अन्य शिष्यों ने ऐसी बात कही थी। हालांकि, क्या पौलुस के शब्दों को विश्वासियों के स्वर्गारोहण के लिए एक आधार के रूप में इस्‍तेमाल किया जा सकता है? प्रभु यीशु स्वर्गिक राज्य के राजा हैं, जो सत्य व्‍यक्‍त करते हैं; केवल प्रभु के वचनों में ही अधिकार है। इसलिए, स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने की बात पर, हमें अंतिम रूप में केवल प्रभु यीशु के वचनों के अनुसार ही चलना चाहिए। पौलुस केवल एक मनुष्य, एक प्रेरित था जिसे सुसमाचार फैलाने का कार्य सौंपा गया था; वह मसीह नहीं था, और सत्य व्यक्त नहीं कर सकता था, उसने जो कहा वह केवल उसके अनुभवों और ज्ञान का प्रतिनिधित्व कर सकता था। इसलिए उसके कथनों में मनुष्य की इच्छा मिश्रित होना निश्चित था। इसके अलावा, पौलुस ने यह कहने की हिम्मत नहीं की कि उसके कथन परमेश्वर से प्रेरित थे, न ही कहना चाहिए कि उसके पत्र परमेश्वर के वचन थे; वह अक्सर कलीसिया को अपना पत्र "पौलुस की ओर से जो परमेश्‍वर की इच्छा से यीशु मसीह का प्रेरित होने के लिये बुलाया गया" (1 कुरिन्थियों 1:1) या "मसीह यीशु के दास पौलुस और तीमुथियुस" (फिलिप्पियों 1:1), के साथ या इसी तरह के अन्य शब्दों के साथ शुरू करता था। जाहिर है, पौलुस के वचन परमेश्वर के वचन का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते थे, और वह बिल्कुल भी यह तय नहीं कर सकता था कि हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर पाएंगे या नहीं। इसलिए, पौलुस के कथनों के आधार पर, प्रभु की वापसी पर हमारा स्वर्गिक राज्य में उठाये जाने का इंतजार करना गलत है।

वास्तव में, स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना उतना सरल नहीं है जितना हम सोचते हैं। प्रभु यीशु ने कहा था, "जो मुझसे, 'हे प्रभु, हे प्रभु' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है" (मत्ती 7:21)। प्रभु के वचन बिल्‍कुल स्पष्ट हैं। केवल स्वर्गिक पिता की इच्छा का पालन करने वाले लोग ही स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं। इनका तात्‍पर्य उन लोगों से है जो न केवल परमेश्वर के लिए मेहनत और काम करते हुए खुद को खपाते हैं बल्कि परमेश्वर के वचनों का पालन भी करते हैं और सभी चीज़ों में उनका अभ्‍यास भी करते हैं; वे जो कुछ करते हैं वह सब परमेश्वर को संतुष्ट करने और उससे प्रेम करने के लिए होता है। बिल्कुल इब्राहीम की तरह, जब परमेश्वर ने उससे अपने इकलौते बेटे इसाक को भेंट के रूप में देने के लिए कहा, उसने परमेश्वर के साथ तर्क नहीं किया, न ही परमेश्वर को लेकर शिकायत की; इसके बजाय, उसने सचमुच में परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार इसहाक को वापस परमेश्‍वर को लौटा दिया। अंत में, आज्ञाकारिता की उसकी गवाही के कारण, इब्राहीम को परमेश्वर द्वारा स्वीकार किया गया। एक और उदाहरण पतरस का है: जब परमेश्वर ने उसे कलीसिया सौंपा, तो वह परमेश्वर की आवश्यकताओं के अनुसार कलीसिया की रखवाली कर सका; रोमन सरकार द्वारा क्रूस पर ठोंक जाने पर वह मृत्यु का पालन कर सका, और परमेश्वर के लिए उल्टा सूली पर चढ़ाया गया, जो एक शानदार गवाही थी। यह देखा जा सकता है कि जो लोग स्वर्गिक पिता की इच्छा का पालन करते हैं, वे न केवल बाहरी रूप से परमेश्वर के लिए अपने आपको खर्च करते हैं, बल्कि आज्ञाकारिता की गवाही भी देते हैं, और परमेश्वर के लिए प्रेम की अभिव्यक्ति करते हैं। आइए एक नज़र डालते हैं जो हम परमेश्वर में अपने विश्वास में बिताते हैं। हम अक्सर पाप में रहते हैं, लालचवश कार्य करते हैं और दुष्ट विचार रखते हैं, और केवल हर चीज में अपने हितों की परवाह करते हैं, हालांकि हम प्रभु के लिए काम कर सकते हैं, सुसमाचार फैलाने के लिए पीड़ित हो और कीमत चुका सकते हैं; हम अक्सर अपने हितों के लिए खुद के बावजूद झूठ बोलते हैं, और जब अन्य लोग कुछ ऐसा करते हैं जो हमारे हितों का उल्लंघन करता है, तो हम उनके साथ लड़ने लगते हैं, प्रभु के वचनों का अभ्यास करने में पूरी तरह से असमर्थ होकर, प्रभु के प्रति थोड़ी सी भी श्रद्धा के बिना; हम सिर्फ शांति और खुशी के लिए प्रभु से प्रार्थना करते रहते हैं जब हमारे साथ अप्रिय चीजें होती हैं, तो प्रभु की इच्छा का अनुसरण करने और उसके वचनों का अभ्यास करने पर ध्यान नही केंद्रित करते हैं, और जब वह उन अप्रिय चीजों को नहीं हटाता है तो हम प्रभु को दोष देते हैं और उसकी आलोचना करते हैं...। यह सब दर्शाता है कि हममें पूरी तरह से परमेश्वर के प्रति कोई आज्ञाकारिता या प्रेम नहीं है, और हम वे लोग नहीं हैं जो स्वर्गिक पिता की इच्छा का पालन करते हैं। तो, यह कैसे संभव है कि जब प्रभु वापस आएगा तो हमारा प्रतिरूप तुरन्त बदल देगा और हमें स्वर्ग के राज्य में ले जाएगा?

इसके अलावा, हम पौलुस के वचनों को स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के मानक के रूप में क्यों ले सकते हैं, इसका कारण यह है कि हमें सच्चाई पसंद नहीं है। हम स्पष्ट रूप से जानते हैं कि हमारे भीतर भ्रष्टाचार है, लेकिन हम अपने आप को बदलने के लिए अपनी देह को छोड़ने और प्रभु के वचनों का अभ्यास करने के लिए तैयार नहीं हैं। हम बस प्रतीक्षा कर रहे हैं कि प्रभु अपनी वापसी पर तुरंत हमारा प्रतिरूप बदल दें ताकि हम पीड़ित हुए या कीमत चुकाए बिना उससे आशीर्वाद प्राप्त कर सकें। फलस्‍वरूप, हम अपने आप को आश्‍वासन देने के लिए पौलुस के शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। वास्तविक जीवन में, हममें से कोई भी प्रभु के वचनों का अभ्यास करने पर ध्यान केंद्रित नहीं करता है, और हम अक्सर अपने आपको लिप्त कर लेते हैं, पाप के प्रसार को स्वतंत्र छोड़़ देते हैं, और हममे परमेश्वर से डरने वाले हृदय का कोई टुकड़ा नहीं होता है। हम एक अविश्वासी की तरह पाप में रहते हैं, और पश्चाताप नहीं करते हैं, फिर भी हम अक्सर कहते हैं, "मैंने वर्षों से प्रभु पर विश्वास किया है, प्रभु ने मेरे पापों को माफ कर दिया है, और प्रभु वापस लौटने पर मुझे तुरन्त पवित्र बना देगा, जिससे मैं अभी भी स्वर्ग राज्य में प्रवेश करने के योग्य बन जाऊंगा।" वास्तव में, इस तरह हमारा विश्वास अंत में कुछ भी नहीं आएगा। परमेश्वर कहता है, "पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ" (1 पतरस 1:16)। अगर हम अपने भ्रष्ट स्वभाव से बच नहीं निकलते हैं या शुद्धि प्राप्त नहीं करते हैं, तो हम परमेश्वर का चेहरा नहीं देख पाएंगे। यह संभव होगा कि स्वर्गिक पिता की इच्छा का पालन करने वाले लोग ही तुरन्त बदले जाएंगे और स्वर्ग के राज्य में स्वर्गारोहण करेंगे; हालांकि, हम जो अक्सर पाप करते हैं, तुरन्त कभी नहीं बदले जाएंगे और स्वर्ग के राज्य में नहीं ले जाए जाएंगे।

परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, तो वह हमें तुरन्त क्यों नहीं बदल देता है?

कुछ लोग कह सकते हैं, "परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, तो वह हमें तुरन्त क्यों नहीं बदल सकता है और हमें एक वचन से पवित्र क्यों नहीं बना सकता है?"

यह बिल्कुल सच है कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान है। परमेश्वर ने एक वचन से आकाश और पृथ्वी और सभी चीज़ों को बनाया है; परमेश्वर ने एक वचन से लाजरस को पुनर्जीवित किया। निश्चित रूप से, परमेश्वर हमें तुरन्त बदल सकता है और अपने प्राधिकार और शक्ति से हमें पवित्र बना सकता है, लेकिन वह ऐसा नहीं करेगा, क्योंकि परमेश्वर के कार्य के पीछे सिद्धांत हैं। परमेश्वर का उसके सर्वशक्तिमान पहलू के साथ-साथ उसका व्यावहारिक पहलू भी है, और वह कभी भी बिना किसी उद्देश्य के कुछ नहीं करता है।

नूह के समय में, मानव जाति बुरी तरह भ्रष्ट हो गई थी, खाने, पीने, मौज-मस्‍ती, बुराई और वेश्यावृत्ति में लिप्त हो गई थी। पाप में रहते हुए, उनके दिलों में परमेश्वर के लिए कोई स्थान नहीं था; वे परमेश्वर की आराधना करने को तैयार नहीं थे। यही कारण है कि परमेश्वर ने इस दुष्ट मानवजाति को नष्ट करने का निर्णय लिया। परमेश्वर ने इस बुरी दुनिया के विनाश से पहले, नूह को बड़ी नाव बनाने का आदेश दिया; नूह ने परमेश्वर के निर्देश का पालन किया और उसे बनाते हुए 100 साल से अधिक समय बिताया। साथ ही, इस समय के दौरान, नूह ने अपने चारों ओर लोगों में सुसमाचार का प्रचार किया, लेकिन किसी ने भी उसकी बातों पर विश्वास नहीं किया। अंतिम परिणाम यह निकला कि जब परमेश्वर का समय आया, तो परमेश्वर ने उस समय के सभी लोगों को नष्ट करने के लिए बाढ़ भेजी, और केवल नूह का आठ का परिवार बाढ़ से बच सका क्योंकि नूह परमेश्वर से डरता था और उसने बुराई को त्याग दिया था। अपनी धारणाओं और कल्पनाओं में, हम सोचते हैं कि परमेश्वर को पहले नूह के आठ के परिवार को तुरंत हवा में ले जाना चाहिए था क्योंकि वह सर्वशक्तिमान है, ताकि नूह को बड़़ी नाव के निर्माण में इतना प्रयास न करना पड़ता। लेकिन, परमेश्‍वर ने ऐसा क्यों नहीं किया? क्या ऐसा हो सकता है कि परमेश्वर ऐसा करने में असमर्थ था? बिलकूल नही. जिस क्षण से नूह ने बड़ी नाव का निर्माण करना शुरू किया, उस क्षण से लेकर उसके पूरा होने तक, मानवजाति के प्रति प्रेम और उसकी फिक्र के चलते, परमेश्वर अभी भी मानवजाति द्वारा पश्चाताप करने और बुराई के मार्ग से वापस लौट आने की उम्मीद कर रहा था। यह मानवजाति के प्रति उसकी अत्यंत सहनशीलता और दया दिखाता था। केवल तभी जब मानवजाति को नहीं बचाया जा सकता था, परमेश्वर को उन्हें नष्ट करना पडा।

चलिए उदाहरण के लिए, जब प्रभु यीशु मानव जाति को छुटकारा दिलाने के लिए शरीरधारी बन गए, तो वह साढ़े तैंतीस साल तक पृथ्वी पर रहे, संसार के दुखों को अनुभव किया, और मानवजाति द्वारा ठुकराए, बदनाम और निंदा किए गए; अंत में, उन्‍हें मानव जाति के लिए पाप की भेंट के रूप में सलीब पर बेरहमी से ठोंक दिया गया। प्रभु के सूली पर चढ़ाए जाने की बात करते हुए, हम आमतौर पर सोचते हैं कि परमेश्वर को सूली पर नहीं चढ़ाया जाना चाहिए था क्योंकि वह इतना सर्वशक्तिमान हैं, और यह कि एक वचन से, परमेश्वर मानवजाति को पाप से छुटकारा दिला सकता है। हालांकि, परमेश्वर का कार्य हमारी मानवीय धारणाओं का प्रतिकार करता है। परमेश्वर ने व्यावहारिक रूप से अपना कार्य करने के लिए शरीर और रक्त वाले मनुष्‍य पुत्र के रूप में व्यक्तिगत रूप से देहधारण किया, और मानवजाति के छुटकारे के लिए अपने आपको पाप की भेंट के रूप में पेश किया, ताकि वे उसके छुटकारे के कारण जीवित रह सकें। यह परमेश्वर के कार्य में व्यावहारिक पक्ष दर्शाता है। इसके अलावा, प्रभु यीशु के जी उठने से जो उसके मरने के तीन दिन बाद हुआ था, हम देख सकते हैं कि परमेश्वर के पास महान शक्ति है, और मृत्यु और पाताललोक के बंधनों को तोड़कर मुक्त होने का प्राधिकार है। इस प्रकार परमेश्वर का सर्वशक्तिमान पहलू प्रकट होता है। अगर उस समय परमेश्वर ने एक वचन से मानवजाति के सभी पापों को माफ कर दिया होता, तो परमेश्वर के प्रतिरोध का फरीसियों का राक्षसी सार कैसे उजागर होता? शैतान को कैसे कायल किया जा सकता था? और परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव कैसे प्रकट हो सकता था? जाहिर है, परमेश्वर सभी लोगों को बेनकाब करने, सत्य के प्रेमियों को सत्‍य से घृणा करने वालों से अलग करने के लिए अपने व्यावहारिक कार्य का इस्‍तेमाल कर रहा था; साथ ही, अपने व्यावहारिक कार्य के माध्यम से, वह शैतान को पराजित कर सकता था, शैतान को शर्मसार कर सकता था और उसे कायल कर सकता था। इससे हमें पता चलता है कि परमेश्वर बहुत अधिक सर्वशक्तिमान है, बहुत अधिक बुद्धिमान है।

अब, हम समझते हैं कि परमेश्वर के कार्य का हर कदम उसके द्वारा हमारे अंदर व्यावहारिक रूप से किया जाता है, और यह न केवल मनुष्य को बचाने और परिपूर्ण करने के लिए है बल्कि मनुष्य को बेनकाब और समाप्त करने के लिए भी है। जैसा कि हम सभी जानते हैं, अंत के दिनों में, परमेश्वर सभी को उनकी किस्‍म के अनुसार अलग करने का कार्य करेगा; वह गेहूं को बारदाना से, भेड़ों को बकरियों से और अच्छे सेवकों को बुरे सेवकों से अलग करेगा। अगर परमेश्वर व्यावहारिक रूप से अपने कार्य को नहीं करता है, तो सच्चे विश्वासी और झूठे विश्वासी कैसे बेनकाब होंगे? इसलिए, हमारी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर प्रभु से तुरन्त हमें बदलने और हमें स्वर्गिक राज्य में ले जाने की हमारी आशा परमेश्‍वर के व्यावहारिक काम के अनुरूप नहीं है।

पाप में जीने वाले हम शुद्धि कैसे प्राप्त कर सकते हैं?

चूंकि परमेश्वर के कार्य में एक व्यावहारिक पक्ष है, इसलिए वह तुरन्त हमारा प्रतिरूप नहीं बदलेगा और हमें स्वर्ग के राज्य में नहीं ले जाएगा। फिर परमेश्वर अंत के दिनों में मनुष्य को शुद्ध करने का अपना कार्य कैसे करेगा?

वास्तव में, अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य का उल्लेख करने वाली बाइबिल की भविष्यवाणियाँ हैं। उदाहरण के लिए, "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा, परन्तु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। "जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैंने कहा है, वह अन्तिम दिन में उसे दोषी ठहराएगा" (यूहन्ना 12:48)। "क्योंकि वह समय आ पहुँचा है, कि पहले परमेश्‍वर के लोगों का न्याय किया जाए" (1 पतरस 4:17)। ये भविष्यवाणियाँ हमें बताती हैं कि जब परमेश्वर अंत के दिनों में लौटेगा, तो वह न्याय का कार्य करने, सभी सत्य में हमारा मार्गदर्शन करने और व्यावहारिक रूप से हमारा पापी स्वभाव विभक्‍त करने के लिए सत्य को व्यक्त करेगा, ताकि हम शुद्धि प्राप्त कर सकें। इसलिए, शुद्ध करने का परमेश्वर का कार्य वास्तव में हमारी कल्पना में परिवर्तन के क्षण जितना सरल नहीं है। जैसे वचनों का एक गद्यांश कहता है, "तुम लोगों को परमेश्वर की इच्छा देख पाना चाहिए, और तुम्हें देखना चाहिए कि परमेश्वर का कार्य आकाश और पृथ्वी और अन्य सब वस्तुओं के सृजन जितना सीधा-सरल नहीं हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि आज का कार्य उन लोगों का कायापलट करना है जो भ्रष्ट किए जा चुके हैं, जो बेहद सुन्न हैं, यह उन्हें शुद्ध करने के लिए है जो सृजित तो किए गए थे किंतु शैतान द्वारा वशीभूत कर लिए गए। यह आदम और हव्वा का सृजन नहीं है, यह प्रकाश का सृजन, या प्रत्येक पौधे और पशु का सृजन तो और भी नहीं है। परमेश्वर शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दी गई चीज़ों को शुद्ध करता है और फिर उन्हें नए सिरे से प्राप्त करता है; वे ऐसी चीज़ें बन जाती हैं जो उसकी होती हैं, और वे उसकी महिमा बन जाती हैं। यह वैसा नहीं है जैसा मनुष्य कल्पना करता है, यह आकाश और पृथ्वी और उनमें निहित सभी वस्तुओं के सृजन जितना, या शैतान को अथाह कुण्ड में जाने का श्राप देने के कार्य जितना सीधा-सरल नहीं है; बल्कि, यह मनुष्य का कायापलट करने का कार्य है, उन चीज़ों को जो नकारात्मक हैं, और उसकी नहीं हैं, ऐसी चीजों में बदलने का कार्य है जो सकारात्मक हैं और उसकी हैं। परमेश्वर के कार्य के इस चरण के पीछे का यही सत्य है। तुम लोगों को यह समझना ही चाहिए, और विषयों को अत्यधिक सरलीकृत करने से बचना चाहिए। परमेश्वर का कार्य किसी भी साधारण कार्य के समान नहीं है। इसकी उत्कृष्टता और बुद्धिमता मनुष्य की सोच से परे है। परमेश्वर कार्य के इस चरण के दौरान सभी चीज़ों का सृजन नहीं करता है, किंतु वह उन्हें नष्ट भी नहीं करता है। इसके बजाय, वह अपनी सृजित की गई सभी चीज़ों का कायापलट करता है, और शैतान द्वारा दूषित कर दी गई सभी चीजों को शुद्ध करता है। और इस प्रकार, परमेश्वर एक महान उद्यम आरंभ करता है, जो परमेश्वर के कार्य का संपूर्ण महत्व है। इन वचनों में परमेश्वर का जो कार्य तुम देखते हो, क्या वह सचमुच इतना सीधा-सरल है?" ('क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है, जितना मनुष्य कल्पना करता है?')

जैसा कि इस गद्यांश में कहा गया है, वास्तविक तथ्य तद्नुसार हैं। शुरुआत में परमेश्‍वर ने एक वचन से आकाश और पृथ्वी और सभी चीजों को बनाया। हम मनुष्यों को शैतान द्वारा भ्रष्ट किए जाने के बाद, शैतानी जहर हमारा जीवन बन गया हैं, जैसे कि,“मैं अपने स्वर्ग और पृथ्वी पर स्वयं प्रभु हूं,” "मैं अपने स्वर्ग और पृथ्वी पर स्वयं प्रभु हूं," "जो मेरा अनुपालन करते हैं उन्हें फूलने-फलने दो और जो मेरा विरोध करते हैं उन्हें नष्ट होने दो," "जैसे एक पेड़ अपनी छाल के लिए जीता है, उसी तरह एक मनुष्य अपने चेहरे के लिए जीता है," और "स्वर्ग उन लोगों को नष्ट कर देता है जो स्वयं के लिए नहीं हैं।" इन शैतानी जहरों के अनुसार जीते हुए, हम जो जीवन जीते हैं वह अहंकार और दम्‍भ, कुटिलता और चालाकी, स्वार्थ और नीचता, और अन्य शैतानी स्वभाव हैं। हम सरलता से प्रभु के वचनों का अभ्यास नहीं कर सकते हैं, और अक्सर पाप में रहते हैं और परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं, शुरुआत में परमेश्वर द्वारा बनाई गई मनुष्य की समानता को खो देते हैं। अंत के दिनों में, परमेश्वर सत्य व्यक्त करता है और हमारा भ्रष्टाचार अलगाने के लिए न्याय का कार्य करता है, और साथ ही वह व्यावहारिक रूप से हमसे निपटता है और हमारी काँट-छाँट करता है, और आजमाता और हमें परिष्कृत करता है, ताकि हम शैतान द्वारा अपने भ्रष्टाचार का तथ्य और परमेश्वर के प्रति अपने प्रतिरोध की उत्पत्ति को स्पष्ट रूप से देखें, परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव और उसकी पवित्रता का कुछ सच्चा ज्ञान प्राप्त करें, और उसके प्रति श्रद्धा का हृदय विकसित करें। केवल तभी हम सचमुच में अपने भ्रष्ट स्वभाव से घृणा कर सकेंगे, अपने आपको धोखा दे सकेंगे, और परमेश्वर के वचनों के अनुसार कार्य कर सकेंगे। और जितना अधिक हम सत्य का अभ्यास करेंगे, हमारे हृदय में परमेश्वर के प्रति उतनी ही अधिक श्रद्धा और आज्ञाकारिता होगी; अंत में, हम सब कुछ में परमेश्वर के वचनों का अनुसरण कर पाएंगे, और परमेश्वर की इच्छा का पालन करने वाले लोग बन जाएंगे। कहने का मतलब यह है कि परमेश्‍वर के लिए हमें, जो गहराई से भ्रष्ट कर दिए गए हैं, सत्य को प्राप्त करने और वे लोग बनने की अनुमति देने के लिए लंबी प्रक्रिया की आवश्यकता है जो परमेश्वrर को जानते हैं और उसकी की आज्ञा का पालन और आराधना करते हैं। इसलिए, परमेश्वर जो कार्य करता है और अंत के दिनों में वह हमारे अंदर जो कीमत चुकाता है वह परमेश्वर द्वारा संसार की रचना की कीमत की तुलना में बहुत अधिक है। परमेश्वर हमारे अंदर व्यावहारिक रूप से काम करता है; हमें व्यावहारिक रूप से कष्टों को भुगतना और परमेश्वर के साथ सहयोग करना होगा। हमें परमेश्वर के वचनों का न्याय और ताड़ना स्वीकार करना, उसके कार्य का अनुभव करना, और उसके वचनों का अभ्यास करना होगा, और केवल तभी हम थोड़ा - थोड़ा करके अपने भ्रष्टाचार दूर कर पाएंगे, और अंत में, हम परमेश्वर के वचनों को सुनने वाले और परमेश्वर के मार्ग पर चलने वाले लोग बन जाएंगे। इस प्रकार, परमेश्वर हमें जीतता है, जबकि साथ ही वह शैतान को पराजित करता है। यह वह आवश्यक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से हम पूर्ण मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। जैसे कि रहस्योद्घाटन 22:14 भविष्यवाणी करता है, "धन्य वे हैं, जो अपने वस्त्र धो लेते हैं, क्योंकि उन्हें जीवन के पेड़ के पास आने का अधिकार मिलेगा, और वे फाटकों से होकर नगर में प्रवेश करेंगे।"

इसलिए, जब कोई यह गवाही देता है कि प्रभु लौट आया है, और अंत के दिनों में न्याय और शुद्धि का कार्य करने के लिए सत्य व्यक्त किया है, तो हमें तुरंत अपने को बदले जाने और स्वर्ग के राज्य में स्वर्गारोहण का दृष्टिकोण त्‍याग देना चाहिए और अंत के दिनों का परमेश्वर का न्याय कार्य स्वीकार करना चाहिए। केवल इसी तरह ही हमें शुद्धि प्राप्त करने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने का अवसर मिल सकता है।

यदि आप स्‍वर्ग के राज्‍य के भेद के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं तो हमारे “स्वर्ग के राज्य का रहस्य” पृष्ठ पर या नीचे दी गई सामग्री का अवलोकन करें।

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