यीशु मसीह की वापसी के स्वागत का कठिन अनुभव
ऑनलाइन सभा में शामिल होने से मैंने सिंचन पाया
मैंने कई साल पहले अपने परिवार के संग प्रभु यीशु पर विश्वास करना शुरू किया था। 2017 में, अपने काम के चलते, मैं बहुत बार सभाओं में नहीं जा पाता था। जिस कारण मुझे लगा कि मेरी आत्मा डूब रही है। जब भी उन चीजों से मेरा सामना होता, जो मेरी पसंद की नहीं होती थीं, तो मेरा गुस्सैल स्वभाव खुलकर सामने आ जाता था। हालाँकि दिल ही दिल में मैं खुद से नफरत करता था, फिर भी मैं अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर पाता था। इसलिए मैंने प्रभु से प्रार्थना की कि वो मेरे लिए कोई ऐसा इंतज़ाम करें जो मुझे बाइबल अध्ययन की ओर ले जा सके जिससे मुझे उनके साथ अपने रिश्ते को बहाल करने में मदद मिले।
एक दिन, मैं फेसबुक ग्रुप में किसी के लिए प्रार्थना कर रहा था, जब उस समूह की एक बहन ने मुझे एक मित्र के रूप में जोड़ा। उसके बाद, हमने आस्था से जुड़ी चीज़ों के बारे में ऑनलाइन बातचीत करना शुरू कर दिया। वो बहन बाइबल के बारे में बहुत कुछ जानती थी और उसकी संगति बहुत रोशन करने वाली थी, इसलिए मैं प्रभु का बहुत आभारी था कि मेरी आत्मा को एक बार फिर सिंचन प्राप्त हो रहा है। एक बार, बहन ने मुझे एक धर्मोपदेश सुनने के लिए आमंत्रित किया, और मैं खुशी से सहमत हो गया। धर्मोपदेश के दौरान, एक भाई ने बाइबल के आधार पर हमें मानवजाति के भ्रष्टाचार की उत्पत्ति के बारे में बताया और बताया कि किस तरह के लोग स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं। उसका उपदेश पादरियों की तुलना में अधिक प्रबुद्ध करने वाला था और सुनते हुए मेरा हृदय प्रकाश से भर गया, इसलिए मुझे भाई के उपदेश सुनना पसंद आया।
ऑनलाइन अफवाहों और पादरियों के प्रभाव में आकर मैंने अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य की जाँच करने से इनकार कर दिया
हमारी अगली सभा के अंत में, उस भाई ने "इरादा पक्का है परमेश्वर के अनुसरण का।" नामक एक भजन गाया, चूँकि मैंने इस भजन को पहले कभी नहीं सुना था, इसलिए जिज्ञासावश, मैं इसे ऑनलाइन खोजने लगा। मैंने एक लिंक पर क्लिक किया और एक परिचित छवि सामने आई, फिर मुझे याद आया कि यह सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की वेबसाइट थी, और यह भजन ईस्टर्न लाइटनिंग द्वारा निर्मित था। मैं दंग रह गया क्योंकि पादरियों ने प्रोजेक्टर पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की वेबसाइट को दिखाया था और उन्होंने इसके बारे में बुरी-बुरी बातें कही थीं। लेकिन उस भाई ने जो उपदेश दिया था वह प्रकाश से भरा था, तो आखिर ये सब क्या था? मैंने ईस्टर्न लाइटनिंग के बारे में ऑनलाइन कई नकारात्मक टिप्पणियां पढ़ीं थीं, इसलिए मैं उस भाई के प्रति सतर्क हो गया। बाद में, मैंने बहन को बताया कि भाई ने जो भजन गाया था, वह ईस्टर्न लाइटनिंग से था और उसका विश्वास हमसे अलग था। तब बहन ने मुझसे कहा कि हम इस मुद्दे का जवाब अगली ऑनलाइन सभा में एक साथ खोज सकते हैं।
सभा के दौरान, हमने भाई को हमारे दिल के संदेह के बारे में बताया। इसके बाद भाई ने कहा कि हमें सच्चे मार्ग की जाँच करते हुए, ऑनलाइन अफवाहों पर जाँच को आधारित करने के बजाय परमेश्वर की वाणी सुनने पर ध्यान देना चाहिए। उसने कहा कि अब यह अंत के दिन हैं, प्रभु यीशु देह में लौट आए हैं और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नाम के साथ परमेश्वर के भवन से शुरू होने वाले न्याय के कार्य को कर रहे हैं। उसने हमें अंत के दिनों के परमेश्वर के न्याय के कार्य और परमेश्वर द्वारा अपना नाम बदलने के बारे में कई बाइबल के पद भी दिखाए। भले ही मैं अंत के दिनों के न्याय का कार्य और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नाम के बारे में बाइबल में की गयी भविष्यवाणियों का खंडन नहीं कर सका, लेकिन मेरे लिए भाई की इस बात पर कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटे प्रभु यीशु थे, विश्वास करना कठिन था। मैंने सोचा: क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर वास्तव में लौटे हुए प्रभु यीशु हैं? मैंने कभी भी अतीत में इसके बारे में बात करते हुए किसी पादरी को नहीं सुना है और प्रभु यीशु ने कहा है, "मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता" (यूहन्ना 14:6)। प्रभु यीशु के अलावा हमें कोई नहीं बचा सकता। यदि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करता हूँ, तो क्या यह प्रभु यीशु के साथ विश्वासघात करना नहीं होगा? क्या मैं तब भी स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकूंगा? यह सब सोचते हुए, मैं भाई की बातों को सुनने के लिए तैयार नहीं था।
बाद में, मेरी कलीसिया के फेसबुक समूह द्वारा विधर्मियों के खिलाफ सतर्क रहने के संदेश भेजे गए। उन्हें देखकर, मैं भाई के साथ संपर्क रखने का और अधिक अनिच्छुक हो गया। बहन के कई निमंत्रणों के बावजूद मैंने सभाओं में भाग लेने के लिए ऑनलाइन होने से इनकार कर दिया। हालाँकि, बाद में, मुझे लगा कि भाई के धर्मोपदेश प्रभु के वचनों के अनुसार हैं, और इसलिए वे विधर्म नहीं हो सकते हैं। यह सब सोचते हुए, मेरा दिल में द्वंद चल रहा था, यह न जानते हुए कि मुझे क्या करना है मुझे दुख हुआ। उसके बाद, भाई ने समूह चैट में कुछ वीडियो भेजे। मैंने उन वीडियो को देखा और धार्मिक अध्ययन के पश्चिमी विद्वानों द्वारा कुछ शोध रिपोर्टों और टिप्पणियों को देखा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के खिलाफ सीसीपी के आरोपों की जांच कर उन्होंने साबित किया था कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के बारे में इंटरनेट पर बहुत सी नकारात्मक खबरें बिना किसी तथ्यात्मक आधार के, सीसीपी द्वारा बनाई गई फर्जी खबरें थीं। उन्होंने यह भी खुलासा किया कि सीसीपी द्वारा सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की निंदा और बदनामी करने वाली नकली खबरें धार्मिक विश्वासों को दबाने के उद्देश्य से थीं। उन वीडियो को देखने के बाद ही मुझे पता चला कि इंटरनेट पर जो अफवाहें चल रही थीं, वे सभी फर्जी थीं। बाद में, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया द्वारा निर्मित सुसमाचार फिल्म देखी जो भाई द्वारा समूह चैट के माध्यम से भेजी गई थी। मूवी में, भाई-बहनों को अक्सर सीसीपी द्वारा गिरफ्तार होने से बचने के लिए अपनी सभा की जगह बदलनी पड़ती थी। कुछ को सीसीपी द्वारा सभाओं के दौरान गिरफ्तार कर, उन पर क्रूर अत्याचार किया गया था; कुछ अपने घरों से भागने को मजबूर हो गये थे। मैं उन दृश्यों को देखकर बहुत दुखी था, और मुझे एक एल्डर की याद आई जो एक बार चीन में प्रचार करने गये थे, उसने बताया कि सीसीपी ने ईसाइयों को सताने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, कुछ एल्डरों को कैद भी कर लिया गया था। रविवार कक्षा के शिक्षक ने कहा कि, चूँकि सीसीपी नास्तिक है और मार्क्सवाद में विश्वास करती है, इसलिए जो कोई भी परमेश्वर में विश्वास करता है, उस पर अत्याचार किया जाएगा। उस समय, मुझे लगा कि ये बढ़ा-चढ़ा कर कही गयी बातें थीं, सीसीपी प्रभु के उन विश्वासियों को गिरफ्तार क्यों करेगी जिन्होंने कोई चोरी या डकैती नहीं की थी? इन वीडियो को देखने के बाद ही मुझे समझ में आया कि अपराध से लड़ने के बजाय सीसीपी धार्मिक विश्वासों को दबाने में ज्यादा मशगूल थी, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर कलीसिया की उसकी निंदा पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।
क्या अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य को स्वीकारना प्रभु यीशु से धोखा करना है?
भले ही मैंने सीसीपी की अफवाहों का सच समझ लिया था, लेकिन मैं अभी भी प्रभु यीशु और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बीच के रिश्ते के बारे में स्पष्ट नहीं था, और मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मुझे भाई के उपदेशों को सुनना जारी रखना चाहिए या नहीं क्योंकि मुझे चिंता थी कि अगर मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने लगा तो मैं प्रभु यीशु के साथ धोखा कर बैठूँगा। बाद में, बहन ने मुझे इतनी आसानी से हार न मानने और अपना अंतिम फैसला लेने से पहले एक विस्तृत जांच करने की सलाह दी। मैंने सोचा कि उसने जो कहा वह सही था, क्योंकि अगर मैंने इन सब कुछ के बारे में पता लगाये बगैर छोड़ दिया, तो अगर प्रभु वास्तव में वापस आ गये हों, तो क्या मैं उनका स्वागत करने का अवसर नहीं खो दूँगा? इसलिए, मैंने फैसला किया कि अगली सभा में भाई जो संगति देगा, मैं उसे सुनूँगा।
मेरे ऑनलाइन जाने के बाद, भाई ने मेरे प्रश्न के बारे में संगति की, "हम सभी जो प्रभु यीशु पर विश्वास करते हैं, जानते हैं कि प्रभु ही सच्चे परमेश्वर हैं। हमें उनकी ओर से बहुत अधिक अनुग्रह और कई आशीष मिले हैं, हम उनके प्रति बहुत आभारी हैं और उनसे जुड़े हुए हैं। इसलिए जब हम सुनते हैं कि प्रभु वापस आ गये हैं, लेकिन वह अब यीशु नहीं, बल्कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नाम से जाने जाते हैं, तो हममें से बहुतों के दिलों में इस डर से हलचल होने लगती है कि हम दूसरे परमेश्वर में विश्वास करेंगे तो प्रभु को धोखा दे बैठेंगे; इस प्रकार हम परमेश्वर के कार्य की जांच करने की हिम्मत नहीं करते। लेकिन क्या सोचने का यह तरीका सही है? जैसा कि हम सभी जानते हैं, जब प्रभु यीशु अपना कार्य करने के लिए आए, तो फरीसियों ने उनके कार्य को विधर्मी बताया और रोमन सरकार के साथ मिलकर उन्हें सूली पर लटका दिया, क्योंकि उनका नाम मसीहा नहीं था और उन्होंने सब्त का पालन नहीं किया था, और वह कार्य करने और उपदेश देने के लिए मंदिर के बाहर गये। आइए हम इस बारे में सोचें: फरीसियों ने, जिन्होंने पीढ़ी दर पीढ़ी यहोवा परमेश्वर की सेवा की और उत्सुकता के साथ मसीहा की प्रतीक्षा की थी, उन्होंने क्यों यह नहीं पहचाना कि प्रभु यीशु ही वो मसीहा थे जिनकी भविष्यवाणी की गयी थी? ऐसा इसलिए था क्योंकि वे परमेश्वर को नहीं जानते थे, वे बहुत अभिमानी और घमंडी थे, उन्होंने अपनी धारणाओं, कल्पनाओं के आधार पर प्रभु की निंदा की और उन्हें अस्वीकार किया। अंतत: उन्होंने अपने जीवन को उन लोगों के रूप में समाप्त किया जो परमेश्वर में विश्वास तो करते थे लेकिन उनका विरोध भी करते थे। इसलिए यदि हम यह समाचार सुनते हैं कि प्रभु वापस आ गए हैं, लेकिन हमने इसकी जांच करने से इसलिए इंकार कर दिया क्योंकि प्रभु का नाम यीशु से सर्वशक्तिमान परमेश्वर में बदल गया है, तो क्या यह बस उस समय के फरीसियों की गलतियों को दोहराना नहीं है?"
भाई की संगति ने मुझे गहराई से सोचने के लिए बहुत कुछ दिया। मैंने सोचा कि वह सही है। परमेश्वर बुद्धिमान हैं और परमेश्वर कैसे कार्य करते हैं, यह हम सोच भी नहीं सकते। हालाँकि, अगर मैंने अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर परमेश्वर के कार्य का आकलन किया, तो क्या मैं फरीसियों के जैसा ही नहीं हो जाउँगा? यह सोचकर, मेरा दिल बहुत शांत हो गया, और मैं भाई की संगति सुनता रहा।
भाई ने बोलना जारी रखा, "वास्तव में, यहोवा परमेश्वर, प्रभु यीशु, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर एक परमेश्वर हैं। हालाँकि उनका कार्य और उनके कार्य का स्थान अलग-अलग है, लेकिन वे सभी ऐसे कार्य हैं जिन्हें परमेश्वर को भ्रष्ट मानवजाति की ज़रूरतों के मुताबिक करने की आवश्यकता है। व्यवस्था के युग में, परमेश्वर ने यहोवा नाम का उपयोग किया। उन्होंने नई-नवेली मानवजाति का मार्गदर्शन करने के लिए अपनी व्यवस्थाओं की घोषणा की कि कैसे वे पृथ्वी पर अपना जीवन व्यतीत करें, उन्होंने अपने प्रताप, क्रोध और दया के स्वभाव को व्यक्त किया। जो लोग व्यवस्थाओं का पालन करते थे, वे परमेश्वर से आशीष और अनुग्रह पाते थे। जो लोग कानूनों का उल्लंघन करते थे, उन्हें पापबलि चढ़ानी पड़ती थी, अन्यथा वे स्वर्गिक आग से जला दिए जाते थे या पत्थर मार-मारकर मौत के घात उतार दिए जाते थे। व्यवस्था के युग के बाद की अवधि में, मानवजाति के पाप इस हद तक गंभीर हो गए, कि तब कोई पापबलि ऐसी नहीं थी जो उनके पापों का प्रायश्चित करने के लिए दी जा सकती थी। इसलिए, परमेश्वर ने मानवजाति की ज़रूरतों के आधार पर, देहधारण किया और अपने प्रेम और दया के स्वभाव को व्यक्त करते हुए यीशु के नाम से अनुग्रह के युग का कार्य किया, मानवजाति पर प्रचुर अनुग्रह किया, पश्चाताप के मार्ग का प्रचार किया, लोगों को दूसरों से खुद के समान प्रेम करने की शिक्षा दी और पापबलि के रूप में मानवजाति के लिए क्रूस पर चढ़ाये गये। अनुग्रह के युग का कार्य दो हजार वर्षों तक चला, और भले ही हमारे पापों को प्रभु के छुटकारे के कारण क्षमा किया गया है, हमारे अहंकार, छल, स्वार्थ, दुष्टता और अन्य भ्रष्ट शैतानी स्वभाव अभी भी बने हुए हैं, हम पाप के बंधन को तोड़ने में असमर्थ होते हुए अभी भी पाप करने और उसे स्वीकारने के चक्र के भीतर जीते हैं। क्या यह सच नहीं है?"
मैंने कहा, "यह वास्तव में सच है। प्रभु ने हमें सहनशील और धैर्यवान बनना और दूसरों से वैसा ही प्रेम करना सिखाया है जैसा हम स्वयं से करते हैं। भले ही कभी-कभी हम अपने क्रोध को नियंत्रित कर लेते हैं, लेकिन ऐसे समय आते हैं जब हम ऐसी चीजों का सामना करते हैं जो हमारे विचारों के विपरीत होते हैं, तब हम अनियंत्रित रूप से अपने गुस्सैल प्रकृति को ज़ाहिर करते हैं। हम प्रभु के सामने अपने पापों को स्वीकार और पश्चाताप कर भी लें तो, तो भी हम फिर से वही पाप दोहरा सकते हैं।"
भाई ने संगति फिर से आरम्भ की, "हाँ। भले ही, प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य के कारण हमारे पापों को क्षमा कर दिया गया है, लेकिन जो शैतानी प्रकृति हमें पाप करने के लिए मजबूर करती है वह अभी भी हममें गहराई से बसी है, इसलिए हम अब तक कभी भी, कहीं भी परमेश्वर का विरोध और पाप कर सकते हैं। बाइबल कहती है, 'उस पवित्रता के खोजी हो जिसके बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा' (इब्रानियों 12:14)। प्रभु यीशु ने कहा है, 'मैं तुम से सच सच कहता हूँ कि जो कोई पाप करता है वह पाप का दास है। दास सदा घर में नहीं रहता; पुत्र सदा रहता है' (यूहन्ना 8:34-35)। यदि हम पाप करने और स्वीकार करने की इस स्थिति में रहना जारी रखते हैं, तो भले ही प्रभु यीशु की पापबलि हमेशा के लिए प्रभावी हो, फिर भी हमें प्रभु द्वारा स्वर्ग के राज्य में नहीं ले जाया जा सकता है। इसलिए अंत के दिनों में, हमारी आवश्यकताओं के आधार पर, परमेश्वर, प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य की नींव पर एक उच्चतर कार्य करते हैं, हमारे पापों का न्याय करने और हमारी भ्रष्टता को दूर करने के लिए सत्य व्यक्त करते हैं, इस प्रकार हमें सच्चा उद्धार पाने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने में सक्षम बनाते हैं। इससे, हम देख सकते हैं कि यहोवा परमेश्वर का कार्य, प्रभु यीशु का कार्य और सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य एक साथ अविभाज्य रूप से जुड़े हुए हैं, प्रत्येक चरण के कार्य, पिछले वाले से ऊँचे हैं, और वे एक ही परमेश्वर के कार्य हैं। आइए हम परमेश्वर के वचनों के दो अंशों को पढ़ें, जिससे हम अधिक स्पष्ट रूप से समझ सकेंगे।"
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "यहोवा के कार्य से लेकर यीशु के कार्य तक, और यीशु के कार्य से लेकर इस वर्तमान चरण तक, ये तीन चरण परमेश्वर के प्रबंधन के पूर्ण विस्तार को एक सतत सूत्र में पिरोते हैं, और वे सब एक ही पवित्रात्मा का कार्य हैं। दुनिया के सृजन से परमेश्वर हमेशा मानवजाति का प्रबंधन करता आ रहा है। वही आरंभ और अंत है, वही प्रथम और अंतिम है, और वही एक है जो युग का आरंभ करता है और वही एक है जो युग का अंत करता है। विभिन्न युगों और विभिन्न स्थानों में कार्य के तीन चरण अचूक रूप में एक ही पवित्रात्मा का कार्य हैं। इन तीन चरणों को पृथक करने वाले सभी लोग परमेश्वर के विरोध में खड़े हैं। अब तुम्हारे लिए यह समझना उचित है कि प्रथम चरण से लेकर आज तक का समस्त कार्य एक ही परमेश्वर का कार्य है, एक ही पवित्रात्मा का कार्य है। इस बारे में कोई संदेह नहीं हो सकता।" "यहोवा के कार्य के बाद, यीशु मनुष्यों के मध्य अपना कार्य करने के लिए देहधारी हो गया। उसका कार्य अलग से किया गया कार्य नहीं था, बल्कि यहोवा के कार्य के आधार पर किया गया था। यह कार्य एक नए युग के लिए था, जिसे परमेश्वर ने व्यवस्था का युग समाप्त करने के बाद किया था। इसी प्रकार, यीशु का कार्य समाप्त हो जाने के बाद परमेश्वर ने अगले युग के लिए अपना कार्य जारी रखा, क्योंकि परमेश्वर का संपूर्ण प्रबंधन सदैव आगे बढ़ रहा है। जब पुराना युग बीत जाता है, तो उसके स्थान पर नया युग आ जाता है, और एक बार जब पुराना कार्य पूरा हो जाता है, तो परमेश्वर के प्रबंधन को जारी रखने के लिए नया कार्य शुरू हो जाता है। यह देहधारण परमेश्वर का दूसरा देहधारण है, जो यीशु का कार्य पूरा होने के बाद हुआ है। निस्संदेह, यह देहधारण स्वतंत्र रूप से घटित नहीं होता; व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के बाद यह कार्य का तीसरा चरण है। हर बार जब परमेश्वर कार्य का नया चरण आरंभ करता है, तो हमेशा एक नई शुरुआत होती है और वह हमेशा एक नया युग लाता है। इसलिए परमेश्वर के स्वभाव, उसके कार्य करने के तरीके, उसके कार्य के स्थल, और उसके नाम में भी परिवर्तन होते हैं। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि मनुष्य के लिए नए युग में परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करना कठिन होता है। परंतु इस बात की परवाह किए बिना कि मनुष्य द्वारा उसका कितना विरोध किया जाता है, परमेश्वर सदैव अपना कार्य करता रहता है, और सदैव समस्त मानवजाति का प्रगति के पथ पर मार्गदर्शन करता रहता है। जब यीशु मनुष्य के संसार में आया, तो उसने अनुग्रह के युग में प्रवेश कराया और व्यवस्था का युग समाप्त किया। अंत के दिनों के दौरान, परमेश्वर एक बार फिर देहधारी बन गया, और इस देहधारण के साथ उसने अनुग्रह का युग समाप्त किया और राज्य के युग में प्रवेश कराया। उन सबको, जो परमेश्वर के दूसरे देहधारण को स्वीकार करने में सक्षम हैं, राज्य के युग में ले जाया जाएगा, और इससे भी बढ़कर वे व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर का मार्गदर्शन स्वीकार करने में सक्षम होंगे। यद्यपि यीशु ने मनुष्यों के बीच अधिक कार्य किया, फिर भी उसने केवल समस्त मानवजाति की मुक्ति का कार्य पूरा किया और वह मनुष्य की पाप-बलि बना; उसने मनुष्य को उसके समस्त भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाने के लिए यीशु को न केवल पाप-बलि बनने और मनुष्य के पाप वहन करने की आवश्यकता थी, बल्कि मनुष्य को उसके शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए स्वभाव से मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़ा कार्य करने की आवश्यकता थी। और इसलिए, अब जबकि मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिया गया है, परमेश्वर मनुष्य को नए युग में ले जाने के लिए वापस देह में लौट आया है, और उसने ताड़ना एवं न्याय का कार्य आरंभ कर दिया है। यह कार्य मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में ले गया है। वे सब, जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे, उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़े आशीष प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे और सत्य, मार्ग और जीवन प्राप्त करेंगे।"
सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद, भाई ने संगति की, "केवल तब जब यहोवा परमेश्वर का कार्य, प्रभु यीशु का कार्य और सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य एक साथ पूर्णता के रूप में लिया जाता है तभी यह मानवजाति को बचाने वाले परमेश्वर के संपूर्ण कार्य का गठन करता है। दरअसल, हर बार जब परमेश्वर नए कार्य का एक चरण शुरू करते हैं, तो जो स्वभाव वो व्यक्त करते हैं, वह जिस तरह से कार्य करते हैं, उनका नाम, उनके कार्य का स्थान, सब बदल जाएगा, लेकिन कार्य के ये तीन चरण करीब से जुड़े हुए हैं। यहोवा परमेश्वर के कार्य की नींव पर प्रभु यीशु ने छुटकारे का कार्य किया। अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य की नींव पर, सत्य को व्यक्त कर रहे हैं और परमेश्वर के भवन से शुरू होने वाले न्याय के कार्य को कर रहे हैं, वे हम पर उन सभी रहस्यों को प्रकट कर रहे हैं जो संसार की सृष्टि के बाद से छिपे हुए हैं। उदाहरण के लिए, वर्तमान समय तक पूरी मानवता का विकास कैसे हुआ, कार्य के तीन चरणों के रहस्य, मानवजाति के भविष्य के गंतव्य, इत्यादि। इसके अलावा, परमेश्वर हमारी पापी प्रकृति को प्रकट करने के लिए, हमारे विद्रोह और भीतर के अन्याय का न्याय करने के लिए, हमें हमारे पापों को शुद्ध करने का मार्ग दिखाने के लिए भी सत्य व्यक्त करते हैं। जो लोग अंत के दिनों के परमेश्वर के न्याय कार्य को स्वीकार करते हैं, वे सत्य के बारे में अधिक जानेंगे, अपनी शैतानी प्रकृति के बारे में अधिक से अधिक समझदार बनेंगे, और परमेश्वर के धर्मी और अलंघनीय स्वभाव को अधिक समझेंगे, इस प्रकार वे धीरे-धीरे सत्य को व्यवहार में लाएंगे, अपनी शैतानी प्रकृति के बंधन से मुक्त हो जायेंगे और परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग पर चलेंगे। जब हमारे भ्रष्ट स्वभावों को शुद्ध किया जाता है, और हम ऐसे लोग बन जाते हैं जो परमेश्वर की आज्ञा मानते हैं और परमेश्वर से भय खाते हैं, तब हम परमेश्वर के आशीर्वाद में रह सकते हैं, इससे मानवजाति को बचाने का परमेश्वर का कार्य भी समाप्त हो जाएगा। यह प्रकाशितवाक्य में की गयी भविष्यवाणी जैसा ही है, 'फिर उसने मुझ से कहा, ये बातें पूरी हो गई हैं। मैं अल्फा और ओमेगा, आदि और अन्त हूँ। मैं प्यासे को जीवन के जल के सोते में से सेंतमेंत पिलाऊँगा' (प्रकाशितवाक्य 21:6)।"
परमेश्वर के वचनों और भाई की संगति के माध्यम से, मैं समझ गया कि परमेश्वर के कार्य का प्रत्येक चरण, उनके पिछले कार्य की नींव पर बना है, प्रत्येक कार्य पिछले कार्य से ऊँचा है, और परमेश्वर के कार्य के सभी तीन चरण मिलकर मानवजाति को बचाने वाले परमेश्वर के संपूर्ण कार्य का निर्माण करते हैं। प्रभु यीशु के छुटकारे के बिना, मानवजाति हमेशा के लिए व्यवस्था के अधीन रहती; यदि परमेश्वर पाप को दूर करने का कार्य करने के लिए नहीं आये, तो हम केवल पाप करने और उसे स्वीकारने की स्थिति में रह सकते हैं, हम कभी भी पाप के बंधन से मुक्त नहीं हो पाएंगे। केवल जब हम अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य को स्वीकार करते हैं, तो ही हमें अपने भ्रष्ट स्वभाव की समझ हो सकती है, तभी हम देहसुख त्याग सकते हैं, अपने स्वभाव में बदलाव लाने के लिए सत्य का अभ्यास कर सकते हैं, इसके बाद ही हम स्वर्गिक राज्य में प्रवेश करने के योग्य होंगे। फिर, भाई ने हमें परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को दर्शाती एक रंग-बिरंगी तस्वीर भेजी, जिससे मुझे परमेश्वर मानवजाति को बचाने वाले कार्य के तीन चरणों की स्पष्ट समझ मिली। मैंने देखा कि परमेश्वर के कार्य का ढंग, उनके कार्य का स्थान और उनका नाम हर युग में अलग-अलग होता है, लेकिन कार्य के सभी तीन चरण बारीकी से जुड़े हैं और प्रत्येक चरण अपरिहार्य है। परमेश्वर मनुष्य को शैतान के प्रभुत्व से कदम दर कदम बचाते हैं, मैं परमेश्वर की चमत्कारिकता और बुद्धि से बहुत गहराई से द्रवित हुए बिना रह सका: परमेश्वर के अलावा, कोई और इस कार्य को करने में सक्षम नहीं है! उस क्षण, मुझे ऐसा लगा कि मैं बेहद स्वतंत्र हूँ, मेरे मन में अब भाई के प्रति कोई भेदभाव नहीं था, और हमारी सभाएं भी अधिक आरामदायक और उत्साहपूर्ण हो गईं।
मैं परमेश्वर के कार्य को जान पाया और मेमने के पदचिह्नों का अनुसरण करने लगा
बाद में, भाई ने मुझे परमेश्वर के वचनों के दो अंश भेजे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "कार्य के तीनों चरण एक ही परमेश्वर द्वारा किए गए थे; यही सबसे महान दर्शन है और यह परमेश्वर को जानने का एकमात्र मार्ग है। कार्य के तीनों चरण केवल स्वयं परमेश्वर द्वारा ही किए गए हो सकते हैं, और कोई भी मनुष्य इस प्रकार का कार्य उसकी ओर से नहीं कर सकता है—कहने का तात्पर्य है कि आरंभ से लेकर आज तक केवल स्वयं परमेश्वर ही अपना कार्य कर सकता था।" "केवल वे लोग ही जो कार्य के तीनों चरणों को जानते और समझते हैं, परमेश्वर को पूरी तरह से और सही ढ़ंग से जान सकते हैं। कम से कम, वे परमेश्वर को इस्राएलियों या यहूदियों के परमेश्वर के रूप में परिभाषित नहीं करेंगे और उसे ऐसे परमेश्वर के रूप में नहीं देखेंगे जिसे मनुष्यों के वास्ते सदैव के लिए सलीब पर चढ़ा दिया जाएगा। यदि कोई परमेश्वर को उसके कार्य के केवल एक चरण के माध्यम से जानता है, तो उसका ज्ञान बहुत अल्प है और समुद्र में एक बूँद से ज्यादा नहीं है। यदि नहीं, तो कई पुराने धर्म-रक्षकों ने परमेश्वर को जीवित सलीब पर क्यों चढ़ाया होता? क्या ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि मनुष्य परमेश्वर को निश्चित मापदंडों के भीतर सीमित कर देता है?"
भाई ने ने संगति की, "परमेश्वर के वचनों से, हम समझ सकते हैं कि परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना परमेश्वर को जानने का मार्ग है। जब हम परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जान जाते हैं, तभी हम परमेश्वर के स्वभाव को उसकी संपूर्णता में जान सकते हैं, मानवजाति को बचाने के परमेश्वर के कई तरीकों को जान सकते हैं, परमेश्वर की बुद्धि को जान सकते हैं, और मानवजाति को बचाने के पीछे के परमेश्वर के सभी उद्देश्यों को समझ सकते हैं, जिससे हम परमेश्वर के बारे में अपने मन की किसी भी अवधारणा और गलत धारणा को दूर कर सकते हैं। यदि परमेश्वर के बारे में हमारा ज्ञान केवल परमेश्वर के कार्य के एक चरण का होता है, और हम सोचते हैं कि परमेश्वर को केवल यहोवा कहा जा सकता है, वह मानवजाति के जीवन का मार्गदर्शन करने के लिए व्यवस्थाओं की घोषणा ही कर सकता है, या परमेश्वर को केवल प्रभु यीशु कहा जा सकता है, जो मानवजाति पर अनुग्रह करते हैं, तो अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर परमेश्वर का सीमा में बांधना बहुत आसान होगा। वर्तमान में, धार्मिक दुनिया के कई पादरी और एल्डर केवल प्रभु यीशु के कार्य से चिपके हैं, यह सोचते हुए कि कोई भी कार्य जो उस छुटकारे के कार्य से परे है जो क्रूस पर किया गया था, वह परमेश्वर का कार्य नहीं है और जिसका भी नाम यीशु नहीं है वह लौटे हुए परमेश्वर नहीं हैं। वे अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की अवहेलना और निंदा करने का हर संभव प्रयास करते हैं, यहां तक कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बारे में अफवाहें फैलाते हैं ताकि विश्वासियों को सच्चे मार्ग की जांच करने से रोक सकें। उनके और फरीसियों के बीच क्या अंतर है? यदि हम सबसे बड़े दर्शन—परमेश्वर के कार्य के तीन चरण— को नहीं जानते हैं और हमारा दिल विनम्रता से खोजने वाला नहीं है, तो हमारे लिए उस समय के इस्राइलियों की तरह होना बहुत आसान होगा, जो धार्मिक अगुवाओं का अनुसरण करते हुए परमेश्वर के आगमन की निंदा और विरोध करते थे, परमेश्वर को अस्वीकार करने और अंतत: परमेश्वर के स्वभाव को ठेस पहुंचाने वाली चीज़ें किये करते थे। इस प्रकार उन्होंने परमेश्वर के उद्धार को खो दिया था।"
भाई की संगति सुनने के बाद, मुझे याद आया कि, चूँकि मैं परमेश्वर के कार्य के बारे में कुछ भी नहीं जानता था और पादरियों के शब्दों को आँखें बंद कर के सुनता था, इसलिए मैंने परमेश्वर की वापसी का स्वागत करने का अवसर लगभग खो दिया था; उस वक्त इतना अज्ञानी और मूर्ख होने के कारण मुझे अपने आप से बहुत नफरत हुई। साथ ही, मेरा हृदय प्रभु के लिए कृतज्ञता से भरा था। मैंने कहा, "परमेश्वर का धन्यवाद! अब मुझे पता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर और प्रभु यीशु एक ही परमेश्वर हैं। यदि परमेश्वर की दया और अनुग्रह नहीं होता, तो मैं उस समय के इस्राएलियों की तरह होता, जो धर्मगुरुओं द्वारा धोखा खाते थे, प्रभु की प्रतीक्षा करते थे लेकिन प्रभु का विरोध और उन्हें अस्वीकार भी करते थे, जो अंत में परमेश्वर द्वारा त्यागे और हटा दिये गये थे।"
भाई ने कहा, "परमेश्वर का धन्यवाद। चूँकि हम समझते हैं कि कार्य के तीन चरण एक परमेश्वर द्वारा किए जाते हैं, इसलिए हम समझ सकते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करना प्रभु यीशु के साथ विश्वासघात करना नहीं है, बल्कि लौटे हुए प्रभु यीशु का स्वागत करना है और मेम्ने के पदचिह्नों पर चलना है। जैसा कि प्रकाशितवाक्य में लिखा है: 'ये वे ही हैं कि जहाँ कहीं मेम्ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं' (प्रकाशितवाक्य 14:4)।"
यह सुनकर, बहन और मैं बहुत उत्साहित हो गए, क्योंकि मेमने के नक्शेकदम पर चलना बहुत बड़ी आशीष है! मेरी मूर्खता और अज्ञानता को याद न रखने, भाई की संगति के माध्यम से सीसीपी की अफवाहों को समझने देने, मुझे मेरी धारणाओं और कल्पनाओं को त्यागने व प्रभु की वापसी का स्वागत करने में सक्षम बनाने के लिए परमेश्वर का धन्यवाद। बाद में, मैं भाई-बहनों के साथ सभाओं में जाने लगा। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया द्वारा निर्मित सुसमाचार आधारित फिल्में देखने के माध्यम से, मुझे कई ऐसे सत्य समझ में आए, जिन्हें मैं अतीत में नहीं समझ पाया था। एक महीने के बाद, मैं पूरी तरह से निश्चित था कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटे हुए प्रभु यीशु हैं, और मैंने अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य को स्वीकार कर लिया। परमेश्वर का धन्यवाद। सारी महिमा सर्वशक्तिमान परमेश्वर की हो!