1<e>प्रधान बजानेवाले के लिये दाऊद का भजन</e> हे परमेश्वर तू, जिसकी मैं स्तुति करता हूँ, चुप न रह!
2क्योंकि दुष्ट और कपटी मनुष्यों ने मेरे विरुद्ध मुँह खोला है, वे मेरे विषय में झूठ बोलते हैं।
3उन्होंने बैर के वचनों से मुझे चारों ओर घेर लिया है, और व्यर्थ मुझसे लड़ते हैं। (यूह. 15:25)
4मेरे प्रेम के बदले में वे मेरी चुगली करते हैं, परन्तु मैं तो प्रार्थना में लौलीन रहता हूँ।
5उन्होंने भलाई के बदले में मुझसे बुराई की और मेरे प्रेम के बदले मुझसे बैर किया है।
6तू उसको किसी दुष्ट के अधिकार में रख, और कोई विरोधी उसकी दाहिनी ओर खड़ा रहे।
7जब उसका न्याय किया जाए, तब वह दोषी निकले, और उसकी प्रार्थना पाप गिनी जाए!
8उसके दिन थोड़े हों, और उसके पद को दूसरा ले! (प्रेरि. 1:20)
9उसके बच्चे अनाथ हो जाएँ, और उसकी स्त्री विधवा हो जाए!
10और उसके बच्चे मारे-मारे फिरें, और भीख माँगा करे; उनको अपने उजड़े हुए घर से दूर जाकर टुकड़े माँगना पड़े!
11महाजन फंदा लगाकर, उसका सर्वस्व ले ले*; और परदेशी उसकी कमाई को लूट लें!
12कोई न हो जो उस पर करुणा करता रहे, और उसके अनाथ बालकों पर कोई तरस न खाए!
13उसका वंश नाश हो जाए, दूसरी पीढ़ी में उसका नाम मिट जाए!
14उसके पितरों का अधर्म यहोवा को स्मरण रहे, और उसकी माता का पाप न मिटे!
15वह निरन्तर यहोवा के सम्मुख रहे, वह उनका नाम पृथ्वी पर से मिटे!
16क्योंकि वह दुष्ट, करुणा करना भूल गया वरन् दीन और दरिद्र को सताता था और मार डालने की इच्छा से खेदित मनवालों के पीछे पड़ा रहता था।
17वह श्राप देने से प्रीति रखता था, और श्राप उस पर आ पड़ा; वह आशीर्वाद देने से प्रसन्न न होता था, इसलिए आशीर्वाद उससे दूर रहा।
18वह श्राप देना वस्त्र के समान पहनता था, और वह उसके पेट में जल के समान और उसकी हड्डियों में तेल के समान* समा गया।
19वह उसके लिये ओढ़ने का काम दे, और फेंटे के समान उसकी कटि में नित्य कसा रहे।
20यहोवा की ओर से मेरे विरोधियों को, और मेरे विरुद्ध बुरा कहनेवालों को यही बदला मिले!
21परन्तु हे यहोवा प्रभु, तू अपने नाम के निमित्त मुझसे बर्ताव कर; तेरी करुणा तो बड़ी है, इसलिए तू मुझे छुटकारा दे!
22क्योंकि मैं दीन और दरिद्र हूँ, और मेरा हृदय घायल हुआ है*।
23मैं ढलती हुई छाया के समान जाता रहा हूँ; मैं टिड्डी के समान उड़ा दिया गया हूँ।
24उपवास करते-करते मेरे घुटने निर्बल हो गए; और मुझ में चर्बी न रहने से मैं सूख गया हूँ।
25मेरी तो उन लोगों से नामधराई होती है; जब वे मुझे देखते, तब सिर हिलाते हैं। (इब्रा. 10:12-13, लूका 20:42-43)
26हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मेरी सहायता कर! अपनी करुणा के अनुसार मेरा उद्धार कर!
27जिससे वे जाने कि यह तेरा काम है, और हे यहोवा, तूने ही यह किया है!
28वे मुझे कोसते तो रहें, परन्तु तू आशीष दे! वे तो उठते ही लज्जित हों, परन्तु तेरा दास आनन्दित हो! (1 कुरि. 4:12)
29मेरे विरोधियों को अनादररूपी वस्त्र पहनाया जाए, और वे अपनी लज्जा को कम्बल के समान ओढ़ें!
30मैं यहोवा का बहुत धन्यवाद करूँगा, और बहुत लोगों के बीच में उसकी स्तुति करूँगा।
31क्योंकि वह दरिद्र की दाहिनी ओर खड़ा रहेगा, कि उसको प्राण-दण्ड देनेवालों से बचाए।