ऑनलाइन बैठक

मेन्‍यू

यशायाह 64

1भला हो कि तू आकाश को फाड़कर उतर आए और पहाड़ तेरे सामने काँप उठे।

2जैसे आग झाड़-झँखाड़ को जला देती या जल को उबालती है, उसी रीति से तू अपने शत्रुओं पर अपना नाम ऐसा प्रगट कर कि जाति-जाति के लोग तेरे प्रताप से काँप उठें!

3जब तूने ऐसे भयानक काम किए जो हमारी आशा से भी बढ़कर थे, तब तू उतर आया, पहाड़ तेरे प्रताप से काँप उठे।

4क्योंकि प्राचीनकाल ही से तुझे छोड़ कोई और ऐसा परमेश्‍वर न तो कभी देखा गया और न कान से उसकी चर्चा सुनी गई जो अपनी बाट जोहनेवालों के लिये काम करे। (भज. 31:19, 1 कुरि. 2:9)

5तू तो उन्हीं से मिलता है जो धर्म के काम हर्ष के साथ करते, और तेरे मार्गों पर चलते हुए तुझे स्मरण करते हैं। देख, तू क्रोधित हुआ था, क्योंकि हमने पाप किया; हमारी यह दशा तो बहुत समय से है, क्या हमारा उद्धार हो सकता है?

6हम तो सब के सब अशुद्ध मनुष्य के से हैं*, और हमारे धर्म के काम सब के सब मैले चिथड़ों के समान हैं। हम सब के सब पत्ते के समान मुर्झा जाते हैं, और हमारे अधर्म के कामों ने हमें वायु के समान उड़ा दिया है।

7कोई भी तुझसे प्रार्थना नहीं करता, न कोई तुझसे सहायता लेने के लिये चौकसी करता है कि तुझसे लिपटा रहे; क्योंकि हमारे अधर्म के कामों के कारण तूने हम से अपना मुँह छिपा लिया है, और हमें हमारी बुराइयों के वश में छोड़ दिया है।

8तो भी, हे यहोवा, तू हमारा पिता है; देख, हम तो मिट्टी है, और तू हमारा कुम्हार है; हम सब के सब तेरे हाथ के काम हैं*। (भज. 100:3, गला. 3:26)

9इसलिए हे यहोवा, अत्यन्त क्रोधित न हो, और अनन्तकाल तक हमारे अधर्म को स्मरण न रख। विचार करके देख, हम तेरी विनती करते हैं, हम सब तेरी प्रजा हैं।

10देख, तेरे पवित्र नगर जंगल हो गए, सिय्योन सुनसान हो गया है, यरूशलेम उजड़ गया है।

11हमारा पवित्र और शोभायमान मन्दिर, जिसमें हमारे पूर्वज तेरी स्तुति करते थे, आग से जलाया गया, और हमारी मनभावनी वस्तुएँ सब नष्ट हो गई हैं।

12हे यहोवा, क्या इन बातों के होते हुए भी तू अपने को रोके रहेगा? क्या तू हम लोगों को इस अत्यन्त दुर्दशा में रहने देगा?

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