ऑनलाइन बैठक

मेन्‍यू

परमेश्वर के चीन में प्रकट होकर कार्य करने का बहुत महत्व है

"परमेश्वर ने अपनी महिमा इज़राइल को दी और फिर उसे हटा लिया, इसके बाद वह इज़राइलियों के साथ-साथ पूरी इंसानियत को पूरब में ले आया। परमेश्वर उन सभी को प्रकाश में ले आया है ताकि वे इसके साथ फिर से मिल जाएं और इससे जुड़े रह सकें, और उन्हें इसकी खोज न करनी पड़े। जो प्रकाश की खोज कर रहे हैं उन्हें परमेश्वर फिर से प्रकाश देखने देगा और उस महिमा को देखने देगा जो उसके पास इज़राइल में थी; परमेश्वर उन्हें यह देखने देगा कि वह बहुत पहले एक सफ़ेद बादल पर सवार होकर मनुष्यों के बीच आ चुका है, वह उन्हें असंख्य सफ़ेद बादल और प्रचुर मात्रा में फलों के समूह देखने देगा। यही नहीं, वह उन्हें इज़राइल के यहोवा परमेश्वर को देखने देगा। परमेश्वर उन्हें यहूदियों के स्वामी, बहुप्रतीक्षित मसीहा को देखने देगा, और अपने पूर्ण प्रकटन को देखने देगा जिसे हर युग के राजाओं द्वारा सताया गया है। परमेश्वर संपूर्ण ब्रह्मांड पर कार्य करेगा और वह महान कार्य पूरा करेगा, जो अंत के दिनों में लोगों के सामने उसकी पूरी महिमा और उसके सारे कार्यों को प्रकट कर देगा। परमेश्वर अपना भव्य मुखमंडल संपूर्ण रूप में उन लोगों को दिखायेगा, जिन्होंने कई वर्षों से उसकी प्रतीक्षा की है, जो उसे सफ़ेद बादल पर सवार होकर आते हुए देखने के लिए लालायित रहे हैं। वह अपना यह रूप इज़राइल को दिखायेगा जिसने उसके एक बार फिर प्रकट होने की लालसा की है। वह उन सभी लोगों को अपना यह रूप दिखायेगा जो उसे कष्ट पहुंचाते हैं, ताकि सभी लोग यह जान सकें कि परमेश्वर ने बहुत पहले ही अपनी महिमा को हटा लिया है और इसे पूरब में ले आया है, जिस कारण यह अब यहूदिया में नहीं रही। क्योंकि अंत के दिन पहले ही आ चुके हैं!" (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ)।

इस वीडियो ने मुझे बहुत प्रभावित किया। अंत के दिनों में परमेश्वर अपनी महिमा इस्राएल से पूरब में लाता है। वह चीन में प्रकट हुआ है जो परमेश्वर के विरोधी देशों में सबसे आगे है, और पूरी दुनिया को बचाने के लिए अपना कार्य कर सत्य व्यक्त कर रहा है। यही उसकी सर्वशक्तिमत्ता और बुद्धिमत्ता है। चीन में परमेश्वर के प्रकटन और कार्य का गहरा अर्थ है। पहले मैं परमेश्वर के कार्य को नहीं जानती थी। मैं सोचती थी कि अपनी वापसी पर प्रभु इस्राएल में प्रकट होगा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद ही मैं परमेश्वर के चीन में प्रकट होकर कार्य करने के रहस्य को समझ पायी। मैं इस बारे में अपना अनुभव साझा करना चाहती हूँ।

प्रभु में आस्था रखने के बाद, मुझमें खोज करने का जोश था। समय मिलने पर, मैं कलीसिया में स्वयंसेवा करती, मैं निष्ठा से हर महीने चंदा दिया करती थी। अप्रैल 2011 में, एक नौकरी के लिए मैं दक्षिण कोरिया आ गयी, काम में चाहे जितनी भी व्यस्तता होती, मैं रविवार को चर्च ज़रूर जाती। मगर पादरी के धर्मोपदेश हमेशा पुराने ही होते। सहभागी या तो हर समय ऊंघते या बातें करते रहते। मुझे ज़रा-भी अच्छा नहीं लगता था। धीरे-धीरे सेवाओं में जाने की इच्छा मर गयी। लेकिन एक ईसाई होने के कारण, इनमें हिस्सा न लेना मुझे ठीक नहीं लगा। इसलिए मैं ज़बरदस्ती जाया करती थी। फिर एक दिन संयोग से, कलीसिया की एक पुरानी सहेली बहन झाओ से मेरी मुलाक़ात हुई। उसने मुझे अपने घर बुलाया, संयोग से उसकी सहेली बहन ली वहां थी। हम पहली बार मिले, लेकिन हमारी अच्छी दोस्ती हो गयी। हमने अपने हालात और कलीसिया के वीरान होने के बारे में चर्चा की। बहन ली ने संगति में बताया कि किस तरह से परमेश्वर के नया कार्य करने से कलीसिया वीरान हो रही है, पवित्र आत्मा का कार्य कहीं और चला गया है, हमें प्रभु का स्वागत करने के लिए परमेश्वर के प्रकटन और उसकी वाणी पहचानने वाली बुद्धिमान कुँवारियों जैसा होना चाहिए। उनकी बात मुझे बहुत प्रबुद्ध करने वाली लगी। फिर बहन ली ने कहा : "प्रभु यीशु पहले ही वापस आ चुका है, और वह देहधारी हुआ है, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में, चीन में प्रकट होकर न्याय व शुद्धिकरण का कार्य कर रहा है और सत्य व्यक्त कर रहा है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने राज्य का युग शुरू कर अनुग्रह के युग का अंत किया है। जो अंत के दिनों के उसके कार्य को स्वीकार करते हैं, वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने लाये जा रहे हैं; वे परमेश्वर के वचनों की आपूर्ति प्राप्त कर रहे हैं और मेमने के विवाह भोज में शामिल हो रहे हैं।" मैं बहन ली की बात सुनकर वाकई चौंक गयी, मुश्किल से यकीन कर सकी : प्रभु वापस आ गया है? वह भी चीन में? पुराने और नये नियम के समय में, परमेश्वर ने अपना कार्य इस्राएल में किया, बाइबल में कहा गया है कि : "उस दिन वह जैतून के पर्वत पर पाँव रखेगा, जो पूर्व की ओर यरूशलेम के सामने है; तब जैतून का पर्वत पूर्व से लेकर पश्‍चिम तक बीचोबीच से फटकर बहुत बड़ा खड्ड हो जाएगा; तब आधा पर्वत उत्तर की ओर और आधा दक्षिण की ओर हट जाएगा" (जकर्याह 14:4)। अंत के दिनों में, प्रभु को इस्राएल में जैतून के पहाड़ पर आना चाहिए। वह चीन में कैसे हो सकता है? मैंने अपनी उलझन बहन ली को बतायी।

उन्होंने बस मुस्करा कर कहा : "प्रभु की वापसी की सभी भविष्यवाणियाँ रहस्यमय हैं, हम उन्हें नहीं समझ सकते। भविष्यवाणी पूरी हो जाने के बाद जब हम समझ जाएं कि परमेश्वर ने कार्य कैसे किया, तभी उस भविष्यवाणी का अर्थ समझ आएगा। हमें भविष्यवाणियों के शाब्दिक अर्थ को इस्तेमाल कर परमेश्वर के कार्य को सीमित नहीं करना चाहिए, इससे हम उसका प्रतिरोध कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, फरीसियों को ले लें। वे मसीहा के आने की भविष्यवाणी के शाब्दिक अर्थ से चिपके रहे, सोचते रहे कि जब प्रभु आये तो उसे मसीहा ही कहा जाना चाहिए, जिसका नाम मसीहा न रखा गया हो, वह मसीह नहीं हो सकता। नतीजतन उन्होंने प्रभु यीशु की निंदा की और परमेश्वर का उद्धार गँवा दिया। अगर हम बाइबल की शाब्दिक व्याख्या के आधार पर परमेश्वर के कार्य को सीमित कर दें, और परमेश्वर के प्रकटन और कार्य की सच्चाई की जांच-पड़ताल न करें, तो हम भी फरीसियों जैसी ही ग़लती कर सकते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अंत के दिनों में, परमेश्वर के घर से शुरू करके न्याय का कार्य करता है, पूर्व में एक चमकती रोशनी की तरह प्रकट होकर, इंसान को शुद्ध करने और बचाने वाला संपूर्ण सत्य व्यक्त करता है। करीब 20 सालों में ही, सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य पूरे चीन में फ़ैल गया है, अब दुनिया भर के दूसरे राष्ट्रों में भी पहुँच गया है। वचन देह में प्रकट होता है उसके वचनों का संकलन है जिसका कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है, यह दुनिया भर के लोगों के लिए ऑनलाइन प्रकाशित की गयी है कि वे इसे जाँचें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य ने प्रभु यीशु की इस भविष्यवाणी को साकार किया है : 'क्योंकि जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्‍चिम तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा' (मत्ती 24:27)। और मलाकी की पुस्तक 1:11 भी : 'क्योंकि उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक जाति-जाति में मेरा नाम महान् है..., सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।'" इसे सुनकर अचानक मेरे मन में आया : प्रभु चीन में वापस आया है, इस्राएल में नहीं, बाइबल में इसकी भविष्यवाणी बहुत पहले की गयी थी।

फिर, बहन ली ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ कर सुनाया। "वास्तव में, परमेश्वर सभी चीज़ों का स्वामी है। वह संपूर्ण सृष्टि का परमेश्वर है। वह केवल इस्राएलियों का परमेश्वर नहीं है, न यहूदियों का; बल्कि वह संपूर्ण सृष्टि का परमेश्वर है। उसके कार्य के पिछले दो चरण इस्राएल में हुए, जिसने लोगों में कुछ निश्चित धारणाएँ पैदा कर दी हैं। वे मानते हैं कि यहोवा ने अपना कार्य इस्राएल में किया, और स्वयं यीशु ने अपना कार्य यहूदिया में किया, और इतना ही नहीं, कार्य करने के लिए उसने देहधारण किया—और जो भी हो, यह कार्य इस्राएल से आगे नहीं बढ़ा। परमेश्वर ने मिस्रियों या भारतीयों में कार्य नहीं किया; उसने केवल इस्राएलियों में कार्य किया। लोग इस प्रकार विभिन्न धारणाएँ बना लेते हैं, वे परमेश्वर के कार्य को एक निश्चित दायरे में बाँध देते हैं। वे कहते हैं कि जब परमेश्वर कार्य करता है, तो अवश्य ही उसे ऐसा चुने हुए लोगों के बीच और इस्राएल में करना चाहिए; इस्राएलियों के अलावा परमेश्वर किसी अन्य पर कार्य नहीं करता, न ही उसके कार्य का कोई बड़ा दायरा है। वे देहधारी परमेश्वर को नियंत्रित करनेमें विशेष रूप से सख़्त हैं और उसे इस्राएल की सीमा से बाहरनहीं जाने देते। क्या ये सब मानवीय धारणाएँ मात्र नहीं हैं? परमेश्वर ने संपूर्ण स्वर्ग और पृथ्वी और सभी चीजें बनाईं, उसने संपूर्ण सृष्टि बनाई, तो वह अपने कार्य को केवल इस्राएल तक सीमित कैसे रख सकता है? अगर ऐसा होता, तो उसके संपूर्ण सृष्टि की रचना करने का क्या तुक था? उसने पूरी दुनिया को बनाया, और उसने अपनी छह हजार वर्षीय प्रबंधन योजना केवल इस्राएल में नहीं, बल्कि ब्रह्मांड में प्रत्येक व्यक्ति पर कार्यान्वित की। ... यदि परमेश्वर मनुष्य की धारणाओं के अनुसार कार्य करता, तो वह केवल इस्राएलियों का ही परमेश्वर होता, और इस प्रकार वह अन्यजाति-राष्ट्रों के बीच अपने कार्य का विस्तार करने में असमर्थ होता, क्योंकि वह केवल इस्राएलियों का ही परमेश्वर होता, संपूर्ण सृष्टि का परमेश्वर नहीं। भविष्यवाणियों में कहा गया है कि यहोवा का नाम अन्यजाति-राष्ट्रों में खूब बढ़ेगा, कि वह अन्यजाति-राष्ट्रों में फैल जाएगा। यह भविष्यवाणी क्यों की गई थी? यदि परमेश्वर केवल इस्राएलियों का परमेश्वर होता, तो वह केवल इस्राएल में ही कार्य करता। इतना ही नहीं, वह इस कार्य का विस्तार न करता, और वह ऐसी भविष्यवाणी न करता। चूँकि उसने यह भविष्यवाणी की थी, इसलिए वह निश्चित रूप से अन्यजाति-राष्ट्रों में, प्रत्येक राष्ट्र में और समस्त भूमि पर, अपने कार्य का विस्तार करेगा। चूँकि उसने ऐसा कहा है, इसलिए वह ऐसा ही करेगा; यह उसकी योजना है, क्योंकि वह स्वर्ग और पृथ्वी तथा सभी चीज़ों का सृष्टिकर्ता प्रभु और संपूर्ण सृष्टि का परमेश्वर है। चाहे वह इस्राएलियों के बीच कार्य करता हो या संपूर्ण यहूदिया में, वह जो कार्य करता है, वह संपूर्ण ब्रह्मांड और संपूर्ण मानवता का कार्य होता है। आज जो कार्य वह बड़े लाल अजगर के राष्ट्र—एक अन्यजाति-राष्ट्र में—करता है, वह भी संपूर्ण मानवता का कार्य है। इस्राएल पृथ्वी पर उसके कार्य का आधार हो सकता है; इसी प्रकार, अन्यजाति-राष्ट्रों के बीच चीन भी उसके कार्य का आधार हो सकता है। क्या उसने अब इस भविष्यवाणी को पूरा नहीं किया है कि 'यहोवा का नाम अन्यजाति-राष्ट्रों में खूब बढ़ेगा'?" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर संपूर्ण सृष्टि का प्रभु है')

बहन ली ने फिर संगति की : "परमेश्वर समस्त सृजन का प्रभु है, वह संपूर्ण ब्रह्मांड पर शासन करता है, सभी इंसानों की नियति पर राज करता है। परमेश्वर सिर्फ़ इज्राएलियों का परमेश्वर नहीं, बल्कि वह समस्त सृष्टि का परमेश्वर है। परमेश्वर को किसी भी राष्ट्र में कैसे भी लोगों के बीच कार्य करने का अधिकार है। वह जिस भी देश में प्रकट होकर कार्य करे, उसका कार्य सभी इंसानों के लिए होता है, ताकि अगुआई कर उनका विकास कर सके। उदाहरण के लिए, व्यवस्था के युग में, यहोवा ने इस्राएल में मूसा का इस्तेमाल कर अपनी व्यवस्था की घोषणा की और व्यवस्था का युग शुरू किया। फिर, इस ज़मीन को एक केंद्र के रूप में इस्तेमाल करके, उसने अपना कार्य दूसरी भूमियों तक फैलाया, ताकि सब उसका आदर करें। अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु ने यहूदिया में छुटकारे का कार्य किया। लेकिन प्रभु यीशु ने सिर्फ़ यहूदियों को ही नहीं, सभी इंसानों को छुटकारा दिलाया। अब, दो हज़ार साल बाद, प्रभु का सुसमाचार दुनिया के कोने-कोने में फ़ैल चुका है। अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर अपने कार्य को पूरी दुनिया में फैलाने से पहले, चीन को परीक्षण स्थल की तरह इस्तेमाल कर रहा है, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन और कार्य एक चमकदार रोशनी की तरह हैं, जो पूर्व से चमककर पश्चिम के सभी देशों को गवाही से रोशन कर रहे हैं। सैकड़ों लोगों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में परमेश्वर की वाणी को पहचाना है, वे उसके वचनों के न्याय और शुद्धिकरण को स्वीकार करने के लिए परमेश्वर के सिंहासन के सामने आये हैं। हम समझ सकते हैं कि युग चाहे जो हो, लोगों या किसी देश में प्रकट होकर कार्य करने का फैसला करने से पहले, परमेश्वर हमेशा एक जगह को चुनता है, फिर उस जगह को एक उदाहरण के रूप में इस्तेमाल करके दूसरी जगहों में अपने कार्य को फैलाता है, ताकि वह इंसान को बचाने का कार्य पूरा कर सके। परमेश्वर के कार्य का यही सिद्धांत हैं। अगर हम अपनी धारणा और कल्पना के मुताबिक़ चलते रहें, सोचते रहे कि परमेश्वर ने व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग में, इस्राएल में काम किया, तो फिर परमेश्वर को सिर्फ़ इस्राएल का परमेश्वर होना चाहिए, सुसमाचार वहीं से आ सकता है, सिर्फ़ वहीं के लोग ही परमेश्वर के चुने हुए लोग हैं, उसके आशीष के योग्य हैं, परमेश्वर नास्तिक राष्ट्रों में प्रकट होकर कार्य नहीं करेगा, इससे हम उसे सीमित नहीं कर देंगे? परमेश्वर ने कहा, 'जाति-जाति में मेरा नाम महान् है,' तो फिर इसे कैसे हासिल और पूरा किया जा सकेगा? परमेश्वर अंत के दिनों में देहधारी होकर नास्तिकता के शासन वाले चीन में अपना कार्य करता है, ताकि वह लोगों की धारणाओं को चूर-चूर कर सके, दिखा सके कि वह नियमों के अनुसार नहीं, बल्कि अपनी योजनाओं के अनुसार कार्य करता है। वह हमें यह भी दिखाता है कि वह सिर्फ़ इस्राएल के लोगों को ही नहीं, बल्कि अन्यजाति के लोगों को भी बचाता है। परमेश्वर, सबका परमेश्वर है, वह किसी एक देश या कुछ लोगों का परमेश्वर नहीं है। परमेश्वर चाहे कहीं भी प्रकट होकर कार्य करे, उसका महत्व हमेशा होता है, वह ऐसी जगह चुनता है, जो इंसान को बचाने के उद्देश्य के लिए उत्तम होती है।"

बहन ली की संगति से मैंने बहुत शर्मिंदगी महसूस की। मैंने जाना कि व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग में परमेश्वर ने अपना कार्य इस्राएल में किया, मैं सोचती थी परमेश्वर सिर्फ़ इस्राएल में ही प्रकट होकर कार्य करेगा। अगर परमेश्वर अंत के दिनों में फिर से इस्राएल में अपना कार्य करता, तो मैं उसे इस्राएलियों के परमेश्वर के रूप में सीमित कर देती, यह परमेश्वर को तमाम इंसानों के परमेश्वर के रूप में नकारना होता! यह परमेश्वर का प्रतिरोध करना है! परमेश्वर कहाँ प्रकट होकर कार्य करेगा, यह सदा उसकी योजना और बुद्धिमत्ता का प्रतिबिंब होता है। उसके कार्य को सीमित करना तो दूर, हम उस पर टिप्पणी भी नहीं कर सकते। फिर भी मेरे मन में कुछ संदेह थे। चीन ऐसा देश है, जहां नास्तिक सरकार का शासन है। यह परमेश्वर को सबसे अधिक नकारने और उसका प्रतिरोध करने वाला देश है। अगर परमेश्वर का इरादा इस्राएल में प्रकट होकर कार्य करने का नहीं था, तो वह अमेरिका या यूनाइटेड किंगडम में काम क्यों नहीं करता, जहां ईसाई धर्म मुख्य धर्म है? उसने कार्य करने के लिए चीन को ही क्यों चुना है? मैंने बहन ली से ये सवाल पूछ लिये।

बहन ली ने इस तरह जवाब दिया : "परमेश्वर अपने कार्य की ज़रूरतों के मुताबिक़ चुनाव करता है कि उसे किस देश में कार्य करना है। उसके चयन के पीछे हमेशा एक ख़ास अर्थ होता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने इस बारे में स्पष्ट कहा है।" फिर बहन ली ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कुछ वचन पढ़ कर सुनाये। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "यहोवा का कार्य दुनिया का सृजन था, वह आरंभ था; कार्य का यह चरण कार्य का अंत है, और यह समापन है। आरंभ में, परमेश्वर का कार्य इस्राएल के चुने हुए लोगों के बीच किया गया था और यह सभी जगहों में से सबसे पवित्र जगह पर एक नए युग का उद्भव था। कार्य का अंतिम चरण दुनिया का न्याय करने और युग को समाप्त करने के लिए सभी देशों में से सबसे अशुद्ध देश में किया जा रहा है। पहले चरण में, परमेश्वर का कार्य सबसे प्रकाशमान स्थान पर किया गया था और अंतिम चरण सबसे अंधकारमय स्थान पर किया जा रहा है, और इस अंधकार को बाहर निकालकर प्रकाश को प्रकट किया जाएगा और सभी लोगों पर विजय प्राप्त की जाएगी। जब इस सबसे अशुद्ध और सबसे अंधकारमय स्थान के लोगों पर विजय प्राप्त कर ली जाएगी और समस्त आबादी स्वीकार कर लेगी कि परमेश्वर है, जो कि सच्चा परमेश्वर है और हर व्यक्ति को पूरी तरह से विश्वास हो जाएगा, तब समस्त ब्रह्मांड में विजय का कार्य करने के लिए इस तथ्य का उपयोग किया जाएगा। कार्य का यह चरण प्रतीकात्मक है : एक बार इस युग का कार्य समाप्त हो गया, तो प्रबंधन का छह हजार वर्षों का कार्य पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा। एक बार सबसे अंधकारमय स्थान के लोगों को जीत लिया गया, तो कहने की आवश्यकता नहीं कि अन्य जगह पर भी ऐसा ही होगा। इस तरह, केवल चीन में ही विजय का कार्य सार्थक प्रतीकात्मकता रखता है। चीन अंधकार की सभी शक्तियों का मूर्त रूप है और चीन के लोग उन सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो देह के हैं, शैतान के हैं, मांस और रक्त के हैं। चीनी लोग ही बड़े लाल अजगर द्वारा सबसे ज़्यादा भ्रष्ट किए गए हैं, वही परमेश्वर के सबसे कट्टर विरोधी हैं, उन्हीं की मानवता सर्वाधिक अधम और अशुद्ध है, इसलिए वे समस्त भ्रष्ट मानवता के मूल आदर्श हैं। ... चीन के लोगों में भ्रष्टता, अशुद्धता, अधार्मिकता, विरोध और विद्रोहशीलता पूरी तरह से व्यक्त और विविध रूपों में प्रकट होते हैं। एक ओर, वे खराब क्षमता के हैं और दूसरी ओर, उनका जीवन और उनकी मानसिकता पिछडी हुई है, उनकी आदतें, सामाजिक वातावरण, जिस परिवार में वे जन्में हैं—सभी गरीब और सबसे पिछड़े हुए हैं। उनकी हैसियत भी निम्न है। इस स्थान में कार्य प्रतीकात्मक है, एक बार जब यह परीक्षा-कार्य पूरी तरह से संपन्न हो जाएगा, तो परमेश्वर का बाद का कार्य बहुत बेहतर तरीके से आगे बढ़ेगा। यदि कार्य के इस चरण को पूरा किया जा सका, तो इसके बाद का कार्य अच्छी तरह से आगे बढ़ेगा। एक बार जब कार्य का यह चरण सम्पन्न हो जायेगा, तो बड़ी सफलता प्राप्त हो जाएगी और समस्त ब्रह्माण्ड में विजय का कार्य पूरी तरह समाप्त हो जायेगा। वास्तव में, एक बार तुम लोगों के बीच कार्य सफल होने पर, यह समस्त ब्रह्माण्ड में सफलता प्राप्त करने के बराबर होगा। यही इस बात की महत्ता है कि क्यों मैं तुम लोगों को एक आदर्श और नमूने के रूप में कार्य करने को कहता हूँ। विद्रोहशीलता, विरोध, अशुद्धता, अधार्मिकता—ये सभी इन लोगों में पाए जाते हैं और ये मानवजाति की समस्त विद्रोहशीलता का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे वास्तव में कुछ हैं। इस प्रकार, उन्हें विजय के प्रतीक के रूप में लिया जाता है, एक बार जब वे जीत लिए गए तो वे स्वाभाविक रूप से दूसरों के लिए एक आदर्श और नमूने बन जाएँगे" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर के कार्य का दर्शन (2)')

फिर बहन ली ने संगति की : "परमेश्वर प्रत्येक चरण में अपने कार्य की ज़रूरत के आधार पर अपने कार्य की जगह और लक्ष्य को चुनता है। यह एक निश्चित प्रयोजन से इंसान के उद्धार के लिए होता है। उदाहरण के लिए, परमेश्वर ने कार्य के पहले दो चरण इस्राएल में किये, क्योंकि इस्राएली परमेश्वर के चुने हुए लोग थे। उन्होंने परमेश्वर में विश्वास रखा, उसकी आराधना की, उनके दिल में परमेश्वर का भय था और सभी इंसानों में वे सबसे कम भ्रष्ट थे। इस प्रकार परमेश्वर के लिए, उनके बीच कार्य कर, परमेश्वर की आराधना करने वालों का समूह बनाना आसान था। इस तरह परमेश्वर का कार्य ज़्यादा तेज़ी से और आसानी से फ़ैल सकता था, ताकि सारे इंसान परमेश्वर के अस्तित्व और कार्य के बारे में जान सकें, और भी अधिक लोग परमेश्वर के सामने आ कर उसका उद्धार पा सकें। इस्राएल में परमेश्वर के पहले दो चरणों का कार्य सही मायनों में सांकेतिक था। परमेश्वर ने पूरी तरह से अपने कार्य की ज़रूरत के मुताबिक़ ही इस्राएल को चुना। अंत के दिनों में, परमेश्वर न्याय और शुद्धिकरण का कार्य करता है। वह इंसान की भ्रष्टता को उजागर कर उसका न्याय करने के लिए सत्य व्यक्त करता है, ऐसे वह अपना धार्मिक और अपमान न सहने वाला स्वभाव दर्शाता है। इसलिए, उसे सबसे अधिक भ्रष्ट और परमेश्वर-विरोधी लोगों को मिसाल बनाना है। ऐसा करके ही परमेश्वर उत्तम परिणाम हासिल कर सकता है। जैसा कि सब जानते हैं, सभी इंसानों में चीनी लोग ही सबसे अधिक पिछड़े और शैतान द्वारा सबसे ज़्यादा भ्रष्ट किये गये लोग हैं। वे सभी इंसानों में, सबसे ज़्यादा अपवित्र, नीच, परमेश्वर को नकारने और परमेश्वर का प्रतिरोध करने वाली नस्ल हैं। वे तमाम भ्रष्ट इंसानों का मूर्तरूप हैं। चीन में न्याय का कार्य कर, चीनी लोगों के भ्रष्ट स्वभाव को निशाना बना कर, परमेश्वर गहराई से इंसान का खुलासा करता है, उसके द्वारा व्यक्त सत्य संपूर्ण होता है, जो उसके पवित्र और धार्मिक स्वभाव को प्रकाशित करता है। परमेश्वर चीन के चुने हुए लोगों के साथ अपने कार्य के ज़रिये व्यक्त सत्य का इस्तेमाल सभी इंसानों पर विजय पाने, उन्हें बचाने, उन्हें उसके पवित्र और धार्मिक स्वभाव को समझने देने के लिए करता है, ताकि वे उसकी प्रशंसा करने के लिए परमेश्वर के सामने आ सकें। यही उसके कार्य की बुद्धिमत्ता है। अगर परमेश्वर सबसे भ्रष्ट लोगों को पूर्ण कर सकता है, तो फिर बाकी सभी इंसानों को पूर्ण करेगा ही, और फिर शैतान भी बुरी तरह से पराजित होगा। चीन में कार्य करने से, परमेश्वर को सबसे ज़बरदस्त गवाही और महानतम महिमा मिल जाएगी। इस्राएल या अमेरिका और यूके जैसे ईसाई-प्रधान देशों के लोग भ्रष्ट इंसान के मुख्य उदाहरण नहीं हैं, परमेश्वर के उन पर कार्य कर उन्हें पूर्ण करने से, सारे इंसानों पर विजय पाने और उन्हें बचाने का अंतिम लक्ष्य हासिल नहीं हो पायेगा। इसलिए परमेश्वर के न्याय-कार्य की ज़रूरतों के मुताबिक़ चीनी लोगों के साथ कार्य करना सबसे अधिक सार्थक है। परमेश्वर के कार्य के लक्ष्य, जगह और प्रत्येक चरण में उसके अंतिम प्रभाव से, हम समझ सकते हैं कि परमेश्वर का कार्य सच में बुद्धिमत्तापूर्ण और अद्भुत है।"

यह सुन कर मैंने जोश से कहा, "हाँ, इस्राएल परमेश्वर की आराधना करने वाला देश है। वहां के लोग कम भ्रष्ट हैं। अगर प्रभु कार्य करने के लिए इस्राएल में वापस आये, तो परमेश्वर के विजय-कार्य का परिणाम अच्छा नहीं होगा। सभी राष्ट्रों में, चीन सबसे ज़्यादा परमेश्वर-विरोधी राष्ट्र है, इसलिए चीनियों पर विजय पाने से न सिर्फ़ उसके विजय-कार्य का सबसे बढ़िया परिणाम मिलता है, बल्कि वह अपनी सर्वशक्तिमत्ता और बुद्धिमत्ता को भी प्रकट कर पाता है। अब मैं समझ सकती हूँ कि परमेश्वर का अंत के दिनों में चीन में कार्य करना कितना अधिक महत्वपूर्ण है! मैं परमेश्वर के कार्य को बिना जाने अपनी धारणाओं और कल्पनाओं से परमेश्वर के कार्य को सीमित कर रही थी— मैं कितनी ज़्यादा अहंकारी थी!"

बहन ली ने अपनी बात जारी रखी : "परमेश्वर अपना कार्य चाहे जहां और जब भी करे, खोजने के लिए सत्य और रहस्य हमेशा होते हैं। प्रभु की वापसी का स्वागत कैसे करें, इस बारे में प्रभु यीशु ने बताया : 'आधी रात को धूम मची : "देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो"' (मत्ती 25:6)। 'मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं' (यूहन्ना 10:27)। 'देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ' (प्रकाशितवाक्य 3:20)। इसलिए प्रभु के आने का स्वागत करने के लिए सबसे ज़रूरी यह देखना है कि सत्य की अभिव्यक्ति और परमेश्वर की वाणी मौजूद है या नहीं। जहां भी सत्य व्यक्त होगा, वहां परमेश्वर की वाणी भी होगी, उसका प्रकटन और कार्य भी होगा। यह बात बिल्कुल सच है। जैसे कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने कहा, 'लोग किसी चीज़ को जितना अधिक असंभव मानते हैं, उसके घटित होने की उतनी ही अधिक संभावना होती है, क्योंकि परमेश्वर की बुद्धि स्वर्ग से ऊँची उड़ान भरती है, परमेश्वर के विचार मनुष्य के विचारों से ऊँचे हैं, और परमेश्वर का कार्य मनुष्य की सोच और धारणा की सीमाओं के पार जाता है। जितना अधिक कुछ असंभव होता है, उतना ही अधिक उसमें सत्य होता है, जिसे खोजा जा सकता है; कोई चीज़ मनुष्य की धारणा और कल्पना से जितनी अधिक परे होती है, उसमें परमेश्वर की इच्छा उतनी ही अधिक होती है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि भले ही वह स्वयं को कहीं भी प्रकट करे, परमेश्वर फिर भी परमेश्वर है, और उसका सार उसके प्रकटन के स्थान या तरीके के आधार पर कभी नहीं बदलेगा। परमेश्वर के पदचिह्न चाहे कहीं भी हों, उसका स्वभाव वैसा ही बना रहता है, और चाहे परमेश्वर के पदचिह्न कहीं भी हों, वह समस्त मनुष्यजाति का परमेश्वर है, ठीक वैसे ही, जैसे कि प्रभु यीशु न केवल इस्राएलियों का परमेश्वर है, बल्कि वह एशिया, यूरोप और अमेरिका के सभी लोगों का, और इससे भी अधिक, समस्त ब्रह्मांड का एकमात्र परमेश्वर है। तो आओ, हम परमेश्वर की इच्छा खोजें और उसके कथनों में उसके प्रकटन की खोज करें, और उसके पदचिह्नों के साथ तालमेल रखें! परमेश्वर सत्य, मार्ग और जीवन है। उसके वचन और उसका प्रकटन साथ-साथ विद्यमान हैं, और उसका स्वभाव और पदचिह्न मनुष्यजाति के लिए हर समय खुले हैं' ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है')।" से उद्धृत सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों ने मेरी उलझन मिटा दी। परमेश्वर के प्रकटन और कार्य के रहस्यों का खुलासा कर दिया, मेरी पुरानी धारणाओं को काट दिया। मैं वर्षों से प्रभु की वापसी का स्वागत करने को तरस रही थी, पर सोचा नहीं था कि मैं परमेश्वर के प्रकटन और कार्य को अपनी कल्पनाओं और बाइबल के शब्दों तक सीमित कर रही थी। मैं कितनी ज्यादा अनजान हूँ! सभा के समापन के बाद, मैंने आगे बढ़ कर बहन ली से सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त वचन देह में प्रकट होता है की एक प्रति मांगी।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ कर, पता चला कि उसके वचन बाइबल के कई रहस्यों का खुलासा करते हैं, जैसे कि इंसान के उद्धार के लिए परमेशवर की छह–हज़ार साल की प्रबंधन योजना, बाइबल का सत्य और उसकी अंदरूनी कहानी, परमेश्वर के नामों का अर्थ, देहधारी होने का रहस्य, परमेश्वर कैसे लोगों की मंज़िलों को निर्धारित करता है, कैसे इस युग का अंत होगा और कैसे मसीह का राज्य यहीं धरती पर साकार होगा, आदि। परमेश्वर के सिवाय दूसरा कोई भी इन रहस्यों का खुलासा नहीं कर सकता। सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त वचनों में अधिकार, सामर्थ्य और प्रताप है। ये वास्तव में परमेश्वर के वचन हैं। मैं जान गयी सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही वापस आया हुआ प्रभु यीशु है। मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार कर, अब मेमने के पदचिह्नों का अनुसरण कर रही हूँ।

उत्तर यहाँ दें