जब प्रभु यीशु ने सलीब पर "पूरा हुआ" कहा तो इसका क्या मतलब था?
ईसाई यह मानते हैं कि जब प्रभु यीशु ने सलीब पर "पूरा हुआ" कहा था तो इसका मतलब था मानवजाति के लिए उसका काम पूरा हो गया। इसलिए हर किसी को भरोसा है कि जब प्रभु वापस आएगा तो उसके लिए उद्धार का कोई काम नहीं बचा होगा, पर वह सभी विश्वासियों को ऊपर आसमान में उठाकर प्रभु से मिलवाएगा, हमें स्वर्ग में ले जाएगा, और बस यही होगा। यह प्रभु में विश्वास करने वालों का पक्का भरोसा है। इसीलिए इतने सारे लोग आसमान में देखते रहते हैं, और इंतजार करते हैं कि प्रभु उन्हें अपने राज्य में ले जाएगा। पर अब बड़ी तबाहियाँ आ पहुंची हैं और ज्यादातर लोगों ने प्रभु को आते नहीं देखा है, इसलिए वे अपनी आस्था खो रहे हैं। कुछ तो संदेह कर रहे हैं कि क्या प्रभु का वादा सच्चा था? वह आ भी रहा है या नहीं? दरअसल, प्रभु यीशु बहुत पहले ही मनुष्य के पुत्र के रूप में चुपके-से लौट आया है, बहुत-से सत्य बता चुका है और परमेश्वर के घर से शुरू करके न्याय का काम कर रहा है। पर ज्यादातर लोग परमेश्वर की वाणी सुनने की कोशिश नहीं कर रहे हैं, न ही कलीसियों के लिए पवित्र आत्मा के वचनों को सुनने की खोज में हैं, और यह मान बैठे हैं कि उन्हें स्वर्ग में ले जाने के लिए प्रभु बादलों पर सवार होकर आएगा, इसलिए वे प्रभु के स्वागत का अवसर खो रहे हैं। इसका उन्हें जिंदगी भर पछतावा रहेगा। इसकी वजह सलीब पर प्रभु यीशु के इन वचनों को न समझना भी हो सकती है, कि "पूरा हुआ।"
यहीं से शुरू करते हैं। बहुत सारे विश्वासी ऐसा क्यों मानते हैं कि प्रभु यीशु के "पूरा हुआ" कहने का यह मतलब था कि मनुष्य के उद्धार का उसका काम पूरा हो गया है? क्या इसके पीछे बाइबल का कोई आधार है? क्या पवित्र आत्मा ने इसकी पुष्टि की है? क्या प्रभु ने ऐसा कभी कहा था कि वह मनुष्य को बचाने का और काम नहीं करेगा? क्या पवित्र आत्मा ने यह पुष्टि की है कि ये वचन परमेश्वर के उद्धार के काम के पूरे होने से जुड़े थे? हम पक्के तौर पर कह सकते हैं कि : नहीं तो फिर हर कोई प्रभु यीशु के इन वचनों का मतलब यह क्यों लगाता है कि तब परमेश्वर के उद्धार का काम पूरा हो गया था? यह सचमुच अजीब बात है, है न? परमेश्वर के वचनों को समझना आसान नहीं है। 2 पतरस 1:20 में कहा गया है, "पहले यह जान लो कि पवित्रशास्त्र की कोई भी भविष्यद्वाणी किसी के अपने ही विचारधारा के आधार पर पूर्ण नहीं होती।" धर्मग्रंथों की खुद ही व्याख्या करने के बहुत गंभीर नतीजे होते हैं। फरीसियों की ही बात लो—उन्होंने मसीहा के बारे में भविष्यवाणियों की खुद व्याख्या की, और नतीजे के तौर पर मसीहा आ गया, और उन्होंने देखा कि प्रभु यीशु उनकी व्याख्याओं से मेल नहीं खाता था। इसलिए उन्होंने उसके काम की निंदा की और उसे सलीब पर भी चढ़वा दिया। उन्होंने बड़े गंभीर परिणाम झेले। इससे उन्हें प्रभु यीशु का शाप झेलना पड़ा। उन्हें शापित कर दिया गया!
इसलिए जब प्रभु यीशु ने सलीब पर "पूरा हुआ" कहा था, तो उसका क्या मतलब था? इसे समझने के लिए अंत के दिनों में प्रभु की वापसी को लेकर बाइबल की भविष्यवाणियों पर ध्यान से विचार करने की जरूरत है, खासकर प्रभु यीशु द्वारा खुद कही हुई बातें, कि वह करेगा, और स्वर्ग के राज्य को लेकर उसके दृष्टांत। ये चीजें अंत के दिनों के उसके काम से सीधी जुड़ी हुई हैं। हमें इन भविष्यवाणियों और दृष्टांतों की बुनियादी समझ की जरूरत है, सही-सही यह समझने की कि प्रभु यीशु का क्या मतलब था जब उसने सलीब पर यह कहा था। अगर हम इसे पूरी तरह न भी समझें तो भी यह मान लेना ठीक नहीं है कि मनुष्य को बचाने का परमेश्वर का काम पूरा हो गया था। यह मनमानी और बेहूदी मान्यता होगी। दरअसल, अगर हम स्वर्ग के राज्य को लेकर प्रभु यीशु की भविष्यवाणियों और दृष्टांतों पर गंभीरता से सोचें, तो हम राज्य और प्रभु की वापसी पर उसके कार्य की बुनियादी समझ पा सकते हैं। तब हम उसके वक्तव्य "पूरा हुआ" की गलत व्याख्या नहीं करेंगे। प्रभु यीशु की भविष्यवाणी थी : "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। "यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता; क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा" (यूहन्ना 12:47-48)। "पिता किसी का न्याय नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है। ... वरन् उसे न्याय करने का भी अधिकार दिया है, इसलिये कि वह मनुष्य का पुत्र है" (यूहन्ना 5:22, 27)। और 1 पतरस में कहा गया है : "क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्वर के लोगों का न्याय किया जाए" (1 पतरस 4:17)। प्रकाशितवाक्य में हम देखते हैं : "देख, यहूदा के गोत्र का वह सिंह जो दाऊद का मूल है, उस पुस्तक को खोलने और उसकी सातों मुहरें तोड़ने के लिये जयवन्त हुआ है" (प्रकाशितवाक्य 5:5)। "जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है" (प्रकाशितवाक्य 2:7)। प्रभु यीशु ने स्वर्ग के राज्य के वर्णन के लिए बहुत-से दृष्टांतों का प्रयोग किया था, जैसे कि "फिर स्वर्ग का राज्य उस बड़े जाल के समान है जो समुद्र में डाला गया, और हर प्रकार की मछलियों को समेट लाया। और जब जाल भर गया, तो मछुए उसको किनारे पर खींच लाए, और बैठकर अच्छी-अच्छी तो बर्तनों में इकट्ठा कीं और निकम्मी निकम्मी फेंक दीं। जगत के अन्त में ऐसा ही होगा। स्वर्गदूत आकर दुष्टों को धर्मियों से अलग करेंगे, और उन्हें आग के कुण्ड में डालेंगे। जहाँ रोना और दाँत पीसना होगा" (मत्ती 13:47-50)। इन भविष्यवाणियों और दृष्टांतों से हम देख सकते हैं कि प्रभु यीशु ने कहा था कि लौटने पर वह बहुत सारा काम करेगा। पर इसमें सबसे महत्वपूर्ण है सत्य व्यक्त करना और न्याय का कार्य करना। इससे लोग सभी सत्यों में प्रवेश पा सकेंगे और फिर वह सबको उनकी किस्म के अनुसार छांटेगा। पूर्ण बनाए जाने वालों को पूर्ण बनाया और हटाए जाने वालों को हटाया जाएगा। इससे वह सब साकार हो जाएगा जो प्रभु यीशु ने राज्य के बारे में कहा था। गेहूं और बारदाना, मछली के जाल के बारे में सोचो बुद्धिमान और मूर्ख कुंवारियों के बारे में, भेड़-बकरियों और भले-बुरे सेवकों के बारे में। न्याय का कार्य परमेश्वर के घर से शुरू होकर गेहूं को बारदाने से अलग कर देगा, भले सेवक को बुरे सेवक से, सत्य से प्रेम करने वालों को सुख की लालसा रखने वालों से। बुद्धिमान कुंवारियाँ मेमने के विवाह भोज में शामिल होंगी और परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाई जाएंगी। मूर्ख कुंवारियों का क्या होगा? वे रोते और दाँत पीसते हुए तबाहियों में जा गिरेंगी, क्योंकि उन्होंने परमेश्वर की वाणी नहीं सुनी। यह हरेक को उसकी किस्म के अनुसार अलग करने के लिए, पुरस्कार और दंड देने के लिए न्याय का कार्य है, और इससे प्रकाशितवाक्य की भविष्यवाणी पूरी तरह साकार हो जाएगी : "जो अन्याय करता है, वह अन्याय ही करता रहे; और जो मलिन है, वह मलिन बना रहे; और जो धर्मी है, वह धर्मी बना रहे; और जो पवित्र है; वह पवित्र बना रहे" (प्रकाशितवाक्य 22:11)। "देख, मैं शीघ्र आनेवाला हूँ; और हर एक के काम के अनुसार बदला देने के लिये प्रतिफल मेरे पास है" (प्रकाशितवाक्य 22:12)। जब हम प्रभु यीशु की भविष्यवाणियों को सच में समझ लेते हैं, तो हम यह देख सकते हैं कि अंत के दिनों में प्रभु की वापसी सत्य व्यक्त करने और न्याय कार्य के लिए है, हरेक को उसकी किस्म के अनुसार छांटकर उसका अंजाम तय करने के लिए। इसलिए क्या हम यह दावा कर सकते हैं कि जब प्रभु यीशु ने सलीब पर "पूरा हुआ" कहा था तो उसका मतलब था कि मनुष्य को बचाने का परमेश्वर का काम पूरा हो गया? क्या हम मूर्ख बने आसमान की तरफ देखते हुए प्रभु यीशु के बादलों पर सवार होकर आने की प्रतीक्षा करते रहेंगे कि वह हमें खुद से मिलवाने आसमान में ले जाएगा क्या हम अब भी अंत के दिनों के कार्य के दौरान उसके द्वारा व्यक्त सत्यों को नकारते रहेंगे? क्या हम निर्लज्जता से यह झुठलाते रहेंगे कि प्रभु मनुष्य के पुत्र के रूप में देह में लौट आया है ताकि अंत के दिनों का अपना न्याय का कार्य पूरा कर सके? बड़ी तबाहियाँ पहले ही आ पहुंची हैं, और बहुत-से धार्मिक लोग अब भी प्रभु के लौटने के सपने में खोए हैं, कि वह कभी भी उन्हें बाहर नहीं निकालेगा। यह जागने का समय है। अगर वे नहीं जागे तो तबाहियों के खत्म होने और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के सभी लोगों को साक्षात दिखने के बाद परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नए सिरे से बना चुका होगा, और धर्म की दुनिया के सभी लोग दाँत पीसते हुए विलाप कर रहे होंगे। इससे प्रकाशितवाक्य की यह भविष्यवाणी साकार होगी : "देखो, वह बादलों के साथ आनेवाला है, और हर एक आँख उसे देखेगी, वरन् जिन्होंने उसे बेधा था वे भी उसे देखेंगे, और पृथ्वी के सारे कुल उसके कारण छाती पीटेंगे" (प्रकाशितवाक्य 1:7)।
बहुत-से लोग जरूर पूछेंगे जब प्रभु यीशु ने सलीब पर "पूरा हुआ" कहा था तो उसका क्या मतलब था। इसका उत्तर बहुत आसान है। प्रभु यीशु के वचन बहुत व्यावहारिक होते थे, तो जब उसने यह कहा, तो वह छुटकारे के अपने काम की बात कर रहा था। पर लोग प्रभु के इन व्यावहारिक वचनों को मनुष्य को बचाने के परमेश्वर के काम से जोड़ने पर अड़े हुए हैं। यह पूरी तरह मनमानी बात है, क्योंकि परमेश्वर ने मनुष्य को बचाने का काम अभी आंशिक रूप से ही पूरा किया है। अभी सबसे निर्णायक कदम बाकी था—अंत के दिनों का उसका न्याय का कार्य। तुम यह क्यों मानते हो कि "पूरा हुआ" का मतलब परमेश्वर का उद्धार का पूरा काम खत्म हो जाना था? क्या यह बेहूदा और अनुचित नहीं है? प्रभु यीशु को सलीब पर चढ़ाया ही क्यों गया था? उसने इसके जरिए क्या हासिल किया था? इसका नतीजा क्या हुआ था? सभी विश्वासी यह जानते हैं, क्योंकि यह साफ-साफ बाइबल में दर्ज है। प्रभु यीशु मनुष्य को छुटकारा दिलाने आया था सलीब पर चढ़कर प्रभु यीशु ने मानवता के लिए पापबलि दी थी, हरेक का पाप अपने ऊपर लेकर ताकि लोगों को व्यवस्था के तहत निंदा और मृत्युदंड न झेलना पड़े। अगर लोग प्रभु में विश्वास करके उससे प्रार्थना और अपने पाप स्वीकार करें, तो उनके पाप माफ किए जा सकते हैं , और वे परमेश्वर की अनूठी कृपा पासकते हैं। यह अनुग्रह द्वारा उद्धार है, और प्रभु यीशु के छुटकारे के काम से यही हासिल हुआ था। हालांकि हमारी आस्था के जरिए हमारे पाप माफ हो गए थे, पर कोई भी इसे नकार नहीं सकता कि हम अब भी हर समय पाप करते रहते हैं। हम पाप, उसकी स्वीकृति और फिर से पाप करने के कुचक्र में फंसे हैं। हमने पाप से मुक्ति नहीं पाई है। इसका क्या मतलब हुआ? इसका मतलब है कि हमारी अभी भी पापी प्रकृति है, और शैतानी स्वभाव है, इसलिए हमारे पाप माफ हो जाने के बाद भी पाप करने की हमारी आदत नहीं गयी है। यह सभी विश्वासियों के लिए खेद की बात है—यह बहुत पीड़ाजनक है। परमेश्वर के वचन कहते हैं, "इसलिये तुम पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ" (लैव्यव्यवस्था 11:45)। परमेश्वर धार्मिक और पवित्र है, इसलिए कोई भी अपवित्र व्यक्ति उसे देख नहीं सकता। इसलिए हर समय पाप और परमेश्वर का प्रतिरोध करने वाले लोग परमेश्वर के राज्य में प्रवेश के योग्य कैसे हो सकते हैं? क्योंकि लोग पाप से पूरी तरह मुक्त होकर शुद्ध नहीं हुए हैं, तो क्या मानवजाति को बचाने का परमेश्वर का काम खत्म हो सकता है? परमेश्वर का उद्धार संपूर्ण उद्धार होगा—वह बीच में अपना काम नहीं छोड़ेगा। यही कारण है कि प्रभु यीशु ने अपने लौटने की भविष्यवाणी कई बार की थी। वह काफी समय पहले ही अंत के दिनों में वापस आ चुका है, देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने न्याय के कार्य के लिए सत्य व्यक्त किए हैं जिनका आधार प्रभु के छुटकारे का काम है। यह मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव के शोधन के लिए है, ताकि हम पाप की जंजीरों से मुक्त हो सकें। यह हमें शैतान की ताकतों से बचाने और परमेश्वर के राज्य में ले जाने के लिए है। जब तक अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का न्याय का काम पूरा नहीं हो जाता, तब तक उसका इंसान को बचाने का काम समाप्त नहीं होगा।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "यद्यपि यीशु ने मनुष्यों के बीच अधिक कार्य किया, फिर भी उसने केवल समस्त मानवजाति की मुक्ति का कार्य पूरा किया और वह मनुष्य की पाप-बलि बना; उसने मनुष्य को उसके समस्त भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाने के लिए यीशु को न केवल पाप-बलि बनने और मनुष्य के पाप वहन करने की आवश्यकता थी, बल्कि मनुष्य को उसके शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए स्वभाव से मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़ा कार्य करने की आवश्यकता थी। और इसलिए, अब जबकि मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिया गया है, परमेश्वर मनुष्य को नए युग में ले जाने के लिए वापस देह में लौट आया है, और उसने ताड़ना एवं न्याय का कार्य आरंभ कर दिया है। यह कार्य मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में ले गया है। वे सब, जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे, उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़े आशीष प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे और सत्य, मार्ग और जीवन प्राप्त करेंगे" ("वचन देह में प्रकट होता है" की 'प्रस्तावना')।
"न्याय और ताड़ना के इस कार्य के माध्यम से मनुष्य अपने भीतर के गंदे और भ्रष्ट सार को पूरी तरह से जान जाएगा, और वह पूरी तरह से बदलने और स्वच्छ होने में समर्थ हो जाएगा। केवल इसी तरीके से मनुष्य परमेश्वर के सिंहासन के सामने वापस लौटने के योग्य हो सकता है। आज किया जाने वाला समस्त कार्य इसलिए है, ताकि मनुष्य को स्वच्छ और परिवर्तित किया जा सके; वचन के द्वारा न्याय और ताड़ना के माध्यम से, और साथ ही शुद्धिकरण के माध्यम से भी, मनुष्य अपनी भ्रष्टता दूर कर सकता है और शुद्ध बनाया जा सकता है। इस चरण के कार्य को उद्धार का कार्य मानने के बजाय यह कहना कहीं अधिक उचित होगा कि यह शुद्धिकरण का कार्य है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'देहधारण का रहस्य (4)')।
"परमेश्वर की ताड़ना और न्याय के कार्य का मूलभूत उद्देश्य मानवता को शुद्ध करना है और उन्हें उनके अंतिम विश्राम के लिए तैयार करना है; इस शुद्धिकरण के बिना संपूर्ण मानवता अपने प्रकार के मुताबिक़ विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत नहीं की जा सकेगी, या विश्राम में प्रवेश करने में असमर्थ होगी। यह कार्य ही मानवता के लिए विश्राम में प्रवेश करने का एकमात्र मार्ग है। केवल परमेश्वर द्वारा शुद्धिकरण का कार्य ही मनुष्यों को उनकी अधार्मिकता से शुद्ध करेगा और केवल उसकी ताड़ना और न्याय का कार्य ही मानवता के उन अवज्ञाकारी तत्वों को सामने लाएगा, और इस तरह बचाये जा सकने वालों से बचाए न जा सकने वालों को अलग करेगा, और जो बचेंगे उनसे उन्हें अलग करेगा जो नहीं बचेंगे। इस कार्य के समाप्त होने पर जिन्हें बचने की अनुमति होगी, वे सभी शुद्ध किए जाएँगे, और मानवता की उच्चतर दशा में प्रवेश करेंगे जहाँ वे पृथ्वी पर और अद्भुत द्वितीय मानव जीवन का आनंद उठाएंगे; दूसरे शब्दों में, वे अपने मानवीय विश्राम का दिन शुरू करेंगे और परमेश्वर के साथ रहेंगे। जिन लोगों को रहने की अनुमति नहीं है, उनकी ताड़ना और उनका न्याय किया गया है, जिससे उनके असली रूप पूरी तरह सामने आ जाएँगे; उसके बाद वे सब के सब नष्ट कर दिए जाएँगे और शैतान के समान, उन्हें पृथ्वी पर रहने की अनुमति नहीं होगी। भविष्य की मानवता में इस प्रकार के कोई भी लोग शामिल नहीं होंगे; ऐसे लोग अंतिम विश्राम की धरती पर प्रवेश करने के योग्य नहीं हैं, न ही ये उस विश्राम के दिन में प्रवेश के योग्य हैं, जिसे परमेश्वर और मनुष्य दोनों साझा करेंगे क्योंकि वे दंड के लायक हैं और दुष्ट, अधार्मिक लोग हैं। ... बुराई को दंडित करने और अच्छाई को पुरस्कृत करने के परमेश्वर के अंतिम कार्य के पीछे का पूरा उद्देश्य, सभी मनुष्यों को पूरी तरह शुद्ध करना है, ताकि वह पूरी तरह पवित्र मानवता को शाश्वत विश्राम में ला सके। उसके कार्य का यह चरण सबसे अधिक महत्वपूर्ण है; यह उसके समस्त प्रबंधन-कार्य का अंतिम चरण है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे')।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन बिल्कुल स्पष्ट हैं। अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु का छुटकारे का काम सिर्फ मनुष्य के पाप माफ करने के लिए था। यह अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का न्याय का काम है, जो मनुष्यजाति का पूरी तरह शोधन करके उसे बचाएगा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन मनुष्य की विद्रोही, परमेश्वर-विरोधी प्रकृति और सार का न्याय करते हैं, ताकि हम अपना शैतानी स्वभाव और भ्रष्टता जान सकें। इससे हमें पता चलता है कि हम अहंकार, चालाकी और दुष्टता जैसे शैतानी स्वभावों से भरे हुए हैं और हममें जरा-सी भी मानवता नहीं है। लोगों के लिए यह जानने का यही एक तरीका है कि वे कितनी गहराई से शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए हैं, ताकि वे खुद से घृणा करके सच्चा पश्चाताप करें और परमेश्वर के आगे प्रायश्चित करें। फिर वे सत्य के अनमोल महत्व को समझने लगते हैं और परमेश्वर के वचनों को व्यवहार में लाकर सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने लगते हैं। वे धीरे-धीरे अपने भ्रष्ट स्वभाव से मुक्त होकर अपने जीवन स्वभाव में बदलाव लाने लगते हैं, और परमेश्वर के आगे सच्चा समर्पण करने, उसका भय मानने और उसके वचनों के अनुसार जीने योग्य हो जाते हैं। इस तरह लोग शैतानी ताकतों से पूरी तरह मुक्त होकर परमेश्वर द्वारा बचाए जा सकते हैं, तब परमेश्वर उनकी रक्षा करता है और वे अंत के दिनों की तबाहियों से बच जाते हैं, और मनुष्य के लिए परमेश्वर द्वारा बनाई गई सुंदर मंजिल में प्रवेश करते हैं। इससे प्रकाशितवाक्य 21:3-6 की भविष्यवाणी साकार होती है। "मैं ने सिंहासन में से किसी को ऊँचे शब्द से यह कहते हुए सुना, 'देख, परमेश्वर का डेरा मनुष्यों के बीच में है। वह उनके साथ डेरा करेगा, और वे उसके लोग होंगे, और परमेश्वर आप उनके साथ रहेगा और उनका परमेश्वर होगा। वह उनकी आँखों से सब आँसू पोंछ डालेगा; और इसके बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहली बातें जाती रहीं।' जो सिंहासन पर बैठा था, उसने कहा, 'देख, मैं सब कुछ नया कर देता हूँ।' फिर उसने कहा, 'लिख ले, क्योंकि ये वचन विश्वास के योग्य और सत्य हैं।' फिर उसने मुझ से कहा, 'ये बातें पूरी हो गई हैं। मैं अल्फा और ओमेगा, आदि और अन्त हूँ। मैं प्यासे को जीवन के जल के सोते में से सेंतमेंत पिलाऊँगा।" यहाँ, परमेश्वर ने कहा है, "ये बातें पूरी हो गई हैं।" यह सलीब पर प्रभु यीशु द्वारा कहे गए "पूरा हुआ" से बिल्कुल अलग है। इन दोनों का अलग संदर्भ, अलग जगत है। जब प्रभु यीशु ने सलीब पर कहा था "पूरा हुआ" तो वह छुटकारे के काम के पूरा होने की बात कर रहा था। प्रकाशितवाक्य की किताब में "ये बातें पूरी हो गई हैं।" कहकर परमेश्वर मनुष्य को बचाने के अपने काम के पूरा होने की बात कर रहा है, जब परमेश्वर का धाम मनुष्यों के बीच है तो वह उन्हीं के साथ रहेगा, और वे लोग उसके राज्य के लोग होंगे, जहां कोई आँसू, मृत्यु या दुख नहीं होगा। परमेश्वर का उद्धार का काम पूरा होने का यही एकमात्र चिन्ह है।
इस बिंदु पर सबके लिए यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि सलीब पर प्रभु यीशु के वचनों को परमेश्वर के उद्धार के काम से जोड़ना पूरी तरह से परमेश्वर के कार्य की वास्तविकता से उलट है और सिर्फ एक मानवीय धारणा है। प्रभु के वचनों की गलत व्याख्या ही भ्रमित और गुमराह करती है और यह कहना मुश्किल है कि कितने लोग इसके शिकार हुए हैं। जो लोग आँख मूंदकर इसी धारणा से चिपके हुए हैं, और राज्य में ले जाए जाने के लिए प्रभु के अचानक बादलों पर सवार होकर आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए बहुत सारे सत्यों की जांच न करते हुए, वे प्रभु से मिलने का अवसर पूरी तरह खो देंगे। वे कभी भी पाप से मुक्त नहीं हो पाएंगे और न ही पूरी तरह बचाए जाएंगे। तब जीवन भर की आस्था बेकार चली जाएगी। वे तबाहियों में घिर जाएंगे और परमेश्वर द्वारा हटा दिए जाएंगे।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "अंत के दिनों का मसीह जीवन लेकर आता है, और सत्य का स्थायी और शाश्वत मार्ग लेकर आता है। यह सत्य वह मार्ग है जिसके द्वारा मनुष्य जीवन प्राप्त करता है, और यह एकमात्र मार्ग है जिसके द्वारा मनुष्य परमेश्वर को जानेगा और परमेश्वर द्वारा स्वीकृत किया जाएगा। यदि तुम अंत के दिनों के मसीह द्वारा प्रदान किया गया जीवन का मार्ग नहीं खोजते हो, तो तुम यीशु की स्वीकृति कभी प्राप्त नहीं करोगे, और स्वर्ग के राज्य के फाटक में प्रवेश करने के योग्य कभी नहीं हो पाओगे, क्योंकि तुम इतिहास की कठपुतली और कैदी दोनों ही हो। वे लोग जो नियमों से, शब्दों से नियंत्रित होते हैं, और इतिहास की जंजीरों में जकड़े हुए हैं, न तो कभी जीवन प्राप्त कर पाएँगे और न ही जीवन का शाश्वत मार्ग प्राप्त कर पाएँगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके पास, सिंहासन से प्रवाहित होने वाले जीवन के जल की बजाय, बस मैला पानी ही है जिससे वे हजारों सालों से चिपके हुए हैं। वे जिन्हें जीवन के जल की आपूर्ति नहीं की गई है, हमेशा के लिए मुर्दे, शैतान के खिलौने, और नरक की संतानें बने रहेंगे। फिर वे परमेश्वर को कैसे देख सकते हैं? यदि तुम केवल अतीत को पकड़े रखने की कोशिश करते हो, केवल जड़वत खड़े रहकर चीजों को जस का तस रखने की कोशिश करते हो, और यथास्थिति को बदलने और इतिहास को ख़ारिज़ करने की कोशिश नहीं करते हो, तो क्या तुम हमेशा परमेश्वर के विरुद्ध नहीं होगे? परमेश्वर के कार्य के चरण उमड़ती लहरों और गरजते तूफानों की तरह विशाल और शक्तिशाली हैं—फिर भी तुम निठल्ले बैठकर तबाही का इंतजार करते हो, अपनी नादानी से चिपके रहते हो और कुछ भी नहीं करते हो। इस तरह, तुम्हें मेमने के पदचिह्नों का अनुसरण करने वाला व्यक्ति कैसे माना जा सकता है? तुम जिस परमेश्वर को थामे हो उसे उस परमेश्वर के रूप में सही कैसे ठहरा सकते हो जो हमेशा नया है और कभी पुराना नहीं होता? और तुम्हारी पीली पड़ चुकी किताबों के शब्द तुम्हें नए युग में कैसे ले जा सकते हैं? वे परमेश्वर के कार्य के चरणों को ढूँढ़ने में तुम्हारी अगुआई कैसे कर सकते हैं? और वे तुम्हें ऊपर स्वर्ग में कैसे ले जा सकते हैं? तुम अपने हाथों में जो थामे हो वे शब्द हैं, जो तुम्हें केवल अस्थायी सांत्वना दे सकते हैं, जीवन देने में सक्षम सत्य नहीं दे सकते। तुम जो शास्त्र पढ़ते हो वे केवल तुम्हारी जिह्वा को समृद्ध कर सकते हैं और ये दर्शनशास्त्र के वचन नहीं हैं जो मानव जीवन को जानने में तुम्हारी मदद कर सकते हैं, तुम्हें पूर्णता की ओर ले जाने की बात तो दूर रही। क्या यह विसंगति तुम्हारे लिए गहन चिंतन का कारण नहीं है? क्या यह तुम्हें अपने भीतर समाहित रहस्यों का बोध नहीं करवाती है? क्या तुम परमेश्वर से अकेले में मिलने के लिए अपने आप को स्वर्ग को सौंप देने में समर्थ हो? परमेश्वर के आए बिना, क्या तुम परमेश्वर के साथ पारिवारिक आनंद मनाने के लिए अपने आप को स्वर्ग में ले जा सकते हो? क्या तुम अभी भी स्वप्न देख रहे हो? तो मेरा सुझाव यह है कि तुम स्वप्न देखना बंद कर दो और उसकी ओर देखो जो अभी कार्य कर रहा है—उसकी ओर देखो जो अब अंत के दिनों में मनुष्य को बचाने का कार्य कर रहा है। यदि तुम ऐसा नहीं करते हो, तो तुम कभी भी सत्य प्राप्त नहीं करोगे, और न ही कभी जीवन प्राप्त करोगे" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है')।