1यहोवा की स्तुति करो! क्योंकि अपने परमेश्वर का भजन गाना अच्छा है; क्योंकि वह मनभावना है, उसकी स्तुति करना उचित है।
2यहोवा यरूशलेम को फिर बसा रहा है; वह निकाले हुए इस्राएलियों को इकट्ठा कर रहा है।
3वह खेदित मनवालों को चंगा करता है, और उनके घाव पर मरहम-पट्टी बाँधता है*।
4वह तारों को गिनता, और उनमें से एक-एक का नाम रखता है।
5हमारा प्रभु महान और अति सामर्थी है; उसकी बुद्धि अपरम्पार है।
6यहोवा नम्र लोगों को सम्भालता है, और दुष्टों को भूमि पर गिरा देता है।
7धन्यवाद करते हुए यहोवा का गीत गाओ; वीणा बजाते हुए हमारे परमेश्वर का भजन गाओ।
8वह आकाश को मेघों से भर देता है, और पृथ्वी के लिये मेंह को तैयार करता है, और पहाड़ों पर घास उगाता है। (प्रेरि. 14:17)
9वह पशुओं को और कौवे के बच्चों को जो पुकारते हैं, आहार देता है। (लूका 12:24)
10न तो वह घोड़े के बल को चाहता है, और न पुरुष के बलवन्त पैरों से प्रसन्न होता है;
11यहोवा अपने डरवैयों ही से प्रसन्न होता है*, अर्थात् उनसे जो उसकी करुणा पर आशा लगाए रहते हैं।
12हे यरूशलेम, यहोवा की प्रशंसा कर! हे सिय्योन, अपने परमेश्वर की स्तुति कर!
13क्योंकि उसने तेरे फाटकों के खम्भों को दृढ़ किया है; और तेरे सन्तानों को आशीष दी है।
14वह तेरी सीमा में शान्ति देता है, और तुझको उत्तम से उत्तम गेहूँ से तृप्त करता है।
15वह पृथ्वी पर अपनी आज्ञा का प्रचार करता है, उसका वचन अति वेग से दौड़ता है।
16वह ऊन के समान हिम को गिराता है, और राख के समान पाला बिखेरता है।
17वह बर्फ के टुकड़े गिराता है, उसकी की हुई ठण्ड को कौन सह सकता है?
18वह आज्ञा देकर उन्हें गलाता है; वह वायु बहाता है, तब जल बहने लगता है।
19वह याकूब को अपना वचन, और इस्राएल को अपनी विधियाँ और नियम बताता है।
20किसी और जाति से उसने ऐसा बर्ताव नहीं किया; और उसके नियमों को औरों ने नहीं जाना। यहोवा की स्तुति करो। (रोम 3:2)