1इसलिए तुम लोग अपने भाइयों से अम्मी और अपनी बहनों से रुहामा कहो। (1 पत. 2:10)
2"अपनी माता से विवाद करो, विवाद क्योंकि वह मेरी स्त्री नहीं, और न मैं उसका पति हूँ। वह अपने मुँह पर से अपने छिनालपन को और अपनी छातियों के बीच से व्यभिचारों को अलग करे;
3नहीं तो मैं उसके वस्त्र उतारकर उसको जन्म के दिन के समान नंगी कर दूँगा, और उसको मरुस्थल के समान और मरूभूमि सरीखी बनाऊँगा, और उसे प्यास से मार डालूँगा।
4उसके बच्चों पर भी मैं कुछ दया न करूँगा, क्योंकि वे कुकर्म के लड़के हैं।
5उनकी माता ने छिनाला किया है; जिसके गर्भ में वे पड़े, उसने लज्जा के योग्य काम किया है। उसने कहा, 'मेरे यार जो मुझे रोटी-पानी, ऊन, सन, तेल और मद्य देते हैं, मैं उन्हीं के पीछे चलूँगी।'
6इसलिए देखो, मैं उसके मार्ग को काँटों से घेरूँगा, और ऐसा बाड़ा खड़ा करूँगा कि वह राह न पा सकेगी।
7वह अपने यारों के पीछे चलने से भी उन्हें न पाएगी; और उन्हें ढूँढ़ने से भी न पाएगी। तब वह कहेगी, 'मैं अपने पहले पति के पास फिर लौट जाऊँगी, क्योंकि मेरी पहली दशा इस समय की दशा से अच्छी थी।'
8वह यह नहीं जानती थी, कि अन्न, नया दाखमधु और तेल मैं ही उसे देता था, और उसके लिये वह चाँदी सोना जिसको वे बाल देवता के काम में ले आते हैं, मैं ही बढ़ाता था।
9इस कारण मैं अन्न की ऋतु में अपने अन्न को, और नये दाखमधु के होने के समय में अपने नये दाखमधु को हर लूँगा; और अपना ऊन और सन भी जिनसे वह अपना तन ढाँपती है, मैं छीन लूँगा।
10अब मैं उसके यारों के सामने उसके तन को उघाड़ूँगा, और मेरे हाथ से कोई उसे छुड़ा न सकेगा।
11और मैं उसके पर्व, नये चाँद और विश्रामदिन आदि सब नियत समयों के उत्सवों का अन्त कर दूँगा।
12मैं उसकी दाखलताओं और अंजीर के वृक्षों को*, जिनके विषय वह कहती है कि यह मेरे छिनाले की प्राप्ति है जिसे मेरे यारों ने मुझे दी है, उन्हें ऐसा उजाड़ूँगा कि वे जंगल से हो जाएँगे, और वन-पशु उन्हें चर डालेंगे।
13वे दिन जिनमें वह बाल देवताओं के लिये धूप जलाती, और नत्थ और हार पहने अपने यारों के पीछे जाती और मुझको भूले रहती थी, उन दिनों का दण्ड मैं उसे दूँगा, यहोवा की यही वाणी है।
14"इसलिए देखो, मैं उसे मोहित करके जंगल में ले जाऊँगा, और वहाँ उससे शान्ति की बातें कहूँगा।
15वहीं मैं उसको दाख की बारियाँ दूँगा, और आकोर की तराई को आशा का द्वार कर दूँगा और वहाँ वह मुझसे ऐसी बातें कहेगी जैसी अपनी जवानी के दिनों में अर्थात् मिस्र देश से चले आने के समय कहती थी।
16और यहोवा की यह वाणी है कि उस समय तू मुझे पति कहेगी और फिर बाली न कहेगी।
17क्योंकि भविष्य में मैं उसे बाल देवताओं के नाम न लेने दूँगा; और न उनके नाम फिर स्मरण में रहेंगे।
18और उस समय मैं उनके लिये वन-पशुओं और आकाश के पक्षियों और भूमि पर के रेंगनेवाले जन्तुओं के साथ वाचा बाँधूँगा, और धनुष और तलवार तोड़कर युद्ध को उनके देश से दूर कर दूँगा; और ऐसा करूँगा कि वे लोग निडर सोया करेंगे।
19मैं सदा के लिये तुझे अपनी स्त्री करने की प्रतिज्ञा करूँगा, और यह प्रतिज्ञा धर्म, और न्याय, और करुणा, और दया के साथ करूँगा।
20यह सच्चाई के साथ की जाएगी, और तू यहोवा को जान लेगी*।
21"यहोवा की यह वाणी है कि उस समय मैं आकाश की सुनकर उसको उत्तर दूँगा, और वह पृथ्वी की सुनकर उसे उत्तर देगा;
22और पृथ्वी अन्न, नये दाखमधु, और ताजे तेल की सुनकर उनको उत्तर देगी, और वे यिज्रेल को उत्तर देंगे।
23मैं अपने लिये उसे देश में बोऊँगा, और लोरुहामा पर दया करूँगा, और लोअम्मी से कहूँगा, तू मेरी प्रजा है, और वह कहेगा, 'हे मेरे परमेश्वर'।" (रोम. 9:25, 1 पत. 2:10)