बचाया जाना और पूर्ण उद्धार पाना क्या है?
संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"जो विश्वास करे और बपतिस्मा ले उसी का उद्धार होगा, परन्तु जो विश्वास न करेगा वह दोषी ठहराया जाएगा" (मरकुस 16:16)।
"क्योंकि यह वाचा का मेरा वह लहू है, जो बहुतों के लिये पापों की क्षमा के निमित्त बहाया जाता है" (मत्ती 26:28)।
"जो मुझ से, 'हे प्रभु! हे प्रभु!' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है" (मत्ती 7:21)।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
उस समय यीशु का कार्य समस्त मानवजाति को छुटकारा दिलाना था। उन सभी के पापों को क्षमा कर दिया गया था जो उसमें विश्वास करते थे; अगर तुम उस पर विश्वास करते हो, तो वह तुम्हें छुटकारा दिलाएगा; यदि तुम उस पर विश्वास करते, तो तुम पापी नहीं रह जाते, तुम अपने पापों से मुक्त हो जाते हो। यही बचाए जाने और विश्वास द्वारा उचित ठहराए जाने का अर्थ है। फिर विश्वासियों के अंदर परमेश्वर के प्रति विद्रोह और विरोध का भाव था, और जिसे अभी भी धीरे-धीरे हटाया जाना था। उद्धार का अर्थ यह नहीं था कि मनुष्य पूरी तरह से यीशु द्वारा प्राप्त कर लिया गया है, बल्कि यह था कि मनुष्य अब पापी नहीं रह गया है, उसे उसके पापों से मुक्त कर दिया गया है। अगर तुम विश्वास करते हो, तो तुम फिर कभी भी पापी नहीं रहोगे।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर के कार्य का दर्शन (2)' से उद्धृत
जैसे ही परमेश्वर के कार्य का दूसरा चरण पूरा हुआ—सलीब पर चढ़ाए जाने के बाद—मनुष्य को पाप से बचाने (अर्थात मनुष्य को शैतान के हाथों से छुड़ाने) का परमेश्वर का कार्य संपन्न हो गया। और इसलिए, उस क्षण के बाद से, मानवजाति को केवल प्रभु यीशु को अपने उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करना था, और उसके पाप क्षमा कर दिए जाते। मोटे तौर पर, मनुष्य के पाप अब उसके द्वारा उद्धार प्राप्त करने और परमेश्वर के सामने आने में बाधक नहीं रहे थे और न ही शैतान द्वारा मनुष्य को दोषी ठहराने का कारण रह गए थे। ऐसा इसलिए है, क्योंकि परमेश्वर स्वयं ने वास्तविक कार्य किया था, उसने पापमय देह के समान बनकर उसका अनुभव किया था, और परमेश्वर स्वयं ही पापबलि था। इस प्रकार, मनुष्य सलीब से उतर गया, परमेश्वर के देह—इस पापमय देह की समानता के जरिये छुड़ा और बचा लिया गया।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'मनुष्य को केवल परमेश्वर के प्रबंधन के बीच ही बचाया जा सकता है' से उद्धृत
परमेश्वर में आस्था का अर्थ बचाया जाना है, तो बचाये जाने के क्या मायने हैं? "बचाया जाना," "शैतान के अंधकारपूर्ण प्रभाव से मुक्त होना"—लोग अक्सर इन विषयों के बारे में बात करते हैं, लेकिन वे बचाये जाने का अर्थ नहीं जानते। बचाए जाने का क्या अर्थ है? इसका संबंध परमेश्वर की इच्छा से है। सीधे-सादे ढंग से कहें, तो बचाए जाने का अर्थ है कि तू जीता रह सकता है, और तुझे जीवन में वापस लाया गया है। तो इससे पहले, क्या तू मरा हुआ है? तू बोल सकता है, और तू साँस ले सकता है, तो तुझे मरा हुआ कैसे कहा जा सकता है? (प्राण मर चुका है।) ऐसा क्यों कहा जाता है कि यदि लोगों के प्राण मर गए हैं तो वे मर गए हैं? इस कहावत का आधार क्या है? उद्धार प्राप्त कर लेने से पहले लोग किसके अधिकार क्षेत्र में जीते हैं? (शैतान के अधिकार क्षेत्र में।) और शैतान के अधिकार क्षेत्र में जीने के लिए वे किस पर निर्भर करते हैं? (शैतान के फ़लसफ़े और ज़हर।) वे जीने के लिए अपनी शैतानी प्रकृति और भ्रष्ट स्वभावों का सहारा लेते हैं। जब कोई व्यक्ति इन चीज़ों के अनुसार जीता है, तो उनका संपूर्ण अस्तित्व—उनकी देह, और उनके प्राण और उनके विचार जैसे सभी अन्य पहलू—जीवित है या मृत? परमेश्वर के दृष्टिकोण से वे मृत हैं। ऊपर से तू साँस लेते हुए और सोचते हुए दिखाई देता है, लेकिन हर चीज़ जिसके बारे में तू लगातार सोचता है वह दुष्टता है; तू उन चीज़ों के बारे में सोचता है जो परमेश्वर की अवहेलना करती हैं और परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह करती हैं, ऐसी चीजें जिनसे परमेश्वर नफ़रत करता है, घृणा करता है और जिनकी निंदा करता है। परमेश्वर की नजर में, ये सभी चीज़ें न केवल देह से संबंधित हैं, बल्कि वे पूरी तरह शैतान और दुष्टात्माओं से संबंधित हैं। तो परमेश्वर की नज़र में लोग क्या हैं? क्या वे इंसान हैं? नहीं, वे नहीं हैं। परमेश्वर उन्हें हैवानों के रूप में, जानवरों के रूप में, और शैतानों, जीवित शैतानों के रूप में देखता है! लोग शैतान की चीज़ों और उसके सार के अनुसार जीते हैं, और परमेश्वर की नज़र में, वे स्वयं मानव देह धारण किए हुए जीवित शैतान हैं। परमेश्वर ऐसे लोगों को चलती-फिरती लाशों के रूप में; मरे हुए लोगों के रूप में परिभाषित करता है। परमेश्वर ऐसे लोगों को—इन चलती-फिरती लाशों को जो अपने भ्रष्ट शैतानी स्वभावों और अपने भ्रष्ट शैतानी सार के अनुसार जीती हैं—ऐसे कथित मृत लोगों को ले कर उन्हें जीवित में बदल देने के लिए अपना उद्धार का वर्तमान कार्य करता है। बचाए जाने का यही अर्थ है।
परमेश्वर पर विश्वास करने का मकसद उद्धार प्राप्त करना है। बचाए जाने का अर्थ है कि तू मृत व्यक्ति से जीवित व्यक्ति में बदल जाता है। इससे तात्पर्य है कि तेरी साँस पुनर्जीवित हो जाती है, और तू जीवित हो जाता है; तू परमेश्वर को पहचान पाता है, और तू उसकी आराधना करने के लिए सिर झुकाने में सक्षम है। तेरे हृदय में परमेश्वर के विरुद्ध कोई और प्रतिरोध नहीं होता है; तू अब और उसकी अवहेलना नहीं करता है, उस पर हमला नहीं करता है, या उसके विरुद्ध विद्रोह नहीं करता है। केवल ऐसे लोग ही परमेश्वर की नज़र में असलियत में जीवित हैं। यदि कोई केवल कहता है कि वह परमेश्वर को स्वीकार करता है, तो क्या वे जीवितों में से हैं? (नहीं, वे जीवित नहीं हैं।) तो किस प्रकार के लोग जीवित हैं? जीवित प्राणी किस प्रकार की वास्तविकता को धारण करता है? कम से कम, जीवित प्राणी मानव भाषा बोल सकते हैं। वह क्या होती है? इसका अर्थ है कि जिन शब्दों को वे बोलते हैं उसमें मत, विचार, और विवेक शामिल होते हैं। जीवित प्राणी किन चीज़ों के बारे में बार-बार सोचता है। वे मानवीय गतिविधियों में संलग्न होने, और अपने कर्तव्यों को पूरा करने में सक्षम होते हैं। उनकी कथनी और करनी की प्रकृति क्या है? वह वो सब कुछ है जो वे प्रकट करते हैं, सोचते हैं, और करते हैं, वो परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने की प्रकृति के साथ किया जाता है। इसे अधिक उपयुक्त रूप से कहें, तो जीवित प्राणियों में से एक होने के नाते, तेरे हर कर्म और हर विचार की परमेश्वर द्वारा निंदा नहीं की जाती है या उनसे नफ़रत नहीं की जाती है या उन्हें अस्वीकार नहीं किया जाता है; बल्कि, उनका परमेश्वर द्वारा अनुमोदन और प्रशंसा की जाती है। यही जीवित व्यक्ति करता है, और यही वह है जो जीवित व्यक्ति को करना चाहिए।
— "मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'केवल वास्तव में आज्ञाकारी होना ही एक यथार्थ विश्वास है' से उद्धृत
अगर लोग जीवित प्राणी बनना चाहते हैं, परमेश्वर के गवाह बनना चाहते हैं, परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करना चाहते हैं, तो उन्हें परमेश्वर का उद्धार स्वीकार करना चाहिए; उन्हें आनंदपूर्वक उसके न्याय व ताड़ना के प्रति समर्पित होना चाहिए, आनंदपूर्वक परमेश्वर की काट-छाँट और निपटारे को स्वीकार करना चाहिए। तभी वे परमेश्वर द्वारा अपेक्षित तमाम सत्य को अपने आचरण में ला सकेंगे, तभी वे परमेश्वर के उद्धार को पा सकेंगे और सचमुच जीवित प्राणी बन सकेंगे। जो जीवित हैं वे परमेश्वर द्वारा बचाए जाते हैं; वे परमेश्वर द्वारा न्याय व ताड़ना का सामना कर चुके होते हैं, वे स्वयं को समर्पित करने और आनंदपूर्वक अपने प्राण परमेश्वर के लिए न्योछावर करने को तत्पर रहते हैं और वे प्रसन्नता से अपना सम्पूर्ण जीवन परमेश्वर को अर्पित कर देते हैं। जब जीवित जन परमेश्वर की गवाही देते हैं, तभी शैतान शर्मिन्दा हो सकता है। केवल जीवित ही परमेश्वर के सुसमाचार का प्रचार कर सकते हैं, केवल जीवित ही परमेश्वर के हृदय के अनुसार होते हैं और केवल जीवित ही वास्तविक जन हैं। पहले परमेश्वर द्वारा बनाया गया मनुष्य जीवित था, परंतु शैतान की भ्रष्टता के कारण मनुष्य मृत्यु के साए में रहता है, शैतान के प्रभाव में रहता है और इसलिए जो लोग आत्मा मृत हो चुके हैं जिनमें आत्मा नहीं है, वे ऐसे शत्रु बन गए हैं जो परमेश्वर का विरोध करते हैं, वे शैतान के हथियार बन गए हैं और वे शैतान के कैदी बन गए हैं। परमेश्वर ने जिन जीवित मनुष्यों की रचना की थी, वे मृत लोग बन गए हैं, इसलिए परमेश्वर ने अपने गवाह खो दिये हैं और जिस मानवजाति को उसने बनाया था, एकमात्र चीज़ जिसमें उसकी सांसे थीं, उसने उसे खो दिया है। अगर परमेश्वर को अपनी गवाही और उन्हें जिसे उसने अपने हाथों से बनाया, जो अब शैतान द्वारा कैद कर लिए गए हैं, वापस लेना है तो उसे उन्हें पुनर्जीवित करना होगा जिससे वे जीवित प्राणी बन जाएँ, उसे उन्हें वापस लाना होगा ताकि वे उसके प्रकाश में जी सकें। मृत वे लोग हैं जिनमें आत्मा नहीं होती, जो चरम सीमा तक सुन्न होकर परमेश्वर-विरोधी हो गए हैं। मुख्यतः, सबसे आगे वही लोग होते हैं जो परमेश्वर को नहीं जानते। इन लोगों का परमेश्वर की आज्ञा मानने का ज़रा-भी इरादा नहीं होता, वे केवल उसके विरुद्ध विद्रोह करते हैं, इन में थोड़ी भी निष्ठा नहीं होती। जीवित वे लोग हैं जिनकी आत्मा ने नया जन्म पाया है, जो परमेश्वर की आज्ञा मानना जानते हैं और जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होते हैं। इनमें सत्य और गवाही होती है, और यही लोग परमेश्वर को अपने घर में अच्छे लगते हैं।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'क्या तुम ऐसे व्यक्ति हो जो जीवित हो उठा है?' से उद्धृत
मनुष्य की देह शैतान की है, यह विद्रोही स्वभावों से परिपूर्ण है, यह दुखद रूप से गंदी है, और यह कुछ ऐसी है जो अस्वच्छ है। लोग देह के आनंद के लिए बहुत अधिक ललचाते हैं और देह की कई सारी अभिव्यंजनाएँ हैं; यही कारण है कि परमेश्वर मनुष्य की देह से एक निश्चित सीमा तक घृणा करता है। जब लोग शैतान की गंदी, भ्रष्ट चीज़ों को निकाल फेंकते हैं, तब वे परमेश्वर से उद्धार प्राप्त करते हैं। परंतु यदि वे गंदगी और भ्रष्टता से स्वयं को अब भी नहीं छुड़ाते हैं, तो वे अभी भी शैतान के अधिकार क्षेत्र के अधीन रह रहे हैं। लोगों की धूर्तता, छल-कपट, और कुटिलता सब शैतान की चीज़ें हैं। परमेश्वर द्वारा तुम्हारा उद्धार तुम्हें शैतान की इन चीज़ों से छुड़ाने के लिए है। परमेश्वर का कार्य ग़लत नहीं हो सकता है; यह सब लोगों को अंधकार से बचाने के लिए किया जाता है। जब तुमने एक निश्चित बिंदु तक विश्वास कर लिया है और देह की भ्रष्टता से अपने को छुड़ा सकते हो, और इस भ्रष्टता की बेड़ियों में अब और जकड़े नहीं हो, तो क्या तुम बचाए गए नहीं होगे? जब तुम शैतान के अधिकार क्षेत्र के अधीन रहते हो, तब तुम परमेश्वर को प्रत्यक्ष रूप से व्यक्त करने में असमर्थ होते हो, तुम कोई गंदी चीज़ होते हो, और परमेश्वर की विरासत प्राप्त नहीं कर सकते हो। एक बार जब तुम्हें स्वच्छ कर दिया और पूर्ण बना दिया गया, तो तुम पवित्र हो जाओगे, तुम सामान्य व्यक्ति हो जाओगे, और तुम परमेश्वर द्वारा धन्य किए जाओगे और परमेश्वर के प्रति आनंद से परिपूरित होओगे।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'अभ्यास (2)' से उद्धृत
जो लोग आत्मा के मामलों से जुड़े ज्ञान की खोज नहीं करते, जो पवित्रता की खोज नहीं करते, जो सत्य को जीने का प्रयास नहीं करते, जो केवल नकारात्मक पाले में स्वयं पर परमेश्वर द्वारा विजय पा लिए जाने से ही संतुष्ट हो जाते हैं, और जो परमेश्वर के वचनों के अनुसार जी कर पवित्र मनुष्य नहीं बन पाते—वे ऐसे लोग हैं जिन्हें बचाया नहीं गया है। क्योंकि, अगर मनुष्य में सत्य नहीं है, तो वह परमेश्वर के परीक्षणों में टिक नहीं पाता; जो लोग परमेश्वर के परीक्षणों के दौरान टिक पाते हैं, केवल उन्हीं लोगों को बचाया गया है। मुझे पतरस जैसे लोग चाहिए, ऐसे लोग जो पूर्ण बनाए जाने का प्रयास करते हैं। आज का सत्य उन्हें दिया जाता है जो उसकी कामना और खोज करते हैं। यह उद्धार उन्हें दिया जाता है जो परमेश्वर द्वारा बचाए जाने की कामना करते हैं, यह सिर्फ तुम लोगों द्वारा प्राप्त करने के लिए नहीं है। इसका उद्देश्य यह है कि तुम लोग परमेश्वर द्वारा ग्रहण किए जाओ; तुम लोग परमेश्वर को ग्रहण करते हो ताकि परमेश्वर तुम्हें ग्रहण कर सके। आज मैंने ये वचन तुम लोगों से कहे हैं, और तुमने इन्हें सुना है, तुम्हें इन वचनों के अनुसार व्यवहार करना चाहिए। अंत में, जब तुम लोग इन वचनों को व्यवहार में लाओगे, तो उस समय मैं इन वचनों द्वारा तुम्हें ग्रहण कर लूँगा; उसी समय, तुम भी इन वचनों को ग्रहण कर लोगे, यानी तुम लोग यह सर्वोच्च उद्धार पा लोगे। एक बार शुद्ध हो जाने के बाद तुम सच्चे मानव बन जाओगे। यदि तुम सत्य को जीने में असमर्थ हो, या उस व्यक्ति के समान जीवन बिताने में असमर्थ हो, जिसे पूर्ण बना दिया गया है, तो यह कहा जा सकता है कि तुम एक मानव नहीं, एक चलती-फिरती लाश हो, पशु हो, क्योंकि तुममें सत्य नहीं है, दूसरे शब्दों में, तुममें यहोवा की श्वास नहीं है, और इस प्रकार तुम एक मरे हुए इंसान हो जिसमें कोई आत्मा नहीं है! यद्यपि जीत लिए जाने के बाद गवाही देना संभव है, लेकिन इससे तुम्हें थोड़ा-सा ही उद्धार प्राप्त होता है, और तुम ऐसे जीवित प्राणी नहीं बन पाते जिसमें आत्मा है। हालाँकि तुमने ताड़ना और न्याय का अनुभव कर लिया होता है, फिर भी तुम्हारा स्वभाव नहीं बदलता या नवीनीकृत नहीं हुआ होता; तुम अभी भी पुराने बने रहते हो, तुम अभी भी शैतान के अधिकार में होते हो, और तुम एक शुद्ध किए गए इंसान नहीं होते। केवल उन्हीं का मूल्य है जिन्हें पूर्ण बनाया जा चुका है, और केवल ऐसे ही लोगों ने एक सच्चा जीवन प्राप्त किया होता है।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान' से उद्धृत
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